व्युत्पत्ति- ‘किन्नर’ दो शब्दों के योग से बना है ‘किम’ + ‘नर’ = किन्नर, जिसका अर्थ होता है, हिजड़ा, नपुंसक ।
> किन्नर विमर्श से तात्पर्य है, किन्नरों के जीवन से संबंधित समस्याओं की चर्चा करना।
> 2006 ई. में किन्नरों को ‘थर्ड जेंडर’ का दर्जा दिया गया, साथ ही साहित्यकारों का भी ध्यान इनकी ओर गया।
> थर्ड जेंडर विमर्श 21वीं शताब्दी में अधिक प्रचलित हुई।
> थर्ड जेंडर विमर्श से संबंधित हिंदी की प्रथम रचना – ‘दरमिया’ कहानी है। इसके रचनाकार सुभाष अखिल है। रचनाकाल- 1978 ई. है।
> 1980 ई. में यह कहानी ‘सारिका’ पत्रिका में ऑक्टूबर के अंक में प्रकाशित हुआ था।
> इस कहानी को नरेंद्र कोहली ने ‘थर्ड जेंडर’ विमर्श से संबंधित प्रथम रचना माना है।
> 2018 ई. सुभाष अखिल के द्वारा इस कहानी को उपन्यास का रूप दे दिया गया।
थर्ड जेंडर विमर्श की अवधारनाएँ:
> किन्नरों के जीवन शैली, रीति-रिवाजों का चित्रण।
> इनके जीवन में आनेवाली समस्याओं का चित्रण।
> निराशा, कुंठा, एकाकीपन, सामजिक उपेक्षा आदि का चित्रण।
> किन्नरों के प्रति मानवीयता का संदेश होना आवश्यक है।
थर्ड जेंडर से संबंधित हिंदी साहित्य (उपन्यास) और साहित्यकार:
क्र. सं | रचनाकार | उपन्यास | प्रकाशन वर्ष |
1. | नीरजा माधव | यमदीप | 2002 ई. |
2. | अनुसुइया त्यागी | मैं भी औरत हूँ | 2005 ई. |
3. | प्रदीप सौरभ | तीसरी ताली | 2010 ई. |
4. | महेंद्र भीष्म | किन्नर कथा | 2011 ई. |
5. | निर्मला मुराडिया | गुलाम मंडी | 2013 ई. |
6. | चित्र मुद्गल | नाला सोपारा पो.बाक्स.न. 203 | 2016 ई. |
7. | महेंद्र भीष्म | मैं पायल | 2016 ई. |
8. | भगवंत अनमोल | जिंदगी 50 -50 | 2017 ई. |
9. | सुभास अखिल | दरमियाना | 2018 ई. |
वे रचनाएँ और कहानियाँ जो पूर्णतया किन्नर से संबंधित नहीं है:
चतुरी चमार – निराला
लिहाफ (कहानी) – इस्मत चुगताई
बिंदा महाराज (कहानी) – शिवप्रसाद सिंह
शिखंडी (कहानी) – देवदत्त पटनायक
संज्ञा – किरण सिंह
थर्ड जेंडर विमर्श से संबंधित सिनेमा: सड़क, तमन्ना, दायरा, शबनम मौसी, संघर्ष आदि।
महेंद्र भीष्म – तीसरी ताली (2010 ई.)
इस उपन्यास में गौतम के यहाँ विनीत का जन्म होता है, जो किन्नर है। उसके पिता गौतम उसे समाज की नजरों से दूर रखना चाहते हैं। अंत में समाज के अवहेलना के कारण उसे त्याग दिया जाता है।
महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा (2011 ई.)
इसमें सोना उर्फ़ चंदा राज नाम के एक बच्चे को जन्म देती है। माँ को मालूम था कि उसका बेटा किन्नर है लेकिन वह इस बात को किसी को नहीं बताती है। कुछ समय बाद राज के पिता जगतराज को मालूम हो जाता है कि उसका बच्चा किन्नर है। वे उस बच्चे को मारने का आदेश दे देते हैं।
चित्र मुद्गल – नाला सोपारा पो.बाक्स न. 203 (2016 ई.)
> यह पत्रात्मक शैली में लिखा गया है।
> इसमें माँ अपने बच्चे को किन्नरों से दूर रखने की कोशिश करती है।
> इसकी संपूर्ण कथा मां को संबोधित पत्रों की शक्ल में है, जो कहीं भी बोझिल या बेस्वाद नहीं होती है।
> यह उपन्यास हमें जननांग दोषी समुदाय पर गहरी नजर डालने को बाध्य करता है।
भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50 (2017 ई.)
किन्नर को उसके परिवार और समाज से मिले दर्द तथा उसके साथ हुए अन्याय आदि घटनाओं को लेकर लिखा गया उपन्यास है। यहाँ उपन्यासकार अपनी रचना के माध्यम से समाज के सामने अनेकों प्रश्न करता हुआ दिखाई देता है कि क्या किन्नर होना कोई अपराध है? क्या किन्नर को समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं है? आदि।
निषकर्ष: किन्नरों को तृतीय लिंग के रूप में सरकार को सिर्फ मान्यता देनें से नही होगा। सरकार को उनके विकास के लिए उचित कदम उठाने होंगे जिससे वे शिक्षित होकर रोजगार प्राप्त कर सके। उनके लिए ‘शिक्षा’ ही मुक्ति का सही और उचित मार्ग होगा। तभी वे सम्मान के साथ समाज में जीवन गुजार सकेंगे।