उस पीढ़ी के लोग

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन को हर मुश्किलों में जीते हुए यहाँ तक पहुंचा है। शायद हमारे पूर्वजों ने इसतरह के दिन नहीं देखें होंगे जो हम देख रहे हैं। हमने जो अपने जीवन में देखा है हमारे बच्चों ने उसे नहीं देखा और आने वाली पीढ़ियाँ भी उसे नहीं देखेंगी। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिसने कई तरह की चीजों को देखा, भुगता और उसका आनंद लिया है। कहने का तात्पर्य है- ‘जूता सिलाई से लेकर चण्डी पाठ तक’। हम मिट्टी के घर में पैदा हुए अपने दादा-दादी से राजा-रानी और परियों की कहानियाँ सुनी। जमीन पर बैठकर खाना खाया, स्टील के गिलास और प्लेटवाली कप में चाय ढार-ढार कर चुस्कियाँ ले-लेकर पिया है।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने बचपन में अपने गावों के खेतों-खलिहानों, मुहल्लों और दोस्तों के साथ परम्परागत खेलों जैसे- कबड्डी, कंचे, गिल्ली-डंडा, पोसम्पा, लुक्का-छूपी, गोटी आदि का खेल खेला है। आज के समय में हमने वीडियों गेम के साथ कई इलेक्ट्रॉनिक गेम भी खेले हैं।  

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने किरासन तेल के ढिबरी और लालटेन में अपनी पढ़ाई और विधालय के गृहकार्य किया है। चंदामामा, चाचा चौधरी और नंदन आदि कई कहानियाँ सूर्य की रौशनी में बैठकर पढ़ा है। आज हमने अनेक प्रकार के बिजली के उपकरण वल्ब ट्यूबलाईट, एल ई डी आदि का भी प्रयोग कर रहे हैं।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अपने घर-परिवार, पड़ोसियों, समाज और दिल की बातों को चिठ्ठियों में लिखकर भेजा है। जिन चिठ्ठियों को पहुँचने और जबाब वापस आने का महीनों तक इंतज़ार किया करते थे। उन चिठ्ठियों में अपनों की छुअन और प्यार की महक होती थी। जिन्हें पढ़कर हम अपनों को अपने सामने महसूस किया करते थे। आज हम टेलीफोन, मोबाइल, ई-मेल, 2-जी से लेकर अब 5-जी का भी प्रयोग करने वाले हैं। 

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने कुआँ का पानी पिया, साबुन की जगह हमने गंगा मईया के किनारे वाला बालू से स्नान किया। उस लाइफब्वाय, हमाम, मार्गो साबुन से नहाया जो पूरे परिवार के लिए एक ही होता था। तब भी किसी को कोई रोग नहीं था। हम स्वस्थ थे। आज के समय में सब कुछ अलग-अलग है फिर भी लोगों को अनेक बीमारियाँ हो रही है। आज हम अनेक ब्रांडों के शैम्पू प्रयोग कर रहे हैं।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अधिकतर पैदल या बैलगाड़ी से यात्रा किया है। हम मेला, बाजार, बैलगाड़ी और टायरगाड़ी से जाते थे। आज हम हवाई जहाज से भी यात्रा कर रहें हैं। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जो अपने बालों में तेल लगाकर विधालय, मेला-बाजार और शादी-ब्याह में जाया करते थे। वो सरसों का तेल जिसे दादी बहुत लाभदायक कहती थी। तेल नहीं लगाने से लोग शिकायत करते थे। तब हमारे बाल नहीं गिरते थे और ना ही इतने लोग गंजे होते थे। आज हम अलग-अलग ब्राण्ड के तेल और शैम्पू लगाते हैं फिर भी हमारे सब बाल गिर गए और जवानी में ही लोग गंजे हो गए।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने स्लेट पर लिखे हैं। उसके बाद कॉपी कठपेन्सिल फिर कंडे और स्याही-दावात लेकर विधालय जाया करते थे। स्याही से हमारे हाथ, कपड़े और मुँह काले-नीले हो जाते थे। विधालय में हमारी पिटाई होती थी तब भी हम घर आकर किसी से नहीं कहते थे क्योंकि घर में शिक्षक की शिकायत करने पर और भी पिटाई होने का डर रहता था। आज बच्चों को तो शिक्षक डांट भी नहीं सकते हैं मारना तो दूर की बात है, क्योंकि शिक्षक को नौकरी से निकाल दिया जाता है। अब हम लैपटॉप तथा स्मार्ट फोन पर इन्टरनेट की सुविधा से पढ़ने-लिखने लगे हैं।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जो 15 अगस्त औए 26 जनवरी के दिन विधालय में झंडा फहराने के समय परेड करने के लिए उजले रंग के जूते पर खड़िया लगाकर चमकाते थे। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जो बुजुर्गों और मुहल्लेवालों से डरते थे। उन्हें देखकर हम सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते थे या कहीं छीप जाते थे। अब बच्चे शिक्षक को हाय! हेलो! बोलते हैं। बुजुर्गों के तरफ तो वे देखते तक नहीं है।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने नीम, अमरूद के दातुन से अपने दाँत धोएँ हैं। बाद में लाल दंतमंजन सफ़ेद पाउडर और नमक सरसों तेल भी आ गया। अब तो अनेकों ब्राण्ड के टूथ-पेस्ट का प्रयोग कर रहे हैं।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने रेडियो से विविध-भारती, बिनाका गीतमाला, हवा महल और ऑल इंडिया रेडियो के समाचार बहुत ही चाव से सुनते थे। अब टेलीविजन पर अनकों  प्रोग्राम आते रहते हैं। किन्तु आज भी दूरदर्शन ही अच्छा लगता है।

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने लोगों से बहुत अच्छे रिश्ते निभाते हुए एक दूसरे के साथ बैठकर सुख-दुःख बांटते थे। लोगों के साथ सहानुभूति निभाते रहते थे। अपने बड़े बुजुर्गों की बात मानते थे और बहुत दुःख से कहना पड़ रहा है कि आज वो सब अपनापन कहीं खो गया है। मनुष्य में मानवता नहीं है। समाज और शिक्षा के तकनीकीकरण में मानवता खो गई है।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.