डॉ राम मनोहर लोहिया

लोहिया दर्शन

      डॉ राम मनोहर लोहिया विश्व की उन विभूतियों में से थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा में लगा दिया। वे महान राजनीतिक योद्धा, देशभक्त, स्वतंत्र चिंतक तथा निडर नेता थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के साथ-साथ नेपाल और गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में भी रूचि दिखाई।

जीवन परिचय-

      जन्म- 23 मार्च 1910 ई. को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबर पुर गाँव में          इनका जन्म हुआ था।

      निधन- 12 औक्तुबर 1967 ई. को दिल्ली में इनकानिधन हुआ था।

      माता का नाम– इनके माता का नाम चंद्री देवी था।

      पिता का नाम – इनके पिता का नाम हीरा लाल (गांधीवादी) था।

      प्राथमिक शिक्षा- इन्होंने अकबरपुर के टंडन पाठशाला में 1 से 4 तक की क्षिक्षा प्राप्त किया। अकबर पुर के विश्वनाथ पाठशाला में 5 वीं कक्षा में प्रवेश लिया। अपनी कक्षा में वे हमेशा प्रथम आते रहे जिससे वे अपने शिक्षकों के प्रिय छात्र थे। पिता के अकबरपुर से बम्बई चले जाने पर उनकी शिक्षा बम्बई के मारवाड़ी स्कूल में जारी रही।

      > 1925 में मेट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास किया।

      > उनकी इंटरमीडिएट की शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुई।

      > 1926 ई. में केवल 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने गौहाटी में हुए भारतीय             राष्ट्रीय कॉग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया था।

      > 1927 ई. में वे इंटर की परीक्षा पास करके कलकत्ता चले गए।

      > 1927 ई. में कोलकत्ता के विद्दासागर महाविद्यालय में प्रवेश लिया।

      > 1928-29 ई. में उन्होंने साइमन कमीशन बहिष्कार आन्दोलन में एक जुलूस का           नेतृत्व किया।

      > 1929 ई. में वे बी.ए. ऑनर्स उतीर्ण किये।

      > 1929 ई. में ही वे चेरीटेबल संस्थाओं के आर्थिक सहयोग से अध्ययन के लिए            इंग्लैंड प्रस्थान कर गए।

      > 1930 ई. में जर्मनी प्रस्थान किया। जर्मनी के हुम्बर्ट विश्वविद्यालय से ‘साल्ट            एण्ड सत्याग्रह’ विषय पर रिसर्च एवं पी. एच. डी. की उपाधि ग्रहण किया।

      > बर्लिन में ही उन्होंने मार्क्स तथा हीगेल की कृतियों का अध्ययन किया।

      > 1933 ई. में वे जर्मनी से भारत वापस आ गए। भारत आकर वे हिंदू अखबार के दफ्तर में पहुँचकर दो लेख लिखे। इन लेखों से उन्हें 25 रुपये मिले। इन रुपयों से वे कलकत्ता के लिए प्रस्थान कर गए।

      > 1934 ई. में कॉग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना किया।

      > 17 मई 1934 ई. को उन्होंने कॉग्रेस सम्मलेन में भाग लिया।

      > लोहिया ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव किया। इसका कॉग्रेस में विरोध हुआ।

      > मई 1940 ई. में कलकत्ता द्वारा आयोजित एक अधिवेशन में युद्ध विरोधी भाषण         दिया और वे पहली बार गिरफ्तार कर लिए गए।

      > 4 दिसंबर 1941 ई. को वे रिहा हो गए

      > 1946 ई. में वे पुनः गिरफ्तार कर लिए गए और 1946 में ही रिहा हो गए।

      > जून 1946 ई. में वे गोवा सरकार की हैवानियत के विरुद्ध जनचेतन विकसित             किया। यहाँ (गोवा) की स्त्रियों ने अपने लोकगीतों में लोहिया को स्थान दिया है।

      > मार्च 1949 ई. में सोशलिस्ट पार्टी का अधिवेशन पटना में आयोजित किया गया।

      > 1956 ई. में उन्होंने पुनः सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। यहीं से लोहिया में                   वैचारिक परिवर्तन देखा जाने लगा।

      > 1956 ई. में ही उन्होंने बिहार में ‘सिविल नाफ़रमानी’ आन्दोलन चलाया।

      > 1962 ई. में चीन आक्रमण के बाद कॉग्रेस की विचारधारा से मतभेद हुआ।

            उन्होंने नेहरू की नीतियों का भारत के जनता के सामने पर्दाफास किया।

      > 1964 ई. में उन्होंने ‘संयुक्त सोशलिस्ट’ पार्टी का गठन किया।

      > 1965-66 ई. में ‘मूल्यवृद्धि एवं खाद्दान संकट’ के समय “कॉग्रेस हटाओ,

             देश बचाओं” का नारा दिया।

      > 1967 ई. में उन्होंने जयप्रकाश नारायण से राजनीति में पुनः कदम रखने की                   प्रार्थना की।

राममनोहर लोहिया के चिंतन और दर्शन:

      राममनोहर लोहिया के राजनितिक विचार / चिंतन – लोहिया लोकतांत्रिक व्यवस्था के हिमायती थे। उनके अनुसार यदि कोई राष्ट्र यह दावा करे कि हमेशा उसकी शक्तियाँ समान रहेगी तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल है।

      डॉ लोहिया ने राजनितिक विकेंद्रीकरण के लिए ‘चौखम्भा योजना’ को विशेष महत्व दिया। इस योजना को ‘चार स्तरीय’ सूत्र के नाम से भी जाना जाता है। वे इस योजना के माध्यम से सत्ता के ढांचे का विकेंद्रीकरण करना चाहते थे। ‘चौखम्भा योजना’ के चार स्तंभ इस प्रकार है – सत्ता का विकेंद्रीकरण, ग्राम, जिला, प्रदेश एवं केंद्र के मध्य होना चाहिए।

उन्होंने जनशक्ति का महत्व स्वीकार किया और लोगों की शिकायतें सुनने का श्रीगणेश किया। जिस दिन लोगों की शिकायतें सुनी जाती थी उस दिन को ‘जनवाणी दिवस’ कहा गया। उन्होंने अन्यायी शासन का विरोध करने के लिए ‘सिविल नाफरमानी’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया सिविल नाफ़रमानी सिद्धांत गाँधी जी के ‘सविनय अवज्ञा’ सिद्धांत से प्रेरित था। मृत्युदंड का विरोध और आत्महत्या को व्यक्ति का नीजी मामला बताया।

लोहिया व्यक्ति की तीन तरह की स्वतंत्रता के पक्षधर थे-

      > विश्वभ्रमण की स्वतंत्रता

      > अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

      > सरकारी कर्मचारियों का नागरिक अधिकारों की प्राप्ति की स्वतंत्रता

राममनोहर लोहिया का सामाजिक विचार / चिंतन:

      > लोहिया ने जातिप्रथा को देश के लिए अभिशाप माना तथा इसे दासता का                मुख्यकारण माना रंगभेद, अस्पृश्यता, वर्ण व्यवस्था आदि का उन्होंने विरोध        किया।

      > उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया।

      > समाजवादी आन्दोलन में स्त्री की भूमिका पर बल दिया। स्त्री को महत्व दिए बिना         उन्होंने समाजवाद को एक ‘वधू विहीन विवाह’ कहा।

      > उन्होंने बहु पत्नीवाद का विरोध किया।

      > राष्ट्रभाषा के रूप में उन्होंने हिंदी का समर्थन किया इसके अलावा उन्होंने शोषण           रहित समाज की कल्पना किया।

राममनोहर लोहिया के आर्थिक विचार / चिंतन:

      > लोहिया ने इस बात को स्वीकार किया था कि आर्थिक विकास और सामाजिक                  बुराइयों को दूर करने के लिए गांधीदर्शन से बढ़कर अन्य कोई तकनीक नहीं          है।

      > धनाढ्य वर्ग के व्यय की सीमा निश्चित होना चाहिए।

      > गरीबों के समस्याओं का निराकरण पश्चिमी साम्यवाद के द्वारा नहीं हो सकता है।

      > देशी-स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन पर उन्होंने बल दिया

      > भूमि का समुचित वितरण होने के साथ, उन्होंने कृषि सुधार पर भी बल दिया।

      > पंचवर्षीय योजनाओं को लोहिया ने अनावश्यक बताया क्योंकि कुछ लोग राष्ट्रीय           संपत्ति का एक भाग डकार जाते हैं।

राममनोहर लोहिया के धार्मिक विचार / चिंतन:

      > लोहिया जाति प्रथा के विरोधी थे उनके अनुसार जाति प्रथा समाजवाद के मार्ग का मुख्य अवरोधक है। जाति समाज में असमानता को जन्म देती है

      > उन्हें ईश्वर के प्रति अविश्वास था, वे मूर्ति पूजा को ढकोसला मानते थे।

      > जाति प्रथा के कारण निम्न वर्ग के लोग शोषण का शिकार बनते है।

      > हरिजनों के मंदिर में प्रवेश की समस्या के निवारण के लिए उन्होंने ‘हरिजन मंदिर प्रवेश’ आन्दोलन चलाया था।

लोहिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है- “जीवन के बड़े-बड़े तथ्य जन्म, मृत्यु, भोज, ब्याह और अन्य सभी रस्में जाति के चौकठ में होती है।” इस तरह लोहिया ने अस्पृश्यता का विरोध, हिंदू-मुस्लिम एकता और स्त्री-पुरुष समानता आदि पर बल दिया।

राममनोहर लोहिया के प्रमुख कथन:

      > “जिन्दा कौमें बदलाव के लिए पाँच वर्ष का इंतजार नहीं करती हैं, वह किसी भी           सरकार के गलत कदम का फ़ौरन विरोध करती हैं।”

      > “राष्ट्रपति के बच्चे और चपरासी के बच्चे को एक ही स्कूल में शिक्षा देना चाहिए”

      > “इतना निश्चित है कि मैं प्राध्यापक नहीं बनूँगा” (लोहिया ने अपने पी.एच.डी. के          अध्यापक से कहा था।)

      > “शोषण और गुलामी की बुनियाद पर खड़ी ब्रिटिश साम्राज्य की इमारत अब               लड़खड़ा रही है।”

      > “यदि समाजवाद को केवल दो शब्दों में परिभाषित किया जाए तो वे दो शब्द हैं-           समानता एवं समृधि।”

      > “जर्मनी के अतिरिक्त अन्य किसी भी देश में वंश और नस्ल की श्रेष्ठता मानने           वाला दर्शन शायद ही स्वीकृत होगा।”

      > “आदमी गदहे की चाल से तथा मंहगाई घोड़े की चाल से बढ़ती है तो काम कैसे           चले।”

      > “अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद आवारा हो जाएगी।”

      > “आदमी की जान किसी भी भौतिक संपत्ति से बड़ी होती है।”

      > “मेरे जीवन का अरमान है कि सारी दुनिया में बिना पारपत्र (पासपोर्ट) के मुसाफिरी        कर सकूँ।”

      > “औरत कोई भी हो, चाहे ऊँची जाति की या नीची जाति की सबको मैं पिछड़ा                   समझता हूँ औरत को हिन्दुस्तान या दुनिया में दबा कर रखा गया है।”

      > “इस देश की स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री नहीं द्रौपदी होना चाहिए।”

      > “नारी को गठरी के सामान नहीं बल्कि इतना शक्तिशाली होना चाहिए कि वक्त           पर पुरुष को गठरी बनाकर अपने साथ ले चले।”

      > “लोक सभा या विधान सभा एक आईना है जिसमे जनता अपने चेहरे देख सकती          है।”

      > “गाँधी और मार्क्स के पास सीखने के लिए बहुमूल्यकोष है।”

      > “भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं है, यह सामाजिक भी है।”

      > “मार्क्सवाद एशिया के खिलाफ यूरोप का अंतिम हथियार हैं।”

      > “मानेंगे नहीं पर मरेंगे नहीं।”

      > “भारत में राज कौन करेगा यह तीन चीजों से तय होता है – ऊँची जाति, धन और         ज्ञान।”

      > “अंग्रेजों की बंदूक की गोली और अंग्रेजी बोली ने हम पर राज किया।”

      > “त्याग हमेशा शांतिदायक और संतोषजनक होता है।”

राममनोहर लोहिया के बारे में विद्वानों के विचार:

      जगजीवन राम के शब्दों में- “हर हरिजन महात्मा गाँधी को सुप्रीमकोर्ट मानते थे और लोहिया हमलोगों के एडवोकेट जर्नल थे।”

      गाँधी के शब्दों में- “जबतक लोहिया जेल में है तबतक मैं खामोश नहीं बैठ सकता, उनसे ज्यादा बहादुर और सरल आदमी मुझे मालुम नहीं।”

      नेहरू के शब्दों में- “लोहिया मार्क्स, हिटलर गाँधी सभी का मिश्रण है।”

राम मनोहर लोहिया की प्रसिद्ध पुस्तकें

      1. व्हील ऑफ हिस्ट्री (1936 ई.)

      2. मार्क्स गाँधी एण्ड सिसलिज्म (1936 ई.)

      3. द कास्ट सिस्टम (1946 ई.)

      4. फेग्मेंट्स ऑफ ए वल्ड माइंड (1952 ई.)

      5. अस्पेक्ट्स ऑफ सोशलिस्ट पॉलिसी (1954 ई.)

      6. इतिहास चक्र (1954 ई.)

      7. हिंद बनाम हिंद (1955 ई.)

      8. कंचन मुक्ति (1956 ई.)

      9. समाजवादी चिंतन (1956 ई.)

      10. नया समाज नया मन (1956 ई.)

      11. विल टू पावर (1956 ई.)

      12. सिविल नाफ़रमानी सिद्धांत और अमल (1958 ई.)

      13. सच, कर्म, प्रतिकार और चरित्र निर्माण एक आह्वान (1958 ई.)

      14. भारत विभाजन के अपराधी (1958 ई. अंग्रेजी हिंदी दोनों में)

      15. खोज, वर्णमाला, विषमता, एकता (1960 ई.)

      16. सिविल नाफ़रमानी कि व्यापकता (1960 ई.)

      17. मर्यादित, उन्मत्त असीमित व्यक्तित्व (1962 ई.)

      18. हिन्दू और मुसलमान (1963 ई.)

      19. रामायण मेला (1963 ई.)

      20. सरकारी मठी और कुजात गांधीवादी (1963 ई.)

      21. पाकिस्तान में पलटनी शासन (1963 ई.)

      22. भारत चीन और उत्तरी सीमाएँ (1963 ई.)

      23. समाजवादी आन्दोलन का इतिहास (1963 ई.)

      24. धर्म पर एक दृष्टि (1966 ई.)

      25. क्रांतिकरण (1966 ई.)

      26. भारत में समाजवाद (1969 ई.)

      लोहिया अनेक सिद्धान्तों, कार्यक्रमों और क्रांतियों के जनक हैं। वे सभी अन्यायों के विरुद्ध एक साथ जेहाद बोलने के पक्षपाती थे। उन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया। वे सात क्रांतियाँ निम्न थी-

      > नर-नारी की समानता के लिए क्रान्ति,

      > चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के खिलाफ              क्रान्ति,

      > संस्कारगत, जन्मजात जातिप्रथा के खिलाफ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए              क्रान्ति,

      > परदेसी गुलामी के खिलाफ और स्वतन्त्रता तथा विश्व लोक-राज के लिए क्रान्ति,

      > निजी पूँजी की विषमताओं के खिलाफ और आर्थिक समानता के लिए तथा योजना         द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए क्रान्ति,

      > निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और लोकतंत्री पद्धति के लिए क्रान्ति,

      > अस्त्र-शस्त्र के खिलाफ और सत्याग्रह के लिये क्रान्ति।

इन सात क्रांतियों के सम्बन्ध में लोहिया ने कहा था –       ये क्रांतियां संसार में एक साथ चल रही हैं। अपने देश में भी उनको एक साथ चलाने की कोशिश करना चाहिए। जितने लोगों को भी क्रांति पकड़ में आयी हो उसके पीछे पड़ जाना चाहिए और बढ़ाना चाहिए। बढ़ाते-बढ़ाते शायद ऐसा संयोग हो जाये कि आज का इन्सान सब नाइन्साफियों के खिलाफ लड़ता-जूझता ऐसे समाज और ऐसी दुनिया को बना पाये कि जिसमें आन्तरिक शांति और बाहरी या भौतिक भरा-पूरा समाज बन पाये।

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