आदिवासी विमर्श

आदिवासी का अर्थ- किसी भी देश के मूल निवासियों को आदिवासी शब्द से संबोधित किया जाता है। ‘आदि’ का अर्थ ‘आरंभ’ तथा ‘वासी’ का अर्थ होता है ‘रहने वाला’ इस प्रकार आदिवासी शब्द का अर्थ हुआ किसी स्थान पर रहने वाले वहाँ के मूल निवासी।

परिभाषाएँ-

      रामचंद्र वर्मा के शब्दों में- “वे जातियाँ जो आरंभ से ही जंगलों में निवास करती हैं। प्राचीन मान्यताओं एवं संस्कारों का पालन करती हैं, उन्हें आदिवासी कहते हैं।”

      रामकुमार वर्मा के शब्दों में- “आदिम मान्यताओं का पालन करनेवाली जातियाँ जो शिक्षा एवं शहरी संस्कृति से दूर है वे आदिवासी हैं।”

      देवेन्द्र सत्यार्थी के शब्दों में – “अपनी मूल मान्यताओं को लेकर सजग रहनेवाले जंगलों के नजदीक प्रकृति से प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले लोग आदिवासी हैं।”

आदिवासी विमर्श की अवाधारणाएँ

      जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की पहचान का चित्रण।  

      जन जातियों की विस्थापन की पीड़ा का चित्रण।

      शोषण, अत्याचार, जमीन से बेदखल, संघर्ष आदि दिखाई पड़ता है।

      नक्सलवाद, अस्तित्व का सवाल, अस्मिता की पहचान।

      शिक्षा का विकास का प्रश्न, आदिवादी मुख्य धरा से अभी भी वंचित हैं।

आदिवासी विमर्श के विशेष तथ्य:

      आदिवासी विमर्श मुख्यतः उपन्यासों में ही देखने को मिलता है।

      भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए ‘जनजाति’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

1. वृंदावनलाल वर्मा –

      ‘कचनार’ (1947 ई. ) में प्रकाशित हुआ था।

      आदिवासी विमर्श से संबंधित हिंदी का प्रथम उपन्यास है,

      इस उपन्यास में धामोनी अंचल में रहने वाले ‘गोंड’ जनजाति का चित्रण है।

2. देवेन्द्र सत्यार्थी – ‘रथ के पहिये’ (1952 ई.)

      यह देवेन्द्र सत्यार्थी का प्रथम उपन्यास है, यह मध्यप्रदेश के गोंड आदिवासीयों से संबंधित है।

3. श्याम परमार – ‘मिरझाल’ (1952 ई.)

      यह उपन्यास मालवा क्षेत्र के ‘भील’ आदिवासियों से संबंधित है।

4. योगेन्द्र सिन्हा – ‘वनलक्ष्मी’ (1956 ई.)

      यह उपन्यास बिहार के ‘हो’ आदिवासियों से संबंधित है।

      इसमें आदिवासी बुदनी एवं एक अंग्रेज जाफरान कि प्रेम कथा का चित्रण है।

5. उदय शंकर भट्ट – ‘सागर लहरें और मनुष्य’ (1956 ई.)

      इसमें मुंबई के बरसोवा अंचल व कोली जाति के मछुआरों की कथा है।

6. रांघेय राघव – ‘कब तक पुकारू’ (1957 ई.)

      राजस्थान के वैर नामक स्थान पर बसे ‘करनट’ आदिवासियों पर आधारित है।

7. राजेन्द्र अवस्थी – ‘सूरज किरण छाँव’ (1959 ई.)

      ये मुंडा आदिवासियों से संबंधित है इसमें बंजारी नायिका की मर्म गाथा का चित्रण है।

8. बलभद्र ठाकुर – ‘नेपाल की वो बेटी’-  (1959 ई.)

      इसमें नेपाल के डटियाल आदिवासी जन जातियों का चित्रण है’।

9. राजेन्द्र अवस्थी – ‘जंगल के फूल’ (1960 ई.)

      इस उपन्यास में वस्तर के गोंड आदि वासियों से संबंधित है।

10. योगेद्र नाथ सिन्हा –  ‘वन के मन में’ (1962 ई.)

      यह उपन्यास झारखंड के ‘हो’ आदिवासियों से संबंधित है।

11. गुलशेर खां शानी – ‘साँप और सीढी’ (1971 ई.)

      इस उपन्यास में उड़ीसा और बस्तर के मध्य रहने वाले ‘हलबा’ आदिवासियों    औद्दोगिकरण से हुई दुर्दशा का वर्णन है।

12. राकेश वत्स – ‘जंगल के आसपास’ (1982 ई.)

      यह उपन्यास सोननदी के तट पर बसनेवाले आदिवासियों से संबंधित है।

13. सुरेन्द्र श्रीवास्तव – ‘वनतरी’ (1986 ई.)

      झारखंड के डुमरी अंचल के परहिया आदिवासियों से संबंधित है ।

14. शिवप्रसाद सिंह –  ‘शैलूष’ (1989 ई.)

      चंदोली के रेवतीपूर गाँव के आदिवासी नटो का चित्रण है।

15. संजीव – ‘धार’ (1990 ई.)

      संथाल परगना एवं छोटानागपुर के आदिवासियोंसे संबंधित है।

16. भगवानदास मोरवाल – ‘काला पत्थर’ (1999 ई.)

      यह मेव जनजाति पर आधारित उपन्यास है।

17. संजीव – ‘जंगल जहाँ से शुरू होता है’ (2000 ई.)

      पश्चिमी चंपारण के थारु आदिवासियों से संबंधित है।

18. संजीव – ‘पाँव तले की दूब’ (2000 ई.)

      झारखंड की जनजातियों एवं उनके आंदोलनों का वर्णन है।

19. मैत्रयी पुष्पा – ‘अल्मा कबूतरी’ (2000 ई.)

      इसमें बुंदेलखंड की कबूतरा जनजाति का चित्रण है।

20. राकेश कुमार सिंह – ‘जो इतिहास में नहीं है’ (2005 ई.)

      यह उपन्यास झारखंड के संथाल आदिवासियों से संबंधित है।

21. रणेंद्र – ग्लोबल गाँव के देवता (2009 ई.)

      यह उपन्यास कीकर प्रदेश के असुर आदिवासियों से संबंधित है।

22. महुआ माजी / मांझी – ‘मंरंग गोंडा नीलकंठ हुआ’ (2012 ई.)

      यह झारखंड के हो अदिवादियों से संबंधित है।

विशेष:

      आदिवासी साहित्य को ऑरेचर (मौखिक) साहित्य कहा जाता है।

      हिंदी की पहली आदिवासी कवयित्री सुशीला सामंत हैं।

      हिंदी की पहली आदिवासी कहानीकार ‘रोज केरकट्टा’ हैं।

      आदिवासियों से संबंधित पत्रिका ‘आधी दुनिया’ के संपादक रोज केरकट्टा हैं।

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