बारीन्द्र नाथ घोष भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार तथा ‘युगांतर’ के संस्थापको में से एक थे। वे ‘बारिन घोष’ के नाम से अधिक लोकप्रिय थे। बारिन घोस अध्यात्मवादी अरविंद घोष के छोटे भाई थे। बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को फैलाने का श्रेय बारीन्द्र नाथ घोष और भूपेन्द्र नाथ दत्त को जाता है। भूपेन्द्र नाथ दत्त विवेकानंद के छोटे भाई थे। भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास उन असंख्य बलिदानियों की गाथा है जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए अपना तन, मन, धन सब कुछ बलिदान कर दिया। उनमे से तो कुछ ऐसे भी बलिदानी थे जो अपना सब कुछ न्योछावर करने के बाद भी गुमनाम रहे या कहें कि उन्हें इतिहास में आने ही नहीं दिया गया। उनमे से एक स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार बारीन्द्र नाथ घोष भी थे।
बारीन्द्र घोष का जन्म 5 जनवरी 1880 ई० को लंदन के पास ‘क्रोयदन’ नामक कसबे में हुआ था। उनके पिता कृष्णधन नामी चिकित्सक और प्रतिष्ठित जिला सर्जन थे। उनकी माता स्वर्णलता देवी समाज सुधारक थी। वे विद्वान राजनारायण बासु की पुत्री थी। बारीन्द्र घोष की स्कूली शिक्षा देवगढ़ में हुई। सन् 1901 ई० में उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास कर पटना कॉलेज में दाखिला लिया। बरोदा में उन्होंने मिलिट्री ट्रेनिंग किया था। इसी समय श्री अरविंद से प्रभावित होकर उनका झुकाव क्रांतिकारी आन्दोलन की तरफ हुआ। सन् 1902 ई० में बारीन्द्र घोष वापस आ गए और यतीन्द्र नाथ मुखर्जी के साथ मिलकर बंगाल के अनेक क्रांतिकारी समूहों को संगठित करना शुरू कर दिया। बारीन्द्र घोष और भूपेन्द्र नाथ दत्त के सहयोग से 1907 ई० में कलकत्ता में ‘अनुशासन समिति’ का गठन किया गया। इस समिति का प्रमुख उद्देश्य था- “खून के बदले खून”
1905 ई० के बंगाल विभाजन ने युवाओं को आंदोलित कर दिया था जो कि ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना के पीछे एक प्रमुख कारण था। इस समिति का जन्म 1903 ई० में ही एक ‘व्यायामशाला’ के रूप में हो गया था। इसकी स्थापना में प्रथम नाथ और सतीश चंद्र बोस का प्रमुख योगदान था। एम. एन. राय के सुझाव से इसका नाम ‘अनुशीलन समिति’ रखा गया था। प्रथम नाथ मित्र इसके अध्यक्ष, चितरंजन दास व अरविंद घोष इसके उपाध्यक्ष और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर इसके कोषाध्यक्ष थे। इसकी कार्यकारारिणी की एकमात्र शिष्या सिस्टर निवेदिता थी। 1906 ई० में इसका पहला सम्मलेन कलकत्ता में सुबोध मालिक के घर पर हुआ था। बारीन्द्र घोष का मानना था किसिर्फ राजनितिक प्रचार ही काफी नहीं है नौजवानों को इसके लिए अध्यात्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। उन्होंने इसके लिए अनेक जोशीले नौजवानों को तैयार किया। वे लोगों को बताते थे कि स्वतंत्रता के लिए लड़ना पावन कर्तव्य है।
बारीन्द्र घोष ने 1905 ई० में क्रांति से संबंधित ‘भवानी मंदिर’ नामक पहली पुस्तक लिखी। इसमें आनंदमठ का भाव था। इसमें क्रांतिकारियों को यह संदेश दिया गया था कि वे स्वतंत्रता प्राप्त करने तक सन्यासी का जीवन व्यतीत करे। 1906 ई० में बारीन्द्र घोष ने भूपेन्द्र नाथ दत्त के साथ मिलकर ‘युगांतर’ नामक साप्ताहिक पत्र बांगला भाषा में प्रकाशित किया। क्रांति के प्रचार में इस पत्र का सर्वाधिक योगदान रहा। इस पत्र ने लोगों में राजनितिक व धार्मिक क्षिक्षा का प्रसार किया। जल्द ही इस नाम से एक क्रांतिकारी संगठन भी बनाया गया। ‘युगांतर’ का जन्म ‘अनुशीलन समिति’ से ही हुआ था। इसने जल्दी ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू कर दी। बंगाल के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ थी। बारीन्द्र घोष के नेतृत्व में युगांतर समूह ने सर्वत्र क्रांति का बिगुल बजाया।
बारीन्द्र घोष ने अपनी दूसरी पुस्तक ‘वर्तमान रणनीति’ लिखी जिसे 1907 ई० में अविनाश चंद्र भट्टाचार्य ने प्रकाशित किया था यह किताब बंगाल के क्रांतिकारियों की पाठ्य पुस्तक बन गई थी इसमें यह कहा गया था कि भारत की आजादी के लिए फौजी शिक्षा और युद्ध दोनों जरुरी है। बारीन्द्र नाथ घोष और बाघ जतिन ने पूरे बंगाल से अनेक युवा क्रांतिकारियों को जुटाने में निर्णायक भूमिका निभाया। क्रांतिकारियों ने कलकता के मनिकुत्ल्ला में एक ‘मनिकुत्ल्ला समूह’ बनाया यह उनका एक गुप्त स्थान था जहाँ पर वे बम बनाते और हथियार इक्कठा करते थे। 30 अप्रैल 1908 ई० को खुदीराम बोस और प्रफुल्लचंद चाकी ने किंस्फोर्ड की हत्या का प्रयास किया था जिसके फलस्वरूप पुलिस ने क्रांतिकारियों की धड़-पकड़ शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से 2 मई 1908 ई० को बारीन्द्र घोष अपने कई साथियों के साथ गिरफ़्तार कर लिए गए। उनपर ‘अलीपुर बम’ कांड का केस’ चलाया गया और उन्हें मृत्युदंड की सजा सूना दी गई। बाद में उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल कर अंडमान के भयानक सेल्युलर जेल में भेज दिया गया। वहाँ उन्हें 1920 ई० तक कैद रख गया।
बारीन्द्र नाथ घोष को 1920 ई० में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ‘आम क्षमा’ में बदलकर रिहा कर दिया गया। इसके बाद बारीन्द्र नाथ घोष ने कलकाता आकर पत्रकारिता प्रारंभ कर दिया। किसी कारण वश उन्होंने जल्द ही पत्रकारिता भी छोड़कर एक आश्रम बना लिया। 1923 ई० में वे पांडिचेरी चले गए। वहाँ उनके बड़े भाई अरविंद घोष बहुत ही प्रसिद्ध थे। वही पर उन्होंने ‘श्री औरोविंद’ आश्रम बनाया था। अरविंद ने उन्हें ‘अध्यात्म’ और ‘साधन’ के प्रति प्रेरित किया। उनके गुरु ठाकुर अनुकुलचंद थे। इन्होंने ही अपने अनुयायियों के द्वारा बारीन्द्र नाथ घोष के सकुशल रिहाई में मदद किया था। 1929 ई० में बारीन्द्र नाथ घोष दूसरी बार कोलकाता आए और फिर पत्रकारिता शुरू कर दिया। 1933 ई० में उन्होंने “THE DOWN OF INDIA” नाम से एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र शुरू किया। वे ‘THE STATESMAN’ से भी जुड़े रहे 1950 ई० में बांगला दैनिक “दैनिक बसुमती के संपादक बन गए। 18 अप्रैल 1959 को इस महान स्वतंत्रता सेनानी का स्वर्गवास हो गया।