कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध में दोनों तरफ से करोड़ो योद्धा मारे गए थे। यह संसार का सबसे भीषण युद्ध था। भविष्य में ऐसा युद्ध होने की कोई संभावना नहीं है। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों सहित कुछ विदेशी राज्यों ने भी भाग लिया था। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यों हुआ?
श्री कृष्ण को मालूम था कि जब महाभारत का युद्ध होगा तब सिर्फ सेनाएँ ही नहीं मरेंगी बल्कि उसके साथ-साथ, आस-पास के सभी पशु-पक्षी, जीव-जन्तु भी नष्ट हो जाएँगे। वृंदा वन के कृष्ण कन्हैया जिनका बचपन कुञ्ज गलियों में गुजरा था। जिन्होंने पशु-पक्षी वन-उपवन सबसे अगाध प्रेम किया हो, वे इस प्रकार का विनाश कैसे देख सकते थे? इसलिए उन्होंने इस भयानक युद्ध को टालने की पूरी-पूरी कोशिश किया लेकिन जब शान्ति के सभी प्रयास विफल हो गये तब उन्होंने महायुद्ध के लिए ऐसा स्थान चुनना आरम्भ किया जहाँ सज्जनों को कम से कम हानी पहुँचे। इसप्रकार महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यों हुआ इसपर विद्वानों के कई विचार सामने आते हैं –
भगवान श्रीकृष्ण को डर था कि भाई-भाइयों, गुरु-शिष्यों और सगे-सम्बन्धियों के बीच इस युद्ध में एक दूसरे को मरते-मारते देखकर कहीं ये आपस में संधि न कर बैठें। इसलिए इस युद्ध के लिए ऐसी युद्धभूमि चुनने का फैसला लिया गया जहां क्रोध और द्वेष के संस्कार अधिक से अधिक हों। यह सोचकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने कई दूत अनेकों दिशाओं में भेजे और उन्हें वहाँ की घटनाओं का जायजा लेने को कहा।
एक दूत ने भगवान् श्री कृष्ण को एक घटना सुनाया कि कुरुक्षेत्र में एक बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ टूटने पर बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। छोटे भाई ने साफ इनकार कर दिया। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को पीट-पीट कर मार डाला और उसकी लाश को पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया। जहाँ से पानी निकल रहा था। वहाँ वह मेंड़ पर अपने भाई के लाश को पानी रोकने के लिए लगा दिया। इस कहानी को सुनकर श्रीकृष्ण ने तय किया कि यही भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। जब श्रीकृष्ण अश्वस्त हो गए कि इस भूमि के संस्कार यहाँ पर भाइयों के युद्ध में एक दूसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होने देंगे तब उन्होंने युद्ध कुरूक्षेत्र में करवाने की घोषणा की।
दूसरी कहानी के अनुसार यह कहा जाता है कि जब ‘कुरु’ इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्यलोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।
तसारी कहानी मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार से जुड़ी हुई है। श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता की सेवा पूरी तत्परता से करते थे। उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देते थे। एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की और वे उन्हें कांवर में बिठाकर तीर्थ यात्रा को चल दिए। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आया कि पिता-माता को पैदल क्यों न चलाया जाए? उन्होंने कांवर जमीन पर रखकर उन्हें पैदल चलने को कहा। अंधे माता-पिता पैदल चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा- बेटा इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता के साथ इस तरह का व्यवहार करने पर बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों में गिरकर क्षमा मांगी तथा फिर से दोनों को कांवर में बिठा लिया। उनके अंधे पिता ने कहा- पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। उस भूमि पर किसी समय ‘मय’ नामक एक असुर रहता था। उसने जन्म लेते ही अपने पिता-माता को मार डाला था। उसी के संस्कार इस भूमि में अभी तक बने हुए हैं। इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी थी।
एक और कहानी के अनुसार- कहा जाता है कि एक किसान अपने खेत में हल जोत रहा था। हल जोतते-जोतते दोनों बैल थक गए थे। लेकिन किसान उन बैलों को आराम करने नहीं दिया। वह जोतता ही रहा कुछ समय के बाद एक बैल मर गया। किसान उसके बाद एक ही बैल से अपना खेत जोतने लगा। कुछ समय बाद दूसरा बैल भी मर गया। दोनों बैलों के बाद किसान स्वयं हल चलाने लागा। तब उस किसान की भी मौत हो गई। उधर उस किसान की पत्नी अपने पति के लिए भोजन लेकर जा रही थी। रास्ते में एक व्यक्ति उससे पूछा इतनी चिलचिलाती गर्मी में तुम कहाँ जा रही हो? तब उस औरत ने कहा मैं अपने पति के लिए खाना-पानी लेकर खेत पर जा रही हूँ। वे खेत में हल जोत रहे हैं। तब उस व्यक्ति ने कहा कि वहाँ खेत में दो बैल और एक आदमी मरे पड़े है। यह सुनकर उस स्त्री ने कुछ भी नहीं कहा और बैठकर जो खाना अपने पति के लिए लेकर जा रही थी उसे वह खुद खाने लगी।
कुरुक्षेत्र का महत्व : महाभारत के वनपर्व के अनुसार, कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पाप मुक्त हो जाते हैं। नारद पुराण के अनुसार कुरुक्षेत्र में मरने वालों का पुन: जन्म नहीं होता है। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है क्योंकि यह युद्ध धर्म के लिए अधर्म के विरुद्ध लदा गया था।