अकबर हमेशा अपने टेढ़े-मेढ़े सवालों से बीरबल को फ़साने का प्रयास किया करता था। परन्तु बीरबल अपनी चतुराई से अकबर की टोपी घुमाकर उसी को पहना दिया करते थे। अकबर खुद तो पढ़ालिखा नहीं था लेकिन उसके दरवार में योग्य और बुद्धिमान दरवारी थे, जिन्हें अकबर के नवरत्नों के नाम से जाना जाता था। उसके नौरत्नों में अबुलफजल, फैजी, तानसेन, राजा बीरबल, राजा टोडरमल, राजा मानसिंह, अब्दुलरहीम खानखाना, फ़कीर अजियोदीन और मुल्ला-दो-पियाज़ा थे। इन सभी नौरत्नों में से बीरबल की बातों का अकबर कभी भी बुरा नहीं मानता था क्योंकि अकबर बीरबल को ऐसा करने के लिए जानबूझकर मजबूर कर दिया करता था।
बीरबल अकबर के नवरत्नों में कैसे शामिल हुए थे? यह कहानी भी बड़ा ही दिलचस्प है। हर बादशाहों की तरह अकबर को भी खाना-खाने के बाद पान खाने का शौक था। इस शौक के लिए उन्होंने अपने महल में एक पनवाड़ी मुरलीधर को रखा था। मुरलीधर अकबर और उनकी बेगमों के लिए पान का बीड़ा लगाया करता था। एक दिन की बात है। अकबर खाना खाकर उठे। मुरलीधर रोज की तरह पान की बीड़ा बादशाह के खिदमत में पेश किया। बादशाह अकबर ने भी हमेशा की तरह पान का बीड़ा मुँह में लेकर उसे चबाते हुए महल में घूमने लगे। मुरलीधर अकबर के बेगमों को भी पान खिलाकर अपने घर जा रहा था तभी एक सिपाही उसके पास आया और उसे रोककर बोला।
ऐ! मुरलीधर बादशाह ने तुम्हें हाजिर होने का हुक्म दिया है।
मुरलीधर ने पूछा क्या उन्हें और पान खाना है?
सिपाही ने कहा, मुझे नहीं मालूम। बादशाह तुम्हारा इन्तजार कर रहें है।
मुरलीधर ने कहा, ठीक है! भाई जाता हूँ।
सिपाही की बात सुनकर मुरलीधर वापस बादशाह के पास गया।
मुरलीधर ने कहा हुक्म करें हुजूर।
बादशाह ने कहा, मुरलीधर तुम जब कल सुबह महल में आना तब एक किलो चूना साथ लेकर आना।
मुरलीधर ने कहा जी हुजूर लेकर आऊँगा।
बादशाह ने कहा, अब तुम जा सकते हो।
बादशाह का हुकूम सुनकर मुरलीधर अपने घर चला गया। सुबह महल में जाने से पहले मुरलीधर एक पान की दूकान से एक किलो चूना लेकर महल की ओर चल पड़ा। रास्ते में मुरलीधर का एक मित्र महेशदास मिला।
महेश दास ने मुरलीधर से पूछा, इस पोटली में क्या लेकर जा रहे हो?
मुरलीधर ने कहा बादशाह ने एक किलो चूना मँगवाया है वही लेकर जा रहा हूँ।
महेश दास ने कहा क्यों महल में कुछ जलसा होने वाला है क्या?
मुरलीधर ने कहा, क्या होने वाला है? यह तो मुझे पता नहीं, मैं तो बादशाह का हुकूम बजा रहा हूँ।
महेशदास ने पूछा, चूने के साथ क्या कथा और सुपारी भी मँगवाया है?
मुरलीधर ने कहा, नहीं कथा और सुपारी तो नहीं मँगवाया है। बस एक किलो चूना ही मँगवाया है।
महेशदास ने कहा जरुर पान खाने के बाद ही तुम्हें चूना लाने का हुक्म दिया होगा।
हाँ पान खाने के थोड़ी देर बाद ही बादशाह ने बुलवाया था।
महेशदास ने कहा, मुरलीधर भैया मेरी बात मानों तो तुम महल जाने से पहले एक किलो देशी घी पी लेना।
मुरलीधर ने बोला, वो किसलिए महेश भैया?
महेशदास ने कहा, मुझे लगता है, यह चूना तुम्हें ही खाना पड़ेगा और चूने की जहर को देशी घी ही काट सकता है। इतना कहकर महेशदास चला गया।
मुरलीधर खड़ा होकर कुछ पल तक सोचने लगा और खुद से बोला महेश भैया जब कुछ बात कहते हैं वे बड़ी पक्की बात कहते हैं। दिल कहता है कि महेश भैया की बात मान लेनी चाहिए। मन कहता है कि चूना मुझे क्यों खाना पड़ेगा। मुरलीधर को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ और क्या नहीं। उधर बादशाह मुरलीधर के देर से आने के कारण महल में चहलकदमी कर रहे थे।
सिपाही जाकर पता लगाओ कि मुरलीधर अभी तक क्यों नहीं आया। उसे बांधकर मेरे सामने लाओ तभी मुरलीधर पहुँचते हुए बोला मैं आ गया बादशाह सलामत।
बादशाह ने तुरंत पूछा चूना लाये हो?
मुरलीधर ने कहा जी पूरा एक किलो लाया हूँ बादशाह।
बादशाह ने कहा जानते हो मैने यह चूना क्यों मँगवाया है?
मुरलीधर ने कहा, नहीं हुजूर।
बादशाह ने कहा तो अब जान लो, कल रात तुमने मेरे पान में इतना ज्यादा चूना लगा दिया था कि मेरा पूरा मुँह कट गया। तुम्हारे उसी गुनाह की यह सजा है कि तुम्हें यह एक किलो चूना खाना पड़ेगा।
सिपाही देखते रहना अगर यह चूना नहीं खाए तो इसकी गर्दन काट देना।
बादशाह मुरलीधर को सजा सुनाकर चले गए। मुरलीधर सोच में डूबकर खड़ा था और खुद से बोल रहा था।
तुम्हारी जय हो भैया महेशदास। अगर तुम नहीं मिले होते तो इस चूना को खाकर मैं स्वर्ग सिधार जाता। काफी समय के बाद जब बादशाह महल में आए तो मुरलीधर को देखकर चौंक गए और बोले, मुरलीधर तुम!
मुरलीधर ने कहा, जी बादशाह आपके लिए पान का बीड़ा लगाया है।