अव्यय या अविकारी शब्द:
प्रयोग या अर्थ के आधार पर शब्द दो तरह के होते है।
1. व्ययी या विकारी शब्द
2. अव्यय या अविकारी शब्द
नोट: कारक, काल, वचन, लिंग के आधार पर जिनका रूप बदल जाता है, उसे व्ययी या विकारी शब्द कहते है।
नोट: कारक, काल, वचन, लिंग के आधार पर जिनका रूप नहीं बदलता है, उसे अव्यय या अविकारी शब्द कहते है।
अव्यय की परिभाषा –
वे शब्द जो कारक, वचन, लिंग आदि ‘व्याकरणिक कोटियों’ से अप्रभावित रहते है, उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते है।
नोट: कारक, काल, वचन और लिंग को व्याकरणिक ‘कोटियाँ’ कहते है।
उदाहरण: ‘प्रतिदिन’
राम प्रतिदिन विद्यालय जाता है।
राम और श्याम प्रतिदिन विद्यालय जाते है।
सीता प्रतिदिन विद्यालय जाती है।
राम प्रतिदिन विद्यालय जाता था।
अव्यय के चार भेद होते हैं:
1. क्रियाविशेषण अव्यय
2. समुच्चयबोधक अव्यय
3. विस्मयादिबोधक अव्यय
4. संबंधबोधक अव्यय
निपात या अवधारक अव्यय
1. क्रियाविशेषण अव्यय:
परिभाषा- वे अविकारी शब्द (जिसमे परिवर्तन नहीं हो) जो क्रिया की विशेषता को प्रकट करते है। उन्हें क्रियाविशेषण अव्यय कहते है।
उदाहरण:
श्याम धीरे-धीरे चलता है।
सरिता धीरे-धीरे चलती है। (यहाँ धीरे-धीरे चलना क्रियाविशेषण है)
क्रियाविशेषण अव्यय के चार भेद हैं:
(क) रीतिवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय:
परिभाषा- वे विकारी शब्द जो क्रिया के घटित होने की रीति अथार्त तरीका को बताते हो, उन्हें रीतिवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय कहते है।
रीतिवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय को ज्ञात करने के लिए क्रिया से ‘कैसे’ प्रश्न करते है। ‘कैसे’ का उत्तर ही रीतिवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय होता है।
उदाहरण:
घोड़ा तेज दौड़ता है।
घोड़ी तेज दौड़ती है।
(ख) कालवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय:
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो क्रिया के घटित होने के काल अथार्त समय का बोध कराता हैं। उसे कालवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं।
यदि किसी भी वाक्य में कोई भी समय सूचक शब्द आए तो उस वाक्य में काल बोधक क्रियाविशेषण अव्यय होता है। जैसे-
घड़ी का समय- 2 बजे, 3 बजे, 4 बजे, 5 बजे आदि।
माह का नाम- कार्तिक, जनवरी, रमजान आदि।
वार का नाम- रविवार, सोमवार, मंगलवार आदि।
वर्ष आ जाए- 1910, 1919, 2020 आदि।
आज, कल, परसों, सुबह, शाम, दोपहर आदि
उदाहरण:
वह आज जाएगा।
सीता कल आएगी।
वह सुबह से पढ़ रहा है।
(ग) स्थानवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय:
परिभाषा- वे विकारी शब्द जो क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराता है। उसे स्थानवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं।
किसी भी वाक्य में कोई भी स्थान सूचक शब्द आए जैसे- यहाँ, वहाँ, वहीँ, कहीं, ऊपर, नीचे, दाएँ, बाएँ, पास, दूर ।
उदहारण:
खेल का मैदान विद्यालय के पास स्थित है।
रमेश यहाँ रहता है।
राम यहाँ आओ। आदि
(घ) परिमाणवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय:
परिभाषा- वे विकारी शब्द जो क्रिया के घटित होने के परिणाम अथार्त मात्रा का बोध कराता है, उसे परिमाणवाचक या बोधक क्रियाविशेषण अव्यय कहते है।
जैसे- थोड़ा-थोड़ा, जितना, उतना, अधिक, कम, कुछ आदि।
नोट: यदि मात्रा सूचक शब्द क्रिया के साथ आए तो ही परिमाण वाचक क्रियाविशेषण अव्यय माना जाएगा और यदि मात्रा सूचक शब्द किसी संज्ञा के स्थान पर आए तो परिमाण वाचक विशेषण माना जाएगा।
उदाहरण:
जितना चाहे उतना ले लो।
नदी में पानी अधिक है।
वहाँ बहुत लोग है।
2. समुच्चयबोधक (जोड़ा, समूह, group) अव्यय के चार भेद हैं:
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो दो या से अधिक पदों अथवा वाक्यों में समुच्चय अथार्त समूह बनाते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते है।
उदाहरण:
राम और सूरज खेलते हैं।
सीता और मीरा खेलती हैं।
सूरज खेलता है और श्याम पढ़ता हैं।
सीता खेलती है और राम पढ़ता हैं।
समुच्चयबोधक अव्यय के भेद:
समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद होते है-
(i) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
(ii) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
(i) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो एक सामान पदों अथवा वाक्यों को आपस में जोड़ते हैं, उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय शब्द कहते हैं।
उदाहरण:
राम और सुरेश खेलते हैं।
राम पढ़ता है और सुरेश खेलता हैं।
समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के चार भेद होते हैं-
(क) संयोजक
(ख) विभाजक / वैकल्पिक
(ग) विरोधमूलक
(घ) परिणामवाचक
(क) संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- जो पदों या वाक्यों को आपस में जोड़ते हैं। उन्हें संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- किसी भी वाक्य में और, एवं, तथा, व इनमे से कोई भी शब्द आ जाए उन्हें संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते है।
उदाहरण:
राम और श्याम खेलते हैं।
(ख) विभाजक / वैकल्पिक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय –
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो एक ही वर्ग की दो वस्तुओं, प्राणियों में से किसी एक का चुनाव करने हेतु प्रयुक्त होते हैं, उन्हें विभाजक / वैकल्पिक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- किसी भी वाक्य में- अथवा, या शब्द हो उसमे विभाजक / वैकल्पिक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
सीता या गीता में से एक जाएगी।
राम अथवा श्याम में से एक यहाँ रहेगा।
(ग) विरोधमूलक / बोधक / दर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय –
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो किसी कार्य के विपरीत परिणाम को बताते है, उन्हें विरोधमूलक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- किसी भी वाक्य में- किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर शब्द हो उसमे विरोधमूलक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
उसने पढ़ाई नहीं की परन्तु अनुतीर्ण हो गया।
वह अच्छा विद्यार्थी था परन्तु वार्षिक परीक्षा में फेल हो गया।
(घ) परिणामबोधक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो किसी कार्य के परिणाम को बताते है, उन्हें परिणामबोधक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते है। जैसे कसी भी वाक्य में- इसलिए, अतः, अस्तु हो उसमे परिणामबोधक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
वह पढ़ता था इसलिए उतीर्ण हो गया।
वह पढ़ता था अतः उतीर्ण हो गया।
(ii) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय–
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो दो या दो से अधिक आश्रित उपवाक्यों को आपस में जोड़ते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
आश्रित उपवाक्यों- वह वाक्य जो अपने अर्थ के लिए किसी दूसरे पर निर्भर हो, इन्हें आश्रित उपवाक्य कहते है।
जैसे- सुरेश ने कहा राम आज नहीं आयेगा।
दूसरी परिभाषा- मिश्र या मिश्रित वाक्यों को आपस में जोड़ने वाले शब्द व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते है।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के भेद
व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के चार भेद हैं-
(क) कारणबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो कोसी कार्य के कारण का बोध कराते हैं, उन्हें कारणबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- किसी भी वाक्य में इसलिए, चूँकि, कि, क्योंकि, जो, शब्द आ जाए उसमे कारणबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
वह बाहर नहीं जा सकता क्योंकि बाहर कोरोना का डर है।
चूँकि वह कमज़ोर है इसलिए उस पर सब हावी हो जाते है।
(ख) संकेतबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- वे विकारी शब्द जो किसी कार्य, वस्तु, अवस्था, शर्त आदि का संकेत देते है, उन्हें संकेतबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- किसी भी वाक्य में यदि, जब-जब, जो-सो, यद्दपि–जद्दपि, तथापि शब्द आ जाए उसमे संकेतबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
यद्दपि वह ईमानदार आदमी है तथापि गरीब है।
यदि वह परिश्रम करता तो उतीर्ण हो जाता।
(ग) स्वरूपबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो पहले से प्रयुक्त वाक्य या वाक्यांश के अर्थ को स्पस्ट करते हैं, उन्हें स्वरूपबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- किसी वाक्य में मानो, यथार्त, यानी, कि शब्द आ जाए, उसमे स्वरूपधकबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
आज इतनी गरमी है मानो अग्नि जल रही है।
वह ऐसे चिल्लाता है मानों शेर आ गया।
(घ) उद्देश्यबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय-
परिभाषा- वे अविकारी शब्द जो किसी कार्य के उद्देश्य को बताते हैं, उन्हें उद्देश्यबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- किसी वाक्य में ताकि, जिससे कि, इसलिए शब्द आ जाए, उसमे उद्देश्यबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होगा।
उदाहरण:
लाईट बंद करो ताकि सीमा सो जाए।
मेहनत करो जिससे कि नेट किलियर आए।
3. विस्मयादीबोधक अव्यय-
परिभाषा: वे अविकारी शब्द जो घृणा, क्रोध, हर्ष. शोक, शाबासी, धन्यबाद, संबोधन, भय, विस्मय भावों आदि को प्रकट करते हैं, उन्हें विस्मयादी बोधक अव्यय कहते हैं।
विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद-
विस्मयादिबोधक अव्यय के अनेक भेद हैं-
(क) विस्मय (आश्चर्य) बोधक अव्यय – क्या ! अरे ! सच ! ओह ! ऐ !
(ख) शोकबोधक अव्यय – आह ! हाय ! हे राम !
(ग) हर्षबोधक अव्यय – अहा ! वाह !
(घ) क्रोधबोधक अव्यय – अरे ! खामोश ! चुप !
(ङ) भयबोधक अव्यय – हाय ! बाप रे !
(च) चेतावनीबोधक अव्यय – खबरदार ! बचो ! सावधान ! होशियार
(छ) घृणाबोधक अव्यय – छी-छी, धिक्, धत्, उफ, थू-थू
(ज) प्रसन्नताबोधक अव्यय – शाबास! वाह ! अति सुंदर !
(झ) इच्छाबोधक अव्यय – काश ! यदि
(ञ) संबोधनबोधक अव्यय – ए जी ! हाँ जी ! ओ जी ! अरे ! सुनो जी !
(ट) आशीर्वादबोधक अव्यय – जीते रहो ! खुश रहो ! दीर्घायु हो !
(ठ) शाबासीबोधक अव्यय – शाबास ! वाह ! बहुत अच्छा ! अति सुंदर ! बहुत खूब !
4. संबंधबोधक अव्यय- वे विकारी शब्द जो दो या दो से अधिक पदों अथवा वाक्यों में संबंध को अभिव्यक्त करते हैं या प्रकट करते हैं, उन्हें संबंधबोधक अव्यय कहते है।
संबंधबोधक अव्यय के भेद-
(क) प्रयोग के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के दो भेद हैं:
(i) संम्बद्ध संबंधबोधक अव्यय (ii) अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय
(i) संम्बद्ध संबंधबोधक अव्यय-
परिभाषा: वे अविकारी शब्द जो संज्ञा शब्दों की विभक्ति के रूप में प्रयुक्त होते है, उन्हें संम्बद्ध संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण:
राम से चला नहीं जाता।
राधा के बिना कृष्ण अधूरा है।
सुरेश के बिना वह अधूरा है।
वह बच्चों के लिए मिठाइयाँ लाया।
राम और श्याम ने पढ़ाई की।
(ii) अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय-
परिभाषा: वे अविकारी शब्द जो संज्ञा शब्दों के विकृत या विकारी रूप के बाद आते है, उन्हें अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय कहते है।
उदाहरण:
वह पुत्रों सहित युद्ध में मारा गया।
धन कुबेरों के बिना संसार अधूरा है।
(ख) अर्थ के आधार पर संबंधबोधक अव्यय और उसके उदाहरण निम्नलिखित है:
कालवाचक संबंधबोधक अव्यय –
परिभाषा- वे अव्यय शब्द जिससे काल अथार्त समय का बोध होता हो उसे कालवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- आगे, पीछे, बाद में, पहले, पूर्व, अनन्तर, पश्चात, उपरान्त, लगभग आदि।
उदहारण: राम के बाद कोई अवतार नहीं हुआ।
स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय – वे अव्यय शब्द जिससे स्थान का बोध हो, उसे संबंधबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- बाहर, भीतर, पास, निकट, समीप, तले, पीछे, बाद आदि
उदाहरण: मेरे घर के सामने फुलवारी है।
दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय – वे अव्यय शब्द जिससे दिशा का बोध हो उसे दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- ओर, तरफ, पार आसपास, आरपार, प्रति आदि।
उदाहरण: श्याम उस ओर जा रहा है। वह इस तरफ आ रहा है।
साधनवाचक / संबंधबोधक अव्यय –
परिभाषा- वे अव्यय शब्द जिससे साधन का बोध हो उसे साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय कहते है।
जैसे- द्वारा, जरिए, मारफत, बल, जबानी, सहारे आदि।
उदाहरण: वह अपने मित्र के सहारे पास हो गया।
हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय –
परिभाषा- वे अव्यय शब्द जहाँ रहित, अथवा, सिवा के अतिरिक्त आते हैं, वहाँ पर हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय होता है।
जैसे- लिए, वास्ते, खातिर, कारण, मारे, चलते, निमित्त, हेतु आदि।
उदाहरण: वह राम के खातिर अपना घर छोर दिया।
विषयवाचक संबंधबोधक अव्यय – बाबत, विषय, नाम, भरोसे, निस्बत, आदि।
व्यतिरेकवाचक संबंधबोधक अव्यय – सिवा, अलावा, बगैर, रहित, अतिरिक्त आदि।
विनिमयवाचक संबंधबोधक अव्यय – बदले, जगह, एवज, पलते आदि।
सादृश्यवाचक संबंधबोधक अव्यय – समान, भाँति, बराबर, देखादेखी, सरीखा, लायक, अनुरुप, देखादेखी, मुताबिक़, अनुसार आदि।
विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय – विपरीत, विरोद्ध, खिलाफ, उलटे आदि।
सहचरवाचक संबंधबोधक अव्यय – संग, साथ, समेत, स्वाधीन, अधीन आदि।
संग्रहवाचक संबंधबोधक अव्यय – मात्र, पर्यन्त, भर, तक आदि।
तुलनावाचक संबंधबोधक अव्यय – सामने, आगे, अपेक्षा, बनिस्पत आदि।
(ग) व्युत्पति के आधार पर संबंधबोधक के दो भेद है:
(i)मूल संबंधबोधक अव्यय (ii) यौगिक संबंधबोधक अव्यय
(i) मूल संबंधबोधक अव्यय-
परिभाषा – वे अव्यय शब्द जो अन्य शब्दों से योग नही बनाते बल्कि अपने मूल रूप में रहते है उन्हें मूल संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे- बिना, पर्यन्त, पूर्वक आदि आते है वहाँ पर मूल संबंधबोधक अव्यय होता है।
(ii) यौगिक संबंधबोधक अव्यय –
परिभाषा – वे अव्यय शब्द जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि के योग से आते हैं, उन्हें यौगिक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे-
संज्ञा से- मारफत, अपेक्षा, लेखे
विशेषण से- तुल्य, समान, उलटा, योग्य, ऐसा
क्रिया से – लिए, मारे, चलते, कर, जाने
क्रियाविशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, पीछे
निपात या अवधारक अव्यय:
परिभाषा- किसी भी बात पर अतिरिक्त भार देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे निपात या अवधारक अव्यय कहते है।
जैसे- भी, तो, तक, केवल, ही, मात्र आदि।
उदहारण:
तुम्हें आज रुकना ही होगा।
काल मैं भी आपके साथ चलूँगा।
तुमने तो हद कर दी।
धन कमा लेने मात्र से जीवन सफल नहीं होता।
निपात के कार्य:
निपात के निम्नलिखित कार्य है-
प्रश्न – जैसे: वह कहाँ जा रहा है?
अस्वीकृति – जैसे: मेरा भाई छोटा भाई आज वहाँ नहीं जाएगा।
विस्मयादिबोधक – जैसे: क्या वह अच्छी पुस्तक है।
वाक्य में किसी शब्द पर बाल देना- बच्चा भी जानता है।
निपात के प्रकार:
निपात निम्नलिखित 9 प्रकार हैं-
1. स्वीकृतिबोधक निपात – हाँ, जी, जी हाँ।
2. नकार्थकबोधक निपात – नहीं, जी नहीं।
3. निषेधबोधक निपात – मत।
4. प्रश्नबोधक निपात – क्या, न।
5. विस्मयादिबोधक निपात – क्या, काश, काश कि।
6. बलदायक या सीमाबोधक निपात – तो, ही, तक, पर, सिर्फ, केवल।
7. तुलनाबोधक निपात – सा।
8. अवधारणाबोधक निपात – ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
9. आदरबोधक निपात – जी।