‘प्रथम रश्मि’ कविता 1919 में लिखी गई थी। यह कविता ‘वीणा’ (1927ई०) काव्य संग्रह में संग्रहीत है।
प्रथम रश्मि कविता में कवि ने सुबह की प्रथम किरण के साथ प्रकृति में होने वाले स्वाभाविक बदलाव का बड़ा ही सुंदर और मनोहारी चित्र प्रस्तुत किया है। प्रथम रश्मि के आने से पहले जैसे पूरा विश्व स्तब्ध था। जड़ चेतन सब एकाकार थे, एक जैसे थे। विश्व में जैसे शुन्यावाकाश था। इसमें सिर्फ सांसों का आना-जाना था लेकिन अब चेतना जाग गई है। कवि इस परिवर्तन को कौतुहल से देखता है। कवि को आश्चर्य होता है कि चिड़ियों को सूर्य के आने का पता कैसे चल जाता है। कवि जिज्ञासु बनकर उनसे प्रश्न करता है?
प्रथम रश्मि (कविता)
प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने वह गाना?
सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।
शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।
स्नेह-हीन तारों के दीपक,
श्वास-शून्य थे तरु के पात,
विचर रहे थे स्वप्न अवनि में
तम ने था मंडप ताना।
कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!
गा तू स्वागत का गाना,
किसने तुझको अंतर्यामिनि!
बतलाया उसका आना!
nothing could be understood. where is the meaning of this hole poem,sir?
LikeLike