धनतेरस कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष के ‘त्रयोदशी’ तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। कई जगहों पर इसे ‘जमदियारी’ भी कहते हैं। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस दिन माता ‘लक्ष्मी’ और ‘कुबेर’ की पूजा की जाती है। दिवाली का त्योहार धनतेरस से शुरू होकर ‘भईया दूज’ तक चलता है। इस दिन नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की भी परंपरा है। बर्तन खरीदने की शुरूआत कब और कैसे हुई इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि धन्वन्तरि के जन्म के समय उनके हाथों में अमृत कलश था। सम्भवतः इसी कारण से लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि देवताओं और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। धन्वन्तरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस कारण उन्हें ‘पीयूषपाणि’ धन्वन्तरि भी कहा जाता है। धन्वन्तरि को विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार-
परंपरा के अनुसार धनतेरस की शाम को ‘यम’ के नाम का दीपक घर की दहलीज पर या कहीं-कहीं तो घर के बाहर भी रखा जाता है। ‘यम’ की पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वे घर में प्रवेश नहीं करें। किसी को कष्ट नहीं पहुंचाए। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में एक और पौराणिक कथा है- पुराने समय की बात है एक राजा थे। उनका नाम ‘हिम’ था। राजा हिम के यहाँ जब पुत्र पैदा हुआ तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘सुकुमार’ रखा और राजपुरोहित से पुत्र की जन्म-कुंडली बनवाई।
कुंडली बनाने के उपरांत राजपुरोहित कुछ चिंतित हुए। उनकी चिंताग्रस्त मुद्रा को देखकर राजा हिम ने उनसे पूछा, क्या बात है? राजपुरोहित जी! आप कुछ चिंतित लग रहे हैं? हमारे पुत्र की कुंडली में कोई दोष तो नहीं है। राजपुरोहित राजा की बात सुनकर बोले, महाराज ऐसी कोई बात नहीं है। कदाचित मैंने कुंडली बनाते समय कोई असावधानी की होगी। उसी कारण से मुझे जन्म-कुंडली में कुछ कमी दिखाई दे रही है। मेरा सुझाव है कि आप एक बार इसे राज्य के किसी अन्य प्रसिद्ध ज्योतिष से भी दिखवा लें।
राजा थोड़े से आशंकित हुए और फिर पूछे, पुरोहित जी! हमें आप के द्वारा बनाई हुई जन्म-कुंडली में कोई भी संदेह नहीं है। आप वर्षों से हमारे विश्वास पात्र राजपुरोहित रहे हैं। कृपया आप हमें बताएं कि बात क्या है? राजपुरोहित ने कहा, महाराज! राजकुमार की जन्म-कुंडली की गणना करने पर हमें यह ज्ञात हो रहा है कि राजकुमार अपने विवाह के चौथे दिन ही सर्प के काटने से मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे।
राजा ‘हिम’ तिलमिलाते हुए राजपुरोहित पर क्रोधित होकर बोले, राजपुरोहित जी! ये आप क्या कह रहे हैं? अवश्य ही आप की गणना में कोई त्रुटी हुई है। एक बार पुनः आप कुंडली को ध्यानपूर्वक देखिए। यदि आप हमारे राजपुरोहित नहीं होते तो आज ही मैं आपको मृत्युदंड दे देता। राजा हिम के क्रोध को देखकर राजसभा में उपस्थित सभी लोग डर गए। पुरोहित ने हिम्मत करते हुए कहा क्षमा करें राजन! किन्तु यदि आप को कोई शंका है तो आप मेरे द्वारा दिए गए सुझाव पर अमल कर सकते हैं।
उसके बाद राजा हिम ने अपने पुत्र के जन्म-कुंडली को राज्य के अन्य कई प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों से दिखवाया। सभी ज्योतिषाचार्यों का परिणाम भी वही था। यह सुनकर महाराज हिम और उनकी पत्नी अत्यंत चिंतित रहने लगे। राजा ने दरबार में सभी को चेतावनी दे दिया कि कोई भी व्यक्ति इस बात का वर्णन हमारे पुत्र के समक्ष नहीं करे अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे। राजा हिम को हमेशा मन में यह भय लगा रहता था कि उनके पुत्र को इस बात का पता चल गया तब कहीं वह मृत्यु की चिंता में ही न मर जाये।
समय बीतता गया और राजकुमार बड़े होने लगे। अंततः वह समय आ गया जब राजकुमार की आयु विवाह योग्य हो गई। आस-पास के कई राज्यों से राजकुमार के लिए सुन्दर राजकुमारियों के विवाह प्रस्ताव आने लगे। परन्तु अपने पुत्र की मृत्यु के भय से राजा किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं कर रहे थे। यह देखकर महारानी ने कहा, महाराज! यदि आप इसी प्रकार सभी राजाओं के विवाह प्रस्तावों को अस्वीकृत करते रहेंगे तो हमारा पुत्र क्या सोचेगा? जन्म-कुंडली के भय से हम अपने पुत्र को उम्र भर कुंवारा तो नहीं रख सकते। जन्म कुंडली के अनुसार मृत्यु तो सर्प के काटने से होगी। हम महल में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा देंगे। राजकुमार के पास पहुँचने से पहले ही सर्प को मार दिया जायेगा। राजा हिम को महारानी का सुझाव पसंद आया और उन्होंने एक सुन्दर राजकुमारी ‘नयना’ से अपने पुत्र के विवाह की स्वीकृति दे दी। राजकुमारी नयना देखने में जीतनी सुन्दर थी। बुद्धि भी उसकी उतनी ही प्रखर थी। विवाह से पूर्व राजा ने अपने पुत्र की जन्म-कुंडली में निहित भविष्यवाणी के विषय में कन्या पक्ष को बता दिया। पहले तो राजकुमारी के पिता ने इस विवाह से साफ इनकार कर दिया। किन्तु जब यह बात राजकुमारी नयना को पता चली तब राजकुमारी नयना ने अपने पिता से निवेदन किया। आप विवाह के लिए अपनी मंजूरी दे दीजिए। अपनी पुत्री की बात को राजा ठुकरा नहीं सके और विवाह के लिए आशंकित मन से नयना के पिता राजी हो गए।
विवाह अच्छी तरह से सम्पन हुआ। राजकुमारी नयना एक दृढ़ निश्चय वाली कन्या थी। उसने अपने पति के प्राणों की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था। विवाह के तीन दिन बीत चुके थे। राजा हिम और राजकुमारी नयना चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ कर रहे थे। उनकी योजना के अनुसार, जिस-जिस मार्ग से साँप के आने की आशंका थी वहां पर सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात बिछा दिए गए। महल को रात-भर के लिए रोशनी से उजाला कर दिया गया था ताकि सांप को आते हुए आसानी से देखा जा सके। राजकुमारी नयना ने राजकुमार को भी सोने नहीं दिया। राजकुमारी ने राजकुमार से निवेदन किया की आज मैं आपसे कहानी सुनना चाहती हूँ। राजकुमार नयना को कहानी सुनाने लगे।
मृत्यु का समय निकट आने लगा और मृत्यु के देवता यमदूत पृथ्वी की ओर आने लगे। राजकुमार की मृत्यु का कारण सर्प दंश था इसलिए यमदूत ने साँप का रूप धारण किया और महल के भीतर राजकुमार और राजकुमारी नयना के कक्ष में प्रवेश करने का प्रयास करने लगे। जैसे ही यमराज साँप का वेश बदलकर कक्ष में दाखिल हुए वैसे ही कक्ष में हीरे-जवाहरातों की चमक से उनकी आँखे चौंधियां गई। जिसके फलस्वरूप साँप को प्रवेश के लिए कोई अन्य मार्ग खोजना पड़ा। यमराज जब दूसरे रास्ते से कक्ष में प्रवेश करने लगे तब वहाँ उन्होंने देखा की सोने और चाँदी के सिक्के मार्ग पर बिछे हुए है। यमराज जब उस सोने और चांदी के सिक्कों पर रेंगते हुए जाने लगे तब सिक्कों का शोर होने लगा। तभी सिक्कों की आवाज सुनकर राजकुमारी नयना चौकस हो गईं। उसी समय राजकुमारी नयना ने अपने हाथ में एक तलवार भी पकड़ लिया और राजकुमार को कहा की आप कहानी सुनाते रहिये रुकिए नहीं। राजकुमारी नयना की हिम्मत और साहस को देखकर यमराज को डंसने का मौका नहीं मिल रहा था। साँप के रूप में यमदूत एक ही स्थान पर कुंडली मार कर बैठ गया। अब यदि वह थोड़ा-सा भी हिलता-डुलता तो सिक्कों की आवाज से नयना को ज्ञात हो जाता कि सर्प कहाँ है और वह उसे तलवार से मार देती। इस तरह नयना रात भर अपने पति की रक्षा करने के लिए एक के बाद एक राजकुमार के द्वारा कहानियाँ सुनती रही और पति की रक्षा करती रही। इस प्रकार कहानी सुनते-सुनते सुबह हो गया। अब राजकुमार के मृत्यु का समय ख़त्म हो चुका था। यमदेव राजकुमार के प्राण नहीं ले सके थे। दूसरे दिन यमदूत हारकर यमलोक चले गए। इस प्रकार राजकुमारी नयना ने अपने पति के जन्मकुंडली में हुई भविष्यवाणी को निष्फल कर अपने पति की प्राणों की रक्षा किया था।
राजकुमार कभी नहीं जान पाए कि उनकी कुंडली का क्या रहस्य था। उनकी पत्नी ने विवाह के चौथे दिन कहानी सुनने का निवेदन किया और आखिर क्यों कहानी सुनते हुए उन्होंने तलवार थाम ली थी? यह बात राजकुमार नहीं जान पाए। उन्हें इसकी कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी। माना जाता है कि उसी समय से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँ।
धनतेरस का त्यौहार धन आगमन के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है इसलिए इस दिन लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है। धनतेरस को आरोग्य का वरदान पाने के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है, मान्यता है कि भगवान धन्वन्तरी इस दिन आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं।