मोहनदास करमचंद गाँधी

गांधीदर्शन

गाँधी दर्शन न केवल राजिनीति, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि यह पारंपरिक आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह दर्शन कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतिक है। जिसको गाँधी जी ने उजागर किया था। यह दर्शन प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।  

मोहनदास करमचंद गाँधी जिन्हें संपूर्ण विश्व महात्मा के नाम से जानता है।

      गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई. को काठियावाड़ के पोरबंदर जिले में हुआ था। गाँधी की हत्या 30 जनवारी 1948. ई. को नई दिल्ली के विडला भवन में गोडसे के द्वारा हुआ।

      पिता का नाम – करमचंद गाँधी

      माता का नाम – पुतलीबाई

      दादा का नाम – उत्तमचंद गाँधी

विवाह – 13 वर्ष की अवस्था में कस्तूरबा गाँधी के साथ हुआ था।

आरंभिक जीवन – 12 वर्ष कि अवस्था में राजकोट के ‘एल्फर्ड’ हाई स्कुल में प्रवेश लिया।

दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान:

> 1887 ई. हाईस्कूल परीक्षा उतीर्ण करने के बाद श्यामलदास कर कॉलेज में प्रवेश लिया।

> 4 दिसंबर 1888 ई. में हवाई जहाज की यात्रा कर लंदन गए।

> 11 जून 1891 ई. में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की।

> 12 जून 1891 ई. में राजकोट के लिए प्रस्थान किया था।

> अप्रैल 1893 ई. में ‘दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी’ के बुलावे पर दक्षिण अफ्रीका प्रस्थान कर    गए

> दक्षिण अफ्रीका में 1914 ई. तक भारतियों के साथ संघर्षरत रहे थे।

दक्षिण अफ्रीका से वापसी:

> 1915 ई. में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए।

> दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद कानूनों के विरुद्ध किये गए उनके सत्याग्रह के कारण उनकी

> भारत में भी उनका नाम फैल गया था।

> गोपाल कृष्ण गोखले को गाँधी जी ने अपना राजनितिक गुरु बनाया था।

देश की आन्दोलन की बागडोर:

      सन् 1920 – 21 ई. के लगभग संपूर्ण देश का नेतृत्व गाँधीजी के हाथों में आ गया।

गाँधी के जीवन पर पुस्तकों का प्रभाव:

> ‘श्रवणकुमार की पितृभक्ति’,

> ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नाटक’ देखकर सत्यावलंबी बने। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की अराधना को भक्ति माना और अपनी आत्मकथा का नाम ‘सत्य के प्रयोग’ रखा।

> ‘बुद्धचरित’ का भी उनपर प्रभाव पड़ा था।

> ‘मुंडकोपनिषद’ से लिया गया राष्ट्रीय वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ बापू के प्रेरणा-श्रोत हैं।

काका कालेलकर की दृष्टि में बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ उदात्त सिद्धांत और वेदोक्त ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म’ उनके जीवन का मूलमन्त्र था।    

> उनपर सबसे अधिक प्रभाव- श्रीमद्भागवत् गीता का पड़ा था। गाँधी जी गीता को आध्यात्मिक सन्दर्भों की पुस्तक कहते थे।

      गाँधी दर्शन: गाँधीवाद भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर असर डालने वाली सबसे महत्वपूर्ण विचारधारा है। महात्मा गाँधी, विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण आदि के विचार इसमें शामिल हैं। गाँधी जी ने हिंद-स्वराज में अपने विचारों को व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त किया है बाकी स्थानों पर उनका लेखन कुछ बिखरा हुआ दिखाई देता है। इनके विचारों पर ईसा मसीह, जैन दर्शन, जॉन रस्किन आदि का प्रभाव है।  

      गाँधी दर्शन के स्रोत: गाँधी दर्शन के दो स्रोत थे – 1.पूर्वी स्रोत 2. पश्चिमी स्रोत

पूर्वी स्रोत:

      > माता से व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता, पिता की सादगी और सदाचार।

      > जैन और बौद्ध धर्मों आदि का प्रभाव।

      > गीता, उपनिषद् के साथ भारत के साधू-संतों के उपदेशों का प्रभाव।

      > उन पर जैन साधक रामचंद्र जी के संपर्क का भी प्रभाव पड़ा।

पश्चिमी स्रोत:

> बाईबल का प्रवचन, तौल्स्ताय, रस्किन एवं थोरो की रचनाएँ, कार्यालय की वीर पूजा आदि।

गाँधी जी ने किससे क्या ग्रहण किया:

      > कला, धर्म अर्थशास्त्र, पुरुष-स्त्री संबंध – तौल्स्ताय से ग्रहण किया।

      > शत्रु के प्रति सद्भावना – लओत्सो से ग्रहण किया।

      > जैसा व्यवहार मनुष्य स्वयं के प्रति चाहता है वह दूसरों से भी वैसा ही व्यवहार           करे –       कन्फ्युसियस से ग्रहण किया।

      > सविनय अवज्ञा, करबंदी – थोरो से ग्रहण किया।

      > शारीरिक श्रम का आदर – रस्किन की रचनाओं से ग्रहण किया।

      > त्याग, परोपकार, अहिंसा, निष्काम कर्म श्रीमद्भागवत् गीता से लिया।

      > संपत्ति का स्वामित्व – ईशोपनिषद् से ग्रहण किया।

      > परस्परिक संबंधों का आदर – रामायण से ग्रहण किया।

गाँधीवादी दर्शन की मूल बातें:

      गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) है। धर्म से गाँधी का अभिप्राय विश्व में व्यवस्थित नैतिक अनुशासन से है। उन्होंने धर्म के लिए सत्य, अहिंसा एवं प्रेम को अति आवश्यक माना। गाँधी जी के दृष्टि में राजनीती एवं धर्म में कोई पार्थक्य नहीं है। उनकी मान्यता थी कि धर्म से अलग राजनीति मृत्युजाल है क्योंकि वह आत्मा का हनन करती है।

गाँधी जी विश्वबंधुत्व वादी दृष्टिकोण को आवश्यक मानते थे।

वे स्वराज्य के पक्षधर थे उनकी दृष्टि में स्वराज्य विश्वशांति का द्दोतक है। स्वराज्य के बिना शांति एवं शांति के बिना स्वराज्य अधुरा है।

ईश्वर की सत्ता अनिर्वचनीय है। वह सर्वत्र व्याप्त और अनुभूतगम्य है। ईश्वर शांति का दूत है।

      पुखराज जैन के शब्दों में – “गाँधीदर्शन में सत्याग्रह का विशेष महत्व है उनकी दृष्टी में अपने विरोधियों को दुखी बनाने के बजाय स्वयं को दुःख में डालकर सत्य के लिए तब तक आग्रह करना जब तक सत्य की विजय नहीं हो जाए सत्याग्रह है।”

      सत्य और अहिंसा का नैतिक आधार सर्वोदय है सर्वोदय के इस भावना के पीछे जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अन टू द लास्ट’ का प्रभाव है।

गाँधी जी के राजनीति, सामाजिक और आर्थिक विचार:

      राजनीतिक विचार-

      > सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए।

      > स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना होना आवश्यक है।

      > प्रतिनिधित्व बहुमत से शासन होना चाहिए।

      > विचारों की स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए।

      > ग्राम स्वराज्य होना चाहिए।

      > अन्याय के विरुद्ध राज्य की निरंकुश सत्ता का प्रतिकार हो

सामाजिक विचार-

      > अस्पृस्यता का अंत होना चाहिए।

      > उन्होंने बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, जातिय भेद-भाव का विरोध किया है।

      > धर्म निरपेक्षता पर बल दिया था।

      > स्त्री-पुरुषों की समानता पर बल दिया है।

      > वे बुनियादी व स्वावलंबी शिक्षा के पक्षधर थे।

      > धार्मिक सहिष्णुता होनी चाहिए।

      > शोषण विहीन समाज की स्थापना पर बल।

आर्थिक विचार-

      > उन्होंने औद्दोगिकरण का विरोध किया।

      > उन्होंने कुटीर उद्दोग-धंधों का समर्थन किया। 

      > अपरिग्रह का सिद्धांत हो

      > वर्ग सहयोग की धारणा

मार्क्सवाद और गांधीवाद की समानताएँ:

      > सामाजिक अन्याय का विरोध दोनों दर्शन करते हैं।

      > पीड़ितों शोषितों एवं दलितों के प्रति दोनों ही दर्शनों में संवेदना है।

      > सहानुभूति एवं उद्धार के उपाए है।

      > दोनों दर्शन में भावनावादी दर्शन है।

      > दोनों दर्शन श्रम की महत्ता के पक्षधर हैं।

      > दोनों दर्शन अन्तरराष्ट्रीय शान्ति के पक्षधर हैं।

      > दोनों के चिंतन का अंतिम लक्ष्य राज्यविहीन एवं वर्ग विहीन समाज की स्थापना          है।

मार्क्सवाद और गांधीवाद की असमानताएँ:

      > गाँधीवादी  साम्यवादी है तो मार्क्सवाद भौतिकवादी है।

      > गाँधीवादी चिंतन का मूल आधार अहिंसा है, जबकि मार्क्सवादी अपनी लक्ष्य की     प्राप्ति के लिए हिंसा के पक्षधर हैं।

      > गाँधीवादी के मूल में धर्म है, जबकि मार्क्सवाद नास्तिक है। मार्क्सवादी धर्म को           ढोंग एवं अफीम मानते हैं।

      > गाँधीवादी सर्वोदय की स्थापना धर्म के आधार पर करता हैं जबकि मार्क्सवादी                   सर्वोदय की स्थापना अर्थ केन्द्रित है।

      > गाँधीवाद की लोकतंत्र में आस्था है जबकि मार्क्सवाद का लोकतंत्र में आस्था नहीं           है।

गाँधी जी के अनुसार सत्याग्रह की प्रवृतियाँ:

      असहयोग – सन् 1919-20 ई. में भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए असहयोग आन्दोलन के मार्ग को अपनाया जिसमे उन्होंने हड़ताल, धारणा का बहिष्कार किया।

      सविनय अवज्ञा- यह सत्याग्रह का सबसे उच्चतर सोपान था। सन् 1913 ई. में नमक आन्दोलन के रूप गाँधी ने इसी शस्त्र का प्रयोग किया था।

      हिजरत या प्रवजन- आत्मसम्मान हेतु स्थाई निवास को स्वेच्छा से परित्याग करना। सन् 1918 में बारदोली और 1939 में बिट्ठलगढ़ और लिम्बडी की जनता को गाँधी जी के द्वारा हिजरत का सुझाव दिया गया था।

      उपवास (अनसन)- उपवास सत्याग्रह का उच्चतम सोपान है। गाँधी जी इसे अग्निवाण कहते थे।

      हड़ताल- सत्याग्रह का एक अन्य रूप हड़ताल है। हड़ताल के विषय में गाँधी का विचार समाजवादियों और साम्यवादियों से भिन्न था। गाँधी के अनुसार- हड़ताल करने वाले व्यक्तियों की मांगे नितांत स्पष्ट और उचित होनी चाहिए।

गाँधी जी के अनुसार सत्याग्रही के गुण:

      ईश्वर पर अटूट विश्वास, अंतरात्मा की शुद्धता, पूर्ण ब्रह्मचारी होना, धन, यश, पद, सम्मान आदि से दूर रहना।

      सत्याग्रही को आज्ञापालक होना चाहिए।

      सत्याग्रही में अपरिग्रह की भावना होना चाहिए।

      सत्याग्रही को धैर्यवान, चरित्रवान एवं निर्त्यसनी होना चाहिए।

गाँधी जी ने सत्याग्रही के लिए व्रतों का पालन आवश्यक बताया: ये निम्नलिखित हैं-

      सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी नहीं करना), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शारीरिक श्रम, अस्वाद, निर्भयता, सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टि, स्वदेशी का समर्थक तथा अस्पृश्यता निवारण की भावना होना।

गाँधी जी के प्रमुख रचनाएँ और संपादित पत्र:

रचनाएँ-

      > सत्य के साथ मेरे प्रयोग

      > शान्ति और युद्ध में अहिंसा

      > नैतिक धर्म

      > सत्याग्रह

      > सत्य ही ईश्वर है

      > सर्वोदय

      > सांप्रदायिक एकता

      > अस्पृश्यता निवारण

संपादित पत्र:

      > इन्डियन ओपिनियन (साप्ताहिक), दक्षिण अफ्रीका से

      > यंग इंडिया (भारत)

      > हरिजन (भारत)

      > हरिजन बंधु (भारत)

      > नव जीवन (भारत)

गाँधी जी के प्रमुख कथन:

      > “राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है।”

      > “मेरे लिए हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।”

      > “मेरा यह मत है की हिंदी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी भी   चाहिए।”

      > “जहाँ डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में            अपनी राय दूँगा।”

      > “यदि मशीनों का लोप हो जाए तो मैं दुःख नहीं मनाऊँगा न इसे कोई घोर संकट          की बात कहूँगा लेकिन मशीनों का नाश मेरा धयेय नहीं है।”

      > “निर्बल कभी सत्याग्रही हो ही नहीं सकता।”

      > “सत्य सामूहिक विनाश के किसी भी हथियार से अधिक शक्तिशाली है।”

      > “धर्म विहीन राजनीति मृत्यु जाल है।”

      > “मनुष्य की महिमा समरस होने में है।”

      > “अहिंसा अपनी क्रियात्मक रूप में सभी जीवधारियों के प्रति सद्भावना का नाम है।          यह तो विशुद्ध प्रेम है। पूर्ण अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति दुर्भावना के अभाव          का नाम है।” यंग इंडिया पत्र-1930 ई.।

      > 1936 ई. में सर्वसेवा संघ के सदस्यों से गाँधी जी ने कहा -“गांधीवाद नाम की            कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने पीछे कोई संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता।”

गाँधी जी और गांधीवाद के बारे में विद्वानों के मत:

      पी. एस. रमैया के शब्दों में- “गाँधीवाद नीतियों, सिद्धांतों आदेशों, निषेधों इत्यादि का सिद्धांत ही नहीं वरन् जीवन का एक रास्ता है। इसके द्वारा जीवन की समस्याओं के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण का प्रतिपादन या पुरातन दृष्टिकोण की पुनर्व्याख्या करते हुए आधुनिक समस्याओं के लिए पुरातन हल प्रस्तुत किये गये हैं।”

      के. जी. मश्रवाला के शब्दों में – “साम्यवाद में से हिंसा निकाल दिया जाए तो गाँधीवाद शेष बच जाएगा।”

      ज्यापाल सात्र के शब्दों में- “यदि विश्व में रक्त की एक बूंद बहाए बिना कुछ होने का सपना किसी एक दर्शन में है तो वह है गाँधीदर्शन।”

      आइन्स्टीन के शब्दों में – “आनेवाली पीढियाँ शायद ही विश्वास कर सकेगी कि गाँधी जैसे हाड़-माँस का पुतला कभी इस भूमि पर हुआ था।”

गाँधी दर्शन न केवल राजिनीति, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि यह पारंपरिक आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह दर्शन कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतिक है। जिसको गाँधी जी ने उजागर किया था। यह दर्शन प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।  

मोहनदास करमचंद गाँधी जिन्हें संपूर्ण विश्व महात्मा के नाम से जानता है।

      गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई. को काठियावाड़ के पोरबंदर जिले में हुआ था। गाँधी की हत्या 30 जनवारी 1948. ई. को नई दिल्ली के विडला भवन में गोडसे के द्वारा हुआ।

      पिता का नाम – करमचंद गाँधी

      माता का नाम – पुतलीबाई

      दादा का नाम – उत्तमचंद गाँधी

विवाह – 13 वर्ष की अवस्था में कस्तूरबा गाँधी के साथ हुआ था।

आरंभिक जीवन – 12 वर्ष कि अवस्था में राजकोट के ‘एल्फर्ड’ हाई स्कुल में प्रवेश लिया।

दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान:

> 1887 ई. हाईस्कूल परीक्षा उतीर्ण करने के बाद श्यामलदास कर कॉलेज में प्रवेश लिया।

> 4 दिसंबर 1888 ई. में हवाई जहाज की यात्रा कर लंदन गए।

> 11 जून 1891 ई. में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की।

> 12 जून 1891 ई. में राजकोट के लिए प्रस्थान किया था।

> अप्रैल 1893 ई. में ‘दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी’ के बुलावे पर दक्षिण अफ्रीका प्रस्थान कर    गए

> दक्षिण अफ्रीका में 1914 ई. तक भारतियों के साथ संघर्षरत रहे थे।

दक्षिण अफ्रीका से वापसी:

> 1915 ई. में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए।

> दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद कानूनों के विरुद्ध किये गए उनके सत्याग्रह के कारण उनकी

> भारत में भी उनका नाम फैल गया था।

> गोपाल कृष्ण गोखले को गाँधी जी ने अपना राजनितिक गुरु बनाया था।

देश की आन्दोलन की बागडोर:

      सन् 1920 – 21 ई. के लगभग संपूर्ण देश का नेतृत्व गाँधीजी के हाथों में आ गया।

गाँधी के जीवन पर पुस्तकों का प्रभाव:

> ‘श्रवणकुमार की पितृभक्ति’,

> ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नाटक’ देखकर सत्यावलंबी बने। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की अराधना को भक्ति माना और अपनी आत्मकथा का नाम ‘सत्य के प्रयोग’ रखा।

> ‘बुद्धचरित’ का भी उनपर प्रभाव पड़ा था।

> ‘मुंडकोपनिषद’ से लिया गया राष्ट्रीय वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ बापू के प्रेरणा-श्रोत हैं।

काका कालेलकर की दृष्टि में बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ उदात्त सिद्धांत और वेदोक्त ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म’ उनके जीवन का मूलमन्त्र था।    

> उनपर सबसे अधिक प्रभाव- श्रीमद्भागवत् गीता का पड़ा था। गाँधी जी गीता को आध्यात्मिक सन्दर्भों की पुस्तक कहते थे।

      गाँधी दर्शन: गाँधीवाद भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर असर डालने वाली सबसे महत्वपूर्ण विचारधारा है। महात्मा गाँधी, विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण आदि के विचार इसमें शामिल हैं। गाँधी जी ने हिंद-स्वराज में अपने विचारों को व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त किया है बाकी स्थानों पर उनका लेखन कुछ बिखरा हुआ दिखाई देता है। इनके विचारों पर ईसा मसीह, जैन दर्शन, जॉन रस्किन आदि का प्रभाव है।  

      गाँधी दर्शन के स्रोत: गाँधी दर्शन के दो स्रोत थे – 1.पूर्वी स्रोत 2. पश्चिमी स्रोत

पूर्वी स्रोत:

      > माता से व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता, पिता की सादगी और सदाचार।

      > जैन और बौद्ध धर्मों आदि का प्रभाव।

      > गीता, उपनिषद् के साथ भारत के साधू-संतों के उपदेशों का प्रभाव।

      > उन पर जैन साधक रामचंद्र जी के संपर्क का भी प्रभाव पड़ा।

पश्चिमी स्रोत:

> बाईबल का प्रवचन, तौल्स्ताय, रस्किन एवं थोरो की रचनाएँ, कार्यालय की वीर पूजा आदि।

गाँधी जी ने किससे क्या ग्रहण किया:

      > कला, धर्म अर्थशास्त्र, पुरुष-स्त्री संबंध – तौल्स्ताय से ग्रहण किया।

      > शत्रु के प्रति सद्भावना – लओत्सो से ग्रहण किया।

      > जैसा व्यवहार मनुष्य स्वयं के प्रति चाहता है वह दूसरों से भी वैसा ही व्यवहार           करे –       कन्फ्युसियस से ग्रहण किया।

      > सविनय अवज्ञा, करबंदी – थोरो से ग्रहण किया।

      > शारीरिक श्रम का आदर – रस्किन की रचनाओं से ग्रहण किया।

      > त्याग, परोपकार, अहिंसा, निष्काम कर्म श्रीमद्भागवत् गीता से लिया।

      > संपत्ति का स्वामित्व – ईशोपनिषद् से ग्रहण किया।

      > परस्परिक संबंधों का आदर – रामायण से ग्रहण किया।

गाँधीवादी दर्शन की मूल बातें:

      गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) है। धर्म से गाँधी का अभिप्राय विश्व में व्यवस्थित नैतिक अनुशासन से है। उन्होंने धर्म के लिए सत्य, अहिंसा एवं प्रेम को अति आवश्यक माना। गाँधी जी के दृष्टि में राजनीती एवं धर्म में कोई पार्थक्य नहीं है। उनकी मान्यता थी कि धर्म से अलग राजनीति मृत्युजाल है क्योंकि वह आत्मा का हनन करती है।

गाँधी जी विश्वबंधुत्व वादी दृष्टिकोण को आवश्यक मानते थे।

वे स्वराज्य के पक्षधर थे उनकी दृष्टि में स्वराज्य विश्वशांति का द्दोतक है। स्वराज्य के बिना शांति एवं शांति के बिना स्वराज्य अधुरा है।

ईश्वर की सत्ता अनिर्वचनीय है। वह सर्वत्र व्याप्त और अनुभूतगम्य है। ईश्वर शांति का दूत है।

      पुखराज जैन के शब्दों में – “गाँधीदर्शन में सत्याग्रह का विशेष महत्व है उनकी दृष्टी में अपने विरोधियों को दुखी बनाने के बजाय स्वयं को दुःख में डालकर सत्य के लिए तब तक आग्रह करना जब तक सत्य की विजय नहीं हो जाए सत्याग्रह है।”

      सत्य और अहिंसा का नैतिक आधार सर्वोदय है सर्वोदय के इस भावना के पीछे जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अन टू द लास्ट’ का प्रभाव है।

गाँधी जी के राजनीति, सामाजिक और आर्थिक विचार:

      राजनीतिक विचार-

      > सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए।

      > स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना होना आवश्यक है।

      > प्रतिनिधित्व बहुमत से शासन होना चाहिए।

      > विचारों की स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए।

      > ग्राम स्वराज्य होना चाहिए।

      > अन्याय के विरुद्ध राज्य की निरंकुश सत्ता का प्रतिकार हो

सामाजिक विचार-

      > अस्पृस्यता का अंत होना चाहिए।

      > उन्होंने बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, जातिय भेद-भाव का विरोध किया है।

      > धर्म निरपेक्षता पर बल दिया था।

      > स्त्री-पुरुषों की समानता पर बल दिया है।

      > वे बुनियादी व स्वावलंबी शिक्षा के पक्षधर थे।

      > धार्मिक सहिष्णुता होनी चाहिए।

      > शोषण विहीन समाज की स्थापना पर बल।

आर्थिक विचार-

      > उन्होंने औद्दोगिकरण का विरोध किया।

      > उन्होंने कुटीर उद्दोग-धंधों का समर्थन किया। 

      > अपरिग्रह का सिद्धांत हो

      > वर्ग सहयोग की धारणा

मार्क्सवाद और गांधीवाद की समानताएँ:

      > सामाजिक अन्याय का विरोध दोनों दर्शन करते हैं।

      > पीड़ितों शोषितों एवं दलितों के प्रति दोनों ही दर्शनों में संवेदना है।

      > सहानुभूति एवं उद्धार के उपाए है।

      > दोनों दर्शन में भावनावादी दर्शन है।

      > दोनों दर्शन श्रम की महत्ता के पक्षधर हैं।

      > दोनों दर्शन अन्तरराष्ट्रीय शान्ति के पक्षधर हैं।

      > दोनों के चिंतन का अंतिम लक्ष्य राज्यविहीन एवं वर्ग विहीन समाज की स्थापना          है।

मार्क्सवाद और गांधीवाद की असमानताएँ:

      > गाँधीवादी  साम्यवादी है तो मार्क्सवाद भौतिकवादी है।

      > गाँधीवादी चिंतन का मूल आधार अहिंसा है, जबकि मार्क्सवादी अपनी लक्ष्य की     प्राप्ति के लिए हिंसा के पक्षधर हैं।

      > गाँधीवादी के मूल में धर्म है, जबकि मार्क्सवाद नास्तिक है। मार्क्सवादी धर्म को           ढोंग एवं अफीम मानते हैं।

      > गाँधीवादी सर्वोदय की स्थापना धर्म के आधार पर करता हैं जबकि मार्क्सवादी                   सर्वोदय की स्थापना अर्थ केन्द्रित है।

      > गाँधीवाद की लोकतंत्र में आस्था है जबकि मार्क्सवाद का लोकतंत्र में आस्था नहीं           है।

गाँधी जी के अनुसार सत्याग्रह की प्रवृतियाँ:

      असहयोग – सन् 1919-20 ई. में भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए असहयोग आन्दोलन के मार्ग को अपनाया जिसमे उन्होंने हड़ताल, धारणा का बहिष्कार किया।

      सविनय अवज्ञा- यह सत्याग्रह का सबसे उच्चतर सोपान था। सन् 1913 ई. में नमक आन्दोलन के रूप गाँधी ने इसी शस्त्र का प्रयोग किया था।

      हिजरत या प्रवजन- आत्मसम्मान हेतु स्थाई निवास को स्वेच्छा से परित्याग करना। सन् 1918 में बारदोली और 1939 में बिट्ठलगढ़ और लिम्बडी की जनता को गाँधी जी के द्वारा हिजरत का सुझाव दिया गया था।

      उपवास (अनसन)- उपवास सत्याग्रह का उच्चतम सोपान है। गाँधी जी इसे अग्निवाण कहते थे।

      हड़ताल- सत्याग्रह का एक अन्य रूप हड़ताल है। हड़ताल के विषय में गाँधी का विचार समाजवादियों और साम्यवादियों से भिन्न था। गाँधी के अनुसार- हड़ताल करने वाले व्यक्तियों की मांगे नितांत स्पष्ट और उचित होनी चाहिए।

गाँधी जी के अनुसार सत्याग्रही के गुण:

      ईश्वर पर अटूट विश्वास, अंतरात्मा की शुद्धता, पूर्ण ब्रह्मचारी होना, धन, यश, पद, सम्मान आदि से दूर रहना।

      सत्याग्रही को आज्ञापालक होना चाहिए।

      सत्याग्रही में अपरिग्रह की भावना होना चाहिए।

      सत्याग्रही को धैर्यवान, चरित्रवान एवं निर्त्यसनी होना चाहिए।

गाँधी जी ने सत्याग्रही के लिए व्रतों का पालन आवश्यक बताया: ये निम्नलिखित हैं-

      सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी नहीं करना), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शारीरिक श्रम, अस्वाद, निर्भयता, सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टि, स्वदेशी का समर्थक तथा अस्पृश्यता निवारण की भावना होना।

गाँधी जी के प्रमुख रचनाएँ और संपादित पत्र:

रचनाएँ-

      > सत्य के साथ मेरे प्रयोग

      > शान्ति और युद्ध में अहिंसा

      > नैतिक धर्म

      > सत्याग्रह

      > सत्य ही ईश्वर है

      > सर्वोदय

      > सांप्रदायिक एकता

      > अस्पृश्यता निवारण

संपादित पत्र:

      > इन्डियन ओपिनियन (साप्ताहिक), दक्षिण अफ्रीका से

      > यंग इंडिया (भारत)

      > हरिजन (भारत)

      > हरिजन बंधु (भारत)

      > नव जीवन (भारत)

गाँधी जी के प्रमुख कथन:

      > “राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है।”

      > “मेरे लिए हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।”

      > “मेरा यह मत है की हिंदी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी भी   चाहिए।”

      > “जहाँ डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में            अपनी राय दूँगा।”

      > “यदि मशीनों का लोप हो जाए तो मैं दुःख नहीं मनाऊँगा न इसे कोई घोर संकट          की बात कहूँगा लेकिन मशीनों का नाश मेरा धयेय नहीं है।”

      > “निर्बल कभी सत्याग्रही हो ही नहीं सकता।”

      > “सत्य सामूहिक विनाश के किसी भी हथियार से अधिक शक्तिशाली है।”

      > “धर्म विहीन राजनीति मृत्यु जाल है।”

      > “मनुष्य की महिमा समरस होने में है।”

      > “अहिंसा अपनी क्रियात्मक रूप में सभी जीवधारियों के प्रति सद्भावना का नाम है।          यह तो विशुद्ध प्रेम है। पूर्ण अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति दुर्भावना के अभाव          का नाम है।” यंग इंडिया पत्र-1930 ई.।

      > 1936 ई. में सर्वसेवा संघ के सदस्यों से गाँधी जी ने कहा -“गांधीवाद नाम की            कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने पीछे कोई संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता।”

गाँधी जी और गांधीवाद के बारे में विद्वानों के मत:

      पी. एस. रमैया के शब्दों में- “गाँधीवाद नीतियों, सिद्धांतों आदेशों, निषेधों इत्यादि का सिद्धांत ही नहीं वरन् जीवन का एक रास्ता है। इसके द्वारा जीवन की समस्याओं के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण का प्रतिपादन या पुरातन दृष्टिकोण की पुनर्व्याख्या करते हुए आधुनिक समस्याओं के लिए पुरातन हल प्रस्तुत किये गये हैं।”

      के. जी. मश्रवाला के शब्दों में – “साम्यवाद में से हिंसा निकाल दिया जाए तो गाँधीवाद शेष बच जाएगा।”

      ज्यापाल सात्र के शब्दों में- “यदि विश्व में रक्त की एक बूंद बहाए बिना कुछ होने का सपना किसी एक दर्शन में है तो वह है गाँधीदर्शन।”

      आइन्स्टीन के शब्दों में – “आनेवाली पीढियाँ शायद ही विश्वास कर सकेगी कि गाँधी जैसे हाड़-माँस का पुतला कभी इस भूमि पर हुआ था।”

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