‘आत्मकथा’ (ऑटोबायोग्राफी) शब्द का सबसे पहला प्रयोग 1796 ई० में जर्मनी के हर्डर ने किया था। उसके बाद यह ब्रिटेन पहुँचा, जहाँ सबसे पहले राबर्ट साउथे ने इसका इस्तेमाल किया। उस समय तक साहित्य के इस विधा का कोई खास अर्थ नहीं निकाला गया। क्योंकि इसमें लेखक के कुछ निजी अनुभव निहित थे।
साहित्य में आत्मकथा किसी भी लेखक के द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को कहते है। यह संस्मरण (memori) से मिलती-जुलती है। किन्तु भिन्न है। संस्मरण में लेखक अपने आस-पास के समाज परिस्थितियों और अन्य घटनाओं के विषय में भी लिखता है। वही आत्मकथा के केन्द्र में लेखक स्वयं होता है। महापुरुषों के माध्यम से लिखी गई आत्मकथाएं पाठकों का सही मार्ग दर्शन करती है, साथ ही प्रेरणादायक भी होता है। गद्द्य की इस विधा के अंतर्गत लेखक अपने जीवन वृत्त को व्यवस्थित रूप से रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत करता है।
आत्मकथा के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- आत्मकथा जीवन के जिए हुए क्षणों का वर्णन है।
- आत्मकथा में जीवन के आत्मनिरीक्षण एवं विश्लेषण आवश्यक है।
- आत्मकथा स्वयं का स्वलिखित इतिहाश है।
- आत्मकथा लेखन एक विषय है।
- आत्मकथा में सत्य और यथार्थ का होना आवश्यक है।
आत्मकथा में लेखक की विचारधारा, दृष्टिकोण और युगीन परिस्थितियों का भी बोध होता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में आत्मकथा लिखने की परंपरा ‘बनारसीदास जैन’ कृत ‘अर्धकथानक’ (1641) से प्रारम्भ हुआ। इस कथानक के साथ एक नवीन विधा का उदय हुआ जिसमे आत्मचरित्र के विश्लेषण को पहली बार महत्वपूर्ण माना गया। साहित्य के केंद्र में मनुष्य की स्थापना हुई। इसके अंतर्गत मानव के दुःख, सुख, संघर्ष आदि संसार के लिए महत्वपूर्ण हो गए।
‘अर्धकथानक’ आत्मकथा ‘ब्रज भाषा’ में लिखी गई थी। यह अर्धकथानक भारतीय परंपरा की शायद एकमात्र ‘पदात्मक’ आत्मकथा है। सन् 1641 ई० में मुगल काल में इसकी रचना हुई थी। जब यह आत्मकथा लिखी थी तब बनारसी दासजी की उम्र 55 वर्ष थी। उनहोंने एक प्राचीन जैन परंपरा को उद्धृत करते हुए बताया कि मनुष्य की सम्पूर्ण आयु 110 वर्ष की होती है। इसलिए यह सोचकर उन्होंने लिखा था कि वे आधा जीवन जी लिए हैं। इसलिए आत्मकथा का नाम ‘अर्धकथानक’ रखा। इसके बाद उनका स्वर्गवास हो गया। यही उनकी सम्पूर्ण जीवन की आत्मकथा है।
आधुनिक काल में बाबू श्यामसुंदर कृत ‘मेरी आत्मकथा’ (1941) हिन्दी की पहली प्रसिद्ध आत्मकथा कही जा सकती है। बाबू साहब की आत्मकथा हिन्दी भाषा एवं साहित्य के पूरे युग को प्रतिफलित करती है और प्रकारांतर से काशी नागरी प्रचारिणी सभा का इतिहास बताती है। आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र रसाद की ‘आत्मकथा’ (1947) स्वतंत्रता संग्राम के चरम बिन्दु पर लिखी गई थी, जो अपनी शैली की सरलता और सादगी के लिए विख्यात था। गुलाबराय कृत ‘मेरी असफलताएँ’ (1941) हल्के व्यंग्य शैली में लिखित रोचक कृति है। आत्मालोचन एवं विनोदवृति का सफल सामंजस्य इस रचना में है। राहुल सांस्कृत्यायन की ‘मेरी- जीवन-यात्रा’ और सेठ गोविन्ददास की ‘आत्मनिरीक्षण’ (1958) विस्तार से लिखी गई आत्मकथाएँ हैं।
लेखक | आत्मकथा |
बनारसीदास जैन | अर्धकथानक (1641) |
दयानंद सरस्वती | जीवन चरित्र (1860) |
सत्यानंद अग्निहोत्री | मुझमें देव-जीवन का विकास (1910) |
भाई परमानन्द | आपबीती (1921) |
महात्मा गाँधी | आत्मकथा (1923) अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय |
सुभाषचंद्र बोस | तरुण के स्वप्न (1935) अनुवाद गिरीशचंद्र जोशी |
हरिभाऊ उपाध्याय | साधना के पथ पर (1946) |
भवानी दयाल ‘सन्यासी’ | प्रवासी की कहानी (1939) दक्षिण अफ्रीका प्रवास की कहानी है |
डॉ श्यामसुंदर दास | मेरी आत्मकहानी (1941) |
गुलाबराय | मेरी सफलताएँ (1941) |
हरिभाऊ उपाध्याय | साधना के पथ पर (…) |
राहुल सांस्कृत्यायन | मेरी जीवन यात्रा (1946) पाँच खण्डों में |
डॉ राजेन्द्र प्रसाद | आत्मकथा (1947) |
बलराज साहनी | मेरी फ़िल्मी आत्मकथा (1947) फ़िल्मी जीवन संधर्ष |
वियोगी हरि | मेरा जीवन प्रवाह (1948) |
लेखक | आत्मकथा |
सत्यदेव परिव्राजक | स्वतंत्रता की खोज (1951) |
सेठ गोविन्द दास | आत्मनिरीक्षण (1958) तीन भाग |
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ | अपनी खबर (1960) अपनी प्रारम्भिक 21 वर्षों का वर्णन |
चतुरसेन शास्त्री | मेरी आत्मकहानी (1963) |
हरिवंश राय बच्चन | क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969), नीड़ का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1978), दशद्वार से सोपान तक (1985), इन्होने अपनी आत्मकथा को स्मृति-यात्रा यज्ञ कहा है |
वृंदावनलाल वर्मा | अपनी कहानी (1970) |
डॉ देवराय उपाध्याय | यौवन के द्वार पर (1970) |
सूर्य प्रसाद दीक्षित | निराला की आत्म कथा (1970) |
डॉ रामविलास शर्मा | घर की बात (1983) इसमें परिवार के सौ वर्षों का इतिहास है अपनी धरती अपने लोग (1983) तीन खण्डों में |
श्री विष्णु चद्र शर्मा | मुक्तिबोध की आत्म कहा (1984) |
शिवपूजन सहाय | मेरा जीवन (1985) |
अमृतलाल नागर | टुकड़े-टुकड़े दास्ताँ (1986) |
हंसराज रहबर | मेरे सात जन्म (तीन खण्डों में) |
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ | तपती पगडंडियों पर यात्रा (1987) |
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ | आत्मपरिचय (1988) |
डॉ नागेंद्र | अर्धकथा (1988) यह मेरे जीवन का अर्धसत्य है |
रामदरश मिश्रा | सहचर है समय (1991), फुरसत के दिन (2000) |
कमलेश्वर | गर्दिश के दिन (1980), जो मैने जिया (1992), यादों का चिराग (1997), जलती हुई नदी (1999) |
अशोक वाजपेयी | पाव भर जीरे में ब्रह्मभोज (2000) |
रविन्द्र कालिया | ग़ालिब छुटी शराब (2000) संस्मरणात्मक आत्मकथा |
भगवाती चरण वर्मा | कहि न जाय का कहिए (2001), संघर्ष और दिशाहीन, ददुआ हम पर विपदा तीन, यह तीन खण्डों में प्रकाशित हुआ |
राजेन्द्र यादव | मुड़-मुड़ के देखता हूँ (2001) आत्मकथ्यांश कहा |
अखिलेश | वह जो यथार्थ था (2000) |
भीष्म साहनी | आज के अतीत (2003) |
स्वदेश दीपक | मैंने मांडू नहीं देखा (2003) |
विष्णु प्रभाकर | पंखहीन मुक्त गगन में (2004), पंछी उड़ गया रे (2004) रविन्द्रनाथ त्यागी से पतझर तक (2005) |
विष्णु चन्द्र शर्मा | मुक्तिबोध की आत्म कथा |
सूर्य प्रसाद दीक्षित | निराला की आत्मकथा |
डॉ राजेन्द्रप्रसाद | सत्य की खोज लिखी (आत्मकथा) |
यशपाल | सिहावलोकन में राजनितिक विचारों की प्रमिखता (आत्मकथा) |
शांतिप्रिय द्विवेदी | परिव्राजक की प्रजा में अपने दुखमय जीवन की कहानी |
महिला रचनाकारों की आत्मकथाएँ: जानकी देवी बजाज हिन्दी की प्रथम महिला आत्मकथा लेखिका थी। उन्होंने ‘मेरी जीवन यात्रा’ (1956) में अपने बचपन से लेकर पति क मृत्यु तक के जीवन का निबंद्ध किया है
लेखक | आत्मकथा |
प्रतिभा अग्रवाल | दस्तक जिंदगी की (1990), मोड़ जिंदगी का (1970) |
कुसुम अंसल | जो कहा नहीं गया (1996) |
कृष्णा अग्निहोत्री | लगता नहीं है दिल मेरा (1997) |
पद्द्मा सचदेव | बूंद बावड़ी (1999) |
शीला झुनझुनवाला | कुछ कही कुछ अनकही (2000) |
मैत्रयी पुष्पा | कस्तूरी कुण्डल बसै (2002), गुडिया भीतर गुडिया (2012) |
रमणिका गुप्ता | हादसे (2005) |
मन्नू भण्डारी | एक कहानी यह भी (2007) |
प्रभा खेतान | अन्या से अनन्या (2007) |
चद्रकिरण सौनरेक्सा | पिंजरे की मैना (2008) |
कृष्णा अग्निहोत्री | और-और-औरत (2010) |
दलित लेखकों की आत्मकथाएँ:
लेखक | आत्मकथा |
भगवान् दास | मैं भंगी हूँ (1981) |
मोहनदास नेमिषराय | अपने-अपने पिंजरे (1998 भाग-1),अपने-अपने पिजरे(2000भाग-2) |
ओमप्रकाश वाल्मीकि | जूठन (1997) |
डॉ सूरजपाल चौहान | तिरस्कृत (2002), संतप्त (2006) |
रूपनारायण सोनकर | नागफनी (2007) |
श्योराज सिंह बेचैन | मेरा बचपन मेरे कन्धों पर (2009) |
डॉ धर्मवीर | मेरी पत्नी और भेड़िया (2010) |
भाल चन्द्र मुणगेकर | मेरी हकीकत (2010) |
लक्षमण गायकवाड़ | उच्चका (2011) |
डॉ तुलसीराम | मुर्दहिया (2012) |
सुशीला टाकभौरे | शिकंजे का दर्द (2012) |
बलवीर माधोजी | छंग्यारुख (2012) |