‘कदम’ का नाम आते ही सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘कदम का पेड़’ की याद आ जाती है। उन्होंने इस कविता में बालक के मन की इच्छा को चित्रित किया है। जो कन्हैया बनकर कदंम के पेड़ पर खेलना चाहता है। बालक माँ से कहता है-
“यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।
ले देती यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली,
किसी तरह नीचे हो जाती यह कदम की डाली।”
कन्हैया को बचपन से ही कदम के पेड़ से कितना लगाव था। इसका अनेक वर्णन मिलता है। व्रज की कुंज गालियों में अठखेलियाँ करने वाला कन्हैया कभी कदम के सघन छाँव में बैठकर बाँसुरी की तान छेड़ते है तो कभी कदम के वृक्ष के ऊपर से कालिया नाग पर छलांग लगा देता है। बाल गोपाल के साथ कदम के पेड़ के नीचे बैठकर खेलने वाले, द्वापरयुग में कृष्ण का यह प्रिये कदम वृक्ष आज दिखाई नहीं देता है।
‘भीनमाल’ के कवि ‘माघ’ ने अपने काव्य में कदम का वर्णन किया है। इसके अलावा बाणभट्ट के प्रसिद्ध काव्य ‘कादम्बरी’ की नायिका ‘कादम्बरी’ का नाम कदम के वृक्ष के आधार पर है। भारवि, माघ और भवभूति ने भी अपने काव्य में कदम का विशिष्ट वर्णन किया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने भी अपने शोध में कदम के वृक्ष का उल्लेख किया है। कवि रसखान कन्हैया से प्रार्थना करते हुए कहते है कि वे मरने के बाद अगर पंक्षी बने तो, यमुना के तट पर कदंम के पेड़ों पर रहने वाले पंक्षियों के साथ रहना चाहते हैं।
“…..जो खग हौं तो बसेरो करो मिली कालिंदी कूल कदंब की डारन”
भारत के लगभग अधिकतर भागों में पाया जाने वाला यह कदम सदाबहार और फूलदार पेड़ है। कदम का पेड़ काफी बड़ा होता है। इसके पत्ते बड़े और मोटे होते हैं। जिससे गोंद निकाला जाता है। कदम के पत्ते महुए के पत्ते की तरह और फल छोटे वाले गेंद के आकर का गोल लगभग 55 सेंमी व्यास का होता है, जिसमे अनेक उभयलिंगी पुंकेसर ‘कोमल शर’ (तीर) की तरह बाहर की ओर निकले हुए होते है। कदम के फूल, फलों के उपर होता है। इसके फूल सुगंधित होते है। जिसका प्रयोग इत्र बनाने के लिए किया जाता है। कदम का वनस्पतिक नाम ‘एन्थोसिफेलस’ या ‘एन्थोसिफेलस’ इंडिकस है। ये ‘रुबिएसी’ परिवार का सदस्य है। कदम को ‘बटर फ्लावर ट्री,’ ‘लैरन’ या ‘लिचर्ड पाइन’ भी कहते हैं। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई 20-45 मीटर तक हो सकती है। चार पाँच वर्ष का होने पर इसमें फूल आना शुरू हो जाता है। भारत में इसे ‘देववृक्ष’ भी कहा जाता है। कहते हैं कि भगवान् श्री कृष्ण का यह प्रिय वृक्ष है। वे कदम के पेड़ के नीचे बैठकर बाँसुरी बजाया करते थे। कदम की कई जातियाँ पाई जाती है। जिसमे ‘श्वेत-पीत’ लाल और ‘द्रोण’ जाति के कदम उल्लेखनीय है। साधारणतया यहाँ श्वेत-पीत रंग के लाल कदम ही पाए जाते है। भारत के अन्य प्रान्तों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में इसे निप, प्रियक कदम्ब, वृत्तपुष्प, हलिप्रिये। कन्नड़ में कडुए, कदावाली, तेलुगु में कदंबलु, तमिल में वेल्लाकदम्ब, बांग्ला में बोलकदम, नेपाली में कदम आदि नामों से जाना जाता हैं।
आयुर्वेद में भी कदम की कई जातियों का उल्लेख मिलता है। जैसे- राजकदम, धाराकदम, धुलिकदम तथा भूमिकदम आदि। चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर कदम का वर्णन मिलता है। कदम आयुर्वेद में अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही मशहूर है। कदम के जड़, पत्ते, छाल, फल आदि सभी भाग चमत्कारिक गुणों से भरपूर है। इसका फल और पत्ता चर्म रोग जैसे घाव, सुजन आदि। आँखों की बिमारी, मुँह के छाले, खाँसी, फोड़े-फुंसी, दस्त आदि में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। जंगलों को हरा भरा करने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने और सड़कों की शोभा बढ़ाने के लिए कदम का पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बहुत ही तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है। कदम का वृक्ष प्रकृति और पर्यावरण को संरक्षण देता है, साथ में औषधि और सौंदर्य का भी महत्वपूण स्त्रोत है। इसकी उपयोगिता के कारण ही इसके संरक्षण और विकास के लिए अनेक प्रयत्न किए जा रहे है।