अनेक बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत पर राज करने के लिए, सबसे पहले हमारे भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पर कुठाराघात किया। जिससे कि हम हिंदवासी अपनी संस्कृति को भूला कर उनकी पाश्चात्य संस्कृति को अपना ले। हमारी अपनी ही संस्कृति का पूर्णरूप से ज्ञान नहीं होने के कारण, हम भारतवासी 31 दिसंबर के रात्रि में ‘हैपी न्यू ईयर’ कहकर नया वर्ष मनाते हैं और एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं।
यह नयावर्ष का उत्सव 4000 वर्ष पूर्व बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि बसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष) था। प्राचीन रोम में भी यह तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुना गया था लेकिन रोम के तानाशाह जुलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने ईसापूर्व 45वें वर्ष में जुलियस कैलेंडर की स्थापना किया। उस समय विश्व में पहली बार 1st जनवरी को नये वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जुलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि ईसा पूर्व 46 ई० को 445 दिनों का करना पड़ा था। उसके बाद भारतीय नववर्ष को छोड़कर ईसाई समुदाय अपने देशों में 1 जनवरी को नववर्ष मनाने लगे।
भारत में अंग्रेजों ने 1757 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। उसने 190 वर्ष तक भारत को गुलामी के जंजीरों में बाँध कर रखा। इसमें वे लोग भी शामिल थे जो भारत के ऋषि-मुनियों और सनातन संकृति को मिटाने के लिए प्रयत्नशील थे। इसके लिए सबसे पहला व्यक्ति लॉर्ड मैकाले था जिसने भारत के इतिहास को बदलने का प्रयास किया। हमारे गरुकुलों के शिक्षण पद्धति को बदल दिया गया। भारत के प्राचीन इतिहास को बदल दिया गया। जिसके कारण भारतीय अपने मूल इतिहास को नहीं जान सके। उसने हम भारतियों को उस इतिहास की जानकारी दिया जो हमारा था ही नहीं। उसी का नतीजा है कि आज हम सभी भारतवासी ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’ को छोड़कर 1 जनवरी को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। हम सभी भारतीयों को यह ध्यान में रखना चाहिए। हमें विचार करना चाहिए। क्या हमें हमारे ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’ नववर्ष की कोई अन्य शुभकामनाएँ देता है या हमारा नववर्ष मनाता है, फिर हम दूसरों का नववर्ष अपना कहकर क्यों मनाएँ?
इस वर्ष का नया साल 2022 ई० अंग्रेजों अथार्त ईसाई धर्म का नया वर्ष है। हम भारतियों का समय विक्रम संवत् 2078 ई० चल रहा है। इससे यह सिद्ध होता है कि हिन्दू धर्म सबसे पुराना धर्म है। इस विक्रम संवत् से 5000 वर्ष पूर्व इस पुण्य भूमि पर भगवान् विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे। उनसे पहले राम और अन्य अवतार हुए। यानी जबसे पृथ्वी का आरम्भ हुआ तबसे सनातन (हिन्दू) धर्म है। सिर्फ हिन्दू कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता है।
आज भी हम सबके घर में जब किसी बच्चे का जन्म, नामकरण, विवाह, जन्मकुंडली आदि बनाना होता है तब कैलेंडर को देखकर नहीं बल्कि हिन्दू पंचांग को देखकर बनाते हैं। हमारे सभी व्रत, तीज, त्यौहार आदि पंचाग तिथि से ही मनाया जाता है। अतः भारतीय संस्कृति का नया वर्ष ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’ है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ मुझे याद आ रही है-
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना यह त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना यह व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग-बाजारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतजार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नकल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन-मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुँध कुहासा छटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह-सुधा बरसायेगी
शस्य-श्यामला धरती माता
घर-घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जाएगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति-प्रमाण से स्वयंसिद्धि
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा-सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिए कोई आधार नहीं
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
ऋषियों के तप से सिंचित हु।
मुनियो का आज्ञापालक हु।
श्रीराम का अनुपालक हु।
दुश्मन के लिए तलवार है हम।
डूबते हुवे की पतवार है हम।
सुरवीर भट्वीर की ललकार,
समुद्र सी गहराई अपार।
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