मार्क्सवाद

मार्क्सवाद – अर्थशास्त्र और राजनीति से संबंधित जर्मन विचारक कार्लमार्क्स के विचारों को सामूहिक रूप से मार्क्सवाद के रुप में जाना जाता है। मार्क्सवादी विचारधारा के जनक कार्लमार्क्स थे।

कार्लमार्क्स का परिचय:

      जन्म- 5 मई 1818 ई. ट्रेवेज नगर, राइनलैंड (जर्मनी) में हुआ था।

      निधन- 14 मार्च 1883 ई. को लंदन में हुआ।

      पूरानाम- कार्ल हेनरिख मार्क्स था। इन्होंने 1839 – 1841 के बीच ‘दिमाँक्रितस’ और ‘एपीक्यूरस’ के प्राकृतिक दर्शन पर शोध कार्य के लिए ‘येल विश्वविद्यालय’ से Ph.D की उपाधि प्राप्त की।

मार्क्स के जीवन की प्रमुख घटनाएँ:

      1842 ई. में कोलोन से प्रकाशित ‘राइन’ समाचार पत्र के लिए लेखन किया।

      1843 ई. में ‘राइनिशत्जाइतुड’ अखबार का प्रकाशन किया।

      1848 ई. में ‘नवे राइनिशे जीतुंग’ अखबार का संपादन किया ।

      1849 ई. में अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष ‘जुर क्रिटीक पोलिटेशन इकानामी’ में           प्रकाशित हुआ।

      1864 ई. में लंदन के ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ’ की अस्थापन में महत्वपूर्ण भूमिका           निभाई।

मार्क्स की महत्वपूर्ण रचनाएँ:

      1. ‘कम्युनिष्ट मेनिफेस्टो’ (1848 ई.)

            > इसे मार्क्सवाद का घोषणापत्र कहते हैं।

            > यह वैज्ञानिक कम्युनिज्म का पहला कार्यक्रम-मूलक दस्तावेज़ है।

            > इसमें मार्क्सवाद और साम्यवाद के मूल सिद्धांतों की विवेचना किया गया है।

            > अतः इसे ‘साम्यवादी घोषणापत्र’ के नाम से भी जाना जाता है।

            > इसी रचना में मार्क्स ने कहा था – “दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।”

            > “धर्म एक अफीम है, जो व्यक्ति को कर्महीन बनाने के लिए पर्याप्त है।”

            > “धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह है, एक हृदयहीन दुनिया का ह्रदय है।”

2. ‘दास कैपिटल’ (1867 ई. इसे हिंदी में पूँजी कहते है।)

      > इस पुस्तक में पूँजीवाद का विश्लेषण तथ मजदूरवर्ग को शोषण से मुक्त करने का       उपाय है।

      इस पुस्तक के तीन भाग हैं –

            प्रथम भाग – 1867 ई. संपादन एवं लेखन स्वयं मार्क्स के द्वारा हुआ था।

            दूसरा भाग – 1885 ई. इसका संपादन एंगेल्स ने किया।

            तृतीय भाग – 1894 ई. संपादन (दूसरा और तीसरा भाग का संपादन उनके                       दोस्त एवं सहयोगी फ्रेडरिक एंजेल्स ने किया)

3. सरप्लस वैल्यू के सिद्धांत

4. दरिद्रता दर्शन

5. पवित्र परिवार

6. क्रिटीक ऑफ पोलिटिकल इकोनोमी

7. ‘द पॉवर्टी ऑफ फिलॉस्फी’ भी इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।

कार्लमार्क्स के कथन:

      > “समाज में जो भी घटित होता है, वह सिर्फ पूँजी के लिए घटित होता है”

      > “समाज में केवल दो ही वर्ग हैं – ‘पूँजिपति’ और ‘सर्वहारा’ वर्ग।”

      > “दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है,       सिवाय अपनी जंजीरों के।”

      > “इतिहास खुद दुहराता है, पहले त्रासदी की तरह, दूसरे एक मजा की तरह।”

      > “लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है।”

प्रमुख मार्क्सवादी विचारक:

      कॉडवेल, राल्फ फाक्स, फेरेल, जार्ज लुकाच, एडुआर्ड, निकोस पुलेत्साज, कॉटस्की, लेनिन, एंजेल्स, रोजा लक्जमवर्ग।

मार्क्सवाद के विशेष तथ्य:

      > मार्क्स के विचारों के आधार पर 1917 ई. में रुसी क्रांति हुई थी।

      > मार्क्स ने 1844 ई, में वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापना की।

      > मार्क्सवाद को सबसे पहले व्यावहारिक रूप लेनिन ने दिया था।

मार्क्स के निधन पर लेनिन ने कहा था

      “आज मानव जाति एक महत्वाकांक्षी मस्तिष्क से वंचित हो गई।”

लॉस्की के शब्दों में – “मार्क्स ने समाजवाद को एकरूपता में बाँधा और एक आन्दोलन बना                 दिया।”

कार्ल मार्क्स के कार्य एवं विचार:

      > कार्लमार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित थे।

      > कार्ल मार्क्स ने ‘होली फेमिली’ नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमे उन्होंने                     सर्वहारा वर्ग और भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सबसे अधिक प्रकाश        डाला।

      > मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणा-पत्र में पूँजीवाद को समाप्त करने का संकल्प       लिया था।

      > मार्क्स के अनुसार विश्व में अशांति एवं असंतोष का कारण गरीबों और अमीरों के     मध्य का वर्ग संघर्ष ही है।

      > वर्ग विहीन समाज की स्थापन करना मार्क्स का प्रमुख उद्देश्य था। मार्क्स ने विश्व     को संघर्ष करने की प्रेरणा दिया।

      > मार्क्स ने कहा ‘लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।’ 

मार्क्सवाद की परिभाषा-

      कार्लमार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स / एंजेल्स के द्वारा जिस शोषण विहीन और वर्ग विहीन समाज की स्थापना की गई, जिसमे समानता पर अधिक बल दिया गया। उसी विचारधरा को  मार्क्सवाद के नाम से जाना जाता है। मार्क्सवाद का उदय 19वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। जब यूरोप में उदारवाद अपने चरम सीमा पर था। उदारवाद लोगों के अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा। इसके विरोध में मार्क्स ने 1844 ई. में वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापन किया। यहीं से मार्क्सवाद का आरम्भ माना जाता है।

मार्क्सवाद के दो रूप थे: 1. चिर सम्मत मार्क्सवाद 2. समकालीन मार्क्सवाद

1. चिर सम्मत मार्क्सवाद:

      परिभाषा- कार्लमार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित विचार जिसमे कोई परिवर्तन नहीं हुआ अथार्त उसे ज्यों का ज्यों ग्रहन कर लिया गया। उन्हें चिर सम्मत मार्क्सवाद के नाम से जाना जाता है। चिर सम्मत मार्क्सवाद में निम्नलिखित सिद्धांत शामिल है – 

      द्वंदात्मक भौतिकवाद- यह विचारधारा मार्क्स ने हीगेल से उद्धार लिया था। मार्क्स ने द्वंदात्मक भौतिकवाद को सर्वांगीण जीवन दर्शन कहा है। इस सिद्धांत के अनुसार भौतिक जगत की सभी वस्तुएँ और घटनाएँ अपने आतंरिक विरोध और संघर्ष के कारण द्वंद्वादी प्रतिक्रियाओं के आधार पर विकास की ओर अग्रसर होती है। यह विकास गुणात्मक होता है। इसमें निषेधात्मक कार्य का निषेध होता है।

      ऐतिहासिक भौतिकवाद – ऐतिहासिक भौतिकवाद से तात्पर्य इतिहास के किसी भी युग में समाज के आर्थिक संबंध, समाज के प्रगति का रास्ता तैयार करने तथा राजनीतिक क़ानूनी, बौद्धिक, नैतिक मूल्यों को निर्धारित करने से है। मार्क्स ने इस सिद्धांत के अंतर्गत यह बताया है कि आर्थिक संबंधों में बदलाव करने से है। समाज के स्वरुप में बदलाव हो जाता है यह बदलाव ही विकास का मुख्य आधार होता है।

      इस विकास के तीन अवस्थाएँ है- 1. वाद (प्रस्तुत) 2. प्रतिवाद (विरोध) 3. संवाद                        (परम सत्य का अर्थ होता है- बीच का रास्ता निकालना।)

      अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत – मार्क्स के अनुसार अतिरिक्त मूल्य से तात्पर्य काम के उचित मूल्य से है। किसी भी वस्तु का मूल्य श्रमिक वर्ग के परिश्रम का परिणाम है। मालिक या पूंजीपति वर्ग वस्तु के विक्रय से हुए लाभ में श्रमिक वर्ग को शामिल नहीं करता है। मार्क्स ने इसे चोरी कहा है। वस्तु का मूल्य श्रमिक वर्ग की कार्य कुशलता से निर्धारित होता है।

      वर्ग संघर्ष का सिद्धांत – कार्लमार्क्स के अनुसार समाज में केवल दो ही वर्ग होते हैं। शोषक वर्ग (पूंजीपति वर्ग), शोषित वर्ग (सर्वहारा वर्ग) इनके बीच हमेशा संघर्ष चलता रहता है। दोनों वर्ग एक दूसरे पर हावी होते रहते है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।

चिर सम्मत मार्क्सवाद की विशेषताएँ:

      > हिंसक क्रांति का समर्थक

      > शोषण विहीन समाज की स्थापना पर बल दिया

      > वर्ग विहीन समाज की स्थापना पर बल

      > यथार्थवाद पर बल दिया है

      > कला के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण  

समकालीन मार्क्सवाद: मार्क्स के विचारों को वर्तमान परिवेश में आवश्यकतानुसार कुछ                   परिवर्तन के साथ अपनाना समकालीन मार्क्सवाद है।

समकालीन मार्क्सवाद की विशेषताएँ:

      > अहिंसक क्रांति पर बल दिया गया

      > मानवीय पक्ष पर बल दिया गया 

      > धर्म का विरोध नहीं करते है।     

निष्कर्ष: वैज्ञानिक समाजवाद के जन्मदाता, संस्थापक, मजदूरों, किसानों एवं पीड़ितों  के मसीहा कहे जाने वाले मार्क्स को दुनिया हमेशा याद रखेगी। मार्क्स वर्ग संघर्ष, पूँजीवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, सामाजिक परिवर्तन आदि पर जो अपने महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए वह वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.