परिभाषा: आदिकाल में भगवान शिव के उपासक कवियों के द्वारा जनभाषा में जिस साहित्य की रचना की गई उसे नाथ साहित्य के नाम से जाना जाता है। ‘नाथ’ शब्द के ‘ना’ का अर्थ ‘अनादि’ और ‘थ’ का अर्थ ‘भूवनत्रय’ होता है। इस प्रकार नाथ शब्द का अर्थ है- वह अनादि धर्म, जो भूवनत्रय के स्थिति का कारण हो। दूसरे व्याख्या के अनुसार- ‘नाथ’ वह शब्द है जो ‘मोक्ष’ प्रदान करता है।
- डॉ रामकुमार वर्मा ने नाथों के चरमोत्कर्ष का काल 12वीं से 14वीं शताब्दी के मध्य माना है। (यह सर्वमान्य है। अधिकांश विद्वान इनसे सहमत है)
- राहुल सांकृत्यायन ने नाथों को सिद्ध परम्परा का ही विकसित रूप माना है। (यह बिल्कुल सत्य है)
- आचार्य हजारीप्रसाद दिवेवेदी ने नाथपंथ को अवधूत संप्रदाय, अवधूत मत, योग संप्रदाय, सिद्धमार्ग, सिद्धमत आदि कई नामों से संबोधित किया है।
नाथों की संख्या:
- राहुल सांकृत्यायन ने नाथों की ‘नौ’ संख्या माना है।
नागार्जुन, जड़भरत, हरिश्चन्द्र, सत्यनाथ, भीमनाथ, गोरखनाथ, चर्पटनाथ, जालंधरनाथ और मल्यार्जुन (इससे कोई भी विद्वान सहमत नहीं है)
- डॉ रामकुमार वर्मा व आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी ने निम्नलिखित नाथों की संख्या नौ माने हैं।
- आदिनाथ (स्वयं शिव), मस्येंद्रनाथ या मक्षेन्द्रनाथ, गोरखनाथ, गहिणीनाथ, चर्पटनाथ, चौरंगीनाथ, जालंधरनाथ, भर्तृहरिनाथ, और गोपीनाथ।
इन नाथों ने भोग का तिरस्कार, इन्द्रिय सनम, मनः साधना, प्राण साधना, कुण्डलिनी जागरण और योग साधना को अधिक महत्व दिया।
नाथ साहित्य के विशेष तथ्य:
- नारी निंदा सबसे पहले नाथ साहित्य में ही मिलती है।
- नाथ साहित्य में ज्ञान और निष्ठा (गुरु और ईश्वर) पर विशेष बल दिया गया है।
- इसमें पाँचों मनो विकारों की निंदा की गई है।
- गुरु को ईश्वर की तुलना में उच्च स्थान सबसे पहले नाथ साहित्य में ही मिलता है।
- नाथ सम्प्रदाय में साधना प्रणाली पर विशेष बल दिया गया है।
- इस सम्प्रदाय में साधना प्रणाली के समावेश का श्रेय गोरखनाथ को है।
- गृहस्तों के प्रति अनादर का भाव इस साहित्य का सबसे कमज़ोर पक्ष है।
- नाथों की साधना ‘हठयोग’ पर आधारित है। ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ और ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्र’ बतलाया गया है। सूर्य और चंद्र के योगों को हठयोग कहते हैं।
- इसमें सूर्य इड़ा नाड़ीका और चंद्र पिंगला नाड़ी का प्रतीक है।
- इस साधना के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कुण्डलिनी और प्राण शक्ति लेकर पैदा होता है।
- समानतया कुण्डलिनी शक्ति सुषुप्त रहती है।
विद्वानों के महत्वपूर्ण कथन:
- डॉ नगेन्द्र के शब्दों में- “सिद्धों की वाममार्गी भोग प्रधान, योग साधना प्रणाली की प्रतिक्रिया स्वरुप आदिकाल में नाथ पंथियों की हठयोग साधना प्रणाली आरम्भ हुई।”
- राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में- “नाथ साहित्य सिद्धों की परम्परा का ही विकसित रूप है।”
- डॉ रामकुमार वर्मा के शब्दों में- “नाथों के चरमोत्कर्ष का काल 12वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दियों के मध्य रहा है।”
- डॉ रामकुमार वर्मा के शब्दों में- “सम्पूर्ण संत साहित्य नाथ साहित्य पर ही अवलंबित है। नाथों की परम्परा का ही विकसित रूप संत काव्य धारा है।”
- आचार्य चतुरसेनशास्त्री के शब्दों में- “नाथों की भाषा कुछ कर्कश और फक्कड़ी भाषा है, जिसमे सपाट बयानी है।”
नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- गोरखनाथ: गोरखनाथ का समय विवादास्पद है।
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार 845 ई० के लगभग।
- आचार्य हजारी प्रसाद द्वेवेदी के अनुसार 9वीं शताब्दी
- पीताम्बर दत्त वडथ्वाल के अनुसार 11वीं शताब्दी
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल और रामकुमार वर्मा के अनुसार 13वीं शताब्दी (यही सर्वाधिक मान्य है)
गोरखनाथ की प्रमुख रचनाएँ:
डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की खोज में 40 पुस्तकों का पता चला था, जिसे गोरखनाथ- रचित बताया जाता है। डॉ बड़थ्वाल ने बहुत छनबीन के बाद इनमे से 14 ग्रंथों को असंदिग्ध रूप से प्राचीन माना क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ज्ञान चौतिसा’ समय पर नहीं मिलने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नही आ सका परन्तु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाओं को संकलन ‘गोरखवाणी’ के नाम से 1942 ई० में प्रकाशित करवाया गया।
सबदी (यह सबसे प्रामाणिक रचना है), प्राण सांकली, शिष्यादर्शन, नरवै बोध, अभय मात्रायोग, आत्मबोध, पंद्रहतिथि, सप्तवार, मछिन्द्रगोरख बोध, रामावाली, ग्यान तिलक, पंचमात्रा, ग्यान चौतिसा।
गोरखनाथ के विषय में विशेष तथ्य या कथन:
- नाथ पंथ में षट्चक्रों वाला योगमार्ग और हठयोग साधना प्रणाली गोरखनाथ की ही देन है।
- मिश्रबंधुओं ने गोरखनाथ को हिन्दी का प्रथम गद्य लेखक माना है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने गोरखनाथ को पृथ्वीराज के समय का बताया है।
- महाराष्ट्र के संत ज्ञानदेव ने स्वयं को गोरखनाथ के शिष्य परम्परा में माना है।
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार पंजाब के कांगड़ा नामक स्थान का माना है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार गोरखनाथ की भाषा साधुक्कड़ी, पंजाबी मिश्रित खड़ीबोली थी।
- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार- गोरखनाथ ने विभिन्न शैवों सम्प्रदायों को तोड़कर बारहपंथी संप्रदाय स्थापना की।
- शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारत वर्ष में गोरखनाथ के सामान कोई दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी पाये जाते है। भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्ति आंदोलन ही था। “गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।”
- “गोरख जगायो जोग भक्ति भगायो लोग” तुलसीदास जी का यह कथन है।
- यह कहकर योगमार्ग की निंदा तुलसीदास जी ने किया था-
“जाग मछेंदर गोरख आयो”