‘कलगी बाजरे की’ कविता अज्ञेय जी की प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। यह कविता ‘हरि घास में क्षण भर’ काव्य संग्रह से लिया गया है। इसका प्रकाशन 1949 में हुआ था। इस कविता में कवि ने अपनी प्रेमिका की तुलना तारा, कुमुदनी या चम्पे की कली जैसी पुराने प्रतीकों को छोड़कर ‘चिकनी हरि घास’ और ‘बाजरे की बाली’ से करते हैं। उनके अनुसार हरि घास और बाजरा प्रेमिका के सुन्दरता के निकट है। ये दोनों ही चीजें शहर वासियों के लिए जूही के फूलों से भी अधिक महत्वपूर्ण है। कवि इन दोनों के सादगी भरी शोभा से इतने प्रभावित हैं कि वे इनके माध्यम से सारी सृष्टि को अपने नजदीक महसूस करने लगते हैं। अज्ञेय जी ने इस कविता के माध्यम से पुराने उपमान को छोड़कर नये उपमान का प्रयोग किया है। यह कविता मूलतः प्रेम और प्रकृति को अभिव्यक्त करती है।
कलकी बाजरे की (कविता)
हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।
अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद् के भोर की नीहार-न्हायी कुँई।
टटकी कली चंपे की, वगैरह, तो
नहीं, कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है
बल्कि केवल यही: ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच।
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है
मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी :
तुम्हारे रूप के, तुम हो, निकट हो, इसी जादू के
निजी किस सहज गहरे बोध से, किस प्यार से मैं कह रहा हूँ-
अगर मैं यह कहूँ-
बिछली घास हो तुम
लहलहाती हवा में कलगी छरहरे बाजरे की?
आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल-से
सृष्टि के विस्तार का, ऐश्वर्य का, औदार्य का
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा एक प्रतीक
बिछली घास है
या शरद् की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती
कलगी अकेली
बाजरे की।
और सचमुच, इन्हें जब-जब देखता हूँ
यह खुला वीरान संसृति का घना हो सिमट जाता है
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।
शब्द जादू हैं-
मगर क्या यह समर्पण कुछ नहीं है?
व्याख्या – इस कविता में कवि अपनी प्रेमिका की तुलना बाजरे की कलगी से करते हुए प्रश्न करते हैं। कवि अपनी प्रेमिका को ‘चिकनी हरि घास’ या ‘बाजरे की पतली हिलती हुई बाली’ कहना चाहते है।
कवि प्रश्न करते हैं कि अगर मैं तुमको लाल होती हुई शाम के समय आकाश में चमकने वाली तारिका या तारा नहीं कहता, मैं तुम्हे शरद ऋतु के सुबह में पाले से ढकी हुई कुमुदनी नहीं कहता या अभी-अभी ताजा खिली हुई चम्पे की कली भी नहीं कहता तो इसका कारण यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम्हारे प्रति कम हो गया है या मेरा प्यार मैला या झूठा हो गया है, बल्कि ये सब उपमान अब पुराने और मैले हो गए हैं, इन प्रतिमानों में अभिव्यक्त करने की जो क्षमता थी वह अब नष्ट हो गई है। यानी सभी कवियों ने इन सभी प्रतीकों का कई बार प्रयोग कर लिया है। जिससे ये सभी अब पुराने हो गए हैं। जिस तरह बर्तनों को अधिक घिसने से उसकी चमक कम पड़ जाती है ठीक उसी प्रकार इन सभी उपमानों का अधिक प्रयोग करने से ये सब भी पुराने हो चुके हैं।
कवि अपने प्रेमिका से प्रश्न करते हैं- क्या? क्या तुम यह पहचानती हो तुम्हारे करीब तुम्हारे रूप के निकट सिर्फ इसलिए इन पुराने उपमानों के साथ कवि ने उनकी तुलना नहीं की है। तुम्हारे इस रूप के जादू के कारण मैं अपनी सहज गहरे भाव बोध से, प्यार से, यह कह रहा हूँ, अगर मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम बिछली हरि घास में लहराती बाजरे की कली हो। हम शहरी लोगों ने पाले हुए बगीचे में जूही के फूलों को लगाया है। यह हरि भरी घास सृष्टि का विस्तार है। यही समृधि, एश्वर्य, सम्पन्नता शक्ति सहनशीलता सभा का प्रतीक है यह बिछली हुई घास इस संसार के सफलता सच्चाई प्यार का प्रतीक है। यह शरद ऋतु की सांध्य के समय सुने आकाश पर डोलती हुई बाजरे की कलगी उस जूही के फूलों से सुंदर है। जब-जब मैं घास बाजरे की कलगी को देखता हूँ तो सचमुच संपूर्ण संसार वीरान होता हुआ दिखाई देता है। इस संस्कृति का समापन और भी सिमटा हुआ प्रतीत होने लगता है और तुम्हे स्वयं को अकेले ही समर्पित कर देता हूँ। कवि कहते हैं कि शब्द जादू है इससे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति मिलती है। कवि अपनी प्रेयसी से प्रश्न करते हैं- क्या संपूर्ण कुछ नहीं है? क्या इसका कोई मोल नहीं है? क्या संसार के प्रति किया गया संपूर्ण कुछ नहीं है?
कवि ने अंतिम कुछ पंक्तियों में प्रकृति के प्रति अपने अथाह प्रेम को दर्शाया है और वे इन्हीं पंक्तियों से एक प्रश्न उठाते हैं कि क्या यह समर्पण कुछ नहीं है? जो मैं अपने प्रेमिका के प्रति भाव रखता हूँ उसका कोई मोल नहीं।
- कविता में सहज एवं प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग किया गया है।
- नए उपमानों का प्रयोग किया गया है।
- उपमा अलंकर का प्रयोग किया गया है।
- कविता में मानवीकरण किया गया है।
- कवि ने अपने प्रेमिका के प्रति समर्पण भाव को दर्शाया है।
- कवि अपने जमीन से जुड़ा रहना चाहता है।