‘उत्तर आधुनिकतावाद’ अंग्रेजी के ‘Post Modernism’ शब्द का हिंदी रूपांतरण है। ‘पोस्ट’ (Post) शब्द का अर्थ ‘बाद’ में होता है। उत्तर आधुनिकता अपने अर्थ में आधुनिकता की समाप्ति अथवा आधुनिकता के विस्तार की घोषणा का रूप है। उत्तर आधुनिकता को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ विद्वान इसे ‘आधुनिकता’ की समाप्ति तो कुछ विद्वान इसे ‘आधुनिकता’ का विस्तार मानते है। इसका प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद किया गया। आधुनिकता के अंत की धोषण के पश्चात किया गया।
उत्तर आधुनिकता के प्रवर्तक या जनक:
उत्तर आधुनिकता की पहली परिकल्पना अर्नाल्ड टॉयनबी ने किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में कहा कि आज से लगभग 120 वर्ष पूर्व सन् 1850 – 1857 ई. के बीच आधुनिक युग समाप्त हो गया। उस समय तक अर्नाल्ड टॉयनबी अपनी पुस्तक ‘ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ के 5वें भाग में पहुंचे थे, जिसका प्रकाशन 1939 ई. में हुआ। उन्होंने दो यूरोपीय युद्धों 1918 से 1939 के बीच के समय के लिए ‘उत्तर आधुनिक’ शब्द का प्रयोग शुरू कर दिया था। उन्होंने उत्तर आधुनिकता का मसीहा ‘नीत्से’ को माना है।
परिभाषाएँ-
आर्न टॉयनबी के शब्दों में “आधुनिकता के बाद उत्तर आधुनिकतावाद तब शुरू होती है जब लोग कई अर्थों में अपने जीवन, विचार, एवं भावनाओं में तार्किकता एवं संगति को त्यागकर अतार्किकता एवं असंगतियों को अपना लेते हैं। उनके अनुसार उत्तर आधुनिकता की चेतना विगत को एवं विगत के प्रतिमानों को भुला देने का सक्रीय उत्साह है जिसमें समग्रता एवं तार्किकता का कोई स्थान नहीं है।”
जॉर्ज रिट्जर के शब्दों में – इन्होंने अपनी पुस्तक ‘मॉडर्निटी एण्ड पोस्ट मॉडर्निटी’ में इसे परिभाषित करते हुए लिखा है- “उत्तर आधुनिकता का मतलब एक ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिक आधुनिकता की समाप्ति के बाद प्रारंभ होता है। उत्तर आधुनिकतावाद का संदर्भ सांस्कृतिक तत्वों से है। जिसमे समस्त कलाएँ शामिल है। उन सभी कलाओं के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण ही उत्तर आधुनिकता है।”
जेमेशन के शब्दों में – इन्होंने अपनी पुस्तक ‘पोस्ट माडर्निज्म द कल्चर लॉजिक ऑफ लेट कैपिटलिज्म’ में उत्तर आधुनिकता को पूँजीवाद के विकास की विशेष अवस्था के निर्माण का कारण मानते हैं। इसमें उन्होंने बहुराष्ट्रीय पूँजीवाद की अपेक्षा उपभोक्ता को विशेष महत्व दिया है।”
कृष्णदत्त पालीवाल के शब्दों में – इन्होंने अपनी पुस्तक “उत्तर आधुनिकता की ओर’ में लिखा है, “विज्ञान की दमनकारी खोजों से मुक्ति पाने को लेकर जो विचार 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद प्रस्तुत किया गया उससे उत्तर आधुनिकतावाद का आरंभ होता है।”
गोपीचंद नारंग के शब्दों में – इन्होंने अपनी पुस्तक ‘उत्तर आधुनिकतावाद’ में लिखा है कि -” उत्तर आधुनिकतावाद किसी एक सिद्धांत का नहीं वरन् अनेक सिद्धांतों या बौद्धिक अभिवृतियों का नाम है। इसमें पहले से चली आ रही अनुपयोगी परंपराओं को निरस्त करने का प्रयास है जो दार्शनिक समस्याओं पर भी आधारित है। अतः उत्तर-आधुनिकता एक नई सांस्कृतिक अवस्था भी है, यानी आधुनिकता के बाद का युग उत्तर-आधुनिक कहलाएगा।”
आल्विन टाफुलर के शब्दों में – इन्होंने अपनी रचना- ‘हिस्ट्री ऑफ पोस्ट मॉडर्निटी’ में लिखा है, कि “जिस नई सभ्यता का प्रादुर्भाव हो रहा है, उसमे अति बौद्धिकता व पूँजीवाद के दोषों का निराकरण है। यह सभ्यता अपने साथ एक नवीन परिवर्तन की चेतना ला रही है। आज हजारों लोग भविष्य की इस नई लय के साथ अपने आपको ‘ट्यून’ कर रहे हैं।”
जगदीश्वर चतुर्वेदी- जगदीश्वर चतुर्वेदी ‘उत्तर आधुनिकता’ को नए युग के रूप में स्वीकार करते हुए कहते है, “उत्तर आधुनिकतावाद पृथ्वी पर एक नए युग की शुरुआत है। यह युग आधुनिकता को ख़त्म कर चुका है। उत्तर आधुनिकतावाद परिवर्तन के प्रति सचेत है।”
उत्तर आधुनिकता शब्दावली का इतिहास:
उत्तर आधुनिकता शब्द का सबसे पहले प्रयोग एक अंग्रेज चित्रकार जे.डब्लू चैपमैन ने 1870 ई. में अपने चित्रों की विशेषता को बताने के लिए किया था। (यह साहित्य के क्षेत्र में प्रयोग नहीं था)
1916 ई. में रुडोल्फ पानविज ने यूरोपियन संस्कृति की नाशवादी प्रवृतियों के लिए उत्तर आधुनिकता शब्द का प्रयोग किया था।
1961 ई. में आर्नाल्ड टॉयनबी ने सबसे पहले अपनी पुस्तक ‘ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में साहित्य के क्षेत्र में उत्तर आधुनिकतावाद शब्द का प्रयोग किया था। इसलिए आर्नाल्ड टॉयनबी को उत्तर आधुनिकतावाद का प्रवर्तक माना जाता है।
उत्तर आधुनिकतावाद को स्वीकृति मिली:
अमेरिका में – 1950 ई. फ़्रांस में – 1970 ई. ब्रिटेन में – 1970ई. भारत में 1970 ई.
उत्तर आधुनिकता से संबंधित विचारक:
फ्रेडरिक नीत्से (1844-1900 ई.) नीत्से जर्मन दार्शनिक थे। इन्होने आधुनिकता की आलोचना किया था। ये अति बौद्धिकता के स्थान पर रोमांटिक प्रवृति के समर्थक थे। नीत्से तार्किकता के भी विरोधी थे। नीत्से ईश्वर की मृत्यु और धर्म के अवसान की घोषणा भी किया था।
मार्टिन हाइडेगर (1889-1976 ई.) मार्टिन हाडेगर जर्मन दार्शनिक थे। ये ऐतिहासिकता के विरोधी थे। इनकी मान्यता थी कि तकनीक ने मानव को अपना दास बना लिया है। अस्तित्ववाद में इनकी आस्था थी। इनके अनुसार अति बौद्धिकता मानवता के लिए हानिकारक है।
मिशेल फूको (1926-1984) ये फ्रांसीसी दार्शनिक थे। आधुनिकता की बौद्धिकता मानव के लिए हानिकारक है। कला व जीवन के लिए नए प्रतिमान खोजने की आवश्यकता है। विज्ञान के प्रति मोह से छुटकारा पाना।
रचनाएँ:
> मेडनेस एण्ड सिविलाईजेसन (1961 ई.)
> दि बर्थ ऑफ दि क्लिनिक (1963 ई.)
> दि ऑडर ऑफ थिंग्स (1966 ई.)
> दि आर्कियोलॉजी ऑफ नॉबेल (1969 ई.)
> डीसीपलि एंड वनिश दि बर्थ ऑफ दि प्रिज्म (1975 ई.)
> दि हिस्ट्री ऑफ सेक्सुअलिटी (1986 ई.) इनकी यह पुस्तक निधन के बाद प्रकाशित हुई थी।
जैक देरिदा (1930 – 2004)
जैक देरिदा फ्रांसीसी दार्शनिक थे। इन्होंने यथार्थवाद पर बल दिया। विरोधी तत्वों में सामंजस्य पर बल दिया। एक विश्व भाषा का इन्होने समर्थन किया। ये विखंडनवाद के प्रवर्तक हैं। इनके विचार से तार्किकता सीमित होना चाहिए।
ज्याँ फ्रांसुआ ल्योतार्द (1924 – 1998)
उत्तर आधुनिकता आत्मा का द्वंद्व है। इन्होने सार्वभौम वैदता का समर्थन किया। महिला एवं पुरुषों की समानता पर भी बल दिया। विभिन्नता का समर्थन किया।
उत्तर आधुनिकता की विशेषताएँ और मान्यताएँ:
> उत्तर आधुनिकता व्यक्ति या सामाजिक इकाइयों की स्वतंत्रता के पक्ष में तर्क करता है।
> उत्तर आधुनिकता व्यक्ति को सामाजिक तंत्र का पुर्जा नहीं मानकर उसे एक अस्मिता पूर्ण अस्तित्व प्रदान करती है।
> उत्तर आधुनिकता में ज्ञान की जगह उपभोग की प्रधानता है।
> सार्थक बाहुलता या विभिन्नता को स्वीकार करने का भाव है।
> न्यायिक चेतना और स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया गया है।
उत्तर आधुनिकता की समस्याएँ और उपलब्धियाँ
समस्याएँ:
> इसमें सिद्धांत का निर्माण नहीं होता है।
> समालोचनात्मक शक्ति समाप्त हो जाती है।
> ऐतिहासिकता की अनुपस्थिति होती है।
> पीछे की ओर लौटना असंभव है।
> किसी एक व्याख्या को उत्तर आधुनिकता असंभव बना देती है।
> इसमें सांस्कृतिक, सामाजिक अनुभवों की कमी होती है।
उपलब्धियाँ:
> वास्तविक ज्ञान पर बल दिया जाता है।
> व्यक्ति के व्यक्तिगत पहचान का समर्थन।
> अति बौद्धिकता से मुक्त।
> बहुलतावाद और पुनर्मूल्यांकन पर बल।
उत्तर आधुनिकता और साहित्य:
काव्य रचना में अनेक अधूरी पंक्तियाँ होती है जिसे पाठक स्वयं अपनी कल्पना और अनुभव के आधार पर समझ सकता है। (यह काव्य में विखंडन वाद से ग्रहण किया है) कवि कोई एक निश्चित काव्य के लिए बाध्य नहीं है वह मुक्त निर्माण कर सकता है। कविता मुक्त विचरण करती है। कविता वाद विहीन होती है। दलित साहित्य, नारी विमर्श, आँचलिक उपन्यास उत्तर आधुनिकता का परिणाम है।
उत्तर आधुनिकता से संबंधित प्रमुख योजनाएँ:
> विचारधारा का अंत – डैनियल बेल ने किया
> मनुष्य की मृत्यु – जैक देरिदा ने किया
> लेखक की मृत्यु – रोला बार्थ ने किया
> उपन्यास का अंत – लायन ट्रिलिंग ने किया
> परंपरागत शैलियों की मरती हुई विधाएँ – एडमंड विल्सन ने किया
उत्तर आधुनिकता से संबंधित प्रमुख विचारक और हिंदी साहित्यकार:
आधुनिक विचारक:
फ्रेडरिक नीत्से – (1844 – 1900 ई.)
मार्टिन हाइडेगर – (1884 – 1976 ई.)
मिशेल फूको – (1926 – 1984 ई.)
जैक देरिदा – (1930- 2004 ई.)
ज्याँ फ़्रांसुआ त्योतार्द – (1926 – 1984 ई.)
ज्याँ बौद्रिआ – ( जन्म -1929 ई.)
हेडेन व्वाइट – ( जन्म – 1928 ई.)
हिंदी साहित्यकार:
समस्त दलित लेखक
समस्त नारी विमर्श से संबंधित रचनाएँ
आँचलिक उपन्यासकार
समकालीन रचना से संबंधित समस्त रचनाकार
आधुनिकतावाद और उत्तर आधुनिकता में अंतर:
आधुनिकतावाद | उत्तर आधुनिकतावाद |
अभिजनवाद, कठोरता | जनप्रिय उपभोक्तावाद लचीलापन |
उच्च संस्कृति, परंपराएँ | लोक संस्कृति |
मितव्ययिता, अनुशासन | मौज – मस्ती |
समग्रता | व्यक्तिवाद, विखंडन |
एकरूपता | अनेकतावाद |
निरंकुश, सोशल इंजीनियरिंग | चयन. खुलापन, अवसर |
निश्चितता | सदेह्वाद |
संश्लेषण | विखंडन |