जिस तरह मेवाड़ राज्य की स्वामिभक्त पन्ना धाय अपने दूध पिते पुत्र का बलिदान देकर चितौड़ के राजकुमार की हत्या होने से बचा लिया था। ठीक उसी तरह राजस्थान के मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के नवजात राजकुमार अजीतसिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए मारवाड़ राज्य के बलुन्दा की रहने वाली रानी बाघेली ने अपनी नवजात दूध पीती राजकुमारी का बलिदान देकर, राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की थी। औरंगजेब के आतंक के बावजूद रानी बघेली ने राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन किया।
रानी बाघेली के इस त्याग, बलिदान और जोधपर राज्य के उत्तराधिकारी की रक्षा करने का इतिहासकारों ने अपनी कृतियों में वह स्थान नहीं दिया जो स्थान पन्ना धाय को दिया। यही कारण है कि रानी के इस अदम्य त्याग और बलिदान से देश का आम जन अनभिज्ञ है |
28 नवम्बर 1678 को अफगानिस्तान के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था। उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी। इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया। इन दोनों गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से लाहौर ले आया गया, जहाँ इन दोनों रानियों ने 19 फरवरी 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया। बड़े राजकुमार का नाम अजीतसिंह और छोटे राजकुमार का नाम दलथंभन रखा गया। इन दोनों नवजात राजकुमारों व रानियों को लेकर जोधपुर के सरदार अपने दलबल के साथ अप्रैल 1679 में लाहौर से दिल्ली पहुंचे। तब तक औरंगजेब ने कूटनीति से पूरे मारवाड़ राज्य पर कब्ज़ा कर लिया था और जगह-जगह पर मुग़ल चौकियाँ स्थापित कर दिया था। वह राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर राज्य का उतराधिकारी के तौर पर मान्यता देने में आनाकानी करने लगा।
तब जोधपुर के सरदार दुर्गादास राठौड़, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास आदि ने औरंगजेब के षड्यंत्र को भांप लिया। उन्होंने शिशु राजकुमार को जल्द से जल्द दिल्ली से बाहर निकालकर मारवाड़ पहुँचाने का निर्णय लिया पर औरंगजेब ने उनके चारों और कड़े पहरे बैठा दिया थे। ऐसी परिस्थितियों में शिशु राजकुमार को दिल्ली से बाहर निकालना बहुत दुरूह कार्य था। उसी समय बलुन्दा के मोहकम सिंह की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थी। वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थी। उसने राजकुमार अजीत सिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया। राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई। यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी, दुर्गादास, ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंददास, कु. हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी। इतना ही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इस बात का भनक नहीं लगने दिया कि वह राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन कर रही है।
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती, नहलाती और कपड़े बदलती रही ताकि किसी को इस बात का पता नहीं चले। परन्तु एक दिन राजकुमार को कपड़ा बदलते हुए एक दासी ने देख लिया। उस दासी ने यह बात दूसरी रानियों को बता दिया। अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित नहीं था। यह जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना किया। वह खिंची मुकंददास तथा कु. हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित जयदेव नामक पुष्करणा ब्रह्मण के घर ले आई और राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंप दिया। वही उसकी (जयदेव) की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया। यही राजकुमार अजीतसिंह बड़े होकर जोधपुर का महाराजा बने। इस तरह रानी बाघेली ने अपनी कोख को सुना कर दिया। राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदलकर जोधपुर राज्य के उतराधिकारी को सुरक्षित बचा कर वही भूमिका अदा किया जो पन्ना धाय ने मेवाड़ राज्य के उतराधिकारी उदयसिंह को बचाने में किया था। बलुन्दा की रहने वाली रानी बाघेली ने वक्त की नजाकत को देखकर अपनी पुत्री का बलिदान कर दिया और राजकुमार अजीतसिंह को औरंगजेब के चुंगल से बचाकर मारवाड़ के भविष्य को बचा लिया।