विश्व धर्मसभा शिकागो में अंग्रेज विवेकानंदजी का मजाक उड़ाते थे। उन्ही में से एक पत्रकार ने विवेकानंदजी का मजाक उड़ाने के दृष्टिकोण से प्रश्न किया था।
पत्रकार सामने वाले व्यक्ति (सन्यासी) से : सर ! आपने अपने अंतिम लेक्चर में ‘संपर्क’ (contact) और ‘जुडाव’ (connection) पर एक स्पीच दिया था लेकिन यह बहुत ही कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इनका अंतर हमें समझा सकते हैं?
सन्यासी (मुस्कराते हुए) पत्रकार से : क्या आप न्यूयार्क से हैं?
पत्रकार : yes (हाँ)।
सन्यासी: आपके घर में कौन-कौन हैं?
पत्रकार को लगा कि सन्यासी उसके सवाल को टालने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उसका सवाल व्यक्तिगत और अलग था। फिर भी,
पत्रकार (सन्यासी के सवाल का जबाब देते हुए बोला) : “माँ अब नहीं रही, पिताजी, तीन भाई और एक बहन हैं। सभी शादी शुदा हैं।”
सन्यासी (मुस्कराते हुए) : आप अपने पिता से बातें करते हो?
सन्यासी की बात सुनकर पत्रकार के चहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा…
सन्यासी (फिर पूछा) : “आपने अपने फादर से last कब बात की थी?”
पत्रकार (अपना गुस्सा दबाते हुए) : “शायद एक महीना पहले।”
सन्यासी : “क्या आप अपने भाई-बहन से अक्सर मिलते रहते हैं?
आप अपने सब परिवार के साथ कब मिले? परिवार की तरह।”
सन्यासी के इस प्रश्न से, पत्रकार के माथे से पसीना निकलने लगा। वह सोंचने लगा, इंटरव्यू मैं ले हरा हूँ या सन्यासी? ऐसा लगा जैसे सन्यासी, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहे हों?
पत्रकार (आह भरते हुए) : “क्रिसमस में, दो साल पहले।”
सन्यासी : “उस समय आप सब कितने दिनों तक एक साथ रहे थे?”
पत्रकार (अपनी आँसुओं को पोंछते हुए) : बस तीन दिन…!”
सन्यासी : आप सभी भाई-बहन अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठकर कितना समय रहे?
पत्रकार (हैरान और शर्मिंदा होकर) एक कागज पर कुछ लिखने लगा…।
सन्यासी : आपने पिता के साथ नाश्ता, लंच या डिनर किया? क्या अपने पिता से पूछा कि वे कैसे है? माता की मृत्यु के बाद उनका समय कैसे गुजर रहा है…!
सन्यासी (पत्रकार का हाथ पकड़कर) : “शर्मिंदा या दुखी नहीं होना। मुझे खेद है, अगर मैने अनजाने में आपको चोट पहुँचाई हो, लेकिन यही आपके सवाल का जबाब है। “सम्पर्क और जुड़ाव” (contact and connection)। आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (contact) में हैं, पर आपका उनसे कोई जुड़ाव (connection) नहीं है। you are not connected to him. आप अपने पिता से संपर्क में हैं जुड़े नहीं है। connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है। heart to heart. एक साथ बैठना, भोजन करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना आदि। आप अपने पिता, भाई-बहनों के संपर्क (contact) में है लेकिन आपका, आपस में कोई जुड़ाव (connection) नहीं है।
पत्रकार (अपनी आँखें पोंछते हुए) : “मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।”
आज भारत में भारतीयों की भी यही सच्चाई है। सब लोगों के हजारों संपर्क (contact) तो है, पर कोई जुड़ाव (connection) नहीं है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी नकली दुनियाँ में खोया हुआ है।
वे सन्यासी कोई और नहीं “स्वामी विवेकानंद” थे। वर्तमान समय में चाहे परिवार हो या समाज सभी से हमारा संपर्क तो है लेकिन जुड़ाव नहीं है। यहाँ तक कि एक ही परिवार में रहने के बाद भी परिवार के लोगों में कॉन्टेक्ट है पर कनेक्सन नहीं है। अपने रिश्तों को बचाने के लिए कॉन्टेक्ट के साथ कनेक्सन का होना भी अति आवश्यक है।