सरस्वती पत्रिका

सरस्वती पत्रिका के संपादक/प्रकाशक – चिंतामणि घोष ने आरंभ करवाया।

सरस्वती पत्रिका की स्थापना वर्ष – 1900 ई.

सरस्वती पत्रिका के संपादक (मंडल)

      1. जनवरी 1900 ई से दिसंबर 1900 ई. तक

      सरस्वती पत्रिका के संपादक मंडल में 5 संपादक थे-

            जगन्नाथ दास रत्नाकर

            किशोरीलाल गोस्वामी 

            श्यामसुन्दर दास

            राधाकृष्ण दास

            कार्तिक प्रसाद खत्री

      2. जनवरी 1901 ई. से दिसंबर 1902 ई. तक श्यामसुंदर दास इन्होंने बिना             पारिश्रमिक लिए कार्य किया।

      3. जनवरी 1903 ई. से दिसंबर 1920 तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी रहे।          साहित्यकारों के अनुसार यह पत्रिका का स्वर्णिम काल माना जाता है। आचार्य       महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका के जरिए खड़ी बोली को नई ऊचाइयां            मिली।

      4. 1921 ई. से 1925 ई. तक पदुमलाल पुन्नालाल वक्शी रहे

      5. 1926 ई. से 1927 ई. तक देवीदत्त शुक्ल रहे

      6. नवंबर 1927 ई. से जुलाई 1928 ई. तक पदुमलाल पुन्नालाल वक्शी रहे

      7. जुलाई 1928 ई. से 1948 ई. तक देवीदत्त शुक्ल रहे

            नोट: जुलाई 1928 ई. दिसंबर 1928 ई. तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल संपादन           करते रहे।

      8. 1946 ई. में उमेशचन्द्र मिश्र को संपादक बनाया गया।1946 ई. में ही अचानक        उमेशचन्द्र मिश्र का निधन हो गया। अतः 1946 ई. से 1955 ई. तक पदुमलाल    पुन्नालाल वक्शी फिर से संपादक रहे।

      9. 1955 ई. से 1960 ई. तक देवीदयाल चतुर्वेदी रहे।

      10. 1960 ई. से 1980 ई. तक नारायण चतुर्वेदी रहे। 1980 ई. में सरस्वती पत्रिका        बंद हो गई। ऑक्टूबर 2020 ई. से इसे पुनः आरंभ किया। इसके वर्तमान               संपादक देवेंद्र शुक्ल और सहायक संपादक अनुपम परिहार है।

      11. वर्तमान में ‘सरस्वती’ पत्रिका त्रैमासिक पत्रिका है।

सरस्वती पत्रिका को किसने क्या कहा:

      आचार्य शुक्ल जी ने- “सरस्वती पत्रिका को ‘प्रारंभिक काल का विश्वकोश’ कहा है।”

      गुलाबराय के अनुसार -“मेरे बाल्यकाल की अतिरिक्त ज्ञान की एक मात्र साधिका है।”

      रामविलास शर्मा ने – हिंदी का जातीय पत्रिका और आदर्श पत्रिका कहा है।”

सरस्वती पत्रिका के संबंध में आलोचकों के कथन:

      सुनित्रनंदन पन्त के अनुसार- “सरस्वती निःसंदेह तब की हिंदी की सर्वश्रेष्ठ और उच्चकोटि की मासिक पत्रिका है।”

      मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में – “उस समय सरस्वती ही एक ऐसी पत्रिका थी जिसे भारत के सभी प्रांतों में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।”

      डॉ बच्चन सिंह के शब्दों में – “सरस्वती के माध्यम से द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य की विभाजक रेखा को मिटा दिया।

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