हरिशंकर परसाई कृत ‘इंस्पेक्टर मातादिन चाँद पर’ (कहानी)

हरिशंकर परसाई कृत ‘इंस्पेक्टर मातादिन चाँद पर’ (कहानी) की समीक्षा और अध्ययन

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रिशंकर परसाई संक्षिप्त जीवनी- (जन्म 22 अगस्त 1922- 10 अगस्त 1995)

हरिशंकर परसाई हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म 22 अगस्त 1922  जमानी, हौशंगाबाद, मध्यप्रदेश में हुआ था। परसाई जी हिन्दी के पहले रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हलके-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा।

प्रमुख रचनाएँ:

कहानी संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोला राम का जीव।

उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।

संस्मरण: तिरछी रेखाएं

लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, अपनी-अपनी बिमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे पुकार के, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडंडीयों का ज़माना, शिकायत मुझे भी हैं, उखड़े खंभे, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं, बस की यात्रा।

परसाई रचनावली: (सजिल्द तथा पेपर बैक, छह खण्डों में; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)

हरिशंकर परसाई पर केन्द्रित साहित्य:

  • आँखन देखि सम्पादक- कमला प्रसाद (वाणी प्रकाशन नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  • देश के इस दौर में- विश्वनाथ त्रिपाठी (राजकमल पकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  • ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए परसाई जी को 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

‘इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर’ कहानी की समीक्षा और पात्र

  • ‘इंस्पेक्टर माता दिन चाँद’ पर कहानी हरिशंकर परसाई जी की लोकप्रिय व्यंग्य रचना है।
  • इस कहानी में पुलिस के अत्याचारों की ओर लोगों का ध्यानाकर्षण किया गया है।
  • यह एक फैंटसी शैली में लिखी गई रचना है।

कहानी के पात्र:

मातादीन: कहानी का मुख्य पात्र, यह सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर है जो पुलिस विभाग का प्रतिनिधित्व करता है।

पुलिस मंत्री: पुलिस विभाग का नाम हो ऐसा कुछ करने के लिए मातादीन को सलाह देता है।

यान चालाक: माता दिन को जो चाँद से लेने आया था।

कोतवाल और इंस्पेक्टर: ये चाँद के पुलिस और सिपाही है।

इंस्पेक्टर माता दीन चाँद पर’ कहानी

वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है।

सीनियर पुलिस इन्स्पेक्टर मातदीन (डिपार्टमेंट में एम० डी० साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है।

विज्ञान ने हमेशा इसंपेक्टर मातादीन से मात खाई है। फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है- छुरे पर पाए गए निशान मुलजिम की अँगुलियों के नहीं है। पर मातादीन उसे सजा दिला ही देते हैं।

मातादीन कहते हैं, ये वैज्ञानिक केस का पूरा इंवेस्टिगेशन नहीं करते। उन्होंने चाँद का उजला हिस्सा देखा और कह दिया, वहाँ जीवन नहीं है। मैं चाँद के अँधेरा हिस्सा देख कर आया हूँ। वहाँ मनुष्य जाति है।

यह बात सही है क्योकि अँधेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं।

      पूछा जाएगा, इन्सेक्टर मातादीन चाँद पर क्यों गए थे? टूरिस्ट के हैसियत से या किसी फरारअपराधी को पकड़ने? नहीं, वे भारत की तरफ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे। चाँद सरकार ने भारत सरका को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढी है। पर हमारे पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सजा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती। सुना है, आपके यहाँ रामराज है। मेहरबानी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे।

      गृहमंत्री ने सचिव से कहा- किसी आई०जी० को भेज दो।

सचिव ने कहा- नहीं सर, आई० जी० नहीं भेजा जा सकता है। प्रोटोकॉल का सवाल है। चाँद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है। आई० जी० के रैंक के आदमी को नहीं भेजेंगे। किसी सीनियर को भेज देता हूँ।

तय किया गया कि हजारों मामलों के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर सीनियर इंस्पेक्टर मातादीन को भेज दिया जाए।

चाँद की सरकार को लिख दिया गया कि आप मातादीन लो लेने के लिए पृथ्वी-यान भेज दीजिये।

पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा- तुम भारतीय पुलिस की उज्जवल पंरम्परा के दूत की हैसियत से जा रहे हो। ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष में डिपार्टमेंट की ऐसी जय-जयकार हो कि पी०एम० (प्रधानमन्त्री) को भी सुनाई पड़ जाए।

मातादीन की यात्रा का दिन गया। एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर उतरा। मातादीन सबसे विदा लेकर यान की तरफ़ बढ़े। वे धीरे-धीरे कहते जा रहे थे, ‘प्रविसि नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर राजा’

यान के पास पहुँचकर मातादीन ने मुंशी अब्दुल गफूर को पुकारा- मुंशी!

गफूर ने एड़ी मिलाकर सेल्यूट फटकारा। बोला – जी  पेक्टसा!

एफ० आई० आर० रख दी है?

जी, पेक्टसा।

और रोजनामचे का नमूना?

जी, पेक्टसा!

वे यान में बैठने लगे। हवालदार बलभद्दर को बुलाकर कहा- हमारे घर में जचकी के बखत अपने  खटला (पत्नी) को मदद के लिए भेज देना।

बलभद्दर ने कहा- जी, पेक्टसा।

गफूर ने कहा- आप बेफिक्र रहे पेक्टसा! मैं अपने मकान (पत्नी) को भेज दूंगा। खिदमत के लिए।

मातादीन ने यान के चालाक से पुछा- ड्राइविंग लाइसेंस है?

जी, है साहब!

और गाड़ी में बत्ती ठीक है?

जी, ठीक है।

मातादीन ने कहा, सब ठीकठाक होना चाहिए, वरना हरामजादे का बीच अंतरिक्ष में चलान कर दूँगा।

चन्द्रमा से आये चालाक ने कहा- हमारे यहाँ आदमी से इस तरह नहीं बोलते।

मातादीन ने कहा- जानता हूँ बे! तुम्हारी पुलिस कमजोर है। अभी मैं उसे ठीक करता हूँ।

मातादीन यान में कदम रख ही रहे थे कि हवालदार रामसजीवन भागता हुआ आया बोला- पेक्टसा, एस० पी० साहब के घर में से कहे हैं कि चाँद से एड़ी चमकाने का पत्थर लेते आना।

      मातादीन खुश हुए। बोले- कह देना बाई साब से, जरुर लेता आऊंगा।

      वे यान में बैठे और यान उड़ चला। पृथ्वी के वायुमंडल से यान बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा- अबे, हॉर्न क्यों नहीं बजाता?

चालाक ने जबाब दिया- आसपास लाखों मील में कुछ नहीं है। मातादीन ने डांटा- मगर रुल इज रुल। हॉर्न बजाता चल।

चालाक अंतरिक्ष में हॉर्न बजाता हुआ यान को चाँद पर उतार लाया। अंतरिक्ष अड्डे पर पुलिस अधिकारी मातादीन के स्वागत के लिए खड़े थे। मातादीन रॉब से उतरे और उन अफसरों के कन्धों पर नजर डाली। वहाँ किसी के स्टार नहीं थे। फीते भी किसी के नही लगे थे। लिहाज़ा मातादीन ने एड़ी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नहीं समझा। फिर उन्होंने सोचा, मैं यहाँ इन्स्पेक्टर की हैसियत से नहीं, सलाहकार की हैसियत से आया हूँ।

मातादीन को वे लीग लाइन में ले गए और एक अच्छे बंगले में उन्हें टिका दिया।

एक दीन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया। पहले उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया।

शाम को उन्होंने आई० जी० से कहा- आपके यहाँ पुलिस लाइन में हनुमान जी का मंदिर नही है। हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमान जी का मन्दिर है।

आई०जी० ने कहा- हनुमान कौन थे? हम नहीं जानते।

मातादीन ने कहा- हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए ज़रूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहाँ स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता माता का पता लगाया था। ‘एबडक्सन’ का मामला था- दफा 362 हनुमानजी ने रावन को सजा वहीँ दे दी थी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीं सजा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं। मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमान जी के काम से भगवान् राम बहुत खुश हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आये और ‘टौन ड्यूटी’  में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं। मैं उनकी फोटो लेता आया हूँ। उसपर से मूर्तियाँ बनवाइए और हर पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए।

      थोड़े ही दिनों में चाँद की हर पुलिस लाइन में हनुमान जी स्थापित हो गए।

मातादीन उन कारणों का अध्ययन कर रहे थे। जिससे पुलिस लापरवाह और अलाल हो गई है। वह अपराधों पर ध्यान नहीं देती। कोई कारण नहीं मील रहा था। एकाएक उनकी बुद्धि में एक चमक आई। उन्होंने मुंशी से कहा- जरा तनखा का रजिस्टर बताओ।

      तनखा का रजिस्टर देखा, तो सब समझ गये। कारण पकड़ में आ गया।

शाम को उन्होंने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुश्तैद क्यों नहीं है। आप इतनी बड़ी तनख्वाह देते हैं। इसीलिए सिपाही को पांच सौ, थानेदार को हजार- ये क्या मजाक है। आखिर पुलिस अपराधी को क्यों पकड़े? हमारे यहाँ सिपाही को सौ और इंस्पेक्टर को दो सौ देते हैं तो वे चौबीस घंटे जुर्म की तलाश करते हैं। आप तनख्वाह फ़ौरन घटाइए।

      पुलिस मंत्री ने कहा- मगर यह तो अन्याय होगा। अच्छा वेतन नहीं मिलेगा तो वे काम ही क्यों करेंगे?

मातादीन ने कहा- इसमें कोई अन्याय नहीं है। आप देखेंगे कि पहली घटी हुई तनखा मिलते ही आपकी पुलिस की मनोवृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा।

      पुलिस मंत्री की तनख्वाहें घटा दीं और 2-3 महीनों में सचमुच बहुत फर्क आ गया। पुलिस एकदम मुस्तैद हो गई। सोते से एकदम जाग गई। चारों तरफ नज़र रखने लगी। अपराधियों की दुनिया में घबराहट छा गई। पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के रिकार्ड बुला कर देखे। पहले से कई गुने अधिक केस रजिस्टर हुए थे। उन्होंने मातादीन से कहा- मैं आपकी सूझ की तारीफ़ करता हूँ। आपने क्रांति कर दी पर यह हुआ किस तरह?

      मातादीन ने समझाया-बात मामूली है। कम तनखा दोगे, तो मुलाज़िम की गुजर नहीं होगी। सौ रुपयों में सिपाही बच्चों को नहीं पाल सकता। दो सौ इंस्पेक्टर ठाठ-बाट नहीं मेनटेन कर सकता। उसे उपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। और उपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़ेगा। गरज कि वह अपराधों पर नज़र रखेगा। सचेत, कर्तव्यपरायण और मुस्तैद हो जाएगा। हमारे रामराज के स्वच्छ और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है।

      चन्द्रलोक में इस चमत्कार की खबर फ़ैल गई। लोग मातादीन को देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तनखा कम करके सक्षमता ला देता है। पुलिस के लोग भी खुश थे। वे कहते- गुरु, आप इधर न पधारते तो हम सभी कोरी तनखा से ही गुजारा करते रहते। सरकार भी खुश थी कि मुनाफे का बजट बनाने वाला था।

      आधी समस्या हल हो गई। पुलिस अपराधी पकड़ने लगी थी। अब मामले की जाँच-विधि में सुधार करना रह गया था। अपराधी को पकड़ने के बाद उसे सजा दिलाना। मातादीन इंतज़ार कर रहे थे कि कोई बड़ा केस हो जाए तो नमूने के तौर पर उसका इन्वेस्टिगेशन कर बताएँ।

एक दिन आपसी मारपीट में एक आदमी मारा गया। मातादीन कोतवाली में आकर बैठ गए और बोले- नमूने के लिए इस केस का ‘इंवेस्टिगेशन’ मैं करता हूँ। आप लोग सीखिए यह क़त्ल का केस है। क़त्ल के केस में ‘एविडेंस’ बहुत पक्का होना चाहिए।

कोतवाल ने कहा- पहले कातिल का पता लागाया जाएगा, तभी तो एविडेंस इकठ्ठा किया जाएगा।

मातादीन ने कहा- नहीं, उलटे मत चलो। पहले एविडेंस देखों। क्या कहीं खून मिला? किसी के कपड़ों पर या और कहीं?

      एक इन्स्पेक्टर ने कहा- हाँ, मारने वाले तो भाग गए थे। मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा था। एक भला आदमी वहाँ रहता है। उसने उठाकर अस्पताल भेजा। उस भले आदमी के कपड़ों पर खून के दाग लग गए हैं।

      मातादीन ने कहा- उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करो।

कोतवाल ने कहा- मगर उसने तो मरते हुए आदमी की मदद की थी।

मातादीन ने कहा- वह सब ठीक है। पर तुम खून के दाग ढूंढने और कहाँ जाओगे? जो एविडेंस मील रहा है, उसे तो कब्जे में करो।

वह भला आदमी पकड़कर बुलवा लिया गया। उसने कहा- मैंने तो मरते आदमी को अस्पताल भिजवाया था। मेरा क्या कसूर है?

      चाँद की पुलिस उसकी बात से एकदम प्रभावित हुई। मातादीन प्रभावित नहीं हुए सारा पुलिस महकमा उत्सुक था कि अब मातादीन क्या तर्क निकालते हैं।

      मातादीन ने उससे कहा- पर तुम झगड़े के जगह गए क्यों?

      उसने जबाब दिया- मैं झगड़े की जगह नहीं गया। मेरा वहाँ मकान है। झगड़ा  मेरे मकान के सामने हुआ।

      अब फिर मातादीन की प्रतिभा की परीक्षा थी। सारा महकमा उत्सुक देख रहा था। मातादीन ने कहा- मकान तो ठीक है, पर मैं पूछता हूँ, झगड़े की जगह जाना ही क्यों?

इस तर्क का कोई जबाब नहीं था। वह बार-बार कहता- मैं झगड़े की जगह नहीं गया। मेरा वहाँ मकान है।

मातादीन उसे जबाब देते- सो ठीक है, पर झगड़े की जगह जाना ही क्यों? इस तर्क-प्रणाली से पुलिस के लोग बहुत प्रभावित हुए।

अब मातादीन ने इन्वेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया- देखो, आदमी मारा गया है, तो यह पक्का है किसी ने उसे ज़रूर मारा। कोई कातिल है। किसी को सज़ा होनी है। सवाल है- किसको सज़ा होगी? पुलिस के लिए यह सवाल इतना महत्व नहीं रखता जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिए। क़त्ल हुआ है, तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारने वाला को होती है, या बेकसूर को- यह अपने सोचने की बात है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर है। सबमे उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है।

      दूसरा सवाल है, किस पर जुर्म साबित होना चाहिए। इसका निर्णय इन सब बातों से होगा- (1) क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता हैं?

(2) क्या उसे सज़ा दिलानेसे ऊपर के लोग खुश होंगे?

मातादीन को बताया गया कि वह आदमी  भला है, पर पुलिस अन्याय करे तो विरोध कतरा है। जहाँ तक ऊपर के लोगों का सवाल है- वह वर्तमान सरकार की विरोधी राजनीति वाला है।

      मातादीन ने टेबिल ठोंककर कहा- फर्स्ट क्लास केस। पक्का एविडेंस और ऊपर का सपोर्ट।

एक इन्स्पेक्टर ने कहा- पर हमारे गले यह बात नहीं उतरती है कि एक निरपराध-भले आदमी को सजा दिलाई जाए।

मातादीन ने समझाया- देखो, मैं समझा चूका हूँ कि उसी ईश्वर का अंश है। सजा इसे हो या कातिल को, फांसी पर तो ईश्वर ही चढ़ेगा न! फिर तुम्हे कपड़ों पर खून मिल रहा है। इसे छोड़कर तुम कहाँ खून ढूंढते फिरोगे? तुम तो भरो एफ़० आई० आर०।

      मातादीन जी ने एफ० आई० आर० भरवा दी। ‘बखत ज़रूरत के लिए’ जगह खाली छोड़वा दी।

      दूसरे दिन पुलिस कोतवाल ने कहा- गुरुदेव, हमारी तो बड़ी आफत है। तमाम भले आदमी आते है और कहते है, उस बेचारे बेकसूर को क्यों फंसा रहे हो? ऐसा तो चंद्रलोक में कभी नहीं हुआ! बताइये हम क्या जबाब दें? हम तो बहुत शर्मिंदा हैं।   

      मातादीन ने कोतवाल से कहा- घबराओं मत शुरू-शुरू में इस काम में आदमी को शर्म आती है। आगे तुम्हें बेकसूर को छोड़ने में शर्म आएगी। हर चीज का जवाब है। अब आपके पास जो आये उससे कह दो, हम जानते हैं वह निर्दोष है, पर हम क्या करें? यह सब ऊपर से हो रहा है।

कोतवाल ने कहा- तब वे एस०पी० के पास जाएँगे।

मातादीन बोले- एस०पी० भी कह दें कि ऊपर से हो रहा है।

तब वे आई०जी- के पास शिकायत करेंगे।

आई०जी० भी कहें कि सब ऊपर से हो रहा है।

तब वे लोग मंत्री के पास जाएँगे।

पुलिस मंत्री भी कहेंगे- मैं क्या करूं? यह ऊपर से हो रहा है।

तो वे प्रधान मंत्री के पास जाएँगे।

प्रधानमंत्री भी कहें कि मैं जानता हूँ, वह निर्देश है, पर यह ऊपर से हो रहा है।

कोतवाल ने खा- तब वे…

मातादीन ने कहा- तब वे किसके पास जाएँगे? भगवान् के पास जाएँगे? भगवान् के पास न? मगर भगवान से पूछकर कौन लौट सका है?

कोतवाल चुप रह गया। वह इस महान प्रतिभा से चमत्कृत था।

मातादीन ने कहा- एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है। तुम इसे सिख लो।

केस की तैयारी होने लगी मातादीन ने कहा- अब 4-6 चश्मदीद गवाह लाओ।

कोतवाल- चश्मदीद गवाह कैसे मिलेंगे? जब किसी ने उसे मारते देखा ही नहीं, तो गवाह कोई कैसे होगा?

मातादीन ने सर ठोंक लिया, किन बेवकूफों के बिच फंसा दिया गवर्नमेंट ने। इन्हें तो ए-बी-सि-डी भी नहीं आती।

      झल्लाकर कहा- चश्मदीद गवाह किसे कहते हैं, जानते हो? चश्मदीद गवाह वह नहीं है जो देखे- बल्कि वह है जो कहे कि मैंने देखा है।

कोतवाल ने कहा- ऐसा कोई क्यों कहेगा?

मातादीन ने कहा- कहेगा, समझ में नहीं आता। कैसे डिपार्टमेंट चलाते हो! अरे चश्मदीद गवाहों की लिस्ट पुलिस के पास पहले से रहती है। जहाँ ज़रूरत हुई उन्हें चश्मदीद बना दिया। हमारे यहाँ ऐसे आदमी हैं, जो साल में 3-4 सौ वारदातों के चश्मदीद गवाह होते हैं। हमारी अदालते भी मान लेती हैं कि इस आदमी में कोई दैवी शक्ति है। जिससे जान लेता है कि अमुक जगह वारदात होने वाली है और वहाँ पहले से पहुँच जाता है। मैं तुम्हें चश्मदीद गवाह बनाकर देता हूँ। 8-10 उठाईगीरों को बुलाओ, जो चोरी, मारपीट, गुंडागर्दी करते हों या जुआ खिलाते हों या शराब उतारते हों।

      दुसरे दीन शहर के 8-10 नवरत्न कोतवाली में हाजिर थे। उन्हें देखकर मातादीन गद्गद हो गए। बहुत दिन हो गए थे ऐसे लीगों को देखे। बड़ा सुना-सुना लग रहा था।

मातादीन का प्रेम उमड़ पड़ा। उनसे कहा- तुम लोगों ने उस आदमी को लाठी से मारते देखा था न?

वे बोले- नहीं देखा साब! हम वहाँ थे ही नहीं।

मातादीन जानते थे, यह पहला मौका है। फिर उन्होंने कहा- वहाँ नहीं थे, यह मैंने माना। पर लाठी मारते देखा तो था?

उन लोगों को लगा कि यह पागल आदमी है। तभी ऐसा उटपटांग बात कहता है। वे हँसने लगे।

मातादीन ने कहा- हँसो मत, जवाब दो।

वे बोल- जब थे ही नहीं, तो कैसे देखा?

      मातादीन ने गुर्राकर देखा। कहा- कैसे देखा, सो बताता हूँ। तुम लोग जो काम करते हो-सब इधर दर्ज है। हर एक को कम से कम दस साल जेल में डाला जा सकता है। तुम ये काम आगे भी करना चाहते हो या जेल जाना चाहते हो?

      वे घबराकर बोले- साब हम जेल नहीं जाना चाहते।

मातादीन ने कहा- ठीक, तो तुमने उस आदमी को लाठी मारते देखा, देखा न?

वे बोले- देखा साब। वह आदमी घर से निकला और जो लाठी मारना शुरू किया, तो वह बेचारा बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा।

मातादीन ने कहा- ठीक है। आगे भी ऐसी वारदातें देखोगे?

वे बोले- साब, जो आप कहेंगे, सो देखेंगे।

कोतवाल इस चमत्कार से थोड़ी देर को बेहोश हो गया। हिश आया तो मातादीन के चरणों पर गिर पड़ा।

मातादीन ने कहा- हटो। काम करने दो।

कोतवाल पाँवों से लिपट गया। कहने लगा- मैं जीवन भर इन श्री चरणों में पड़ा रहना चाहता हूँ।

मातादीन ने आगे की साड़ी कार्यप्रणाली तय कर दी। एफ० आई०आर० बदलना, बीच में पन्ने डालना, रोजनामचा बदलना, गवाहों को तोड़ना- सब सिखा दिया।

उस आदमी को बीस साल की सजा हो गई।

चाँद की पुलिस शिक्षित हो चुकी थी। धराधड़ केस बनने लगे और सज़ा होने लगी। चाँद की सरकार बहुत खुश थी। पुलिस की ऐसी मुस्तैदी भारत सरकार के सहयोग का नतीजा था। चाँद की संसद ने एक धन्यवाद का प्रस्ताव पास किया।

एक दिन मातादीन जी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। वे फूलों से लदे खुली जिप पर बैठे थे। आसपास जय-जयकार करते हजारों लोग। वे हाथ जोड़कर अपने गृहमंत्री की स्टाइल में जवाब दे रहे थे।

      जिंदगी में पहली बार ऐसा कर रहे थे, इसलिए थोड़ा अटपटा लग रहा था। छब्बीस साल पहले पुलिस में भरती होते वक्त किसने सोचा था कि एक दिन दूसरे लोक में उनका ऐसा अभिनंदन होगा। वे पछताए- अच्छा होता कि इस मौके के लिए कुरता, टोपी और धोती ले आते।

      भारत के पुलिस मंत्री टेलीविजन पर बैठे यह दृश्य देख रहे थे और सोच रहे थे, मेरी सद्भावना यात्रा के लिए वातावरण बन गया।

      कुछ महीने निकल गए।

बच्चों को कोई नहीं बचाता।

एक दीन चाँद की संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया। बहुत तूफ़ान खड़ा हुआ। गुप्त अधिवेशन था, इसलिए रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई पर संसद की दीवारों से टकराकर कुछ शब्द बाहर आए।

सदस्य गुस्से से चिल्ला रहे थे-

कोई बीमार बाप का इलाज नहीं कराता।

डूबते बच्चों को कोई नहीं बचाता।

जलते मकान की आग कोई नहीं बुझाता।

आदमी जानवर से बदतर हो गया। सरकार फ़ौरन इस्तीफा दे।

      दुसरे दिन चाँद के प्रधानमंत्री ने मातादीन को बुलाया। मातादीन ने देखा- वे एकदम बूढ़े हो गए थे। लगा, ये कई रात सोये नहीं हैं।

रूँआसे होकर प्राधानमंत्री ने कहा- मातादीन, हम आपके और भारत सरकार के बहुत आभारी हैं। अब आप कल देश वापस लौट जाइये।

मातादीन ने कहा- मैं तो टर्म ख़त्म करके ही जाऊँगा।

प्राधानमंत्री ने कहा- आप बाकी टर्म का वेतन ले जाइये- डबल ले जाइए, तिबल ले जाइये।

मातादीन ने कहा- हमारा सिद्धांत है: हमें पैसा नहीं काम प्यारा है।

आखिर चाँद के प्राधानमंत्री ने भारत के प्राधानमंत्री को एक गुप्त पात्र लिखा।

चौथे दीन मातादीन को वापस लौटने के लिए अपने आई०जी० का आर्डर मील गया।

उन्होंने एस०पी० साहब के घर के लिए एड़ी चमकाने का पत्थर यान में रखा और चाँद से विदा हो गए।

उन्हें जाते देख पुलिसवाले रो पड़े।

बहुत अरसे तक यह रहस्य बना रहा की आखिर चाँद में ऐसा क्या हो गया कि मातादीन जी को इस तरह एकदम लौटना पड़ा। चाँद के प्राधानमंत्री ने भारत के प्राधानमंत्री को क्या लिखा था?

एक दिन वह पत्र खुल ही गया। उसमे लिखा था-

इंस्पेक्टर मातादीन की सेवाएँ हमें प्रदान करने के लिए अनेक धन्यवाद। पर अब आप उन्हें फ़ौरन बुला ले। हम भारत को मित्र देश समझते थे। पर आपने हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया है। हम भोले लोगों से आपने विश्वासघात किया है। आपके मातादीन ने हमारी पुलिस को जैसा कर दिया है, उसके नतीजे ये हुए हैं।       कोई आदमी किसी मरते हुए आदमी के पास नहीं जाता। इस डर से कि वह क़त्ल के मामले में फंसा दिया जाएगा। बेटा बीमार बाप की सेवा नहीं करता, वह डरता है, बाप मर गया तो उस पर कहीं हत्या का आरोप नहीं लगा दिया जाए। घर जलते रहते हैं और कोई बुझाने नहीं जाता – डरता है कि कहीं उसपर आग लगाने का जुर्म कायम न कर दिया जाए। बच्चे नदी में डूबते रहते हैं और कोई उन्हें नहीं बचाता, इस डर से कि उसपर बच्चों को डूबाने का आरोप न लग जाए। सारे मानवीय संबंध समाप्त हो रहे हैं। मातादीन जी ने हमारी आधी संस्कृति नष्ट कर दी है। अगर वे यहाँ रहे तो पुरी संस्कृति नष्ट कर देंगे। उन्हें फ़ौरन रामराज में बुला लिया जाए।

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