द्रुत झरों जगत के जीर्ण पत्र (कविता) – सुमित्रानंदन पंत : (इकाई-5)

(जन्म- 20 मई 1900 ई० – निधन 28 दिसंबर 1977)

  • सुमित्रानंदन पंत का जन्म- 20 मई 1900 ई० को कौशाम्बी ग्राम में हुआ था।
  • पिता का नाम गंगा दत्त और माता का नाम सरस्वती देवी था।   
  • निधन- 28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद में हुआ था।

सुमुत्रानंदन पंत के उपनाम: इनका बचपन का नाम गोसाईदत्त था।

  • छायावाद का विष्णु
  • निराला ने इन्हें- प्रकृति का सुकुमार कवि कहा है।
  • रावणार्यजन, हिन्दी का वर्डस वर्थ,  इन्हें संवेदनशील इन्द्रिय बोध का कवि भी कहा जाता है।
  • इनकी पहली कविता- ‘गिरजे का घंटा’ 1916 ई० में लिखा था।

सुमित्रानंदन की काव्य रचनाएँ:

  • पंत की काव्ययात्रा को चार सोपानों में विभक्त किया जा सकता है:

छायावादी रचनाएँ, प्रगतिवादी रचनाएँ, अरविन्द दर्शन से प्रभावित रचनाएँ और अध्यात्मिक, मानवतावादी, नवमानवतावादी रचनाएँ।

  • छायावादी रचनाएँ: उच्छ्वास (1929 ई०), ग्रंथि (1920 ई०), वीणा (1927 ई० ), पल्लव (1928 ई०), गुंजन (1932 ई०)
  • प्रगतिवादी रचनाएँ: युगांत (1936 ई०), युगवाणी (1939 ई०), ग्राम्य (1940ई०)
  • अरविंद दर्शन से प्रभावित या अन्तश्चेतनावादी रचनाएँ: स्वर्ण किरण (1947 ई०) स्वर्ण धूलि (1947 ई०), युगांतर (1948 ई०), युगपथ (1948 ई०)  
  • अध्यात्मिक, मानवतावादी, नवमानवतावादी रचनाएँ: रजत शिखर (1951 ई०), अतिमा (1955 ई०) वाप्पी (1957, कला और बूढ़ा चाँद (1959 ई०), चिदंबरा (1959 ई०), लोकायतन (1964 ई०).

नाट्य रचनाएँ: ज्योत्स्ना (1934 ई०), युगपुरुष (1955 ई०)  छाया (1968 ई०)

कहानी संग्रह: पाँच कहानियाँ 1936 ई०

आत्मकथा: साठ वर्ष एक रेखांकन 1960 ई०

निबंध संग्रह: गद्य पथ, छायावाद पुनर्मूल्यांकन, शिल्प और दर्शन, कला और संस्कृति,

साठ वर्ष और अन्य निबंध।

अन्य रचनाएँ:

  • मधु ज्वाल (1947 ई०) के नाम से विदेशी कहानियों और उमर खय्याम की रचनाओं का अनुवाद किया था।
  • 1938 ई० में ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका का संपादन किया था।
  • 1948 ई० में हरिवंशराय बच्चन के साथ मिलकर ‘खादी के फूल’ नामक रचना लिखा जिसमे रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, राम आदि पर आधारित कविताएँ लिखा।
  • 1968 ई० में ‘चिदंबरा’ के लिए ज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चिदंबरा में कूल 196 कविताएँ है। चिदंबरा में ‘अतिमा’ लंबी कविता है।
  • ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए भी 1960 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित   किया गया था।
  • ‘कला और बूढ़ा चाँद’ को ‘रश्मिपदी’ काव्य भी कहा जाता है।
  • ‘लोकायतन’ महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित महाकाव्य है। इसमें सात सर्ग हैं। जिन्हें ‘द्वार’ कहा गया है।

इसके दो भाग हैं- बाह्य परिवेश (1961 ई०) इसमें कूल तीन सर्ग हैं। इसमें गांधी द्वारा विलायत में विषयवासनाओं में डूबने का चित्रण हैं।

  • ‘अन्तश्चेतना’ (1964 ई०) इसमें कूल 4 सर्ग हैं। इसमें गाँधीजी के हृदय परिवर्तन का चित्रण है। इस रचना के लिए उन्हें (1966 ई०) ‘सोवियत लैंड नेहरू’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • 1961 ई० में इन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था।
  • 1950 ई० से 1967 ई० तक ऑलइण्डिया रेडियो से जुड़े रहे।
  • ‘गुंजन’ को छायावाद और प्रगतिवाद का ‘संधि स्थल’ कहा जाता है।
  • ‘युगवाणी’ रचना में पंत ने प्रगतिवाद को अपने युग की वीणा कहा है।
  • पंत द्वारा रचित ‘पल्लव’ की भूमिका को छायावाद मेनिफेस्टो (घोषणापत्र) कहा जाता है।
  • ‘पल्लव’ को प्रकृति का चित्रशाला भी कहा जाता है।
  • ‘युगांत’ (1936) को छायावाद की मृत्यु का घोषणा पत्र कहा जाता है।
  • पंत ने निराला के मुक्तक छंद को आरम्भ में रबड़ या केंचुआ छंद कहा है किन्तु निराला के बाद मुक्त छंद में रचना करने वाले दूसरे कवि पंत ही थे।
  • पंत का प्रिय छंद ‘रोला’ था।
  • हिन्दी में ‘मूर्त’ के लिए ‘अमूर्त’ उपमानों का प्रयोग सबसे पहले पंत ने ही किया था।
  • ‘पल्लव’ कविता प्रकृति प्रेम और रहस्यवादिता से संबंधित कविता है।
  • ‘गुंजन’ कविता में प्रकृति से मोह ख़त्म होता हुआ दिखाई देता है। इसमें शोषित वर्ग के प्रति संवेदना का भाव है।
  • ‘गुंजन’ पंत की अंतिम छायावादी काव्यग्रंथ माना जाता है।
  • ‘ग्राम्य’ कविता में प्रगतिवादी रचनाएँ हैं। इसमें किसानों और मजदूरों से संबंधित रचनाएँ हैं। इसमें मुख्य कविताएँ हैं – चरखा, वे आँखें इत्यादि।
  • पंत ने अपनी भाषा को ‘चित्रभाषा’ कहा है। अनुप्रास इनका प्रिय अलंकार है।
  • आचार्य रामचंद्र के शब्दों में- “युगवाणी में प्रतिवाद का सैद्धांतिक रूप है तो ग्राम्य में उसका प्रायोगिक रूप दिखाई देता है।”
  • पंत बचपन में जिस घर में रहते थे, उस घर को “सुमित्रानंदन पंत वीथिका” के नाम से संग्रहालय बना दिया गया है।

द्रुत झरों जगत के जीर्ण पत्र (कविता) – सुमित्रानंदन पंत  

  • इस कविता का रचनाकाल 1934 है।
  • इस कविता का संकलन (युगांत काव्य संग्रह 1935) और (पल्लवनि काव्य संगह-1940)

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!
हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,
तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन !!


निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग!
जग-नीड़, शब्द औ’ श्वास-हीन,
च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों-से तुम
झर-झर अनन्त में हो विलीन !


कंकाल-जाल जग में फैले
फिर नवल रुधिर,-पल्लव-लाली!
प्राणों की मर्मर से मुखरित
जीव की मांसल हरियाली !


मंजरित विश्व में यौवन के
जग कर जग का पिक, मतवाली
निज अमर प्रणय-स्वर मदिरा से
भर दे फिर नव-युग की प्याली !

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