पाश्चात्य आलोचक और उनके सिद्धांत (इकाई- 3)

1. रचनाकार- प्लेटो

समय- (427-387 ई० पू०)

सिद्धांत- अनुकरण सिद्धांत, दैवीय प्रेरणा का सिद्धांत 

रचनाएँ- रिपब्लिक, सिम्पोजिम फिडो, फीड्स, पारमनोईजीज, सोफिस्ट, स्टेट्स-मैन, फिलेबस, टाइनियस, क्रिटियस, लॉज   

2. रचनाकार- अरस्तू

समय- (384-322 ई० पू०) 

सिद्धांत- अनुकरण, त्रासदी, विरेचन का सिद्धांत 

रचना- पेरिपोइतिकेस (ऑन पोएटिक्स)

3. रचनाकार- लोंजाइनस (लोंगिनुस)

सिद्धांत- ‘उद्दात विवेचन सिद्धांत’, प्रतिभा- कल्पना, परंपरा और नवीनता ड्राइडन   

रचनाएँ- पेरिइप्सुस, 44 अध्याय (पत्रात्मक),

ऑन द सबलाइम  

4. रचनाकार- रिचर्डस

समय- (1893 – 1979 ई०)

सिद्धांत- मूल्य सिद्धांत, संप्रेषण सिद्धांत, काव्य भाषा सिद्धांत, समंजन सिद्धांत।

रचनाएँ- द फाउंडेशन ऑफ एस्थेटिक्स, द मीनिंग ऑफ मीनिंग, द साइंस ऑफ सिंबोलिज्म, साइंस एण्ड पोइट्री, प्रिंसपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म, बेसिक रूल्स ऑफ रीजन, प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म, फिलॉसफी ऑफ रिटोरिक

5. टी० एस० इलियट

समय- (1888 – 1965 ई०)

सिद्धांत- निर्वैक्तिकता का सिद्धांत, वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत, परंपरा की परिकल्पना का सिद्धांत, विरुद्धों का सामंजस्य, इतिहास बोध और परंपरा, संवेदना विच्छेद।

रचनाएँ- सेलेक्टेड एस्सेज, द यूज ऑफ पोइट्री एण्ड द यूज ऑफ क्रिटिसिज्म, पोइट्री एण्ड ड्रामा, ऑन पोइट्री एण्ड पोएट्सद, द सेक्रेट वुड, दिवेस्टलैंड, बायो-ग्रफिया-लिटरेरिया

6. रचनाकार- बेनेदिते क्रोचे

समय- (1866 – 1951 ई०)

सिद्धांत- अभिव्यंजनावाद, सहजानुभूति

रचना- एस्थेटिक  

7. रचनाकार- विलियम वर्डस्वर्थ

सिद्धांत- स्वच्छन्दतावाद, काव्यभाषा सिद्धांत

रचना- लिरिकल बैलेड्स

8. रचनाकार- कॉलरिज

समय- (1722 – 1834 ई०)

सिद्धांत- कल्पना का सिद्धांत-फैंटसी का सिद्धांत

रचनाएँ- बायोग्राफिया लिटरेरिया, लेक्चर आन शेक्सपियर

9. रचनाकार- जाक देरिदा

समय- (जन्म-1930 ई०)

सिद्धांत- उत्तर संरचनावाद, विखंडनावाद

रचनाएँ- स्पीड एण्ड फेमिना, राइटिंग एण्ड डिफरेंस, ऑफ गैमिटोलॉजी

10. रचनाकार- मैथ्यू अर्नाल्ड

समय- (1822-1888 ई०)

सिद्धांत- कला और नैतिकता

रचनाएँ- एसेज इन क्रिटिसिज्म, कल्चर एंड एनार्की, प्रिफेस टु पोयम, ऑन द ऑफ सेल्टिक कल्चर, लिटरेचर एण्ड ड्रामा।

 11. रचनाकार- विलियन एम्पसन

सिद्धांत- एम्बीगुइटी, अनेकार्थकता सिद्धांत। 

रचना- सेविन टाइम्स ऑफ एम्बिगुइटी।

12. हिगेल – द्वंद्ववाद

13. कार्ल मार्क्स – द्वंदात्मक भौतिकवाद

14. जार्ज लुकाज – महान यथार्थवाद 

15. कुर्वे एवं फ्लावेयर – यथार्थवाद

16. एमिली जोला – प्राकृत रूपी यथार्थवाद

17. क्लींथ ब्रुक्स – विडंबना और विसंगति, अंतर्विरोध का सिद्धांत

18. एलेन टेट – तनाव का सिद्धांत

19. वी० के० विमसाट – सार्वभौमिक मूर्तविधान

20. नार्थाप फ्राई – मिथकीय समीक्षा

21. लारेंस – अन्तश्चेतनावादी यथार्थवाद

22. फ्रायड – फ्रायडियन यथार्थवाद, मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद

23. फ्लावर्ट – कुत्सित यथार्थवाद

24. डेकार्ट और लॉक – दार्शनिक यथार्थवाद

25. राबर्ट पेन वारेन – आइरनी

26. होरेस – औचित्य सिद्धांत

27. सुकरात – दैवीय प्रेरणा सिद्धांत

28. युंग – प्रभुत्व कामना सिद्धांत

महत्वपूर्ण कथन:

प्लेटो के शब्दों में- “गुलामी मृत्यु से भी भयावह है।”

प्लेटो के शब्दों में- “कविता भावों और संवेगों को उद्दीप्त करती है और तर्क एक विचार शून्यता को प्रोत्साहन देती है।”

प्लेटो ने घोषित किया था- “आदर्श गणराज्य में कवियों का कोई स्थान नहीं है?”    

अरस्तु के शब्दों में- “चित्रकार तथा अन्य कोई भी कलाकार की तरह कवि भी अनुकर्ता है।”

अरस्तु के शब्दों में- “काव्य प्रकृति की अनुकृति है पर एकदम नक़ल न होकर उसका पुनः प्रस्तुतिकरण है।”

अरस्तु के शब्दों में- “त्रासदी के ही द्वारा भावों को जाग्रत करके विरेचन-पद्धति के माध्यम से मानव-मन का परिष्कार होता है।”

वर्ड्सवर्थ के शब्दों में- “प्रत्येक कवि शिक्षक होता है, मैं चाहत हूँ कि या तो मैं शिक्षक समझा जाऊँ या कुछ नहीं।”

टी.एस. इलियट- “आलोचना सांस की तरह अनिवार्य एवं नैसर्गिक क्रिया है।”

टी.एस. इलियट- “कविता कवि व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व से पलायन है।”

कॉलरिज- “कल्पना मानव मस्तिष्क की बिम्बविधायानी शक्ति है।”

बेनेदिते क्रोचे- “सहजानुभूति अभिव्यंजना की अंतरिक्ष प्रक्रिया है।”

बेनेदिते क्रोचे के शब्दों में– “कला का कोई उद्देश्य या प्रयोजन नहीं होता, कला कला के लिए ही होती है, कला स्वयं साध्य है उसे लेकर नैतिक-अनैतिक प्रश्न भी नहीं उठना चाहिए।”   

शेक्सपियर- “पागल, प्रेमी और कवि तीनों कल्पना से ओतप्रोत रहते हैं।”

आई. ए. रिचर्ड्स- “कलाकार का मनोविज्ञान, अध्ययन का निष्फल क्षेत्र है।”

आई.ए. रिचर्ड्स- “नैतिकता सिर्फ दुनियादारी है और आचार संहिता इष्टसिद्धि की सामान्यतम व्यवस्था की अभिव्यक्ति है।”

काँपे के शब्दों में- “काव्य रचना की जगह ऊन कातना अधिक उपयोगी है।”

आचार्य रामचंद्रशुक्ल के शब्दों में- “क्रोचे का अभिव्यंजनावाद भारतीय वक्रोक्तिवाद का विलायती रूप है।”

एस. ई. स्पिनगार्न के शब्दों में- “समीक्षा एक प्रकार की वैयक्तिक प्रक्रिया है जो जीवन्त दृष्टि पर आधारित होती है।”

एलेन टेट का शब्दों में- “कविता का अस्तित्व बहिरंग संतुलन और अंतरंग संतुलन के मध्य पूर्ण सामंजस्य के अर्थ में घटित होता है।”

अज्ञेय के शब्दों में- “अतृप्ति ही साहित्य की प्रेरणा का स्त्रोत है?”

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