यात्रावृतांत किसी स्थान में बाहर से आये व्यक्ति या व्यक्तियों के अनुभवों के बारे में लिखे वृतांत को कहते है। इसका प्रयोग पाठक मनोरंजन के लिए या फिर उसी स्थान में स्वयं यात्रा के लिए जानकारी प्राप्त करने के लिए करते है।
हिन्दी में यात्रावृतांत लिखने की परम्परा सूत्रपात भारतेंदु युग से माना जाता है। यात्रावृत या यात्रा साहित्य, गद्य की एक रोचक तथा मनोरंजन प्रधान विधा है। यह विधा आत्मपरक, अनौपचारिक, संस्मरणात्मक तथा मनोरंजक होतीं है इस विधा का यह लक्ष्य यह होता है कि लेखक अपनी यात्रा में प्राप्त किये गए आनन्द और ज्ञान को पाठकों तक पहुँचा सकें। यात्रावृतांत के प्रमुख लेखक- राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय, डॉ नगेन्द्र, यशपाल आदि है।
लेखक और यात्रावृतांत
भारतेंदु | सरयू पार की यात्रा, मेंहदावल की यात्रा, लखनऊ की यात्रा (1871-1879 के मध्य) |
बालकृष्ण भट्ट | गया यात्रा (1894) के ‘हिंदी प्रदीप’ मार्च में |
प्रताप नारायण मिश्र | विलायत यात्रा (1897) के हि०प्र० नवंबर में |
सत्यदेव परिव्राजक | मेरी कैलाश यात्रा (1915), मेरी जर्मन यात्रा (1926) |
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ | हमारी जापान यात्रा (1931) |
राहुल सांकृत्यायन | मेरी लद्दाख यात्रा (1939), रूस में पच्चीस मास (1947), किन्नर देश में (1948), घुमक्कड़शास्त्र (1949) एशिया के दुर्गम खण्डों में (1956) चीन में कम्यून (1959) |
रामवृक्ष बेनीपुरी | पैरों में पंख बाँधकर (1952), उड़ते चालो उड़ते चालो (1954) |
यशपाल | लोहे के दीवार के दोनों ओर (1953) |
मोहन राकेश | आखरी चट्टान तक (1953) |
स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ | अरे यायावर रहेगा याद (1953), एक बूँद सहसा उछली (1960) |
भगवतशरण उपाध्याय | कलकत्ता से पेकिंग (1955), सागर की लहरों पर (1959) |
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ | देश-विदेश (1957), मेरी यात्राएँ (1970) |
डॉ रघुवंश | हरीघाटी (1963) |
प्रभाकर माचवे | गोरी नजरों में हम (1964) |
नर्मल वर्मा | चीड़ों पर चाँदनी (1964) |
धर्मवीर भारती | यादें यूरोप की, यात्राचक्र (1995) |
बलराज साहनी | रुसी सफरनामा (1971) |
डॉ नगेन्द्र | अप्रवासी की यात्राएँ (1972) |
शंकर दयाल सिंह | गाँधी के देश में लेनिन के देश में (1973) |
श्रीकान्त वर्मा | अपोलो का रथ (1975) |
कमलेश्वर | खंडित यात्राएँ (1975), कश्मीर रात के बाद (1997), आँखों देखा पाकिस्तान (2006) |
गोबिंद मिश्र | धुंध भरी सुर्खी (1979), दरख्तों के पार शाम (1980), झूलती जड़ें (1990), परतों के बीच (1997), और यात्राएँ (2005) |
कन्हैयालाल नन्दन | धरती लाल गुलाबी चहरे (1982) |
विष्णु प्रभाकर | ज्योतिपुंज हिमालय (1982), हमसफर मिलते रहे(1996) |
अजित कुमार | सफरी झोले में (1985), यहाँ से कभी भी (1997) |
इन्दु जैन | पत्रों की तरह चुप (1987) |
रामदरश मिश्र | तना हुआ इंद्रधनुष (1990), भोर का सपना (1993), पड़ोस की खुशबू (1999) |
शिवप्रसाद सिंह | सब्जापत्र कथा कहे (1996) |
हिमांशु जोशी | यातना शिविर में (1998) |
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी | आत्म की धरती (1999), अंतहीन आकाश (2005) |
मनोहर श्याम जोशी | क्या हाल हैं चीन के (2006), पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नज़र (2006) |
रमेशचंद्र शाह | एक लम्बी छांह (2000) |
कृष्णदत्त पालीवाल | जापान में कुछ दिन (2003) |
नरेश मेहता | कितना अकेला आकाश (2003) |
नासिरा शर्मा | जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं (2003) |