महाभारत को धर्म युद्ध भी कहा जाता है लेकिन महाभारत पूर्णरूप से धर्मयुद्ध न होकर कर्मयुद्ध भी था। महाभारत से जुड़ी बहुत सी बातें हैं जो अपने आप में एक रहस्य हैं। भगवान होते हुए भी श्री कृष्ण अपने प्रिय अर्जुन और अपनी बहन सुभद्रा के पुत्र ‘अभिमन्यु’ को युद्ध में नहीं बचा पाए? उसे युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त होने से नहीं रोक सके, क्यों? अभिमन्यु हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा थे। यह योद्धा, युद्ध में अकेले ही पूरा दिन सभी योद्धाओं से लड़ता रहा और उन महारथियों को जो अकेले कई सेनाओं के बराबर थे, दिनभर रोक कर रखा था। अंत में अभिमन्यु लड़ते-लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया। भगवान् श्री कृष्ण विष्णु के अवतार थे। उनको धरती पर अपने आने का कारण और परिणाम सबकुछ मालूम था। वो सब जानते थे कि इस युद्ध क्यों किया जा रहा है और इसका अन्तिम परिणाम क्या होगा। उनको पता था कि उनके प्रिय अर्जुन और उनकी बहन सुभद्रा का इकलौता पुत्र अभिमन्यु ‘चक्रव्यूह’ में कई महारथियों के बीच अकेला घिरा था फिर भी वे अभिमन्यु को नहीं बचा सके।
तुलसीदास जी ने भगवान् शिव की उक्ति का उल्लेख किया है कि जब-जब पृथ्वी पर दुष्टों का अत्याचार बढ़ेगा और धर्म की हानि होगी तब-तब विष्णु को अवतार लेना पड़ता है। तुलसीदास जी ने लिखा है-
“राम जन्म के हेतु अनेका, परम विचित्र एक तें एका।।
जब जब होई धरम के हानि, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीड़ा।।
अथार्त जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अभिमानी राक्षस प्रवृति के लोग बढ़ने लगते हैं, तब-तब कृपानिधि भांति-भांति के रूप धारण करके सज्जनों के पीड़ा हरने के लिए अवतार लेते हैं। वे असुरों का विनाश करके धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण और राम के अवतार का मुख्य कारण भी यही था।
अभिमन्यु के असमय वीरगति प्राप्त होने के पीछे भी एक रहस्य था। इसके पीछे एक कहानी है जो पिता के अथाह प्रेम को दर्शाता है। द्वापर युग में जब धरती पर काफी पाप बढ़ गया था। उस वक्त भगवान् विष्णु ने कृष्ण अवतार के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु जब अवतार लेते हैं तब उनकी सहायता के लिए दूसरे कई देवता भी विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में भगवान विष्णु का सहायक बनकर जन्म लेते हैं। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण का अवतार लिया था तब ब्रह्मा जी के आदेश से अन्य देवताओं ने भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। ब्रह्मा जी के आदेश के अनुसार चन्द्रमा के पुत्र वर्चा को भी पृथ्वी पर जन्म लेना था। जब चन्द्रमा ने यह बात सुनी तब पुत्र मोह में आकर उन्होंने अपने पुत्र को धरती पर जन्म लेने से इनकार कर दिया। चन्द्रमा नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र पृथ्वी पर जाकर महाभारत का युद्ध लड़े। परन्तु सभी देवताओं के आग्रह से विवश होकर उन्हें अपने पुत्र को मृत्युलोक में भेजना पड़ा। इसप्रकार चंद्रमा के पुत्र वर्चा को, इंद्र के अंश से पैदा हुए अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के रूप में जन्म लेना पड़ा था। वर्चा को भेजते समय चंद्रमा ने देवताओं से कहा कि मैं अपने प्राणों से प्यारे पुत्र को नहीं भेजना चाहता था परंतु इस काम से पीछे हटना भी उचित नहीं होगा। चन्द्रमा ने कहा, वर्चा मनुष्य तो बनेगा परंतु अधिक दिनों तक वहाँ नहीं रहेगा। वह भगवान इंद्र का अंश नरावतार होगा, जो भगवान श्रीकृष्ण से मित्रता करेगा तथा अर्जुन का ही पुत्र होगा। भगवान कृष्ण के सामने मेरा पुत्र चक्रव्यूह का भेदन करेगा और घमासान युद्ध करते हुए बड़े-बड़े महारथियों को भी चकित कर देगा। परंतु दिनभर युद्ध करने के पश्चात सायं काल में वह मुझसे आकर मिलेगा। यही कारण था कि वीर अभिमन्यु महाभारत का युद्ध करते-करते असमय वीर गति को प्राप्त हो गये और श्री कृष्ण चाहकर भी उन्हें नहीं बचा पाए।
चंद्रमा के इस शर्त के आगे सभी देवता विवश हो गए। चंद्रमा के पुत्र वर्चा ने महारथी अभिमन्यु के रूप में जन्म लिया और वह महाभारत के चक्रव्यूह में अपना पराक्रम दिखाते हुए अल्पायु में ही वीरगति को प्राप्त हो गए।
। जय श्री कृष्ण ।