गद्यकाव्य साहित्य की आधुनिक विधा है। गद्य में भावों को इस प्रकार अभिव्यक्त करना कि वह काव्य के निकट पहुँच जाए वही गद्य काव्य अथवा गद्य गीत कहलाता है। यह विधा संस्कृत साहित्य में कथा और आख्यायिकी के लिए प्रयुक्त होता था। दण्डी ने तीन प्रकार के काव्य बताए थे: गद्य काव्य, पद्य काव्य और मिश्रित काव्य।
रामकुमार वर्मा ने ‘शबनम’ की भूमिका में गद्यकाव्य पर विचार किया और गद्यगीत का प्रयोग करते हुए कहा: “गद्यगीत साहित्य की भावानात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें कल्पना और अनुभूति काव्य उपकरणों से स्वतंत्र होकर मानव-जीवन के रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए उपयुक्त और कोमल वाक्यों की धारा में प्रवाहित होती है।”
गद्यकाव्य गद्य की ऐसी विधा है, जिसमे कविता जैसी रसमयता, रमणीयता, चित्रात्मकता और संवेदनशीलता होती है। हिन्दी में रायकृष्ण दास जो गद्य काव्य के जनक माने जाते है, इन्होने अनेक आध्यात्मिक गद्यकाव्यों की रचना की है।
हिन्दी में रायकृष्ण दास गद्य काव्य के जनक माने जाते हैं। इन्होने अनेक आध्यात्मिक गद्य काव्यों की रचना की। ‘साधना’ 1916 में आई इनकी पहली रचना थी। गद्यकाव्य की रचना की प्रेरणा रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के ‘गीतांजलि’ के हिन्दी अनुवाद से प्राप्त हुई थी।
कुछ आलोचकों ने भारतेंदु को ही इस विधा का जनक माना है। प्रेमघन, जगमोहन सिंह आदि भारतेंदु के सहयोगियों की रचनाओं में गद्यकाव्य की झलक मिलती है। ब्रजनंदन सहाय के सौन्दर्योपासक को हिन्दी का प्रथम गद्य काव्य माना है।
लेखक : गद्यकाव्य (छायावाद युग)
रायकृष्ण दास: साधना (1916), संलाप (1925), छायपथ (1929), प्रवाल (1929)
वियोगी हरि: तरंगिणी (1919), अंतर्नाद (1926), प्रार्थना (1929), भावना (1932), श्रद्धाकण (1949) ठंढे छींटे
चतुसेन शास्त्री: अंतस्तल (1921), मरी खाल की हाय (1946), जवाहर (1946), तरलाग्नि
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माखनलाल चतुर्वेदी: साहित्य देवता (…)
सद्गुरूशरण अवस्थी: भ्रमिक पथिक (1927)
वृंदावनलाल वर्मा: हृदय की हिलोर (1928)
लक्ष्मीनारायण सुधांशु: वियोग (1932)
स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’: भग्नदूत (1933)
डॉ रामकुमार वर्मा: हिमहास (1935)
(छायावादोत्तर युग)
दिनेशनंदिनी चौरड्या (डालमिया): शबनम (1937), मुक्तिकमाल (1938), शारदीया (1939), दोपहरिया के फूल (1942), वंशीरव (1945), उन्मन (1945), स्पंदन (1949)
परमेश्वरी लाल गुप्त: बड़ी की कल्पना (1941)
स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’: चिंता (1942)
तेजनारायण काक: निझर और पाषाण (1943)
वियोगी हरि: श्रद्धाकण (1949)
व्योहार राजेन्द्र सिंह: मौन के स्वर (1951)
डॉ रघुवीर सिंह: जीवन धूलि (1951), शेष स्मृतियाँ
चंद्रिकाप्रसाद श्रीवास्तव: अंतररागिनी (1955)
ब्रह्मदेव: निशीथ (1945), उदीची (1956), अंतरिक्ष (1969)
डॉ रामअधार सिंह: लहरपंथी (1956)
रामधारी सिंह ‘दिनकर’: उजली आग (1956)
कांति त्रिपाठी: जीवनदीप (1965)
माधवप्रसाद पाण्डेय: छितवन के फूल (1974), मधुनीर (1985) स्वर्णनीरा (2002)
अशोक बाजपेयी: कहीं नहीं वहीँ (1990)
प्रो० जितेन्द्र सूद: पतझड़ की पीड़ा (1996)
राजेन्द्र अवस्थी (कादम्बिनी संपादक): कालचिंतन
रामप्रसाद विद्यार्थी: पूजा, शुभ्रा
राज नारायण मेलरोत्र: आराधना