12वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के मध्य जैन कवियों के द्वारा जो साहित्य अपने धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए जन-भाषा में लिखा गया, उसे रास साहित्य के नाम से जाना जाता है।
रास का अर्थ: जिसमे नृत्य, संगीत, क्रीड़ा, खेल आदि की प्रधानता हो उसे रास कहते है। रास शब्द का उल्लेख सबसे पहले आदिपुराण, जैन पुराण में मिलता है। इसके रचयिता सातवीं शताब्दी के जैन कवि जिनसेन सुरि थे। यह रचना उत्तर भारत में लिखी गई थी। भरतमुनि ने नाटयशास्त्र में ‘रास’ के स्थान पर ‘क्रीडा’ शब्द का प्रयोग किया है।
रास साहित्य के विशेष तथ्य:
- इसका समय 12वीं से 13वीं शताब्दी था।
- रास साहित्य मुख्यतः गुजरात, राजस्थान व दक्षिणी भारत में रचा गया।
- समस्त रास साहित्य जैन पुराण को माना जाता है। इसे आदिपुराण भी कहा जाता है।
रास साहित्य तीन शैलियों में रचित है:
कथात्मक चरित– जैन साधुओं के जीवन के चरित का कार्य-कारण।
उपदेशात्मक आचार – इसमें आचरण के नियम बताएँ गए हैं।
फागु– इसमें नृत्य और संगीत की प्रधानता है।
- इस साहित्य की रचनाओं में नायक मुख्यतः जैन तीर्थंकर हैं।
- रास साहित्य में हिन्दुधर्म की कथनों को तोड़-मरोड़कर, जैन धर्म के अनुरुप बनाकर प्रस्तुत किया गया है।
- जैन साहित्य का मुख्य उद्देश्य धर्म तत्व का निरूपण करना था। यानी अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना।
- रास साहित्य उपदेशात्मक प्रधान है।
- रास साहित्य को आदिकाल का सबसे प्रामाणिक और विश्वसनीय साहित्य माना जाता है क्योंकि इसमें बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन नहीं किया गया है।
- रास साहित्य के विषय में सबसे प्रामाणिक और विस्तृत जानकारी मोतीलाल मेनारिया की रचना ‘राजस्थानी भाषा और साहित्य’ में मिलती है। मेनारिया जी ने 87 कवियों का उल्लेख किया है।
रास साहित्य की प्रमुख रचना एवं रचनाकार:
रचना : भारतेश्वर बाहुबलिरास
रचनाकार: शालिभद्र सूरि
रचनाकाल: 1184 ई०
कथानक: इस रचना में दो सगे भाइयों भरतेश्वर (अयोध्या का शासक) तथा बाहुबली (तक्षशिला का शासक) को पहले युद्धों में लीन तथा बाद में जैनधर्म का दीक्षा लेने के बाद मोक्ष का अधिकारी सिद्ध किया गया है।
- इसमें कूल छंदों की संख्या 205 है (चौपाई और दोहा)
- आचार्य हजारीप्रसाद दिव्वेदी के अनुसार यह खण्डकाव्य है।
- डॉ गणपति चंद्र गुप्त ने ‘शालिभद्र सूरी’ के द्वारा रचित ग्रंथ ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ को हिन्दी का प्रथम रास काव्य (जैन काव्य) माना है।
- मुनिजिन विजय ने ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ को रास परम्परा का प्रथम ग्रंथ माना है।
- इस रचना का प्रमुख रस वीर, श्रृंगार और शांत रस है।
- जैन कवियों ने ‘कृष्णकथा’ को ‘हरिवंश पुराण’ माना है।
- ‘जोइंद’ और ‘रामसिंह’ सिद्धों की तरह ‘सहज’ पर जोर देने वाले प्रमुख जैन कवि है।
रचना– ‘पंचपांडव चरित’ रास है।
रचनाकार: शालिभद्र सूरि
रचनाकाल: 1191 ई०
काव्यरूप : यह महाकाव्य है। इसमें कुल 15 सर्ग है।
यह रास परम्परा का पहला ऐतिहासिक महाकाव्य है।
कथानक: इसमें पांडव को अहिंसावादी दिखाते हुए मोक्ष का अधिकारी सिद्ध किया गया है।
रचना: बुद्धिरास
रचनाकार: शालिभद्र सूरि
रचना काल: 1193 ई०
रचना: चंदनबाला रास
रचनाकार: आगसु
रचनाकाल: 1200 ई० (जालौर में रचित)
- यह खण्डकाव्य है, इसमें 35 छंद है।
- भाषा: अपभ्रंश मिश्रित राजस्थानी और रस ‘करुण रस’ है।
कथानक: इसमें चंपानगरी के राजा दधिवाहन की पुत्री चंदनबाला की करुण कथा चित्रित है। जिसे बचपन में ही डाकू उठाकर ले जाते हैं और उसे एक सेठ के यहाँ बेच देते हैं। सेठ उसे वेश्यावृति में धकेल देता है। बाद में उसे मोक्ष का अधिकारिणी सिद्ध किया गया। जिस समय उसे डाकू उठाकर ले गए थे उस समय उसकी उम्र 7 वर्ष की थी।
रचना: स्थूलिभद्र रास
रचनाकार: जिनिधर्म सूरि, रचनाकाल: 1209 ई०
इस काव्य में तीन पात्र है- वेश्या, स्थूलभद्र और उसके गुरु भाई मुनि।
कथानक: स्थूलीभद्र जो आरम्भ में ब्राहमण था। उसे काशा नाम के वेश्या साथ भोग लिप्त होने पर पतित हुए तथा बाद में जैन धर्म अपनाने के बाद इन्हें जैन धर्म में दीक्षित मोक्ष का अधिकारी सिद्ध किया गया।
रचना: रेवंतगिरि रास
रचनाकार: विजय सेन सूरि
रचनाकाल: 1231ई० (डॉ नगेन्द्र के अनुसार सर्वमान्य है)
यह एक ऐतिहासिक गीत प्रधान रासकाव्य ग्रंथ है जो कड़वकों में विभक्त है।
कथानक: रेवंतगिरि रास में ग्रंथ में तीर्थकर और नेमिनाथ के प्रतिमा और ‘रेवंत गिरि’ तीर्थ का वर्णन है।
रचना: नेमिनाथ रास
रचनाकार: सुमतिगणि / गुणि, 58 छंद है
रचनाकाल: विवादास्पद है लेकिन 1231 ई० माना है।
कथानक: नेमिनाथ और कृष्ण के बीच संवाद दोनों के चरित्र का चित्रण है।
रचनाकार: आगसु
रचनाकार: ‘चन्दनबाला रास’ यह 35 छंदों का काव्य संग्रह है।
इस ग्रन्थ में चंदनबाला के ब्रह्मचर्य, संयम, सतित्वा और उत्कर्ष का चित्रण है।
रास साहित्य से संबंधित अन्य रचनाएँ एवं उनके रचनाकार:
रचना | रचनाकार |
कच्छुलिरास | प्रज्ञा तिलक |
जिनि पदम् सूरि रास | सार मूर्ति |
करकंडचरित रास | कनकामर मुनि |
दर्शनसार | आचार्य देवसेन |
लघुनयचक्र | आचार्य देवसेन |
द्रवस्वभाव प्रकाश | आचार्य देवसेन |
भरतेश्वर बाहुबली रास | आचार्य देवसेन |
आबूरास | वल्हण |
प्रबंध चिंतामणि | अभयतिलक मणि |
हरिचंद पुराण | पद्मनाभ |
कान्हड दे प्रबंध | पद्मनाभ |
भरतेश्वर बाहुबली घोररास | वज्रसेन सुरी |