उपन्यास: उपन्यास आधुनिक युग की देन है। उपन्यास दो शब्दों के मेल से बना है। उप+न्यास = ‘उप’ का अर्थ ‘समीप’ और ‘न्यास’ का अर्थ ‘धरोहर’ होता है।
आधुनिक उपन्यास के जनक ‘डेनियल डिफो’ को माना जाता है।
शाब्दिक अर्थ- मनुष्य के समीप उसी की भाषा में रखी हुई धरोहर होता है।
परिभाषाएँ:
श्यामसुंदर दास के शब्दों में- “उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है।”
प्रेमचंद के शब्दों में- “उपन्यास से हमारा तात्पर्य मानव जीवन के समग्र कथा से है मानव जीवन पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना उपन्यास का मुख्य तत्व है”
पाश्चात्य काव्यशास्त्री एबेल के शब्दों में- “उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है।”
पाश्चात्य काव्यशास्त्री क्रोस के शब्दों में– “उपन्यास से हमारा तात्पर्य उस गद्यमय ‘गल्प’ कहानी से है, जिसमे वास्तविक जीवन का यथार्थ चित्रण होता है।”
डॉ गंपतिचंद्र गुप्त के शब्दों में- “उपन्यास गद्य का नवविकसित रूप है, जिसमे कथा वस्तु, चरित्र-चित्रण, संवाद आदि तत्वों के माध्यम से यथार्त और कल्पना मिश्रित कहानी आकर्षक शैली में प्रस्तुत की जाती है।”
जैनेन्द्र के शब्दों में (मूल नाम आनंदीलाल) “ उपन्यास एक गद्यमय आख्यान है, जिसमे मानव के सुख एवं पीड़ा के वर्णन रहते है। पीड़ा में परमात्मा बसता है। मेरे उपन्यास आत्मपीड़न के साधन है।”
डॉ भागीरथी मिश्र के शब्दों में– “युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की पूर्ण झाँकी को प्रस्तुत करने वाला गद्य ही उपन्यास है”
अज्ञेय के शब्दों में- “मानव जीवन विस्तृत एवं यथार्थवादी गद्यमय वर्णन जिसमे समग्रता हो वह उपन्यास है।”
उपन्यास को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
कथानक / विषयवस्तु के आधार पर | शैली के आधार पर |
सामाजिक उपन्यास | वर्णात्मक उपन्यास |
ऐतिहासिक उपन्यास | चित्रात्मक उपन्यास |
तिलस्मी-एय्यारी उपन्यास | आत्मकथात्मक उपन्यास |
जासूसी उपन्यास | जीवनीपरक उपन्यास |
मनोविश्लेषणवादी उपन्यास | पत्रात्मक उपन्यास |
मनोवैज्ञानिक उपन्यास | डायरी शैली पर आधारित उपन्यास |
समस्यात्मक उपन्यास | प्रतीकात्मक उपन्यास |
उपन्यास के तत्व: कथावस्तु, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन/संवाद, भाषा-शैली, देशकाल/ वातावरण और उद्देश्य
हिन्दी का पहला उपन्यास:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ बच्चन सिंह, डॉ नगेन्द्र के ने- लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखित ‘परीक्षा गुरु’ (1882 ई०) को प्रथम उपन्यास माना है। (सर्वमान्य)
डॉ गंपतिचंद्र गुप्त ने- श्रद्धाराम फुल्लौरी द्वारा लिखित, ‘भाग्यवती’ (1877 ई०) को प्रथम उपन्यास माना है।
आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी ने- भारतेंदु द्वारा लिखित ‘पूर्ण प्रकाश’ और ‘चंद्रप्रभा’ को प्रथम उपन्यास है।
डॉ कृष्णलाल ने- देवकीनंदन खत्री के द्वारा लिखित ‘चंद्रकांता’ (1891ई०) को प्रथम उपन्यास माना है।
शिव नारायण श्रीवास्तव ने- सैय्यद इंशा अल्लाह खां द्वारा लिखित ‘रानी केतकी की कहानी’ (1870 ई०) को माना है।
डॉ गोपाल राय ने- पंडित गौरीदत्त द्वारा लिखित ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ (1870 ई) को प्रथम उपन्यास माना है।
अज्ञेय– ‘परीक्षा गुरु’ को पहला उपन्यास मानते है।
प्रेमचंद- ‘भाग्यामती’ को पहला उपन्यास मानते हैं।
हिन्दी के प्रथम उपन्यास और उपन्यासकार:
‘आख्यायिका शैली’ का पहला उपन्यास
रचना: ‘श्यामा स्वप्न’ (1885 ई०)
रचनाकार: ठाकुर जगमोहन सिंह।
हिन्दी का प्रथम ‘ऐतिहासिक’ उपन्यास
रचना: ‘हृदय हारिणी’ / ‘आदर्श रमणी’(1890 ई०)
रचनाकार: किशोरीलाल गोस्वामी
हिन्दी का प्रथम ‘पत्रात्मक शैली’ में लिखा गया उपन्यास
रचना: ‘चंद हसीनों के खतूत’ (1927 ई०),
रचनाकार: पांडेय बेचन शर्मा
हिन्दी का प्रथम ‘आंचलिक’ उपन्यास
रचना: ‘मैला आँचल’ (1954 ई०)
रचनाकार: फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
हिन्दी का प्रथम ‘तिलस्मी-अय्यारी’ उपन्यास
रचना: ‘चन्द्रकांता’ (1891ई०)
रचनाकार: बाबू देवकीनंदन खत्री
हिन्दी का प्रथम ‘राजनैतिक’ उपन्यास
रचना: ‘प्रेमाश्रम’ (1922 ई०)
रचनाकार: प्रेमचंद
‘स्मृति शैली’ में लिखा गया हिन्दी का प्रथम उपन्यास
रचना: ‘देहाती दुनिया’ (1926 ई०)
रचनाकार: शिवपूजन सहाय
हिन्दी उपन्यासों का विकास क्रम: (सर्वमान्य मत)
पूर्वप्रेमचंद युग (1877 – 1918 ई०)
प्रेमचंद युग (1918 – 1936 ई०)
प्रेमचंदोत्तर युग (1936 – से अबतक)
प्रेमचंदोत्तर युग को पाँच भागों में विभक्त किया गया है:
सामाजिक उपन्यास
मनोविश्लेषणवादी उपन्यास
साम्यवादी उपन्यास
आंचलिक उपन्यास
ऐतिहासिक उपन्यास
पूर्वप्रेमचंद युग के उपन्यासों की विशेषताएँ:
घटना प्रधान उपन्यासों की रचना
मनोरंजन एक मात्र उद्देश्य था
रोचक शैली का प्रयोग किया गया
तिलस्मी, जासूसी एवं ऐतिहासिक उंयासों की प्रधानता थी
1.पूर्वप्रेमचंद युग के प्रमुख उपन्यास और उपन्यासकार:
बालकृष्ण भट्ट: (1844-1914 ई०)
ठाकुर जगमोहन सिंह: (1857-1899 ई०)
मेहता लज्जाराम शर्मा: (1863-1931ई०)
राधा कृष्णदास (1865-1907 ई०)
बाबू देवकीनंदन खत्री: (1861-1913 ई०)
किशोरीलाल गोस्वामी: (1865-1932 ई०)
गोपालराम गहमनी: (1866-1946 ई०)
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔंध (1899 – 1945 ई०)
राजा राधिकारमण सिंह: (10 सितंबर 1890 – 24 मार्च 1971 ई०)
1.बालकृष्ण भट्ट: (1844-1914 ई०)
जन्म: 3 जून (1844 ई०) इलाहबाद (उत्तर प्रदेश), ‘हिन्दी प्रदीप’ मासिक पत्र के संपादक।
निधन: 20 जुलाई (1914 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
नूतन ब्रह्मचारी (1866 ई०)
रहस्य कथा (1879 ई०)
सौ अजान एक सुजान (1892 ई०)
विशेष तथ्य: बालकृष्ण भट्ट के तीनों उपन्यास सामजिक उपन्यास के श्रेणी में आते है
नूतन ब्रह्मचारी उपन्यास में विनायक नाम का नायक है, जो डाकुओं का हृदय परिवर्तित करवाता है।
सौ अजान एक सुजान में सत्संग के प्रभाव से एक सेठ की बुरी आदत आदतों में परिवर्तन का चित्रण है।
इन दोनों उपन्यासों की रचना, रचनाकार ने नवयुवकों को नैतिक शिक्षा देने के लिए किया है।
2. ठाकुर जगमोहन सिंह: (1857-1899 ई०)
जन्म: (1857 ई०), विजयराघवगढ़, मध्य प्रदेश
निधन: 4 मार्च (1899 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
‘श्यामा स्वपन’ (1885 ई०)
इस उपन्यास में एक ब्राहमण कुमारी श्यामा और एक क्षत्रिय राजकुमार श्यामसुंदर के स्वछन्द प्रेम का चित्रण है।
3.मेहता लज्जाराम शर्मा: (1863-1931ई०)
जन्म: (1863 ई०) इनकी मातृभाषा गुजराती थी।
निधन: 29 जून, (1913 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
धूर्त रसिकलाल (1890 ई०)
स्वतंत्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी (1899 ई०)
आदर्श दम्पति (1904 ई०)
बिगड़े का सुधार अथवा सती सुख देवी (1907 ई०)
आदर्श हिन्दू (1914 ई०)
4. राधा कृष्णदास (1865-1907 ई०)
जन्म: (1865 ई०), ये प्रसिद्ध ‘सरस्वती’ पत्रिका संपादक मंडल में रहे और नागरीप्रचारिणी सभा, काशी के प्रथम अध्यक्ष भी थे।
निधन: 2 अप्रैल, (1907 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
निस्सहाय हिन्दू (1890 ई०)
यह उपन्यास ‘गौ वध’ की समस्या पर आधारित है। इसमें हिन्दुओं के दयनीय दशा का और मुसलामानों की धार्मिक कटरता का चित्रण है।
5. बाबू देवकीनंदन खत्री: (1861-1913 ई०)
जन्म: 18 जून (1861 ई०) बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा में हुआ था। हिन्दी के प्रथम तिलस्मी लेखक थे। इनके पूर्वज पंजाब के निवासी थे।
निधन: 1 अगस्त (1913 ई०)
ये हिन्दी के तिलस्मी-ऐय्यारी उपन्यासों के ‘जनक’ माने जाते है।
इनके विषय में कहा जाता है कि इनके उपन्यास को पढ़ने के लिए अहिन्दी भाषी प्रदेश के लोगों ने हिन्दी पढ़ना-लिखना सीखा।
इनके द्वारा रचित ‘चंद्रकांता’ हिन्दी का पहला ‘तिलस्मी-ऐय्यारी’ उपन्यास माना जाता है।
प्रमुख उपन्यास:
चंद्रकांता (1888 ई०) में शुरू हुआ और (1891 ई०) में पूरा हुआ था। इसके चार भाग है।
नरेन्द्र मोहिनी (1893 ई०)
वीरेन्द्र वीर (1895 ई०)
चन्द्रकांता संतति (1896 से 1905 ई०) में पूरा हुआ था। इसके 24 भाग है।
कुसुम कुमारी (1899 ई०)
गुप्त गोदना (1906 ई०)
माया महल (1906 ई०)
काजर की कोठारी (1902 ई०)
अनूठी बेगम (1905 ई०)
भयानक खून (1905 ई०)
कटोरे भरा खून (1995 ई०)
भूतनाथ: इसके 21 भाग है प्रथम 6 भाग देवकीनंदन खत्री ने लिखा शेष 15 भाग इनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिखा इसे 1908 ई० में लिखना आरम्भ किया था।
मुख्य पात्र: चन्द्रकांता (विजयगढ़ नरेश की पुत्री है), विरेन्द्र- नौगढ़ का राजकुमार।
दुर्गाप्रसाद खत्री: देवकीनंदन खत्री के पुत्र है। भूतनाथ उपन्यास के अंतिम 15 भाग इन्होने ही लिखा।
दुर्गाप्रसाद खत्री के उपन्यास: ‘मृत्यु किरण’, ‘सफेद शैतान’, ‘अद्भूत भूत’, और ‘रक्त मंडल’।
6. किशोरीलाल गोस्वामी: (1865-1932 ई०)
जन्म: 1865 ई० में वृन्दावन के एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था।इनका परिवार निम्बार्क संप्रदाय के अनुयायी था। इनके पितामह वृन्दावन के सर्वश्रेष्ठ विद्वान वें आचार्य थे। ये हिन्दी के ‘ऐतिहासिक’ उपन्यासों के जनक माने जाते है।
निधन: (1932 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
‘हृदय हारिणी वा आदर्श रमणी’– यह उपन्यास 1890 ई० में हिन्दुस्तान पत्रिका में एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ था।
पुस्तक के रूप में इसका प्रकाशन (1904 ई०) में हुआ इसे हिन्दी का प्रथम उपन्यासकर माना जाता है।
लवंगलता या आदर्शबाला (1890 ई०)
ताराबाई या क्षात्रकुल कमलिनी (1902 ई०)
कनक कुसुम या मस्तानी (1903 ई०)
सुल्ताना रजिया बेगम वा रंगमहल में हलाहल (1904 ई०)
मल्लिका देवी वा बांगसरोजिनी (1905 ई०)
लीलावती वा आदर्श सती (1901 ई०)
प्रणयिनी या परिणय (1907 ई०)
प्रेममयी (1907 ई०)
राजकुमारी (1907 ई०)
खुनी औरत के साथ खून (1916 ई०)
पन्नाबाई (1909 ई०)
लखनऊ की कब्र या साही महलसरा (1917 ई०)
तिलस्मी शीशमहल (1917 ई०)
याकृत तख्ता, सुख सरस्वती, त्रिवेणी व सौभाग्य श्री,
अँगूठी का नगीना (1980 ई०)
पुनर्जन्म या सौतिया डाह
माधवी माधव या मदन मोहिनी
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनकी उपन्यासों की संख्या 65 मानी है। उपलब्ध 44 है। इन्होने अपने उपन्यासों का प्रचार-प्रसार करने के लिए ‘उपन्यास’ नामक पत्रिका निकाली थी।
7. गोपालराम गहमरी: (1866-1946 ई०)
जन्म: (1866 ई०) गहमर, गाजीपुर जिले के उत्तर प्रदेश में हुआ था।
निधन: (1946 ई०)
हिन्दी में जासूसी उपन्यासों के ‘जनक’ माना गया है। इन्होने लगभग 200 उपन्यासों की रचना की।
अपने उपन्यासों का प्रचार-प्रसार करने के लिए इन्होने ‘जासूस’ नामक पत्रिका निकाली थी।
इन्हें हिन्दी का ‘आर्थर कानन डायल’ कहा जाता है।
प्रमुख उपन्यास:
अद्भूत लाश (1896 ई०)
गुप्तचर (1899 ई०)
सर कटी लाश (1900 ई०)
बेकसूर की फाँसी (1900 ई०)
खुनी कौन है (1900 ई०)
इंद्रजालिक जासूस (1910 ई०)
बेगुनाह का खून (1900 ई०)
जासूस की भूल (1901 ई०)
चक्करदार चोरी (1901 ई०)
भयंकर चोरी (1901 ई०) ई०)
मायाविनी (1901 ई०)
देवरानी जेठानी (1901 ई०)
जासूस पर जासूसी (1904 ई०)
गोविंद राम-अनुदित (1905 ई०)
डबल बीबी (1905 ई०)
जासूस के चक्कर में (1906 ई०)
इंद्रजालिक जासूस (1910 ई०)
गुप्तभेद (1913 ई०)
8. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔंध (1899 – 1945 ई०)
जन्म: 15 अप्रैल (1865 ई०) उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ था।
निधन: (1945 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
ठेठ हिन्दी का ठाठ (1899 ई०), मौलिक उपन्यास
अधखिला फूल (1907 ई०) मौलिक उपन्यास
वेनिस का बाँका (अनुदित नाटक)
9. राजा राधिकारमण सिंह: (10 सितंबर 1890 – 24 मार्च 1971 ई०)
जन्म: 10 सितंबर (1890 ई०), बिहार के शाहाबाद के सुर्यपुरा नामक स्थान पर प्रसिद्ध जमींदार राजा राजराजेश्वरी सिंह ‘प्यारे’ के यहाँ हुआ था।
निधन: 24 मार्च
प्रमुख उपन्यास:
राम-रहीम (1937 ई०)
पुरुष और नारी (1939 ई०)
सूरदास (1942 ई०)
संस्कार (1944 ई०)
पूरब और पश्चिम (1951 ई०)
अपनी-अपनी नजर, अपनी-अपनी (1966 ई०)
गद्य काव्य: नवजीवन, ‘प्रेम लहरी’
2. प्रेमचंद युग (1918 – 1936 ई०) उपन्यास और उपन्यासकार:
प्रेमचंद युग की उपन्यासों की विशेषताएँ:
इस काल में चरित्रप्रधान उपन्यासों की रचना हुई
समाज सुधार और राष्ट्रीयता की भावना व्यापक परिलक्षित थी
दलित और स्त्री चेतना संबंधी उपन्यास की रचना हुई
शोषण का विरोध परिलक्षित होता है
मध्यवर्गीय मानसिकता और धार्मिक आडंबरों का चित्रण है
प्रेमचंद युग के प्रमुख उपन्यासकार और उपन्यास :
प्रेमचंद (1880 – 1936 ई०)
वृंदावनलाल वर्मा (1884 – 1969 ई०)
जयशंकर प्रसाद (1889 – 1937 ई०)
विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ (1891 – 1946 ई०)
आचार्य चतुरसेन शास्त्री (1891 – 1960 ई०)
शिवपूजन सहाय (1893 – 1963 ई०)
राहुल सांकृत्यायन (1893 – 1963 ई०)
गुरुदत्त (1894 – 1989 ई०)
सियारामशरण गुप्त (1895 – 1963 ई०)
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1896 – 1961 ई०)
भगवतीप्रसाद वाजपेयी (1899 – 1973 ई०)
पांडेय बेचनशर्मा ‘उग्र’ (1901 – 1967 ई०)
प्रतापनारायण श्रीवास्तव (1904 – 1979 ई०)
ऋषभचरण जैन (1911 – 1985 ई०)
1.प्रेमचंद: (1880 – 1936 ई०)
जन्म: 31 जुलाई 1880 ई० लमही (वाराणसी उ०प्र०)
निधन: 8 ओक्टूबर 1936 ई०
पिता: अजायब राय, माता आनन्दी देवी
मूलनाम: धनपतराय
उर्दू में: नवाबराय के नाम से लिखते थे।
‘प्रेमचंद’ नाम दयानारायण निगम ने दिया था।
सनˎ1930 ई० में मुंशीमाणिक लाल वर्मा ‘हंस’ पत्रिका का संपादन किया करते थे। पत्रिका में संपादक के स्थान पर ‘मुंशी- प्रेमचंद’ लिखा जाता था।
प्रेमचंद के उपनाम: कथा सम्राट, उपन्यास सम्राट, भारत का चुलूस, भारत का मैक्सिम गोर्की,
‘कलम का मजदूर’ (जीवनी 1965 ई०) इस नाम से जीवनी मदन गोपाल ने लिखी थी।
‘कलम का सिपाही’ (जीवनी 1968 ई०) इस नाम से अमृतराय ने जीवनी लिखी थी।
‘प्रेमचंद घर में’ (जीवनी 1956 ई०) इस नाम से उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने जीवनी लिखी थी। इसमें 88 अध्याय है। यह हिन्दी की विशालतम जीवनी है।
प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास:
प्रेमचंद के उपन्यासों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
उर्दू में रचित उपन्यास:
असरारे मआविद (1903 ई०) देवस्थान का रहस्य
किशना (1907 ई०)
रूठीरानी (1907ई०)
पहले उर्दू में रचित बाद में हिन्दी रूपांतरण:
बजारे हुस्न (सेवासदन 1918 ई०)
जलवा-ए-ईसार (वरदान 1921 ई०)
गौसी-ए-आफियत (प्रेमाश्रम 1922 ई०)
‘चौगान-ए-हस्ती’ (रंगभूमि 1925 ई०)
‘हमखुर्मा वा हम सवाब’ का हिन्दी रूपान्तर ‘प्रेमा’ अथार्त ‘दो सखियों का विवाह’ को परिस्कृत कर ‘प्रतिज्ञा’ नाम से नये रूप में 1929 ई० में प्रकाशित करवाया
हिन्दी में रचित उपन्यास:
कायाकल्प (1926 ई०)
निर्मला (1927 ई०)
गबन (1931ई०)
कर्मभूमि (1933 ई०)
गोदान (1935 ई०)
मंगलसूत्र (अधुरा) अमृतराय उनके बेटा ने इसे 1948 ई० में पूरा किया।
विशेष तथ्य: प्रेमचंद की पहली कहानी “संसार का अनमोल रतन; उर्दू में नबाबराय के नाम से 1907 ई० ‘ज़माना पत्रिका’ में प्रकाशित हुआ था।
प्रेमचंद नाम से पहली ‘ममता’ उर्दू में 1908 ई० में प्रकाशित हुआ था।
हिन्दी में रचित पहली कहानी ‘सौत’ प्रकाशित हुआ था। इसके दो मत है।
डॉ नगेन्द्र के अनुसार सौत 1915 ई० में (मान्य है)
डॉ गणपतिचंद्र के अनुसार ‘पंचपरमेश्वर’ 1916 ई० में। इनकी कहानियों की संख्या 292 है।
उपन्यास:
सेवासदन: (1918 ई०)
पहले यह उपन्यास उर्दू में ‘बजार-एई-हुस्न’ के नाम से लिखा गाय था। यह स्त्री समस्या पर केद्रित उपन्यास है। इसमें दहेज़ प्रथा, अनमेल विवाह, वेश्यावृति आदि समस्याओं का चित्रण है।
प्रेमचंद ने स्वयं इस उपन्यास को अपना व हिन्दी का बेहतरीन ‘नोवेल’ माना है।
मुख्य पात्र: सुनाम (नायिका), गजानंद (सुनाम का पति), सदन (शांता का पति), शांता (सुमन की बहन), अहीर, चैतु आदि।
प्रेमाश्रम: (1922 ई०)
यह उपन्यास पहले उर्दू में ‘गोशा-ए-आफियत’ के नाम से लिखा गया था। इस उपन्यास में मुख्यतः किसान आंदोलन का चित्रण है।
नामवर सिंह ने इसे हिन्दी का पहला प्रगतिवादी उपन्यास माना है।
मुख्य पात्र: मनोहर (बलराज का पुत्र), ज्ञानशंकर (शोषक पात्र)
रंगभूमि: (1925 ई०)
यह उपन्यास पहले उर्दू नाम से चौगास-ए-हस्ती के नाम रचित था। इस उपन्यास को भारतीय जनजीवन का रंगमंच कहा गया है। इसका नायक ‘सूरदास’ है। जो पूंजीपति वर्ग के शोषण वर्ग का विरोध करता है। अंत में कलार्क की गोली से मारा जाता है। गौण रूप में विनय और सोफिया के प्रेमकथा का चित्रण है।
मुख्य पात्र: सूरदास (नायक), जॉन सेवक (पूंजीपति), मिस्टर कलार्क (जिलाधीश), बजरंगी, रानी, राजा साहब, रानी, जमुनी, जाह्नवी, भैरों आदि।
कायाकल्प: (1926 ई०) मूलरूप से हिन्दी का यह पहला उपन्यास है। इस उपन्यास में पूर्वजन्म और भावी जन्म का कल्पनात्मक चित्रण है। इसमें ज्योतिष, पूर्वजन्म, ग्रहनक्षत्र, ढ़ोंगी बाबाओं के चमत्कार, वृद्धों की समस्या आदि का चित्रण है।
मुख्य पात्र: चक्रधर (नायक), अहिल्या (चक्रधर की पत्नी), देवप्रिया (जगदीशपुर की रानी विलासिनी स्त्री पात्र), महेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, वसुमती, रामप्रिया आदि।
निर्मला: (1927 ई०) इस उपन्यास में निर्मला के अनमेल विवाह और दहेज़ प्रथा की दुखांत व मार्मिक कहानी है। इसे प्रेमचंद का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक’
उपन्यास कहा है।
मुख्य पात्र: निर्मला (नायिका, मुंशी की पत्नी), तोताराम (मुंशीजी), मंसाराम (मुंशी जी का बड़ा बेटा), रुक्मिणी (मुंशी जी की बहन), जियाराम, सियाराम (मुंशी जी का छोटे बेटे), भालचंद, रँगीली बाई (दहेज़ की लोभी) आदि।
गबन: (1931 ई०)
डॉ नगेन्द्र इसका प्रकाशन वर्ष 1931 ई० मानते है। (यह मान्य है)
डॉ नगेन्द्र सिंह इसका प्रकाशन वर्ष 1930 ई० मानते है।
प्रेमचंद का यह दूसरा ‘यथार्थवादी’ उपन्यास है। इसका मूल विषय “महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव।” इसमें नायक रामनाथ और नायिका जलपा की प्रेमकथा के माध्यम से माध्यम वर्ग की आर्थिक विषमताओं का चित्रण है।
मुख्य पात्र: जलपा (नायिका), रामनाथ (नायक), देवीदीन खटीक (राष्ट्रीयता का पक्षधर पात्र), रामेश्वरी, मानकी, जाग्गो, रतन, जोहरा (वेश्या) आदि।
कर्मभूमि: (1933 ई०)
डॉ नगेन्द्र इसका प्रकाशन वर्ष 1933 ई० मानते है।
डॉ गंपतिचंद्र गुप्त इसका प्रकाशन वर्ष 1932 ई० मानते है।
इस उपन्यास में हरिजनों की समस्याओं का चित्रण है।
मुख्य पात्र: अमरकांत (नायक), सुखदा, नयना, सकीना, रेणुका, मुन्नी (अधिकारी की पत्नी), सलीम, समरकांत, महंत आदि।
गोदान: (1935 ई०) इस उपन्यास में कृषक जीवन के समस्याओं का चित्रण प्रमुख हैं। सामंती जीवन की बुराइयों, प्रेम विवाह, दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार आदि का चित्रण है।
मुख्य पात्र: होरी (नायक), धनिया (नायिका), गोबर, मातादिन, मिस्टर खन्ना, झुनिया (गोबर की पत्नी), सिलिया, भोला आदि।
महत्वपूर्ण तथ्य:
डॉ नगेन्द्र के शब्दों में- “गोदान को कृषक के करुण क्रंदन का महाकाव्य कहा है।”
डॉ नामवर सिंह के शब्दों में- “गोदान को भारतीय किसान करुण गाथा के साथ-साथ पूँजीवाद व सामन्ती व्यवस्था पर एक प्रहार है।”
शिवकुमार शर्मा के शब्दों में- “गोदान सही अर्थों में प्रगतिवाद का प्रथम आविष्कार है।”
डॉ बच्चन के शब्दों में- “गोदान एक उपन्यास ही नहीं उत्तरी भारत की संस्कृति का जीवन्त गाथा है।”
मंगलसूत्र: (अपूर्ण) प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय ने 1948 ई० में इसे पूरा किया।
2. जयशंकर प्रसाद के उपन्यास:
जन्म: 30 जनवरी 1885 ई० वाराणसी (उ० प्र०) सूँघनी साहू परिवार।
निधन: 1937 ई०
बचपन का नाम: झारखंडी
उपनाम:
‘कलाधर’ नाम से वे आरम्भ में ‘ब्रजभाषा’ में रचना करते थे।
छायावाद का ब्रह्मा- डॉ कृष्णदेव मारी ने कहा था।
आधुनिक कविता का सुमेरु- अज्ञेय ने कहा था।
भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धारक कवि भी कहा जाता है।
आचार्य रामचंद्र ने- छायावाद का जनक
जयशंकर प्रसाद की पहली कविता- ‘सावन पंचक’(1905 ई०)
जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी- ‘ग्राम’ (1910 ई०) में सुधा पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। यही कहानी कुछ समय बाद ‘छाया’ (1920 ई०) कहानी संग्रह में संकलित है
इनकी अंतिम कहानी ‘सालवती’ (1935 ई०) है जो इंद्रजाल (1936 ई०) कहानी संग्रह में संकलित है।
प्रमुख उपन्यास:
कंकाल (1928 ई०) इस उपन्यास में देवस्थानों में होनेवाले अनाचार और दुराचारों का चित्रण है। यह उनकी प्रथम उपन्यास था। इस उपन्यास प्रकाशन भारती भण्डार, इलाहाबाद से हुआ था। यह एक सामाजिक उपन्यास है।
मुख्य पात्र: श्रीचंद (व्यापारी), देवनिरंजन मठाधिस, मंगलदेव, बायस (इसाई) गोस्वामी, कृष्ण शरण, डाकू बदन, विजय किशोरी यमुना, तारा लतिका घंटी आदि है।
तितली (1934 ई०) तितली सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिख गया जयशंकर प्रसाद का दूसरा उपन्यास है। इसके केन्द्र में गाँव है। यह भारती भवन, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था।
मुख्य पात्र: इन्द्रदेव (जमींदार), श्यामा दुलारी( इन्द्रदेव की माता), माधुरी (इन्द्रदेव की बहन), शैला (विलायती लड़की), तितली (रमानाथ की पोषित पुत्री), मधुवन (शेरकोट का स्वामी), राजकुमारी
इरावती (अपूर्ण) इरावती ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया जयशंकर प्रसाद का तीसरा और अधरा उपन्यास है। बाद में इसे (1961 ई०) में निराला जी ने इसे पूरा किया था।
मुख्य पात्र: इरावती (महाकाल मंदिर की नर्तकी), आनंद भिशु (इरावती का पति), अग्निमित्र (पुष्यमित्र का पुत्र), वृहस्पति मित्र (मगध का महामात्य), कालिंदी\
3. पांडेय बेचनशर्मा ‘उग्र’ (1901–1967 ई०)
जन्म: (1901 ई०) उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के चुनार नामक कसबे में हुआ था
निधन: (1967 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
घंटा (1924 ई०)
चंद हसीना के खतूत (1927 ई०) यह पत्रात्मक शैली में लिखा गया है हिन्दी का पहला उपन्यास है।
दिल्ली का दलाल (1927 ई०)
बुधुआ की बेटी (1928 ई०)
शराबी (1930 ई०)
सरकार तुम्हारी आँखों में (1931 ई०)
जी जी जी (1943 ई०)
मनुष्यानंद (1955 ई०)
कला का पुरस्कार (1955 ई०)
कढ़ी में कोयला (1955 ई०)
फागुन के दिन चार (1960 ई०)
विशेष तथ्य:
बनारसीदास ने इनके उपन्यासों को घासलेटी साहित्य कहा है।
इनके उपन्यासों को धूमकेतु, उग्रतारा, तूफ़ान, बवंडर भी कहा गाय है।
इनके अधिकांश उपन्यास प्रगतिवाद से प्रभावित है।
4. वृंदावनलाल वर्मा (1884 – 1969 ई०)
जन्म: 9 जनवरी (1889 ई०) उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के मऊरानीनगर के ठेठ रुढ़िवादी परिवार में हुआ था।
निधन: 23 फ़रवरी (1969 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
संगम (1928 ई०)
प्रत्यागत (1929 ई०)
लगन (1929 ई०)
गढ़कुंडार (1929 ई०)
कुंडलीचक्र (1932 ई०)
विराट की पद्मिनी (1936 ई०)
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (1946 ई०)
मुसाहिब जू (1946 ई०)
कचनार (1947 ई०)
मृगनयनी (1950 ई०)
अमरबेल (1953 ई०)
विशेष तथ्य: डॉ बच्चन सिंह ने वृंदावनलाल वर्मा को हिन्दी का पहला उपन्यासकार माना है।
इन्हें हिन्दी ‘वल्टर स्कॉट’ और बुंदेलखंड का चन्दवरदाई कहा जाता है।
इनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास ‘मृगनयनी’ है। इसमें राजनीति और प्राचीन संस्कृति का चित्रण है।
मुख्य पात्र: ग्वालियर के शासक मानसिंह, मृगनयनी (नायिका), लाखी, अटल आदि है।
5. प्रतापनारायण श्रीवास्तव (1904 – 1979 ई०)
जन्म: (1904 ई०) कानपुर उत्तर प्रदेश
निधन: (1979 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
विदा (1929 ई०)
विजय (1937 ई०)
विकाश (1938 ई०)
बयालीस (1948 ई०)
बेकसी का मजार (1950 ई०)
विसर्जन (1950 ई०)
विश्वास की वेदी पर (1960 ई०)
वेदना (1960 ई०)
वचना (1962 ई०)
विनाश के बादल (1963 ई०)
विश्वमुखी (1957 ई०)
6. ऋषभचरण जैन (1911 – 1985 ई०)
जन्म:
निधन:
प्रमुख उपन्यास:
मास्टर साहिब (1927 ई०)
वेश्या पुत्र (1929 ई०)
सत्याग्रह (1930 ई०)
चंपाकली (1937 ई०)
दिल्ली का व्यभिचार (1938 ई०)
7. विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ (1891 – 1946 ई०)
जन्म: (1891 ई०)
निधन: (1946 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
माँ (1929 ई०)
भिखारिणी (1929 ई०)
संधर्ष (1945 ई०)
8. आचार्य चतुरसेन शास्त्री (1891 – 1960 ई०)
जन्म: 26 अगस्त (1891 ई०) उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के चांदोख में हुआ था।
मूलनाम: चतुर्भुज था।
निधन: 2 फ़रवरी (1960 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
हृदय की परख (1918ई०)
खवास का व्याह (1927 ई०)
हृदय की प्यास (1932 ई०)
अमर अभिलाषा (1932 ई०)
आत्मदाह (1937 ई०)
मंदिर की नर्तकी (1939 ई०)
रक्त की प्यास (1940 ई०)
नीलमणि (1940 ई०)
नीली माटी (1940 ई०)
अदल-बदल (1944 ई०)
दो किनारे (1947 ई०)
अपराजिता (1952 ई०)
आलमगीर (1954 ई०)
सोमनाथ (1954 ई० )
वयं रक्षाम (1955 ई०)
सोना और खून (1960 ई०)
आकाश की छाया में(1961 ई०)
सहयाद्रि की चट्ठाने (1961ई०)
दादा (1961 ई०)
सहयाद्रि की चट्ठाने (1961ई०)
शुभदा (1962 ई०)
वैशाली की नगर वधु उपन्यास के दो भाग है:
प्रथम भाग का प्रकाशन 1948 ई० में हुआ था। दूसरे भाग का प्रकाशन 1949 ई० में हुआ था। इस उपन्यास में विशेषकर वैशाली के नारी विरोधी कानून की भर्त्सना किया गया है मुख्य पात्र: आम्रपाली (वैशाली की नगर वधु), स्वर्गसेन, भद्रगुप्त, जयराम, सूर्यमल, बलभद्र, कल्याणी आदि।
9. आचार्य शिवपूजन सहाय (1893 -1963 ई०)
जन्म: 9 अगस्त (1893 ई०) भोजपुर
निधन:21 जनवरी (1963 ई०) पटना
प्रमुख उपन्यास:
देहाती दुनिया (1926 ई०)
हिन्दी का पहला ‘स्मृति’ या ‘शैली’ परक उपन्यास लिखा गया।
10. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1896 – 1961 ई०)
जन्म: 21 फ़रवरी (1896 ई०), मेदिनापुर
निधन: 15 ओक्टूबर (1961 ई०) प्रयागराज
प्रमुख उपन्यास:
अप्सरा (1931ई०) वेश्या समस्या, कनक
अलका (1931ई०)
निरुपमा (1936 ई०) बेकारी समस्या पर
प्रभावती (1936 ई०)
कुलीभाट (1939 ई०)
बिल्लेसुर कबरिहा (1942 ई०)
चोटी की पकड़ (1946 ई०)
काले कारनामे (1950 ई०)
उच्छृंखलता
दीवानों की हस्ती
निराला के कुछ अधूरे उपन्यास:
चमेली (अपूर्ण), इन्दुलेखा (अपूर्ण), चोटी की पकड़ (अपूर्ण)
11. गुरुदत्त (1894 – 1989 ई०)
जन्म: 1894 ई० में लाहौर में हुआ था। 1936 ई० में दिल्ली आ गए थे।
निधन: 1989 ई० में इन्होने लगभग 197 उपन्यास लिखें प्रेमचंद युग में सबसे अधिक उपन्यासों की रचना इन्होने किया।
महत्वपूर्ण उपन्यास:
पथिक (1949 ई०)
स्वराज्य दान (1949 ई०)
भावुकता का मूल्य (1950 ई०)
बढ़ती रेत (1951 ई०)
देश की हत्या (1953 ई०)
उमड़ती घटा (1954 ई०)
12. राहुल सांकृत्यायन (1893 – 1963 ई०)
जन्म: 9 अप्रैल (1893 ई०) कनैला
निधन: 14 अप्रैल (1963 ई०) दार्जलिंग
मूलनाम: केदारनाथ पांडेय था। ये कई भाषाओं के ज्ञाता थे। श्रीलंका में इन्होने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया था। वे श्रीलंका के बौद्धमठ विद्यालंकार परिवेण ये श्रीलंका में तों वर्षों तक रहे।
महत्वपूर्ण उपन्यास:
शैतान की आँख (1923 ई०)
विस्मृति के गर्भ में (1923 ई०)
सोने की ढाल (1923 ई०)
जीने के लिए (1940 ई०)
सिंह सेनापति (1944 ई०)
जय यौधेय (1944 ई०)
मधुर स्वप्न (1949 ई०)
विस्मृत यात्री (1954 ई०)
दियोदास (1963ई०)
जादू का मूल्क
राजस्थान रनिवास
13. भगवतीप्रसाद वाजपेयी (1899 – 1973 ई०)
जन्म: 1899 ई० कानपुर (उत्तर प्रदेश)
निधन: 1973 ई० में
महत्वपूर्ण उपन्यास:
प्रेम पथिक (1926 ई०)
मीठी चटकी (1926 ई०)
लालिमा (1926 ई०)
त्यागमयी (1927 ई०)
मनुष्य और देवता (1954 ई०)
यथार्थ से आगे (1955 ई०)
उनसे न कहना (1957 ई०)
रात और प्रभात (1957 ई०)
टूटा ही सैट (1962 ई०)
टूटते बंधन (1963 ई०)
14. सियारामशरण गुप्त (1895 – 1963 ई०)
जन्म: 4 सितंबर 1895 ई० चिरगाँव, झाँसी में हुआ था।
निधन: 29 मार्च 1963 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
गोद (1932 ई०)
अंतिम आकांक्षा (1934 ई०)
नारी (1937 ई०)
प्रेमचंद युग के गौण उपन्यासकार एवं उनके उपन्यास:
चंडीप्रसाद हृदयेश: मनोरमा,मंगलप्रभा
अवध नारायण: विमाता
मोहनलाल महतो: पाठ-विपथ, विसर्जन, भाई-बहन
डॉ सत्यप्रकाश संगर: बरगद की छाया, चाँद रानी
श्रीनाथ सिंह: उलझन (1934 ई०), जागरण (1937 ई०), प्रभावती (1941 ई०), प्रजामंडल
(1941 ई०)
प्रेमचंदोत्तर युग के उपन्यास और उपन्यासकार
(1937 ई० से अब तक)
प्रेमचंदोत्तर युग को पाँच (5) भागों में बाँटा गया है:
मनोविश्लेषणवादी या अतिव्याक्तिवादी उपन्यास और उपन्यासकार
साम्यवादी या प्रगतिवादी उपन्यास और उपन्यासकार
ऐतिहासिक या व्यक्तिवादी उपन्यास और उपन्यासकार
आंचलिक उपन्यास और उपन्यासकार
प्रयोगवादी / आधुनिकबोधवादी उपन्यास और उपन्यासकार
1.मनोविश्लेषणवादी या अतिव्याक्तिवादी उपन्यास और उपन्यासकार:
वे उपन्यासकार जिन्होंने ‘सिगमंड फ्रायड’ के मनोविश्लेषण वाद से प्रभावित होकर उपन्यासों की रचना की उन्हें मनोविश्लेषणवादी उपन्यासकार कहते है।
इलाचंद्र जोशी (1902 -1982 ई०)
जैनेन्द्र (1905 -1988 ई०)
अज्ञेय (1911 -1987 ई०)
प्रभाकर माचवे (1917 -1991 ई०)
डॉ देवराज (1917 – 2000 ई०)
नरेश मेहता (1922 -2000 ई०)
डॉ धर्मवीर भारती (1926 -1997 ई०)
नरोत्तम प्रसाद नागर
अनन्त गोपाल शेवड़े
गिरिधर गोपाल
मनोविश्लेषणवादी उपन्यासो की विशेषताएँ:
इन उपन्यासों में सेक्स व यौन समस्याओं का चित्रण हुआ है।
दमित वासना कुंठा व निराशा का भी चित्रण किया गया है।
इसमें सामाजिक जीवन की उपेक्षा की गई है।
इसमें अति व्यक्तिवादिता है।
इस युग में नायिका प्रधान उपन्यास अधिक लिखी गई है।
इनमे नायिकाओं का स्वछन्द रूप का चित्रण है।
इनमे नायक को दुर्बल और कमज़ोर दिखाया गया है।
1.जैनेन्द्र: जैनेन्द्र (1905-1988 ई०) इन्होने 14 उपन्यास लिखे। हिन्दी में मनोविश्लेषणवाद के प्रवर्तक है।
जन्म: (1905 ई०) कौड़ियागंज, अलीगढ़ (उ०प्र०)
निधन: 1988 ई०
मूलनाम: आनंदीलाल
महत्वपूर्ण उपन्यास:
परख (1929 ई०)
सुनीता (1935 ई०)
त्यागपत्र (1937 ई०)
कल्याणी (1939 ई०)
सुखदा (1952 ई०)
विवर्त (1953 ई०)
व्यतीत (1953 ई०)
जयवर्धन (1956 ई०)
मुक्तिबोध (1965 ई०) साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था।
अनंतर (1968 ई०)
अनाम स्वामी (1974 ई०)
तापोंभूमि (1974 ई०)
नीलमणि (1975 ई०)
दशार्क (1985 ई०)
‘परख’ (1929 ई०)
इसमें विवाह और प्रेम की समस्या का चित्रण है।
पात्र: कट्टा (नायिका), सत्यधन, बिहारी, गरिमा
‘सुनीता’ (1935 ई०)
इसमें प्रेम और यौन संबंधों का चित्रण है। इसमें स्तर-पुरुष के समस्याओं क भी चित्रण है।
पात्र: सुनीता (नायिका), श्रीकांत (सुनीता का पति), वकील (श्रीकांत ही वकील है), हरिप्रसन्न (क्रांति दल से संबंधित)
‘त्यागपत्र’ (1937 ई०)
इस उपन्यास में नायिका मृणाल के अहम् और यौन आकर्षण का चित्रण है। अंत में पुरुष व्यवस्था के प्रति विद्रोह का चित्रण है।
पात्र: मृणाल, बुआ, प्रमोद (मृणाल का भतीजा), शीला, कोयलावाला।
‘कल्याणी’ (1939 ई०)
इसमें कल्याणी नायिका के अहम् भय, संघर्ष का चित्रण है। इसमें नारीत्व के गर्व का भी चित्रण है।
पात्र: कल्याणी (नायिका), डॉ असरानी (कल्याणी का पति), पाल (क्रांतिकारी), डॉ भट्नागर आदि।
‘सुखदा’ (1952 ई०)
इस उपन्यास में कुंठित स्त्री की गाथा है। पत्नी और प्रेयसी की उलझन में परिलक्षित होती है।
पात्र: सुखदा (पति), श्रीकांत (श्रीकांत सुखदा का पति), लाल (सुखदा का प्रेमी), हरीश आदि।
‘विवर्त’ (1953 ई०)
इस उपन्यास में जीवन और कुंठाओं के बीच रास्ता बनाते हुए एक संधर्षशील मानव का चित्रण है।
पात्र: जितेन (क्रांतिदल का नायक), भुवन, मोहिनी (जीतें की पूर्व प्रेमिका), नरेश (वैरिस्टर), चड्ढा (एस पी) नरेशचंद्र आदि।
व्यतीत (1953 ई०)
यह एक चरित्रात्मक उपन्यास है। इसमें नायक जयंत प्रेम में असफल होने के बाद जीवन से विरक्त होकर इधर-उधर भटकता फिरता है।
2. इलाचंद्र जोशी (1902 -1982 ई०)
जन्म: 13 दिसंबर (1903 ई०) उत्तरांचल, ये हिन्दी में मनोवैज्ञानिक
आरंभकर्ता माने जाते है
महत्वपूर्ण उपन्यास-
घृणामयी (1929 ई०) इसमें पूर्व में ‘घृणामयी’ शीर्षक से प्रकाशित लज्जा’ में लज्जा नामक आधुनिका, शिक्षित नारी की काम भावना का वर्णन किया गया है।
सन्यासी (1941 ई०) यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। इस उपन्यास में नायक नंदकिशोर के अहम भाव एवं कालांतर में अहम भाव का उन्नयन दिखाया गया है ।
पर्दे की रानी (1942 ई०) इस उपन्यास में खूनी पिता और वेश्या पुत्री नायिका निरंजना की समाज के प्रति घृणा और हिंसा भाव की अभिव्यक्ति गई है।
प्रेत और छाया (1944 ई०) इसमें नायक पारसनाथ की हीन भावना एवं स्त्री जाति के प्रति घृणा का भाव दिखाया गया है।
निर्वासित (1946 ई०) इस उपन्यास में महीप नामक प्रेमी की भावुकता निराशावादिता का दुखद अंत कहानी के माध्यम से चित्रण किया गया है।
मुक्तिपथ (1948 ई०) इसमें कथा नायक राजीव और विधवा सुनंदा की प्रेमकथा सामाजिक कटाक्ष के कारण शरणार्थी बस्ती में जाना, राजीव का सामाजिक कार्य में व्यस्तता और सुनंदा की उपेक्षा के फलस्वरुप सुनंदा की वापसी को दिखाया गया है।
सुबह के भूले (1951 ई०) गुलबिया नामक एक साधारण किसान पुत्र की अभिनेत्री बनने एवं वहां के कृत्रिम जीवन से उठकर पुनः ग्रामीण परिवेश में लौटने की कथा का वर्णन है।
जिप्सी (1952 ई०) इस उपन्यास में जिप्सी बालिका मनिया की कुंठा और अंत में कुंठा का उदात्तीकरण को दर्शाया गया है।
जहाज का पंछी (1954 ई०) इस उपन्यास में कथानायक शिक्षित नवयुवक है। कोलकाता में नगर रूपी जहाज में ज्योतिषी, ट्यूटर, धोबी के मुनीम, रसोइए, चकले, लीला के सेवक इत्यादि अनेक रूपों में विविध स्थितियों एवं संघर्षों का वर्णन किया गया है।
ऋतु चक्र (1969 ई०) इसमें आधुनिक दबावों के फलस्वरुप परंपरागत मूल्यों, मान्यताओं आदर्शों के तेजी से ढहने एवं उनके स्थान पर नए मूल्यों आदर्शों के निर्माण न होने की कथा का वर्णन किया गया है।
भूत का भविष्य (1973 ई०) कवि की प्रेयसी (1976 ई०)
3. अज्ञेय (191-1987 ई०)
जन्म: 7 मार्च (1911 ई०) उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ था
निधन: 4 अप्रैल, (1989 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
शेखर एक जीवनी-‘शेखर एक जीवनी’ एक कालजयी उपन्यास है। इस उपन्यास के दो भाग है।
प्रथम भाग (उत्थान) (1941 ई०)
दूसरा भाग (संघर्ष) (1944 ई०) ‘शेखर’ की भूमिका में लिखते हैं कि यह जेल के स्थगित जीवन में केवल एक रात में महसूस की गई घनीभूत वेदना का ही शब्दबद्ध विस्तार है। शेखर जन्मजात विद्रोही है। वो परिवार, समाज, व्यवस्था, तथा कथित मर्यादा, सबके प्रति विद्रोह करता है। वो स्वतंत्रता का आग्रही है। व्यक्ति की स्वतंत्रता को उसके विकास के लिए बेहद ज़रूरी मानता है।
‘शेखर’ में व्यक्ति स्वातंत्र्य की अनुभूति और अभिव्यक्ति की जो छटपटाहट है, वह पूरे उपन्यास में नज़र आती है। दरअसल प्रेमचंद के गोदान में (1936) के पात्र ‘गोबर’ के चरित्र का स्वाभाविक विकास है।
नदी के द्वीप (1951 ई०) ‘नदी के द्वीप’ उपन्यास की रचना ‘प्रतीकात्मक’ शैली में की गई है।
अपने-अपने अजनबी (1961 ई०) ‘अपने-अपने अजनबी’ हिन्दी का अपनी शैली में एकमात्र उपन्यास है, जिसे हिन्दी अस्तित्ववादी प्रवृत्ति की संज्ञा दी गई है।
4. डॉ प्रभाकर माचवे (1917 -1991 ई०)
जन्म: 26 दिसंबर (1917 ई०) ग्वालियर मध्य प्रदेश
निधन: (1991 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
परन्तु (1940 ई०)
एकतारा (1952 ई०)
साँचा (1956 ई०)
द्वाभा (1957 ई०)
‘जो’ (1964 ई०)
किशोर (1969 ई०)
तीस चालीस पचास (1973 ई०)
अनदेखी, दर्द के पैबंद (1974 ई०)
किसलिए (1975 ई०)
द्दूत (1976 ई०)
आँख मेरी बाकी उनका (1983 ई०)
लापता (1984ई०)
डॉ देवराज (1917 – 2000 ई०)
जन्म: (1917 ई०) रामपुर उत्तर प्रदेश
पुरानाम: देवराज नंदकिशोर है।
प्रमुख उपन्यास:
पथ की खोज (1951 ई०)
बाहर भीतर (1954 ई०)
रोड़े और पत्थर (1958 ई०)
अजय की डायरी (1960 ई०)
मैं वे और आप (1969 ई०)
दोहरी आग की लापट (1973 ई०)
दूसरा सूत्र (1978 ई०)
नरेश मेहता (1922 -2000 ई०)
जन्म: (1922 ई०) मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में शाजापुर कसबे में हुआ था। नरेश मेहता दूसरा तार सप्तक के प्रसिद्ध कवि थे।
निधन: (2000 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
डूबते मस्तूल (1954 ई०)
धूमकेतु: एक श्रुति (1962 ई०)
वह पथ बंधु था (1962 ई०)
दो एकांत (1964 ई०)
नदी यशस्वी है (1967 ई०)
प्रथम फाल्गुन (1968ई०)
उत्तर कथा भाग: इस उपन्यास के दो भाग है-
(भाग एक- 1979 ई० में प्रकाशित)
(भाग दो- 1982 ई० में प्रकाशित)
डॉ धर्मवीर भारती (1926 -1997 ई०)
जन्म: 25 दिसंबर 1926 ई० इलाहबाद उत्तर प्रदेश के अतर सुइया मोहल्ले में हुआ था।
निधन: 4 सितंबर 1997 ई०
प्रमुख उपन्यास:
गुनाहों का देवता
सूरज का सातवां घोड़ा
ग्यारह सपनों का देश
प्रारम्भ व समापन
2. साम्यवादी उपन्यास और उपन्यासकार (इकाई-2)
प्रेमचंदोत्तर युग के वे उपन्यास जो ‘मार्क्सवाद’ से प्रेरित होकर लिखा गया, जिनमे शोषित वर्ग के पीड़ा का वर्णन हो उसे साम्यवादी उपन्यास कहते है।
साम्यवादी उपन्यासों की विशेषताएँ:
मार्क्सवाद में आस्था, यथार्थवाद, विश्वबंधुत्व की भावना।
शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव, हिंसक क्रांति का समर्थन।
नारी के प्रति सम्मान की भावनाएँ, पूँजीवाद के दोषों का चित्रण।
समकालीन विषमताओं का चित्रण है।
प्रमुख साम्यवादी उपन्यासकार:
यशपाल: (1903-1976 ई०)
भगवतीचरण वर्मा: (1903-1981 ई०)
मनमथलाल गुप्त: (1908-2000 ई०)
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’: (1910-1996 ई०)
अमृतलाल नागर: (1916-1990 ई०)
भैरवप्रसाद गुप्त: (1918-1995 ई०)
अमृतराय: (1921-1996 ई०)
यज्ञदत्त शर्मा: (1922-1996 ई०)
रांगेय राघव: (1923-1962 ई०)
यशपाल: साम्यवादी उपन्यास के प्रतिनिधि है:
जन्म: 3 दिसंबर 1903 ई० पंजाब में फिरोजपुर छावनी, खत्री परिवार
निधन: 26 दिसंबर 1976 ई० वाराणसी
पिता: हीरालाल साधारण कारोबारी
माता: प्रेमदेवी, एक अनाथालय विद्याल की शिक्षिका
यशपाल के उपन्यस:
दादाकामरेड (1941ई०)
देशद्रोही (1943 ई०)
दिव्या (1945 ई०)
पार्टी कामरेड (1946 ई०)
मनुष्य के रूप (1949 ई०)
अमिता (1956 ई०)
झूठा सच (1960ई०), इस उपन्यास के दो भाग है।
प्रथम भाग वतन और देश (1958 ई०)
दूसरा भाग देश का भविष्य (1960 ई०)
बारह घंटे (1964 ई०)
अप्सरा का श्राप (1965 ई०)
क्यों फँसे (1968 ई०)
तेरी मेरी उनकी बात (1974 ई०)
दादा कामरेड- (1941ई०)
‘दादा कामरेड’ यह ‘यशपाल’ का पहला उपन्यास है।
इस उपन्यास में आतंकवाद और साम्यवाद का चित्रण है। क्रांतिकारी जीवन का चित्रण है।
मुख्य पात्र: हरीश (नायक), शैल, यशोदा, रोबट, अमरनाथ आदि।
देशद्रोही- (1943ई०)
यह उपन्यास 1942 ई० के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित है। स्त्री-पुरुष के प्रेम और काम भावना का भी चित्रण है। इस उपन्यास से संतुष्ट होकर राहुल सांकृत्यायन ने लिखा था- “यशपाल की परतूलिका उतावलेपन के लिए नहीं, स्थायी मूल्यों के लिए है।…इस उपन्यास को संसार की किसी भी उन्नत भाषा के उपन्यासों की श्रेणी में तुलना के लिए रखा जा सकता है।”
मुख्य पात्र: भगवान दास खन्ना, गुल्शा, रामदुलारी चंदा, और राज आदि।
दिव्य- (1945ई०)
यह उपन्यास इतिहास एवं कल्पना पर आधारित है। इस उपन्यास में नारी के करुण गाथा का चित्रण है। यह रोमांस विरोधी उपन्यास है। इसमें यशपाल के नारी विषयक दृष्टिकोण प्रकट हुआ है। दिव्य का कथानक बौद्धकाल की घटनाओं पर आधारित है। दिव्य जीवन की आशक्ति का प्रतीक है।
मुख्य पात्र: पृथुसेन, दिव्या, रूद्रधीर, मल्लिका, देवशर्मा, मारिश आदि।
पार्टी कामरेड- (1946ई०)
इस उपन्यास कम्युनिष्ट पार्टी की विचारधारा पर आधारित है। इसमें यशपाल के क्रांतिकारी जीवन का चित्रण है। इसके उपन्यास के केन्द्र में गीता गीता नाम की एक कम्युनिष्ट युवती है जो पार्टी के प्रचार के लिए उसका अखबार मुंबई के सड़कों पर बेचती है और पार्टी के लिए फंड इक्कठा करती है। गीता के माध्यम जदुलाल भोवारिमा की बलिदान गाथा का चित्रण है।
मुख्य पात्र: गीता और पदुमलाल भावरिमा आदि।
मनुष्य के रूप- (1949 ई०)
यह घटना प्रधान उपन्यास है। मनुष्य प्रधान समाज में स्त्री को भोग की वस्तु समझने का चित्रण है। उपन्यासकार ने सामाजिक विचारधारा को केन्द्र में रखते हुए परिस्थिति से विवश होकर मनुष्य कैसे अपने रूप बदलता है, को चित्रित किया है।
मुख्य पात्र: धनसिंह, सोम, मनोरमा, भीषण, जगदीश सहाय आदि।
अमिता- (1956 ई०)
यह ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें कलिंग युद्ध के बाद अशोक के हृदय परिवर्तन का चित्रण है।
मुख्य पात्र: अमिता, अशोक, सेठ सौमित्र आदि।
झूठा सच- (1960 ई०) यह उपन्यास दो भागों में विभक्त है।
पहला भाग: ‘वतन और देश’ (1958 ई०) ‘विप्लव कार्यालय’, लखनऊ से प्रकाशित हुआ। इसमें देश विभाजन और त्रासदी पर आधारित कहानी है। कथा का केन्द्र लाहौर है।
मुख्य पात्र: जयदेव पूरी, तारा, रामज्वाया, राम लुभाया, पूरी कंचन, डॉ प्राणनाथ, सूदजी, प्रद्युम्न, नरोत्तम, असद, मर्सी सिला, कनक, सोमराज, दुर्गा आदि।
दूसरा भाग: ‘देश का भविष्य’ (1960 ई०) में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के विकास में बुद्धिजीवियों और नेताओं के भूमिका का वर्णन है कथा का केन्द्र जालंधर और दिल्ली है।
मुख्य पात्र: बती, तारा, उर्मिला पूरी, सोमराज, प्राण, गिल आदि।
बारह घंटे (1964 ई०)
इस उपन्यास में प्रेम और विवाह का चित्रण हैं। इसाई समाज की पृष्ठभूमि में घटित इस उपन्यास के केन्द्र में विधवा विनी और विधुर फेंटम है जो विशेष परिस्थितियों के कारण भावानात्मक बंधन में बांध जाते है।
मुख्य पात्र: जेनी, पामर, लारेंस आदि।
अप्सरा का श्राप (1965 ई०)
यह एक पौराणिक उपन्यास है। इसमें उपन्यासकार ने दुष्यंत-शकुंतला के पौराणिक आख्यान को आधुनिक संवेदना के आधार पर चित्रण किया है।
मुख्य पात्र: मेनका, शकुंतला, विश्वामित्र, दुष्यंत आदि।
क्यों फँसे (1968 ई०)
यह उपन्यास प्रेम और काम संबंधों पर आधारित है। इसमें अट्ठाईस वर्ष युवा पत्रकार और मोती के रति संबंधों को आधार बनाकर लिखा गया यह वृतांत स्त्री और पुरुष के रिश्तों में एक नई दिशा को खोजने की कोशिश करता है और हमारे सामने विचार के लिए एक प्रश्न छोड़ जाता है।
मुख्य पात्र: भास्कर (नायक), मोती, बदर डॉ मिस हेना, पुनैया आदि
तेरी मेरी उसकी बात: (1974 ई०)
इसकी पृष्ठभूमि अगस्त 1942 ई० का भारत छोड़ों आंदोलन का विस्फोट है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज और राजनीति का भी चित्रण है।
मुख्य पात्र: अमर, उषा, इशा, रजनी, रतनी, सेठ रतनलाल, नरेंद्र, हरि भैया, जोशी जी आदि।
भगवतीचरण वर्मा: (1903-1981 ई०)
जन्म: 30 अगस्त 1930 उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गाँव में हुआ था
निधन: 5 औक्तुबर 1881 ई०
भगवतीचरण वर्मा: महत्वपूर्ण उपन्यास:
पतन (1928 ई०) ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है।
चित्रलेखा (1934 ई०) इसकी कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है
तीन वर्ष (1936 ई०) एक ऐसे युवक कहानी है जो नयी सभ्यता के चकाचौंध से पथभ्रष्टहो जाता है
टेढ़े मेढ़े रास्ते (1946 ई०) इसमें मार्क्सवाद की आलोचना की गई है।
आखरी दाँव (1950 ई०)
अपने खिलौने (1957 ई०)
भूले बिसरे चित्र (1959 ई०) साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया।
वह फिर नहीं आई (1960 ई०)
सामर्थ्य और सीमा (1962 ई०)
थके पाँव (1963 ई०)
रेखा (1964 ई०)
सीधी सच्ची बातें (1968 ई०)
सबहिं नचावत राम गोसाई (1970 ई०)
प्रश्न और मरीचिका (1973 ई०)
युवराज चूण्डा (1978 ई०)
धुप्पल (1981 ई०)
चाणक्य (1982 ई०)
मनमथलाल गुप्त: (1908-2000 ई०)
जन्म: 7 फ़रवरी 1908 ई०
निधन: 26 ओक्टूबर 2000 ई०
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे।
मनमथ नाथ के महत्वपूर्ण उपन्यास:
चक्की
तूफ़ान के बादल,
बहता पानी
रैन अँधेरी
ज्ञानी चूहा
शरीफों का कटरा
अगस्त क्रांति और प्रति क्रांति
जागरण
जिन सुधार
अमृतलाल नागर:
जन्म: 17 अगस्त 1916 गोकुलपुरा, आगरा, उत्तर प्रदेश
निधन: 23 फ़रवरी 1990 लखनऊ
पिता: पण्डित राजाराम नागर
अमृतलाल नागर के महत्वपूर्ण उपन्यास:
महाकाल (1947 ई०)
सेठ बाँकेमल (1955 ई०)
बूँद और समुंद्र (1956 ई०)
शतरंज के मोहरे (1959 ई०)
सुहाग के नुपुर (1960 ई०)
ये कोठेवालियाँ (1961 ई०)
अमृत और विष (1966 ई०)
सात घूँघट वाला मुखड़ा (1968 ई०)
एकदा नैमिषारण्ये: (1971 ई०)
मानस का हंस (1972 ई०)
नाचो बहुत गोपाल (1978 ई०)
खंजन नयन (1981 ई०)
बिखरे तिनके (1982 ई०)
अग्नि गर्भा (1983 ई०)
करवट (1985 ई०)
पीढ़ियाँ (1990 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
बूँद और समुंद्र (1956 ई०)
यह प्रतीकात्मक एवं सामाजिक उपन्यास है। इस उपन्यास में बूँद व्यक्ति और समुंद्र समाज का प्रतीक है। इसमें माध्यम वर्ग के पीड़ा का चित्रण किया गया है। कथा का क्षेत्र लखनऊ है।
मुख्य पात्र: सज्जन, वनकन्य, महीपाल, नगीन्चंद्र जैन उर्फ़ कर्नल, सेठ कन्नोमल आदि।
अमृत और विष (1966 ई०)
इस उपन्यास के लिए अमृतलाल नागर को सन 1967 ई० में साहित्यिक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह सामाजिक उपन्यास है।
मुख्य पात्र: अरविन्द, शंकर, माया, शेख, लालाजी, गुणल दास, रविन्द्रनाथ ठाकुर।
मानस का हंस (1972 ई०)
तुलसीदास के जीवनी चरित्र पर आधारित यह जीवनी परक उपन्यास है।
मुख्य पात्र: तुलसी, रत्ना, मैना कहारिन, राजाभक्त, मोहिनी, बेनी माधव, बूढ़ा रमजानी, दीनबंधु पाठक, हुलसी, आत्माराम, रामू दिवेदी।
नाचो बहुत गोपाल (1978 ई०)
इस उपन्यास में भंगी समाज के व्यथा का चित्रण है।
मुख्य पात्र: निर्गुनिया, मोहना, अंशुधर शर्मा आदि।
खंजन नयन (1981 ई०)
यह उपन्यास सूरदास का जीवनी परक उपन्यास है।
मुख्य पात्र: सूरदास, स्वामी नाद ब्रहमानंद, सोमेश्वर, कैतो, पंडित सीताराम, सिकंदर आदि
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’: (1910-1996 ई०)
जन्म: ‘अश्क’ का जन्म जालन्धर, पंजाब में हुआ। को पंजाब प्रान्त के जालंधर नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित माधोराम था और वे रेलवे अधिकारी थे।
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’: महत्वपूर्ण उपन्यास:
सितारों के खेल (1940 ई०)
गिरती दीवारें (1947ई०)
बड़ी बड़ी आँखें (1955 ई०)
पत्थर अल पत्थर (1957 ई०)
गर्म राख (1957 ई०)
शहर में घूमता आईना (1963 ई०)
एक नन्हीं किंदील (1969 ई०)
बाँधों न नाव इस ठाँव (1974 ई०)
निमिषा (1980 ई०)
भैरवप्रसाद गुप्त: (1918-1995 ई०)
जन्म: 7 जुलाई (1918 ई०) को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिवानकलाँ नामक गाँव में हुआ था। ये प्रगतिवादी विचारधारा के, कहानीकार एवं उपन्यासकार तथा प्रख्यात संपादक थे।
निधन: 7 अप्रेल 1995 ई० अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में हुआ।
महत्वपूर्ण उपन्यास:
शोले (1946 ई०)
मशाल (1948 ई०)
गंगा मैया (1952 ई०)
जंजीरे और नया आदमी (1954 ई०)
सती मैया का चौरा (1959 ई०)
धरती (1962 ई०)
आशा (1963 ई०)
कालिंदी (1963 ई०)
अंतिम अध्याय (1970 ई०)
उसका मुजरिम (1972 ई०)
नौजवान (1972 ई०)
एक जीनियस की प्रेमकथा (1980 ई०)
सेवाश्रम (1983 ई०)
काशी बाबू (1987 ई०)
भाग्य देवता (1992 ई०)
अक्षरों के आगे (मास्टरजी) – 1993 ई०
छोटी सी शुरुआत (1997 ई०) (मरणोपरांत प्रकाशित )
अमृतराय: (1921-1996 ई०)
जन्म: 3 दिसंबर 1921 ई० को वाराणसी में हुआ था
निधन: 14 अगस्त 1996 ई०
अमृतराय: महत्वपूर्ण उपन्यास:
बीज (1952 ई०)
नागफनी का देश (1953 ई०)
हाथी के दांत (1956 ई०)
सुख-दुःख (1969 ई०)
भठियाली (1969 ई०)
जंगल (1969 ई०)
धुआँ (1977 ई०)
यज्ञदत्त शर्मा: (1922-1996 ई०)
जन्म: 18 जनवरी 1916 ई० को सरावा, मेरठ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे।
‘शिलान्यास’ उपन्यास के लिए उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
निधन: 1969 ई०
यज्ञदत्त शर्मा: महत्वपूर्ण उपन्यास:
विचित्र त्याग (1937 ई०)
दो पहलू (1938 ई०)
ललिता (1940 ई०
इन्सान (1951ई०)
मधु (1953 ई०)
झुनिया की शादी (1954 ई०)
निर्माण पथ
मंगलू की माँ
परिवार (1955 ई०)
दबदबा
चौथा रास्ता
अंतिम चरण
रजनीगंधा
बसंती बुआजी
सबका साथी
इंसाफ़
स्वप्न खिल उठा
पहला वर्ष
स्मृति-चिह्न
रूप-विरूप
दूसरी बार
ताजमहल
पांचाली
मुक्तिपथ (1956 ई०)
रंगशाला (1956 ई०)
महल और मकान (1956 ई०
बाप-बेटी (1956 ई०)
बदलती राहें (1956 ई०)
दीवान रामदयाल (1956 ई०)
भारत सेवक (1957 ई०)
देवयानी (1962 ई०)
अपराधिनी (1962 ई०) (सॉमरसेट मॉम के पेंटेडवेल का स्वतंत्र हिंदी रूपांतरण
खून की हर बूँद (1962 ई०) के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में-1)
विश्वासघात (1962 ई०) के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में-2)
हिमालय की वेदी पर (1963 ई०) (1962 के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में।
शिलान्यास (1966 ई०)
रांगेय राघव: (1923-1962 ई०)
जन्म: 17 जनवरी, 1923 ई० आगरा में हुआ था।
मूलनाम: तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था।इन्होने अपना साहित्यिक नाम रांगेय राघव रखा। इनका परिवार मूलरूप से तिरुपति, आंध्रप्रदेश का निवासी था।
1946 ई० में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए वे प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।
निधन: 12 सितंबर 1962 ई०
रांगेय राघव: महत्वपूर्ण उपन्यास:
घरौंदा (1946 ई०)
विषादमठ (1946 ई०)
मुर्दों का टीला (1948 ई०)
चीवर (1951 ई०)
सीधा-साधा रास्ता (1951 ई०)
हुजूर (1951 ई०)
अँधेरे के जुगुनू (1953 ई०)
उबाल (1954 ई०)
बोलते खँडहर (1955 ई०)
कब तक पुकारूँ (1957ई०)
बौने और घायल फूल (1957 ई०)
पक्षी और आकाश (1957 ई०)
जब आवेगी कालीघाट (1958 ई०)
बन्दूक और बीन (1958 ई०)
राई और पर्वत (1958 ई०)
राह न रुकी (1958 ई०)
छोटी सी बात (1959 ई०)
पथ का पाप (1959 ई०)
महायात्रा (1960 ई०)
धरती मेरा घर (1960 ई०)
प्रोफेसर (1961 ई०)
पतझर (1962 ई०)
आखरी आवाज (1963 ई०)
बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गयी, लोई का ताना, लखिमा की आँखें, मेरी भाव बाधा हरो।
3.ऐतिहासिक या व्यक्तिवादी उपन्यास और उपन्यासकार इकाई-2
महत्वपूर्ण उपन्यासकार और उपन्यास
गोविंद वल्लभ पंत (1887 – 1961 ई०)
उदयशंकर भट्ट (1898 – 1966 ई०)
हजारी प्रसाद दिवेदी (1907 – 1979 ई०)
विष्णु प्रभाकर (1912 – 2009 ई०)
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ (1915 –1995 ई०)
लक्ष्मीनारायण लाल (1927 –1987 ई०)
अन्य उपन्यासकार: उषा देवी मित्रा, जनार्दन मुक्तिदूत, कृष्ण चन्द्र भिक्खु, वाल्मीकि त्रिपाठी।
गोविंद वल्लभ पंत (1887 – 1961 ई०)
जन्म: 10 सितंबर (1887 ई०) ग्राम खूंट, अल्मोड़ा जिला। उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। मुख्यमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल 15 अगस्त 1947 ई० से 27 मई 1954 ई० तक रहा।
निधन: 7 मार्च (1961 ई०) नई दिल्ली
प्रमुख उपन्यास: (1960 ई०) के बाद के उपन्यास
कोहिनूर का हरण (1964 ई०)
निहारिका (1967 ई०)
रुपगंगा (1969 ई०)
उजाली (1975ई०)
ध्वंस और निर्माण (1975 ई०)
संशय और आखेट (1975 ई०)
रजिया (1976 ई०)
तीन दिन (1976 ई०)
अँधेरे में उजाला (1976 ई०)
ज्वार (1977 ई०)
परिचारिका (1978 ई०)
प्रगति के चार रूप (1978 ई०)
धर्मचक्र (1978 ई०)
साने के देवता (1980 ई०)
कनक कमल (1981 ई०)
कश्मीर की क्लियोपेट्रा (1981 ई०)
वाला बंजारा (1986 ई०)
हजारी प्रसाद दिवेदी (1907 – 1979 ई०)
जन्म: 10 अगस्त 1907 ई० बलिया जिले के छपड़ा गाँव में हुआ था
निधन: 19 मई 1979 ई०
इनकी हिन्दी इतिहास से संबंधित तीन (3) पुस्तकें है:
हिन्दी साहित्य की भूमिका 1940 ई०
हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास 1952 ई०
हिन्दी साहित्य का आदिकाल 1953 ई०
हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजन किया है:
आदिकाल- 1000 – 1400 ई०
भक्तिकाल- 1400 – 1600 ई०
रीतिकाल- 1600 – 1800 ई०
आधुनिक काल- 1800 – 1952 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
बाणभट्ट की आत्मकथा (1946 ई०)
चारुचंद लेख (1963 ई०)
पुनर्नवा (1973 ई०)
अनामदास का पोथा (अथ रैक्व आख्यान) (1976 ई०)
बाणभट्ट की आत्मकथा (1946 ई०)
यह उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में रचित है।
यह बाणभट्ट के जीवन से संबंधित उपन्यास है।
इसमें उदात्त प्रेम का चित्रण किया गाय है।
इसमें बाणभट्ट को आधुनिक मानवतावादी दृष्टि कोण से चित्रण किया गया है।
पात्र: बाणभट्ट (नायक), निपुणिका (बाणभट्ट की प्रेमिका), भट्टिनी, सुचरिता, महामाया, अघोर भैरव, विरतिवज्र, तुअर मिलिंद आदि।
चारुचंद्र लेख (1963 ई०)
भारत के 12 वीं और 13 वीं शताब्दियों के सांस्कृतिक इतिहास का चित्रण है।
कथानक: इसमें उज्जयनी के राजा सातवाहन और रानी चंद्रलेखा से संबंधित कहानी है।
पात्र: चन्द्रलेखा (नायिका), मैना भद्रकाली, सातवाहन (नायक), सिदी मौला, नागनाथ, विधाधर भट्ट, धीर शर्मा, बोधाप्रधान आदि।
पुनर्नवा (1973 ई०)
यह उपन्यास संस्कृत नाटक मृच्छकतिकम् एवं लोरिकायन पर आधारित है। वर्ण व्यवस्था एवं नारी शोषण का चित्रण है। समुन्द्र्गुप्र एवं कालिदास की कथा का चित्रण है।
पात्र: मृणाल, चंद्रा, माँदी, मंजुला, वसंतसेना, गोपाल आर्यक, देवरात, श्यामरूप, चारुचंद, रुजुका।
अनामदास का पोथा (अथ रैक्व आख्यान) (1976 ई०)
कथानक: छान्दोग्य एवं वृहदारण्य उपनिषदों पर आधारित है। लोगों तक उपनिषदों की जानकारी पहुँचाने के लिए इस उपन्यास की रचना की गई।
पात्र: राजा ज्ञानश्रुति, रैक्व ऋषि (रिक्व का पुत्र) जाबाला, ऋजुका, औदम्बरायण आदि।
विष्णु प्रभाकर (1912 – 2009 ई०)
जन्म: 1912 ई० मिरनपुर मुजफ्फरनगर (उ०प्र०)
निधन: 2009 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
ढलती रात (1951 ई०) ‘ढलती रात’ उपन्यास को दुबारा ‘निशिकांत’ के नाम से पुनः (1955 ई०) प्रकाशित करवाया था।
तट के बंधन (1955 ई०)
स्वप्नमयी (1956 ई०)
दर्पण का व्यक्ति (1968 ई०) इस उपन्यास को 1993 ई० में संस्कार नाम से फिर प्रकाशित करवाया था।
आवारा मसीहा (1974 ई०) यह जीवनी परक उपन्यास है।
कोई तो (1980 ई०)
अर्धनारीश्वर (1992 ई०) इसके लिए उन्हें 1993 में सा० अकादमी पुरस्कार मिला था
संकल्प (1993 ई०)
‘ढलती रात’ (1951 ई०)
इसे 1955 ई० में निशिकांत के नाम से पुनः प्रकाशित करवाया। 1920 ई० से 1936 ई० तक की भारत की राजनैतिक एवं सामाजिक स्थितियों का चित्रण है।
‘तट के बंधन’ (1955 ई०) इसमें प्रेम विवाह और नारी मुक्ति का चित्रण है।
‘स्वप्नमयी’ (1956 ई०) इसमें स्त्री के स्वप्नजीवी चरित्र का चित्रण है।
‘दर्पण का व्यक्ति’ (1968 ई०)
इस उपन्यास को 1993 ई० में संस्कार नाम से पुनः प्रकाशित करवाया था। इसमें स्त्री जाती के त्याग बलिदान आदि संस्कारों का चित्रण है।
‘आवारा मसीहा’ (1974 ई०)
यह ‘जीवनी’ परक उपन्यास है। यह उपन्यास शरदचंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित है।
‘कोई तो’ (1980 ई०)
इस उपन्यास में बलात्कार एवं स्त्रियों की समस्याओं का चित्रण है।
‘अर्धनारीश्वर’ (1992 ई०)
इस उपन्यास में बलात्कार एवं स्त्रियों की समस्याओं का चित्रण है।
संकल्प (1993 ई०)
इस उपन्यास में परित्यक्त स्त्रियों के मानसिक स्थिति का चित्रण है।
लक्ष्मीनारायण लाल (1927 –1987 ई०)
जन्म: 1927 ई० जलालपुर, बसती (उ० प्र०)
निधन: 1987 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
धरती की आँखे (1951 ई०)
बाया का घोंसला और साँप (1953 ई०)
काले फूल का पौधा (1955 ई०)
रूपा जीवा (1959 ई०)
बड़ी चंपा छोटी चंपा (1961 ई०)
मन वृन्दावन (1966 ई०)
अपवित्र नदी (1972 ई०)
बड़के भैया (1973 ई०)
हरा समंदर गोपी चंदर (1974 ई०)
वसंत की प्रतीक्षा (1975 ई०)
देविना (1976 ई०)
पुरुषोत्तम (1983 ई०)
गली अनार काली (1985 ई०)
कनाट पैलेस (1986 ई०)
उदयशंकर भट्ट (1898 – 1966 ई०)
जन्म: 3 अगस्त(1898 ई०) उत्तर प्रदेश के इटावा नगर ननिहाल में हुआ था
निधन: 28 फ़रवरी (1966 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
नये मोड़ (1954 ई०)
सागर लहरें और मनुष्य (1954 ई०)
लोक परलोक (1954 ई०)
शेष-अशेष (1954 ई०)
दो अध्याय (1954 ई०)
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ (1915 –1995 ई०)
जन्म: 1 मई (1915 ई०) ग्राम किशनपुर, जिला- फतेहपुर (उ०प्र) में हुआ था
निधन: 12 ओक्टूबर (1995 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
पहला उपन्यास ‘चढ़ती धूप’ (1945 ई०) में प्रकाशित हुआ।
दूसरा उपन्यास ‘नयी इमारत’ (1946 ई०) में प्रकाशित हुआ।
तीसरा उपन्यास ‘उल्का’ (1947 ई०) में प्रचारक संस्थान से प्रकाशित हुआ।
उपन्यास ‘मरुदीप’ (1951 ई०) में जिसका नामकरण बाद में ‘रेत की हिरणी’ कर प्रकाशित किया।
4. आंचलिक उपन्यास और उपन्यासकार:
आँचलिक उपन्यास के अर्थ: वे उपन्यास जिनमे ग्रामीण अंचल की मान्यताओं, परम्पराओं, संस्कृति आदि का वही की भाषा में चित्रण या वर्णन हो उसे आंचलिक उपन्यास कहते है।
आँचलिक उपन्यासकारों के आरोही क्रम:
देवेन्द्र सत्यार्थी (1908 – 2003 ई०)
नागार्जुन (1911 – 1998 ई०)
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ (1921 – 1977 ई०)
विवेकीराय (1924 – 2016 ई०)
रामदरश मिश्र (1924 –)
श्रीलाल शुक्ल (1925 – 2011 ई०)
राही मासूम राजा (1927 – 1992 ई०)
राजेन्द्र अवस्थी (1930 – 2009 ई०)
शैलेश मटियानी (1931 – 2000 ई०)
हिमांशु जोशी (1935- 2018 ई०)
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ (1921 – 1977 ई०)
जन्म: 1921 को फोरबिस गंज, अरिया जिला (बिहार)
निधन: 1977 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
मैला आँचल (1954 ई०)
परती परिकथा (1957 ई०)
दीर्घतपा (1964 ई०)
जुलूस (1965 ई०)
कितने चौराहें (1965 ई०)
कलंक मुक्ति (1976 ई०)
पलटूबाबू रोड़ (1979 ई०)
रामरतन राय (अधुरा)
मैला आँचल (1954 ई०)
हिन्दी का यह प्रथम आँचलिक उपन्यास है।
कथानक: मैला आँचल उपन्यास में बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज अंचल (1945-1948) तक के राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन का वर्णन है।
पात्र: डॉ प्रशांत. विश्वनाथ प्रसाद, कालीचरण (खलासी), बलदेव, मार्टिन, कमली, लक्ष्मी, बावनदास, इसमें कूल 296 पात्र हैं।
परती परिकथा (1957 ई०)
इसमें पूर्णिया जिले के परानपुर गाँव की काठ का चित्रण है।
दीर्घतपा (1964 ई०)
भ्रष्ट शासन व्यवस्था के बीच ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ बेला की संघर्ष की कहानी का वर्णन है।
जुलूस (1965 ई०)
इस उपन्यास में पूर्वी पाकिस्तान से आए बिहार के पूर्णिया जिले में आकर बसे शरणार्थियों की मानसिकता की कहानी का चित्रण है।
कितने चौराहें (1965 ई०) इसमें मनमोहन के माध्यम से स्वाधीनता की महिमा का वर्णन है।
कलंक मुक्ति (1976 ई०)
इस उपन्यास में भी स्वाधीनता आंदोलन का चित्रण है।
पलटूबाबू रोड़ (1979 ई०)
इसमें पूर्णिया जिले में रहने वाले लोग एक बंगाली परिवार का चारित्रिक पतन का चित्रण है।
रामरतन राय (अधुरा)
इस उपन्यास को 1971 ई० में लिखना आरम्भ किया किन्तु पूरा नहीं हो सका अधुरा रह गया,
नागार्जुन (1911 – 1998 ई०)
जन्म: (1911 ई०) सतलखा गाँव, मधुबनी (बिहार) इनका जन्म ननिहाल में हुआ था। इनका पैतृक गाँव, तरौनी दरभंगा है
निधन: (1998 ई०)
उपनाम: आधुनिक कबीर
महत्वपूर्ण उपन्यास:
रतिनाथ की चाची (1948 ई०)
बलचनामा (1952 ई०)
नई पौध (1953 ई०)
बाबा बटेसर नाथ (1954 ई०)
वरुण के बेटे (1957 ई०)
दुःख मोचन (1957 ई०)
कुम्भीपाक (1960 ई०)
हीरक जयंती (1961 ई०)
उग्रतारा (1963 ई०)
जमुनिया का बाबा (1968 ई०)
इमरतिया (1968 ई०)
पारो (1975 ई०)
गरीबदास (1979 ई०)
हिमांशु जोशी (1935- 2018 ई०)
जन्म: 4 जुलाई 1935 ई० को उत्तराखंड के चंपावत जिले के ‘जोसयूड़ा’ गाँव में हुआ था।
निधन: 2018 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
महासागर (1972 ई०)
अरण्य (1773 ई०)
छायामत छूना मन (1974 ई०)
कगार की आग (1976 ई०)
तुम्हारे लिए (1978 ई०)
समय साक्षी (1982 ई०)
सुराज (1982 ई०)
महासागर (1972 ई०)
इस उपन्यास में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले आदिवासियों का चोत्रण है।
अरण्य (1973 ई०)
इसमें पहाड़ी लोगों के जन-जीवन का चित्रण है।
छाया मत छूना मन (1974 ई०)
इसमें विस्थापित परिवार के पुनः विस्थापित होने की करुण-गाथा है। यह एक साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
कगार की आग (1976 ई०)
यह उपन्यास केवल गोमती, गोमा, गोमू की ही कहानी नहीं है वरन गरीब दलित आदिवासी स्त्रियों की कहानी है, जो अपनों और समाज द्वारा शोषित होती है। इसमें गोमती, कुन्नु, पिरमा के माध्यम से संत्रस्त मानव समाज के कई चित्र उजागर हुए है।
तुम्हारे लिए (1978 ई०)
यह उपन्यास नैनीताल की जमीन पर पनपी तरुणों की सुकोमल में प्रेम की गाथा का चित्रण है।
समय है साक्षी (1982 ई०)
समय है साक्षी अतीत और वर्तमान के मध्य का सेतु है इसमें महाभारत के पात्र अश्वत्थामा को आधार बनाकर पुरातन इतिहास की कई परतों से साक्षात्कार की कोशिश की गई है। इस उपन्यास के 6 खण्ड है।
सुराज (1982 ई०)
इसमें स्त्री संघर्ष की गाथा का चित्रण है।
विवेकीराय (1924 – 2016 ई०)
जन्म: 19 नवंबर 1924 ई० में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भरौली ग्राम में हुआ था यह उनका ननिहाल था। विवेकीराय हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। मूलतः मुहम्मदाबाद तहसील के सोनवाली गाँव के रहने वाले थे।
निधन: 22 नवंबर 2016 ई० वाराणसी
महत्वपूर्ण उपन्यास:
बबूल (1967 ई०)
पुरुष पुराण (1975 ई०)
लोकऋण (1977 ई०)
श्वेतपत्र (1979 ई०)
सोनामाटी (1983 ई०)
समरशेष है (1988 ई०)
मंगल भवन (1994 ई०)
नमामि ग्रामम् (1997 ई०)
अमंगल हारि (2000 ई०)
देहरी के पार (2003 ई०)
बबूल (1967 ई०)
इसमें पूर्वांचल के बाबुल-सी निरस जिंदगी का चित्रण है।
पुरुष पुराण (1975 ई०)
इस उपन्यास में नई और पुरानी पीढ़ियों के संघर्ष का चित्रण है। उपन्यास का ‘दूखन’ पुराने मूल्यों का पक्षधर एवं गाँधीवादी विचारों का समर्थक है।
लोकऋण (1977 ई०)
इस उपन्यास में मूल्यों में बिखराव, संस्कृति का पतन और विकास की हकीकत का सूक्ष्म एवं वैज्ञानिक विश्लेषण है।
श्वेतपत्र (1979 ई०)
यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है। इसमें 1942 ई० के जन आंदोलन का पूरी सजकता के साथ वर्णन किया गया है।
सोनामाटी (1983 ई०)
यह प्रतीक शैली में लिखा गया उपन्यास है। इसमें बलिया जिले के करइल क्षेत्र के जनजीवन और संस्कृति का चित्रण है।
समरशेष है (1988 ई०)
इसमें किसानों और मजदूरों के शोषण का चित्रण है।
देहरी के पार (2003 ई०)
इसमें मानवता का चित्रण है यह संदेश दिया गया है। इसमें पुत्र शोक में विहवल पिता की व्यथा-कथा है। “हम मनुष्य है किन्तु हमें मानता नहीं है।”
देवेन्द्र सत्यार्थी (1908 – 2003 ई०)
जन्म: 23 जनवरी 1908 ई० को पटियाला के कई सौ साल पुराने भदौड़ ग्राम (जिला संगरूर) में हुआ था। ये हिन्दी उर्दू और पंजाबी के विद्वान साहित्यकार थे।
मूलनाम: देवेन्द्र बत्ता था। सत्यार्थी लोकगीत अध्ययन के प्रणेता थे। इन्हें ‘लोकयात्री’ के रूप में भी जाना जाता है।
निधन: 2003 ई० में
महत्वपूर्ण उपन्यास;
रथ के पहिये (1953 ई०)
कठपुतली (1954 ई०)
ब्रह्मपुत्र (1956 ई०)
दूध गाछ (1958 ई०)
कथा कहो उर्वशी (1958 ई०)
तेरी कसम सतलुज (1988 ई०)
रथ के पहिये (1953 ई०)
इसमें रंगमंच के कलाकाओं की साधना का चित्रण है।
ब्रह्मपुत्र (1956 ई०)
इसमें ब्रहमपुत्र के किनारे बसे हुए असम के आदिवासियों के संघर्ष का चित्रण है। (ब्रहमपुत्र नदी के ‘माझूली’ द्वीप के आदिवासी)
दूध गाछ (1958 ई०)
इसमें संगीतकारों के साधना का चित्रण है।
कथा कहो उर्वशी (1958 ई०)
इसमें मूर्तिकारों जीवन साधना का चित्रण है।
रामदरश मिश्र (1924 –)
जन्म: 15 अगस्त (1924 ई०)
महत्वपूर्ण उपन्यास:
पानी के प्राचीर (1961 ई०)
जल टूटता हुआ
बीच का समय
सूखता हुआ तालाब
अपने लोग
रात का सफ़र
आकाश की छत
आदिम राग (बीच का समय)
बिना दरवाजे का मकान
दूसरा घर
थकी हुई सुबह
बीस बरस
परिवार
श्रीलाल शुक्ल (1925 – 2011 ई०)
जन्म: 31 दिसंबर 1925ई० लखनऊ जनपद में हुआ था
निधन: 28 औक्तुबर 2011 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
सूनी घाटी का सूरज (1957 ई०)
अज्ञातवास (1962 ई०)
रागदरवारी (1968 ई०)
आदमी का जहर (1972 ई०)
सीमाएँ टूटती है (1973 ई०)
मकान (1976 ई०)
पहला पड़ाव (1987 ई०)
विश्रामपुर का संत (1998 ई०)
राग विराग (2001ई०)
राही मासूम राजा (1927 – 1992 ई०)
जन्म: 1 सितंबर 1925 जिला गाजीपुर, गंगौरी गाँव में हुआ था।
निधन: 15 मार्च 1992 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
आधा गाँव (1966 ई०)
टोपी शुक्ला (1969 ई०)
हिम्मत जौनपुरी (1969 ई०)
ओस की बूँद (1970 ई०)
दिल एक सादा कागज़ (1973 ई०)
सीनी 75 (1977 ई०)
कटरा-बी आर्जू (1978 ई०)
असंतोष के दिन (1985 ई०)
निम का पेड़
राजेन्द्र अवस्थी (1930 – 2009 ई०)
जन्म: 25 जनवरी 1930 ई० को मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के ज्योतिनगर गढ़ा इलाके में हुआ था।
निधन:30 दिसंबर 2009 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
सूरज किरण की छाव (1958 ई०)
जंगल के फूल (1960 ई०)
उतरते ज्वार की सीपियाँ (1968 ई०)
जाने कितनी आँखें (1970 ई०)
बहता हुआ पानी (1971 ई०)
अकेली आवाज (1976 ई०)
बीमार शहर (1976 ई०)
मछली बाजार (1981 ई०)
भंगी दरवाजा (1992 ई०)
शैलेश मटियानी (1931 – 2000 ई०)
जन्म: 14 औक्तुबर 1931 ई०
निधन: 24 अप्रेल 2001 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
बोरीवली के बोरीबंदर (1959 ई०)
कबूतरखाना (1960 ई०)
हौलदार, चिटठीरसैन, तिरिया भली न काठ की, किस्सा नर्मदाबेन गंगू बाई, चौथी मुट्ठी (196 1 ई०)
बारूद और बचुली, मुख सरोवर के हंस, एक मूठ सरसों, बेला हुई अबेर (1962 ई०)
कोई अजनबी नहीं, दो बूँद जल, भागे हुए लोग (1962 ई०)
पुनर्जन्म के बाद (1970 ई०)
जलतरंग (1973 ई०)
बर्फ गिर चुकने के बाद (1975 ई०)
उगते सूरज की किरण (1976 ई०)
छोटे-छोटे पंक्षी (1977 ई०)
रामकली (1978 ई०)
सर्पगंधा (1979 ई०)
आकाश कितना अनंत है (1979 ई०)
उत्तर काण्ड डेरेवाले (1980 ई०)
सवित्तरी (1980 ई०)
गोपुली गफूरन (1981 ई०)
बावन नदियों का संगम (1981 ई०)
अर्द्धकुंभ की यात्रा (1983 ई०)
मुठभेड़ (1983 ई०)
नागवल्लरी (1985 ई०)
माया सरोवर (1987 ई०)
चंद औरतों का शहर (1992 ई०)
5. प्रयोगवादी / आधुनिकबोधवादी उपन्यास
प्रेमचन्दोत्तर युग के वे उपन्यास जिनमे सम-सामयिक विषय-वस्तु, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक दृष्टिकोण है उन्हें प्रयोगवादी / आधुनिकबोधवादी उपन्यास कहते है।
प्रयोगवादी उपन्यासकारों का आरोही कालानुक्रम:
रामवृक्ष बेनीपुरी (1899 – 1968 ई०)
शिव प्रसाद मिश्र ‘रूद्र’ (1911 – 1970 ई०)
भीष्म साहनी (1915- 2003 ई०)
लक्ष्मीकांत वर्मा (1922 -)
मोहन राकेश (1925 – 1972 ई०)
कृष्णा सोबती (1925 – 2019 ई०)
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (1927 – 1983 ई०)
निर्मल वर्मा (1929 – 2005 ई०)
राजेन्द्र यादव (1929 – 2013 ई०)
श्रीकांत वर्मा (1931 – 1986 ई०)
मन्नू भंडारी (1931 ई० -)
कमलेश्वर (1932 – 2007 ई०)
मनोहर श्याम जोशी (1933 – 2006 ई०)
नरेंद्र कोहली (1940 ई० -)
सुरेन्द्र वर्मा (1941 ई० -)
1.भीष्म साहनी (1915- 2003 ई०)
जन्म: 1915 ई० रावलपिंडी (पाकिस्तान)
निधन: 2003 ई० दिल्ली
झरोखा (1967 ई०)
कड़िया (1970 ई०)
तमस (1973 ई०)
वसंती (1980 ई०)
मय्यादास की माड़ी (1988 ई०)
कुंतो (1993 ई०)
नीलू नीलिमा निलोफर (2000 ई०)
‘झरोखा’ (1967 ई०)
यह भीष्म साहनी की सर्वाधिक चर्चित उपन्यास है। यह उपन्यास माध्यम वर्गीय परिवेश से संबंधित है। इसमें भीष्म साहनी के निजी जिंदगी और एक आर्य समाजी परिवार की कहानी पर आधारित है।
‘कड़िया’ (1970 ई०)
इस उपन्यास में दाम्पत्य जीवन के कटुता के कारण स्त्री की असहाय स्थिति का मार्मिक चित्रण है।
‘तमस’ (1973 ई०)
इस उपन्यास में भारत विभाजन की विभीषिका एवं सांप्रदायिक उन्माद का चित्रण है। यह उपन्यास दो खण्डों में विभक्त है कथा का क्षेत्र पंजाब है इसमें 1947 ई० में हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की पाँच दिनों की कहानी का चित्रण है। इसके लिए भीष्म साहनी को 1975 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था।
पात्र: नत्थू, बख्शीजी, अजीज, मास्टर रामदास, मेहता, अजीज सिंह, देशराज, कश्मीरी, जनरैल, देवदत्त, लिजा, रिचर्ड, हकीम जी, सरदार जी, मौला दाद, लक्ष्मी नारायण आदि।
गोपालराय के शब्दों में- “तमस उस अंधकार का द्योतक है जो आदमी की इंसानियत को ढ़क लेटा है और उसे हैवान बना देता है।”
‘वसंती’ (1980 ई०)
इस उपन्यास में दिल्ली महानगर की झुग्गी-झोपड़ियों वाली गन्दी बस्तियों का चित्रण है।
मय्यादास की माड़ी (1988 ई०) इस उपन्यास में 1840 ई० से लेकर 1920 ई० तक के पंजाब के राजनैतिक, सामाजिक यथार्थ का चित्रण है इसमें खालसा राज्य के इतिहास की तीन पीढ़ियों का वर्णन भी है
पात्र: मय्यादास, धनपत, हुकूमत राय आदि।
‘कुंतो’ (1993 ई०)
नारी जीवन की पराधीनता से उत्पन्न असहाय स्थिति का चित्रण है।
‘नीलू नीलिमा निलोफर’ (2000 ई०)
इस उपन्यास में हिंदू मुस्लिम के बीच वैवाहिक समस्याओं एवं सांप्रदायिक उपद्रवों का चित्रण है।
2, कमलेश्वर (1932 – 2007 ई०)
जन्म: 6 जनवरी (1932 ई) मैनपुरी (उ० प्र०)
निधन: 27 जनवरी 2007 ई०
महत्वपूर्ण उपन्यास:
एक सड़क संतावन गालियाँ (1957 ई०)
डाक बंगला (1959 ई०)
लौटे हुए मुसाफिर (1961ई०)
समुंद्र में खोया आदमी (1967 ई०)
काली आंधी (1974 ई०)
आगामी अतीत (1976 ई०)
तीसरा आदमी (1976 ई०)
वही बात (1980 ई०)
सुबह दोपहर शाम (1982 ई०)
रेगिस्तान (1988 ई०)
कितने पाकिस्तान (2000ई०)
एक सड़क संतावन गालियाँ (1957 ई०)
1956 ई० में एक धारावाहिक के रूप में ‘हंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ हुआ था।
1957 ई० में पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित हुआ।
इसमें नौटंकी करके जीवनयापन करनेवाली एक जाति का चित्रण है
प्रेमकपूर ने ‘बदनाम बस्ती’ के नाम से इस पर मूवी बनाई थी।
डाक बंगला (1959 ई०)
इस उपन्यास में मातृहीन हीरा के संघर्ष का चित्रण है।
लौटे हुए मुसाफिर (1961ई०)
इस उपन्यास में देश विभाजन एवं सांप्रदायिक समस्याओं का चित्रण है। इसमें मानवतावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है।
समुंद्र में खोया आदमी (1967 ई०)
इसमें कलर्क श्यामलाल और उसकी पुत्री तारा के संघर्ष एवं पारिवारिक विघटन का चित्रण है।
काली आंधी (1974 ई०)
इसमें स्त्री के राजनैतिक एवं पारिवारिक द्वंदों का चित्रण है। इसमें भ्रष्टाचार के समस्या का भी उल्लेख है।
कितने पाकिस्तान (2000 ई०)
इस उपन्यास के लिए 2003 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस में विभाजन एवं साम्प्रदायिकता का चित्रण है।
3. मोहन राकेश (1925 – 1972 ई०)
जन्म: 8 जनवरी (1925 ई०), अमृतसर
निधन: 3 जनवरी (1971 ई०) दिल्ली
प्रमुख उपन्यास:
अँधेरे बंद कमरे (1961 ई०)
न आने वाला कल (1968 ई०)
अंतराल (1972 ई०)
4. राजेन्द्र यादव (1929 – 2013 ई०)
जन्म: 28 अगस्त (1929 ई०)आगरा
निधन: 28 ओक्टूबर (2013 ई०) मयूर विहार, दिल्ली
प्रमुख उपन्यास:
प्रेत बोलते हैं (1952 ई०)
उखड़े हुए लोग (1956 ई०)
कुल्टा (1958 ई०)
शह और मात (1959 ई०)
एक इंच मुस्कान (1963 ई०)
अनदेखे अनजाने पुल (1963ई०)
5. कृष्णा सोबती (1925 – 2019 ई०)
जन्म: 18 फ़रवरी (1925 ई०) गुजरात, पाकिस्तान
निधन: 25 जनवरी (2019 ई०) नई दिल्ली
प्रमुख उपन्यास:
सूरजमुखी अँधेरे में (1972 ई०)
जिंदगीनामा (1979 ई०)
दिलोदानिश (1993 ई०)
समय-सरगम (2000 ई०)
6. मन्नू भंडारी (1931 ई० -)
जन्म: जन्म 3 अप्रैल (1931 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
आपका बंटी (1971 ई०)
महाभोज (1979 ई०)
7. रामवृक्ष बेनीपुरी (1899 – 1968 ई०)
जन्म: (1899 ई०) मुजफ्फरपुर जिले, (बिहार) के बेनीपुर गाँव में हुआ था।
निधन: 7 सितंबर (1968 ई०)
प्रमुख उपन्यास:
सन् 1930-33 ई० के बीच, कारावास काल के अनुभव के आधार पर उन्होंने एक उपन्यास लिखा “पतितो के देश में”
8. सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (1927 – 1983 ई०)
जन्म: 15 सितंबर (1927 ई०) बस्ती (उत्तर प्रदेश)
निधन: 24 सितंबर (1983 ई०)नई दिल्ली
प्रमुख उपन्यास:
पागल कुत्तों का मसीहा (लघु उपन्यास)- 1977 ई०
सोया हुआ जल (लघु उपन्यास)- 1977 ई०
उड़े हुए रंग-यह उपन्यास ‘सुने चौखटे’ नाम से 1974 ई० में प्रकाशित हुआ था।