अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन –
जन्म – 14 अप्रैल, 1891 ई. के इंदौर के पास मऊ छावनी में हुआ था। अंबेडकर अपने माता-पिता की 14 वीं संतान थे। इनका परिवार कबीर पंथ को मनानेवाला मराठी मूल का था।
निधन – 6 दिसंबर, 1956 ई. को हुआ था।
पिता का नाम – रामजी वल्द मालोजी सकपाल था। वे मऊ में ही मेजर के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे।
माता का नाम – भीमा बाई
पहली पत्नी – 1906 ई. रमाबाई से विवाह हुआ। 1935 ई. में इनका निधन हो गया था।
दूसरी पत्नी – डॉ सविता 1948 ई. में विवाह हुआ। इनकी दूसरी पत्नी का नाम डॉ शारदा कबीर जिन्होंने विवाह के बाद सविता अंबेडकर नाम अपना लिया। डॉ सविता का निधन 2003 ई, में हुआ।
अंबेडकर के बचपन के दो नाम थे – भीम और भिवा
अंबेडकर ने अपने प्रिय शिक्षक के उपनाम पर अपना नाम ‘अंबेडकर’ रखा।
इनकी प्राइमरी शिक्षा दापोली नामक गाँव महाराष्ट्र में हुई थी
मिडिल स्कूल की शिक्षा सतारा के सरकारी स्कूल में हुआ था
मुंबई के मराठा हाई स्कूल से 1908 ई. में मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण किए
1910 ई. में एल्फिन्सटन कॉलेज से इंटर परीक्षा उतीर्ण किया
1913 ई. में इसी कॉलेज से बी. ए. की शिक्षा उतीर्ण किया
उच्चतर शिक्षा- गायकवाड छात्रवृति के आधार पर 1913 ई. में अमरीका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। 1
915 ई. में एनशिट एम. ए. (अर्थशास्त्र) इंडियन कॉमर्स थीसिस के साथ किया।
पी. एच. डी. (ph.D) कोलंबिया विश्वविद्यालय 1916 ई. में अर्थशास्त्र से किया
शोध का विषय – इनके शोध का विषय था-
‘द नेशनल डिविडेंट ऑफ इंडिया : ए हिस्टोरिक एण्ड एनालिटिकल स्टडी’
लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में 1916 ई. में प्रवेश लिया (इसके बाद वे भारत आ गए।) भारत आकर वे 1917 ई. में बड़ौदा के महाराज के सैन्य सचिव बने 1917 ई. में ही उन्होंने त्याग पत्र दे दिया।
प्रोफेसर पद की नियुक्ति:
1918 ई. में सिडेन हैम कॉलेज कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स में पॉलिटीकल इकोनोमी के प्रोफ़ेसर बने।
साप्ताहिक पत्र ‘मूक नायक’: प्रोफेसरी के दौरान ही कोल्हापुर के महाराज साहू से जुड़ाव हुआ। इनके सहयोग से मराठी भाषा में उन्होंने 1920 ई. में साप्ताहिक पत्र मूक नायक निकाला। इस पत्र के माध्यम से अन्याय के विरूद्ध स्वर बुलंद किया।
पुनः लंदन प्रस्थान:
> 1920 ई. में बड़ौदा के महाराज से छात्रवृति एवं अपने एक मित्र नवल से रुपये उधार लेकर पुनः लंदन चले गए।
> 1921 ई. में लंदन स्कुल ऑफ प्राविन्सियल डिसेन्ट्रेलाईजेशन ऑफ इंपीरियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया से मास्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त किया।
> 1922 ई. लंदन ग्रेज इन बार एट लॉ की उपाधि प्राप्त किया।
> 1923 ई. में ‘द प्रोब्लम ऑफ रूपी’ पर डॉक्टर ऑफ सायंस (अर्थशास्त्र) की उपाधि प्राप्त किया।
> 1923 ई. में भारत लौटने के बाद उन्होंने अपने फ़ारसी मित्र नवल बथेना के सहयोग से वकील के रूप में प्रैक्टिस आरंभ कर दिया।
> 1923 ई. में बहिस्कृत भारत (पाक्षिक) समाचार पत्र मुंबई से निकाला।
> 20 जुलाई 1924 ई. में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना करवाई।
> 1925 ई. में मुंबई के प्रेसिडेंसी में नेपाली नामक स्थान पर प्रांतीय दलित वर्ग सम्मलेन की अध्यक्षता किया।
> 1930 ई. में अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ (A.I.D.C.A) का अध्यक्ष पद ग्रहण किया।
> 1930 और 1931 ई. में लंदन में आयोजित प्रथम एवं द्वितीय गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
> 19 मार्च 1927 ई. कोलाबा जिले के महाद नगर निगम के द्वारा निर्मित चावदार तालाब जहाँ अछूतों को पानी भरने की मनाही था वहीं पर उन्होंने विशाल जनसभा कर तालाब का पानी पीया। यहीं इन्हें लोगों के द्वारा बाबा साहब नाम मिला। यही पर 24 दिसंबर 1927 ई. में अंबेडकर ने मनुस्मृति को अग्नि में ‘होम’ कर दिया। जिससे ब्राह्मणों को सर्वोच्च और शुद्रों को नीचा बताया गया था।
अंबेडकर दर्शन के महत्वपूर्ण बातें:
अंबेडकरवाद स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान उत्पन्न हुई एक प्रमुख विचारधारा थी। जिसने दलितों पर होने वाले शोषण और दमन के विरुद्ध काफी उग्र तेवर अपनाया था। अंबेडकर ने अपने गहन तर्क और चिन्तन के आधार पर एक नए सामाजिक आन्दोलन का सूत्रपात किया। जिसे आगे चलकर उनके समर्थकों ने ‘अंबेडकरवाद’ नाम दिया। अंबेडकरवाद दलित समस्या को भारत की बड़ी समस्या मानता है। राष्ट्रीय एकता के नाम पर दलित समस्या को ताल देने की प्रवृति उसे स्वीकार नहीं है। अंबेडकर ने स्वयं कहा था कि दलित समुदाय को सिर्फ देश के एक अंग के रूप में नहीं समझा जा सकता है क्योंकि वह देश से अलग-थलग पड़ा हुआ वंचित अंग है। उन्होंने अपने इस भाषण में साफ़ तौर पर कहा था, “मेरे लिए मेरे व्यक्तिगत हितों से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्र हित हैं, किंतु यदि दलितों के हित और राष्ट्र-हित के बीच कोई टकराव की स्थिति आएगी तो मैं दलितों के हित को वरीयता दूँगा।”
अंबेडकर के अनुसार जाति व्यवस्था और वर्णव्यवस्था का पूरी तरह खात्मा किये बिना हम समानता का आदर्श नहीं पा सकते हैं। जाति के ख़त्म होने का मतलब यह नहीं कि सभी जातियों के लोग समाज में एक-साथ उठने-बैठने लगे। जब तक जाति की धारणा आम आदमी के दिमाग से नष्ट नहीं होगी तबतक समस्या का समुचित समाधान नहीं हो सकता है।
अंबेडकर के अनुसार, जाति व्यवस्था का संबंध हिन्दू समाज की धार्मिक मान्यताओं से है क्योंकि हिन्दुओं के कई धार्मिक ग्रन्थ जाति व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं। जाति व्यवस्था को ख़त्म करने का शर्त है कि हिन्दुओं का सिर्फ एक प्रमाणिक धर्म ग्रन्थ होना चाहिए जो जातिवाद जैसी गलत धारणाओं का समर्थन नहीं करता हो। शेष सभी ग्रंथों को क़ानूनी तौर पर प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। पुरोहित जैसे धार्मिक पदों के लिए ब्राह्मन के अलावा समाज के सभी वर्गों को सामान अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
अंबेडकर ने यह भी कहा था कि यदि हिंदू समाज दलितों को मानवोचित गरिमा नहीं प्रदान करता है तो दलितों को हिंदू धर्म छोड़ देना चाहिए। उन्होंने स्वयं 1556 ई. में अपने मृत्यु से कुछ महीना पहले अपने हजारों समर्थकों के साथ हिंदू धर्म छोड़कर बौद्धधर्म अपना लिया था। यहीं से नव-बौद्ध आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। उनका मानना था कि इस धर्म के झूठी या नकली कल्पनाएँ नहीं है।
अंबेडकर सिर्फ दलितों की ही मुक्ति की बात नहीं करते थे। वे महिलाओं तथा अन्य वंचित वर्गों की मुक्ति पर भी बल देते थे। उनका मानना था कि भारतीय समाज की मूल समस्या जातिगत भेद-भाव की है अन्य सभी समस्याएँ उससे जुड़ी हुई है। वर्तमान भारतीय राजनीती में अंबेडकरवाद का काफी प्रभाव पड़ा इसका पहला महत्वपूर्ण उदाहरण कांशीराम द्वारा 1978 ई. स्थापित बामसेफ ( BAMCEF- All India Backward and Minority Communities Fedration) था। जिसकी सीमाओं को देखते हुए 1981 ई. में उन्होंने ‘DS4’ को भंग करके बहुजन समाज पार्टी (BSP) का निर्माण किया जो वर्तमान में अंबेडकरवाद पर आधारित सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।
महाराष्ट्र में नामदेव ढसाल द्वारा स्थापित दलित ‘पैंथर्स पार्टी’ तथा हाल में उत्तर प्रदेश में उदितराज द्वारा स्थापित इंडियन जस्टिस पार्टी इसी विचारधारा के उदाहरण हैं। महाराष्ट्र में रामदास अठावले की ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ भी इसी विचारधारा से प्रभावित है।
अंबेडकर दर्शन : अंबेडकर के राजनितिक विचार:
> राज्य एवं जनतंत्र की महत्ता
> राज्य के प्रति आज्ञाकारिता का भाव होना चाहिए
> राज्य की अनिवार्यता
> संसदिय सरकार का समर्थन
> सामाजिक लोकतंत्र की व्यवस्था
> दलीय व्यवस्था का समर्थन किया गया
> जनता के जागरूकता पर बल दिया गया
> अवैधानिक नैतिकता का पालन
> बहुमत की निरंकुशता को सीमित करने पर बल
अंबेडकरका सामाजिक दर्शन: (त्रयी दर्शन पर आधारित)
> स्वतंत्रता एवं समानता
> भातृत्व एवं शिक्षा
> बुद्ध धम्म एवं संघ
> अंबेडकर ने जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए तीन सुझाव दिए:
> एक वर्गीय व्यवस्था
> अंतर्जातीय विवाह
> पुरोहिताई के व्यवस्था का प्रजातंत्रीकरण
अंबेडकर का धार्मिक दर्शन:
> उन्होंने धर्म की अनिवार्यता पर बल दिया। धार्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए।
> धार्मिक कटरता का का विरोध होना चाहिए।
> उन्होंने धर्म निरपेक्षता पर बल दिया। धार्मिक संस्थाओं का समर्थन किया।
> धर्म और राजनीति में परस्पत संबंध होना चाहिए।
अंबेडकर का आर्थिक दर्शन:
> भारत के विकास के लिए राजकीय समाजवाद को आवश्यक माना
> 15 सितंबर 1938 ई. को औद्योगिक बिल का विरोध किया
> बीमा के राष्ट्रीयकरण को अवश्यक बताया
> कृषि सुधार के लिए कृषि को राज्य के प्रमुख उद्दोग के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया।
> सामूहिक खेती पर बल दिया तथा धन का न्यायपूर्ण वितरण हो।
अंबेडकर एवं मार्क्स दर्शन की समानताएँ – असमानताएँ :
समानताएँ- द
> दलितों एवं शोषितों के उद्धार पर बल दिया
> वर्ग व्यवस्था का उन्मूलन
> धन का न्यायपूर्ण वितरण
असमानताएँ-
> अंबेडकर दर्शन अहिंसा के माध्यम से सुधार चाहता है जबकि मार्क्सवाद हिंसक क्रांति का पक्षधर है।
> मार्क्सवाद को लोकतंत्र में अनास्था है जबकि अंबेडकर को लोकतंत्र में आस्था है।
> मार्क्सवाद के चिंतन का आधार वर्ग है जबकि अंबेडकर के चिंतन का आधार जाति है।
अंबेडकर एवं गाँधी दर्शन की समानताएँ – असमानताएँ:
समानताएँ-
> अस्पृश्यता का निवारण
> राजनीती धर्म के आधार पर चले
> धर्म निरपेक्षता हो
> शोषित एवं दलितों का उद्धार हो
> भेद-भाव का विरोध हो
असमानताएँ-
> धर्म के प्रति गाँधी जी का आग्रह नैतिक एवं अध्यात्मिक था। जबकि अंबेडकर का व्यावहारिक आग्रह था।
> गाँधी जी राज्यविहीनता के समर्थक थे। जबकि अंबेडकर राज्य को अनिवार्य मानते थे।
> अंबेडकर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं मतदान के समर्थक थे जबकि गाँधी जी इसके विरोधी थे
अंबेडकर के संबंध में प्रसिद्ध कथन:
> “कम खाओ अधिक पढ़ो”
> “शिक्षित बनो संगठित रहो तथा संघर्ष करो”
> “धर्म मनुष्य के लिए मनुष्य लिए मनुष्य धर्म के लिए नही
> “व्यक्ति से बड़ा देश है”
> “जाति संस्था का नाश ही समानता का निर्माण है”
> “जीवन की सफलता अछूतों का स्तर मानवता के स्तर तक लाने में है”
> “कॉग्रेस शोषक एवं शोषितों की जमात है”
> “मैं हिन्दू के रूप में पैदा हुआ किन्तु हिंदू के रूप में मरुंगा नहीं”
> “भारतीय नारी के पतन और विनाश के लिए अगर कोई कारण है तो वह मनु है बुद्ध नहीं”
> “मेरा झगडा कुछ मामलों में सवर्ण हिंदुओं से है मै शपत लेता हूँ कि मैं अपने देश की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावरकर दूँगा”
> “ब्राह्मण वाद एक जहर है जिसने हिंदुत्व को नष्ट किया। यदि ब्राह्मण वाद को नष्ट कर दिया जाए तो हिंदुत्व की रक्षा हो सकती है।”
> “मनुष्य को जीवित रखने के लिए केवल भोजन की अवश्यकता नहीं। बल्कि उसके पास मस्तिष्क भी होता है जिसके लिए विचारों का खाद्द आवश्यक है।”
> “बिना संघर्ष के न तो सत्ता प्राप्त हो सकती और न ही प्रतिष्ठा।”
अंबेडकर के संबंध में विद्वानों के प्रसिद्ध कथन:
नेहरू के अनुसार- “डॉ अंबेडकर हिन्दू समाज द्वारा किये गए दमनात्मक कार्यों के विद्रोह का प्रतीक थे।”
नेहरू के अनुसार- ” डॉ अंबेडकर सबसे ज्यादा हिन्दू समाज की उत्पीड़न चीजों के खिलाफ विद्रोह के प्रतिक के रूप में याद किये जायेंगे।”
डॉ पीली के अनुसार- “अंबेडकर आधुनिक मनु और भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पी थे।”
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुसार- ” डॉ अंबेडकर पूरी तरह निश्छल व्यक्ति थे। उनकी क़ानूनी समझ बहुत पैनी थी। ह्रदय मान से भरपूर और समझौता वादिता से परे थे।”
डॉ राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार– “अंबेडकर हमारे संविधान के निर्माता थे और विविध प्रकार के उन्होंने जो कार्य किये खासकर पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए उनकी जितनी बड़ाई की जाए कम है।”
डॉ आर. सी. गुहा के अनुसार– ” डॉ अंबेडकर अधिकांश विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का अनूठा उदाहरण हैं।”
डॉ अंबेडकर से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:
> डॉ अंबेडकर जयंती 14 अप्रैल को मनाया जाता है।
> डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना 1990 ई. में हुई।
> संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण उन्हें आधुनिक युग का मनु कहा जाता है
> 20 वीं शदी का बोधिसत्व अंबेडकर को कहा जाता है क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म में मार्क्सवाद का एक नैतिक एवं सहिष्णु विकल्प खोजा था।
> डॉ अंबेडकर को भारत का लिंकन एवं मार्टिनलूथर भी कहा जाता है। (सबसे पहले नेहरू ने अंबेडकर को भारत का लिंकन कहा था।)
> डॉ अंबेडकर के जीवनवृत्त पर जब्बार पटेल ने फिल्म का निर्माण किया था।
> अंबेडकर के जीवन पर निम्नलिखित विद्वानों का प्रभाव भी पड़ा था- कबीर, गौतमबुद्ध, ज्योतिबाफुले, महादेव गोविंद रानाडे।
> जॉन डिबे (कोलंबिया विश्वविद्यालय में अंबेडकर के शिक्षक थे।)
> कार्ल मार्क्स, महात्मा गाँधी, बूकर टी वाशिंगटन (नीग्रो को शिक्षा देने वाले)
अंबेडकर द्वारा संपादित पत्र: (ये सभी पात्र दलितों के उत्थान के थे)
> 1920 ई. – मूक नायक
> 1923 ई. – बहिस्कृत भारत
> 1924 ई. – समता
> 1929 ई – जनता
> 1955 ई. – प्रबुद्ध भरत
> 1956 ई. में अंबेडकर के नेतृत्व में लगभग 5 लाख व्यक्तियों ने बौद्धधर्म को अपनाया (14 औक्तुबर 1956 को दशहरा था।)
> 1932 ई. में मैक डोनाल्ड पंचांट में जब अस्पृश्यों को स्वर्ण हिन्दू से पृथक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया तब अंबेडकर ने आमरण अनसन आरंभ कर पूना समझौता कर गाँधी के साथ इनमे संशोधन करवाया।
> 1927 ई. में मुंबई विधान परिषद् के नामजद सदस्य बने।
> 1930 ई. में महाराष्ट्र के नासिक के ‘कालाराम’ मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए अभियान चलाया।
> डॉ अंबेडकर ने तीन गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया- 1930, 1931 और 1932ई.
> अगस्त 1936 ई. में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ (स्वतंत्र मजदूर दल) की स्थापना की।
> 1937 ई. में मुंबई विधान सभा चुनाव में विधायक बने।
> 2 जुलाई 1942 ई. में लार्ड लिनलिथगो के द्वारा कार्यकारिणी परिषदों के रूप में नियुक्ति हुई।
> फ़रवरी 1946 ई. में मजदूरों के 10 घंटे की मजदूरी का समय घटाकर करने का बिल पारित करवाया।
> 8 जुलाई 1945 ई. में जनता शिक्षा समाज की स्थापना किया।
> जून 1950 ई. को मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना।
> 15 अगस्त 1947 ई. में प्रथम केंद्रीय मंत्रिमंडल में विधि मंत्री बने।
> 9 अगस्त 1949 ई. में भारत सरकार के कानून मंत्री बने।
> 17 सितंबर 1951 ई. में ‘हिन्दू कोड बिल'(विवाह और तलाक) का ‘भाग एक’ संसद में प्रस्तुत सुझावों से दुखी होकर अंबेडकर दे दिया।
> 1952 ई. में कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ लौ’ की उपाधि प्राप्त किए।
> 1953 ई. में उस्मानिया विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर कि मानद उपाधि दी गई।
अंबेडकर की रचनाएँ:
> कास्ट ऑफ इंडिया – 1916 ई.
> स्माल होल्डिंग्स इज इंडिया एंड देयर रेमेडीज – 1917 ई.
> दी प्रोब्लम ऑफ दी रूपी – 1923 ई.
> दी इव्योलूसन ऑफ दी प्रोवेन्शियन फायनेंस इन ब्रिटिश इंडिया – 1925 ई.
> एनिहिलेशन ऑफ कास्ट 1939 ई.
> फेडरेशन वर्सेज फ्रीडम – 1939 ई.
> मिस्टर गाँधी एण्ड दी इमैनसिपेशन ऑफ दी अनटचेबुल्स – 1943 ई.
> रानाडे गाँधी और जिन्ना 1943 ई.
> थार्स्टई ऑन पाकिस्तान – 1943 ई.
> पाकिस्तान एण्ड पार्टिशन ऑफ इंडिया – 1943 ई.
> हू वर डी शुद्राज – 1946 ई.
> हिस्ट्री ऑफ इंडियन करेंसी एण्ड बैंकिंग – 1947 ई.
> स्टेट्स एण्ड माइनॉरिटीज – 1947 ई.
> डी ऑन स्टेबल्स – 1948 ई.
> गाँधी एण्ड डी गाँधीज्म – 1948 ई.
> द बुद्ध एंड हिज धम्म – 1957 ई. यह निधन के बाद प्रकाशित हुआ था।