भक्तिकालीन रचनाकारों में सूफी काव्य की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ

1. रचना- हंसावली (1370 ई०)

रचनाकार: असाइत

भाषा: राजस्थानी हिन्दी

नायक: राजकुमार नायिका हंसावली

कथा का आधार: इसमें विक्रम और बैताल की कथा है।

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. बावन वीर कथा रस लीड। ऐह पावहु असाइत कहिउ।।

2. देवी अव्रधारु मुझ विनती। पेलि भवि हूं पंखिणी हती।।

   इडा मेहला सेवन किउ। दव बलतउ तेणि बनि आविउ।।

   मुझ भरतार साहस नवि किउ। अपति मेहलीनि उड़ि गयु।।

   इस्यं करम ते निष्ठुर तणा। मूकी ग्यु बालक आपणा।।

2. रचना- चंदायन/ लोरकहा/ लोरकथा/ लोरकाइन  (1379 ई०)

रचनाकार- मुल्ला दाउद

भाषा- अवधी

नायक- लोर (लोरिक) नायिका- चंदा

कथा का आधार- चंदायन पूर्वी भारत में प्रचलित ‘लोरिक’ उसकी पत्नी मैना और उसकी  विवाहिता प्रेमिका चंदा की प्रेम कथा पर आधारित है।

डॉ रामकुमार वर्मा ने मुल्ला दाउद कृत ‘चंदायन’ से हिन्दी प्रेमाख्यान परम्परा का प्रवर्तन माना है।   

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1.पहिले गायउं सिरजनहारा। जिन सिरजा यह देस बयारा।।

  सिरजसि धरती और अकासू। सिरजसि मेरु मंदर कविलासू।।

2. बरिस सात सै होई इक्यासी। तिहि जाह कवि सरसेउ भासी।।

   साह फिरोज दिल्ली सुल्तानू। जौनासाहि वजीरू बखानू।।

3. नारा पोखर कुंड खनाये। महिदेव जेंहि पास उठाये।।

4. चाँदहिं लोरक निरखनि हारा देखि विमोहि गयी बेकरारा।।

  नैनं झरहि मुख गा कुंवलाई अन्न न रुच नहीं पानी सुहाई।।

3. रचना – सत्यवती कथा (1501 ई०)

रचनाकार- ईश्वरदास

भाषा- अवधी 

नायक- ऋतुपर्ण  नायिका- सत्यवती

कथा आधार- इसमें ऋतुपर्ण और सत्यवती की प्रेमकथा है। यह आदर्शवादी काव्य है। इसमें नारी के सतीत्व की महिमा का चित्रण है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने इसे अवधी की प्रथम रचना तथा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इसे सूफी परम्परा की पहली रचना माना है।

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1.भादौं मास पौष उजियारा। तिथि नौमी औ मंगलवारा।।

2.जोगिनीपुर दिल्ली बड़ थाना। साह सिकंदर बड़ सुल्ताना।।

4. रचना – मृगावती (1503 ई०)

रचनाकार- कुतुबन

भाषा- अवधी

नायक- राजकुमार, नायिका मृगावती

कथा का आधार- मधुमालती और मनोहर की प्रेम कथा के माध्यम से अलौकिक प्रेम का वर्णन है।

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. रुकमिनि पुनि वैसेहि मरि गई। कुलवंती सत सो सति भई।।

2. बाहर वह भीतर वह होई। घर बाहर को रहै न जोई।।

3. विधि कर चरित जानै आनू। जो सिरजा सो जाहि नियानू।।

5. रचना- पद्मावत (1540 ई०)

रचनाकार- मल्लिक मुहम्मद जायसी

भाषा- अवधी, कूल सर्ग 57 (खण्ड)

नायक- रत्नसेन, नायिका- पद्मावती                                              

डॉ० हरदेव बाहरी ने इसकी कथा का आधार प्रकृति की रत्नशेखर कथा को माना है।

इसकी कथा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

पूर्वार्द्ध भाग- रत्नसेन के पद्मावती के विवाह तक की कथा

उतरार्द्ध भाग- विवाहोत्तर जीवन की कथा अधिकांश आलोचक इसके पूर्वार्द्ध भाग को कल्पना प्रसूत एवं उतरार्द्ध भाग को ऐतिहासिक मानते है।

यह अवधी का प्रथम महाकाव्य है। इसमें राजा रत्नसेन और पद्मावाती के प्रेम कथा के द्वारा अलौकिक प्रेम का चित्रण किया गया है।

पद्मावत के विभिन्न पात्र विभिन्न दार्शनिक तत्वों के प्रतीक है इस दृष्टि से पद्मावत को रूपक काव्य भी कहा जा सकता है।

इसकी प्रतीक योजना को स्पष्ट करते हुए जायसी ने स्वयं रचना के अंत में लिखा है-

तन चितउर मन राजा कीन्हा।

हिय सिंघल बुधि पदमिनी चिन्हा।।

गुरु सुआ जेई पंथ देखावा।

बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा।।

नागमति यह दुनिया धंधा।

बाँचा सोइ न एहि चित बंधा।।

राघव दूत सोई सैतानू।

माया अलाउदी सुलतानु।।

पात्र और पात्रों के प्रतीक

चितौड़- शरीर

सिंहलदीप –हृदय

रत्नसेन- मन (योगी साधक)

पद्मावत – सात्विक बुद्धि

नागमती – सांसारिक बुद्धि 

राघवचेतन – शैतान

अलाउद्दीन खिलजी – माया

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसकी प्रतीक योजना में फेरबदल करके रत्नसेन को आत्मा और पद्मावत को परमात्मा का प्रतीक माना है।

पद्मावत की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. जायस नगर धरम अस्थानू। तहंवा यह कवि कीन्ह बखानू।।

2. सैयद असरफ पीर पियारा। जेइ मोहि पंथ दीन्ह उजियारा।।

   गुरु मदही सेवक मैं सेवा। चलै उताइल जेहि कर खेवा।।

3. सन नव सौ सत्ताइस अहा। कथा आरम्भ बैन कवि कहा।।

4. सुमिरौ आदि एक करतारु। तेही जिउ दीन्ह कीन्ह संसारु।।

5. सेरसाह देहली सुलतानू। चारहु खंड तपै जस भानू ।।

6. औ मन जानि कवित्त अस कीन्हा। मकु यह रहै जगत महं चिन्हा।।

7. मानुस प्रेम भएउ बैकुंठी। नाहिंत काह छार भरि मूठी।।

8. उन बानन्ह अस को जो न मारा। बेधि रहा सिगरौ संसारा।।

9. पिउ सो कहउ, संदेसड़ा हे भौरा हे काग।

   सो धनि विरही जरि मुई तेहिक धुआँ हम लाग।।

मानसरोदक खण्ड:

1. एक दिवस पुण्यो तिथि आई। मानसरोदक चली नहाई।।

2. सरवर तीर पदुमिनी आई। खौंपा छोरि केस मुकलाई।।

3. कहा मानसर चाह सो पाई। पारस रूप दूहा लगि आई।।

नख-शिख वर्णन खण्ड:

1. का सिंगार ओहि बरनौ राजा। ओहिक सिंगार ओही पै छाजा।।

2. भौहें स्याम धनुक जनु ताना। जा सहु हेर मार विष बाना।।

3. नाभि कुंड सो मलय समीरु। समुद भंवर जस भवै गंभीरु।।

नागमती वियोग खण्ड:

1. नागमती चितउर पथ हेरा। पिउ जो गये पुनि कीन्ह न फेरा।।

2. चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा। साजा विरह दुंद दल बाजा।।

3. पूस जाड़ थर थर तन काँपा। सुरुज जाइ लंका रिसि चाँपा।।

4. रोई गँवाए बारहमासा। सहस सहस दुख एक एक साँसा।।

सिंहलदीप वर्णन:

1. सिंहलदीप कथा अब गावौ। औ सो पदमिनी बरनि सुनावौ।।

2. गंधर्वसेन सुगंध नरेसू। सो राजा वह ताकर देसू।।

3. नव पौरि पर दसम दुवारा। तेहि पर बाज राज घरियारा।।

6. रचना – आखिरी कलाम

रचनाकार- मलिक मुहम्मद जायसी

भाषा- अवधी, शैली ‘मसनवी’ के अनुसार ईश्वर की स्तुति की है।

कथा का आधार- इस रचना में क़यामत का वर्णन है। जायसी के द्वरा रचित इस ग्रंथ का पहले प्रकाशन ‘फारसी’ में हुआ था। इसमें हजरत मुहम्मद साहब के महत्व का प्रतिपादन किया गया है।

महत्वपूर्ण पंक्ति:

तहाँ न मीचु, न नींद दुःख, रह न देई मँह रोग।

सदा आनंद मुहम्मद, सब सुख मानै भोग।।

7. रचना – अखरावट

रचनाकार- मलिक मुहम्मद जायसी

भाषा: अवधी

यह जायसी कृत एक सिद्धांत प्रधान ग्रंथ है।

इस काव्य में कुल 54 दोहे 54 सोरठे और 317 अर्द्धलिया हैं। 

सैययद कल्ब मुस्ताक के अनुसार यह जायसी की अंतिम रचना है।

कथा का आधार- इस कथा मेंगुरु चेला संवाद को स्थान दिया गया है। इसमें देवनागरी वर्णमाला के एक-एक वर्ण (अक्षर)के ऊपर सैद्धांतिक बातें कही गई है।    

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. मोहि हंसेसी कि हंसेसी कोहारहि

2. गगन हुता नहिं महि हुती, हुते चंद नहिं सूर।

   ऐसइ अंधकूप मँह, रचा मुहम्मद नूर।। (अखरावट)

3. गलि सोइ माटी होइ, लिखनेहारा बापुरा।

  जो न मिटावै कोई, लिखा रहै बहुतै दिना।।(अखरावट)

8. रचना- मधुमालती (1545 ई०)

रचनाकार- मंझन

भाषा- अवधी

नायक- मनोहर, नायिका- मधुमालती

रचना की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. कथा जगत जेती कवि आई। पुरुष मार ब्रज सति कहाई।।

2. देखत ही पहिचानेउ तोहि एही रूप जेहि छंदर्यो मोहि।।

3. एहि रूप सकती और सिऊ। एहि रूप त्रिभुवन कर जीऊ।।

4. विरह अवधि अवहाह अपारा। कोटि माहि एक परै त पारा।।

5. बिरह की जगत अविरथा जाही। बिरह रूप यह सृष्टि सबाही।।

6. नैन बिरह अंजन जिन सारा। बिरह रूप दरपन संसारा।।

9. रचना- चित्रावली (1613 ई०)

रचनाकार- उसमान

भाषा- अवधी

नायक- सुजान, नायिका- चित्रावली

इसमें सुजान और चित्रावली के माध्यम से प्रेम और विरह के महत्व को दर्शाया गया है।

रामकुमार वर्मा ने चित्रावली को पद्मावत की छाया प्रति कहा है।

महत्वपूर्ण पंक्तियाँ:

1. जाकि बुद्धि होई अधिकाई। आन कथा एक कहै बनाई।।

2. कथा एक मैं हिये उपाई। कहत मीठ और सुनत सुहाई।।

3. बलदीप देखा अँगरेजा। तहाँ जाई जेहि कठिन करेजा।।

4. ऊँच नीच धन संपत्ति हेरा। मद बाराह भोजन जिन्ह केरा।।

5. आदि हुता विधि माथे लिखा। अच्छर चारि पढै हम सिखा।।

10 . रचना- हंसजवाहिर (1736 ई०)

रचनाकार- कासिमशाह

भाषा- अवधी

नायक- राजा हंस, नायिका- रानी जवाहिर

कथा का आधार- इसमें राजा हंस और रानी जवाहिर की प्रेम कथा के माध्यम से आध्यात्मिक संदेश दिया गया है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार– इनकी रचना बहुत निम्न कोटि की है। इन्होने जायसी की पदावली का प्रयोग अपनी रचना में कई जगह पर किया है। इनकी रचना में प्रौढ़ता नहीं है।

11. रचना- इन्द्रावती (1744 ई०)

रचनाकार- नूर मुहम्मद

भाषा- अवधी

नायक- राजकुमार राजकुँवर, नायिका- इन्द्रावती

कथा का आधार- इसमे कालिंजर के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इन्द्रावती की प्रेम कहानी का वर्णन है।

12. अनुराग बाँसुरी- (1764 ई०)

रचनाकार- नूर मुहम्मद

कथा का आधार- यह श्रेष्ठ प्रेम-काव्य और रूपक काव्य है। इस कथा में अंतः कारण चित्त, बुद्धि, अहंकार, संकल्प-विकल्प आदि पात्र प्रेमकथा के माध्यम से इन्द्रिय विरोध द्वारा आध्यात्मिक साधना का संदेश देता है।

नगर एक मूरतिपुर नाऊँ। राजा जीव रहै तेहि ठाऊँ।।

का बरनौं वह नगर सुहावन। नगर सुहावने सब मन भावन।।

13. रचना-  ज्ञानदीप (1619 ई०)

रचनाकार- शेखनवी

भाषा- अवधी

नायक- ज्ञानदीप, नायिका- देवजानी

इसमें दोहा, चौपाई शैली का प्रयोग किया गया है।

कथा- इसमें राजा ज्ञानदीप और रानी देवजानी की कथा है।

14. रचना- यूसुफ जुलेखा (1790 ई०)

रचनाकार- शेखनिसार

नायक- यूसुफ, नायिका-  जुलेखा

यूसुफ जुलेखा की कुरान में दी गई कहानी है।

कथा का आधार- इस कथा में प्रेमाख्यान के माध्यम से त्याग की महिमा का उल्लेख किया गया है। जुलेखा यूसुफ के लिए सब कुछ त्याग का अध्यात्म की तरफ मुड़ जाती है।

15. रचना- प्रेमदर्पण (1847 ई०)

रचनाकार – नसिर आलम

इसकी कथा यूसुफ जुलेखा के सामान है।  

16. रचना- मधवानलकामकंदला (1584 ई०)

रचनाकार- नसिर आलम

17. रचना- रुपमंजरी (1568 ई०)

रचनाकार- नंददास

भाषा- ब्रज

कथा का आधार- इसकी नायिका विवाहिता होते हुए भी कृष्ण को उपपति के रूप में स्वीकार करती है। इस तरह के प्रयत्न भी नायिका के ओर से हुए थे।

18. रचना- छिताईवार्ता (1590 ई०)

रचनाकार- नारायण दास

कथा का आधार- यह इतिहास और कल्पना समन्वित प्रेमाख्यान रचना है। इसमें नायक नायिका के विवाहोपरांत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बाधा डालने का वर्णन है।

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