(26 मार्च 1907-11 सितंबर 1987)
- महादेवी वर्मा का जन्म: 24 मार्च 1907 को होली के दिन फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश।
- पिता का नाम: श्री गोविंद प्रसाद वर्मा और माता का नाम हेमरानी वर्मा था।
- पति का नाम: रूपनारायण वर्मा।
- निधन: 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद में ।
- महादेवी वर्मा के नाना ब्रजभाषा के कवि थे।
- महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छायावाद युग के जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं।
महादेवी वर्मा के उपनाम:
- महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ के नाम से पुकारा जाता है।
- कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि” कहा है।
- उन्हें ‘छायावाद की शक्ति (दुर्गा), ‘वेदन की कवयित्री’, ‘रहस्यवादी कवयित्री’, के नाम से भी जाना जाता है।
- इनकी पहली कविता ‘दीया’ थी, जिसे उन्होंने 1918 ई० में लिखी थी। सात वर्ष की अवस्था में इन्होंने एक ‘सवैया’ भी लिखा था।
महादेवी वर्मा अपनी काव्य रचना व्रजभाषा में करती थी। बाद में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रेरणा से इन्होंने खड़ीबोली में लिखना आरम्भ किया।
महादेवी वर्मा की काव्य रचनाएँ:
काव्य संग्रह: निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा।
- ‘निहार’ काव्य संकलन (1930 ई०) इसमें 1924 से 1928 ई० तक की 47 कविताएँ संकलित है। इस काव्य संकलन की भूमिका ‘हरिऔंध’ ने लिखी थी। इनकी अधिकतर कविताएँ प्रेम व अध्यात्मिक विषयों में संकलित हैं।
- ‘रश्मि’ काव्य संकलन (1932 ई०) इसमें 1928 ई० से 1931 ई० तक की 35 कविताएँ संकलित है।
- ‘नीरजा’ काव्य संकलन (1935 ई०)। यह 1932 ई० से 1934 ई० तक की रचित 58 गीतों का संकलन है। इसमें वेदना के गीत हैं। इसी रचना के कारण इन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ कहा जाता है। इस रचना के लिए उन्हें 1936 में ‘सेकसरिया’ पुरस्कार 500 रुपया मिला था।
- ‘सांध्यगीत’ काव्य संकलन (1936 ई०)। इसमें 1934 ई० से 1936 ई० तक के 45 गीत संकलित हैं। निहार, रश्मि, नीरजा, और सांध्यगीत कविताओं का संकलन कर 1940 ई० में ‘यामा’ के नाम से प्रकाशित करवाया गया था। जिसमे कूल 185 कविताएँ थी। इस रचना के लिए उन्हें 1982 ई० में ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- ‘दीपशिखा’ का प्रकाशन वर्ष (1942 ई०) है। यह 1936 से 1942 तक की रचित 51 गीतों का संकलन है।
अन्य काव्य संकलन:
बंग दर्शन– 1943 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसमें बंगाल के अकाल के समय में विभिन्न कवियों के द्वारा रचित कविताओं का संकलन है। इसमें कूल 23 कविताएँ है। (इसे महादेवी वर्मा के काव्य संकलन में शामिल नहीं किया जा सकता है। इसमें सिर्फ महादेवी वर्मा की एक कविता है।)
आधुनिक कवि महादेवी– 1940 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसमें महादेवी वर्मा के 74 कविताओं का संकलन है। (निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत) इनके शिष्यों के द्वारा प्रकाशित करवाया गया था। इसके लिए उन्हें 1944 ई० में उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक एवं भारत – भारती पुरस्कार मिला था।
हिमालय- 1963 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसमें चीनी आक्रमण के बाद विभन्न कवियों के द्वारा रचित राष्ट्रीय भावना की 21 कविताओं का संकलित किया गया है। इसमें 2 कविताएँ महादेवी वर्मा की हैं और 19 कविताएँ अन्य 7 कवियों की हैं।
सप्तपर्णा- 1960 ई० में प्रकाशित हुआ था (यह उनकी मौलिक रचना नहीं है)। यह ऋग्वेद और संस्कृत के गीतों का संकलन है। इसमें 32 गीत हैं।
संधिनी- (1995 ई०) में प्रकाशित हुआ था। इसमें महादेवी वर्मा की चूनी हुई 65 कविताओं को संकलित किया गया है। इसे नागरी प्रचारिणी सभा के द्वारा प्रकाशित करवाया गया था।
टिप्पणी: महादेवी वर्मा जी के द्वारा कूल 236 गीत और कविताएँ लिखी गई थी। महादेवी वर्मा जी ने अपने काव्यांगों का जो नामकरण किया है उसमे क्रमबद्धता और भावों की दृष्टि अत्यंत उपयुक्त है।
गद्य साहित्य:
अतीत के चलचित्र: 1940 ई० में प्रकाशित हुआ था। यह संस्मरणात्मक रेखाचित है। इसमें कूल 11 संस्मरण हैं। मुख्य संस्मरण हैं – घीसा, रामा, बिट्टो, साबिया, आलोपीदीन/आलोपी आदि।
स्मृति की रेखाएँ: 1943 ई० में प्रकाशित हुआ था। यह भी संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें कूल 7 संस्मरण है। (इसमें सबसे महत्वपूर्ण ‘भक्तिन’ है)
मेरा परिवार: इसका प्रकाशन 1972 ई० में हुआ था। इसमें पशु-पंक्षियों पर 7 संस्मरण हैं। इसमें महत्वपूर्ण है- गिल्लू, गौरा, निक्की, रोजी और रानी।
पथ के साथी: इसका प्रकाशन वर्ष 1956 ई० है। इसमें समकालीन 11 साहित्यकारों का परिचय है। दद्दा (मैथिलीशरण गुप्त), निराला भाई (निराला), पुण्य संस्मरण (महात्मा गांधी), राजर्षि संत (पुरुषोत्तमदास टंडन), प्रेमचंद, सियारामशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, प्रणाम (रविन्द्रनाथ टैगोर), राजेन्द्रबाबू (राजेंद्र प्रकाश), जवाहर भाई (नेहरू), सुमित्रानंदन पंत।
स्मृतिचित्र: 1973 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसमें समकालीन व्यक्तियों के परिचय से संबंधित 22 संस्मरण हैं।
श्रृंखला की कड़ियाँ : इसका प्रकाशन 1942 ई० में हुआ था। यह निबंध संकलन है। इसमें कूल 37 निबंध है। इसमें महत्वपूर्ण निबंध- नारीत्व का अभिशाप, आधुनिक नारी, नारी और पुरुष आदि। यह सामाजिक निबंध है।
क्षणदा: इसका प्रकाशन 1956 ई० में हुआ था। यह दार्शनिक विषयों से सम्बंधित है। इसमें कूल 12 निबंध है।
साहित्यकार और आस्था: 1962 ई० में प्रकाशित हुआ था। यह एक निबंध है।
अन्य निबंध 1963 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसमें 06 निबंध है।
अग्निरेखा– 1990 ई० में प्रकाशित हुआ था। यह 27 कविताओं का संग्रह है।
आयाम: 1994 ई० में प्रकाशित हुआ था। यह ब्रजभाषा और खड़ीबोली की चूनी हुई कविताओं का संकलन है।
विशेष तथ्य: महादेवी वर्मा 1932 ई० में प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य रही। 1944 ई० में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना किया था। इन्होंने ‘रंगवाणी’ नाट्य संस्था की स्थापना 1946 ई० में किया था।
संपादित पत्रिकाएँ: चाँद (साप्ताहिक 1932-1936), साहित्यकार (मासिक 1937), महिला (पाक्षिक 1928-1987), विश्ववाणी (साप्ताहिक 1963 युद्ध से सम्बंधित पत्रिका था)।
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! (कविता)
(यह कविता महादेवी वर्मा के ‘नीरजा’ काव्य संग्रह में संकलित है।)
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!
नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में,
कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ !
नयन में जिसके जलद वह तुषित चातक हूँ,
शलभ जिसके प्राण में वह ठिठुर दीपक हूँ,
फूल को उर में छिपाये विकल बुलबुल हूँ,
एक हो कर दूर तन से छाँह वह चल हूँ;
दूर तुमसे हूँ अखण्ड सुहागिनी भी हूँ !
आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के,
शून्य हूँ जिसको बिछे हैं पाँवड़े पल के,
पुलक हूँ वह जो पला है कठिन प्रस्तर में,
हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में;
नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ !
नाश भी हूँ मैं अनन्त विकास का क्रम भी,
त्याग का दिन भी चरम आसक्ति का तम भी
तार भी आघात भी झंकार की गति भी
पात्र भी मधु भी मधुप भी मधुर विस्मृत भी हूँ;
अधर भी हूँ और स्मित की चाँदनी भी हूँ !
मैं नीर भरी दुख की बदली ! (कविता)
(इस कविता का संकलन ‘सांध्यगीत’ काव्य संग्रह में किया गया है।)
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली !
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली !
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली !
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
फिर विकल है प्राण मेरे ! (कविता)
(इस कविता का संकलन ‘सांध्यगीत’ काव्य संग्रह में किया गया है।)
फिर विकल हैं प्राण मेरे!
तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है!
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?
क्यों मुझे प्राचीर बन कर
आज मेरे श्वास घेरे?
सिन्धु की नि:सीमता पर लघु लहर का लास कैसा?
दीप लघु शिर पर धरे आलोक का आकाश कैसा!
दे रही मेरी चिरन्तनता
क्षणों के साथ फेरे!
बिम्बग्राहकता कणों को शलभ को चिर साधना दी,
पुलक से नभ भर धरा को कल्पनामय वेदना दी;
मत कहो हे विश्व! ‘झूठे
हैं अतुल वरदान तेरे’!
नभ डुबा पाया न अपनी बाढ़ में भी छुद्र तारे,
ढूँढने करुणा मृदुल घन चीर कर तूफान हारे;
अन्त के तम में बुझे क्यों
आदि के अरमान मेरे!
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो ! (कविता)
(इस कविता का संकलन ‘दीपशिखा’ काव्य संग्रह में किया गया है।)
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो !
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो !
चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो !
पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो !
झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी
आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,
जब तक लौटे दिन की हलचल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो !
द्रुत झरों जगत के जीर्ण पत्र (कविता) – सुमित्रानंदन पंत
: (इकाई-5)
- सुमित्रानंदन पंत का जन्म- 20 मई 1900 ई० को कौशाम्बी ग्राम में हुआ था।
- पिता का नाम गंगा दत्त और माता का नाम सरस्वती देवी था।
- निधन- 28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद में हुआ था।
सुमुत्रानंदन पंत के उपनाम: इनका बचपन का नाम गोसाईदत्त था।
- छायावाद का विष्णु
- निराला ने इन्हें- प्रकृति का सुकुमार कवि कहा है।
- रावणार्यजन, हिन्दी का वर्डस वर्थ, इन्हें संवेदनशील इन्द्रिय बोध का कवि भी कहा जाता है।
- इनकी पहली कविता- ‘गिरजे का घंटा’ 1916 ई० में लिखा था।
सुमित्रानंदन की काव्य रचनाएँ:
- पंत की काव्ययात्रा को चार सोपानों में विभक्त किया जा सकता है:
छायावादी रचनाएँ, प्रगतिवादी रचनाएँ, अरविन्द दर्शन से प्रभावित रचनाएँ और अध्यात्मिक, मानवतावादी, नवमानवतावादी रचनाएँ।
- छायावादी रचनाएँ: उच्छ्वास (1929 ई०), ग्रंथि (1920 ई०), वीणा (1927 ई० ), पल्लव (1928 ई०), गुंजन (1932 ई०)
- प्रगतिवादी रचनाएँ: युगांत (1936 ई०), युगवाणी (1939 ई०), ग्राम्य (1940ई०)
- अरविंद दर्शन से प्रभावित या अन्तश्चेतनावादी रचनाएँ: स्वर्ण किरण (1947 ई०) स्वर्ण धूलि (1947 ई०), युगांतर (1948 ई०), युगपथ (1948 ई०)
- अध्यात्मिक, मानवतावादी, नवमानवतावादी रचनाएँ: रजत शिखर (1951 ई०), अतिमा (1955 ई०) वाप्पी (1957, कला और बूढ़ा चाँद (1959 ई०), चिदंबरा (1959 ई०), लोकायतन (1964 ई०).
नाट्य रचनाएँ: ज्योत्स्ना (1934 ई०), युगपुरुष (1955 ई०) छाया (1968 ई०)
कहानी संग्रह: पाँच कहानियाँ 1936 ई०
आत्मकथा: साठ वर्ष एक रेखांकन 1960 ई०
निबंध संग्रह: गद्य पथ, छायावाद पुनर्मूल्यांकन, शिल्प और दर्शन, कला और संस्कृति,
साठ वर्ष और अन्य निबंध।
अन्य रचनाएँ:
- मधु ज्वाल (1947 ई०) के नाम से विदेशी कहानियों और उमर खय्याम की रचनाओं का अनुवाद किया था।
- 1938 ई० में ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका का संपादन किया था।
- 1948 ई० में हरिवंशराय बच्चन के साथ मिलकर ‘खादी के फूल’ नामक रचना लिखा जिसमे रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, राम आदि पर आधारित कविताएँ लिखा।
- 1968 ई० में ‘चिदंबरा’ के लिए ज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चिदंबरा में कूल 196 कविताएँ है। चिदंबरा में ‘अतिमा’ लंबी कविता है।
- ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए भी 1960 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- ‘कला और बूढ़ा चाँद’ को ‘रश्मिपदी’ काव्य भी कहा जाता है।
- ‘लोकायतन’ महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित महाकाव्य है। इसमें सात सर्ग हैं। जिन्हें ‘द्वार’ कहा गया है।
इसके दो भाग हैं- बाह्य परिवेश (1961 ई०) इसमें कूल तीन सर्ग हैं। इसमें गांधी द्वारा विलायत में विषयवासनाओं में डूबने का चित्रण हैं।
- ‘अन्तश्चेतना’ (1964 ई०) इसमें कूल 4 सर्ग हैं। इसमें गाँधीजी के हृदय परिवर्तन का चित्रण है। इस रचना के लिए उन्हें (1966 ई०) ‘सोवियत लैंड नेहरू’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- 1961 ई० में इन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था।
- 1950 ई० से 1967 ई० तक ऑलइण्डिया रेडियो से जुड़े रहे।
- ‘गुंजन’ को छायावाद और प्रगतिवाद का ‘संधि स्थल’ कहा जाता है।
- ‘युगवाणी’ रचना में पंत ने प्रगतिवाद को अपने युग की वीणा कहा है।
- पंत द्वारा रचित ‘पल्लव’ की भूमिका को छायावाद मेनिफेस्टो (घोषणापत्र) कहा जाता है।
- ‘पल्लव’ को प्रकृति का चित्रशाला भी कहा जाता है।
- ‘युगांत’ (1936) को छायावाद की मृत्यु का घोषणा पत्र कहा जाता है।
- पंत ने निराला के मुक्तक छंद को आरम्भ में रबड़ या केंचुआ छंद कहा है किन्तु निराला के बाद मुक्त छंद में रचना करने वाले दूसरे कवि पंत ही थे।
- पंत का प्रिय छंद ‘रोला’ था।
- हिन्दी में ‘मूर्त’ के लिए ‘अमूर्त’ उपमानों का प्रयोग सबसे पहले पंत ने ही किया था।
- ‘पल्लव’ कविता प्रकृति प्रेम और रहस्यवादिता से संबंधित कविता है।
- ‘गुंजन’ कविता में प्रकृति से मोह ख़त्म होता हुआ दिखाई देता है। इसमें शोषित वर्ग के प्रति संवेदना का भाव है।
- ‘गुंजन’ पंत की अंतिम छायावादी काव्यग्रंथ माना जाता है।
- ‘ग्राम्य’ कविता में प्रगतिवादी रचनाएँ हैं। इसमें किसानों और मजदूरों से संबंधित रचनाएँ हैं। इसमें मुख्य कविताएँ हैं – चरखा, वे आँखें इत्यादि।
- पंत ने अपनी भाषा को ‘चित्रभाषा’ कहा है। अनुप्रास इनका प्रिय अलंकार है।
- आचार्य रामचंद्र के शब्दों में- “युगवाणी में प्रतिवाद का सैद्धांतिक रूप है तो ग्राम्य में उसका प्रायोगिक रूप दिखाई देता है।”
- पंत बचपन में जिस घर में रहते थे, उस घर को “सुमित्रानंदन पंत वीथिका” के नाम से संग्रहालय बना दिया गया है।
द्रुत झरों जगत के जीर्ण पत्र (कविता) – सुमित्रानंदन पंत
- इस कविता का रचनाकाल 1934 है।
- इस कविता का संकलन (युगांत काव्य संग्रह 1935) और (पल्लवनि काव्य संगह-1940)
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!
हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,
तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन !!
निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग!
जग-नीड़, शब्द औ’ श्वास-हीन,
च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों-से तुम
झर-झर अनन्त में हो विलीन !
कंकाल-जाल जग में फैले
फिर नवल रुधिर,-पल्लव-लाली!
प्राणों की मर्मर से मुखरित
जीव की मांसल हरियाली !
मंजरित विश्व में यौवन के
जग कर जग का पिक, मतवाली
निज अमर प्रणय-स्वर मदिरा से
भर दे फिर नव-युग की प्याली !