संत कबीरदास जी का यह दोहा हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सु पंडित होय।।
इस ढाई अक्षर के रहस्य को हम समझ नहीं पाएँ हैं। कबीर का मानना था कि प्रेम तत्व ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। सच्चा प्रेम ज्ञान की सीमा को लाँघकर मानव को अनंत ईश्वर तक पहुँचा देता है।
ढाई अक्षर का वक्र और तुंड
ढाई अक्षर का रिद्धि और सिद्धि।
ढाई अक्षर के ब्रह्मा और सृष्टि
ढाई अक्षर के विष्णु और लक्ष्मी।
ढाई अक्षर की शिव और शक्ति
ढाई अक्षर की कृष्ण और कांता।
ढाई अक्षर की श्रद्धा और भक्ति
ढाई अक्षर की तृप्ति और तृष्णा।
ढाई अक्षर का धर्म और कर्म
ढाई अक्षर का भाग्य और व्यथा।
ढाई अक्षर का संत और ग्रंथ
ढाई अक्षर का शब्द और अर्थ।
ढाई अक्षर का सत्य और मिथ्या
ढाई अक्षर का अग्नि और कुण्ड।
ढाई अक्षर का मंत्र और तंत्र
ढाई अक्षर का मित्र और शत्रु।
ढाई अक्षर का प्रेम और स्वार्थ
ढाई अक्षर का प्रेम और घृणा।
ढाई अक्षर का सांस और प्राण
ढाई अक्षर का जन्म और मृत्यु।
ढाई अक्षर की अस्थि और अर्थी
ढाई अक्षर का वक्त और ढाई अक्षर का ही अंत।
जन्म से मृत्यु तक इस ढाई अक्षर के अद्भूत रहस्य में हम बंधे हुए हैं फिर भी इस ढाई अक्षर के रहस्य को हम समझ न पाये।