सीता को तोते का शाप

देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा मनुष्य को खुश होकर ‘वरदान’ देना और क्रोधित होने पर ‘शाप’ देना। यह प्रथा सबसे अधिक ‘रामायण’ काल और ‘महाभारत’ काल में था। वरदान और शाप से संबंधित अधिक कथाएँ भी उन्हीं दोनों कालों में हुई। यह प्रथा आज भी समाज में विद्यमान है। रामायण के हर पन्ने में कोई-न-कोई रहस्य अवश्य छिपा है। सीता माता को  दूबारा वन जाने के पीछे भी एक रहस्य है। उन्हें उस अवस्था में वन जाना पड़ा था, जब वे गर्भवती थी। विवाह से पूर्व ही माता सीता को एक तोते की जोड़ी ने शाप दिया था।

माता सीता मिथला नरेश राजा जनक की पुत्री थी। सीता बचपन में एक दिन अपने सहेलियों के साथ बगीचा में खेल रही थी। खेलते-खेलते उन्हें एक पेड़ पर तोता का जोड़ा दिखाई दिया। वे दोनों आपस में बातें कर रहे थे कि इस पृथ्वी पर राम नाम के एक राजा होंगे जो पूर्ण रूप से अपने प्रजा के लिए समर्पित रहेंगे। यह सुनते ही सीता माता का ध्यान उस तरफ गया और सीता उनकी बातों को ध्यान से सूनने लगी। मादा तोता बोली, राम के पत्नी का नाम सीता होगा जो अत्यंत सुन्दर और सुशील होगी। तुम्हें पता है, वह कन्या कौन होगी? नर बोला मुझे नहीं मालूम, मादा बोली मुझे पता है, वह कन्या जनक की पुत्री सीता होगी। सीता ने उन दोनों की बात सुन लिया और आगे की बात को जानने के लिए उन्होंने उन दोनों तोते को पकड़वाकर बंदी बना लिया। सीता ने अपने घर ले जाकर पूछा कि तुम दोनों को यह बात कैसे पता चला? तब तोते की उस जोड़ी ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि ये सभी बातें अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे। मैं वहीं पेड़ पर बैठी सुन रही थी। सीता जी ने कहा, तुम दोनों जिस जनक की पुत्री सीता के विषय में बातें कर रहे हो, वह सीता मैं ही हूँ। तुम्हारी बातें मुझे बहुत अच्छी लग रही है। इसलिए अब मैं तुम्हें अपना ब्याह राम से होने के बाद ही स्वतंत्र करुँगी। उन दोनों ने सीता माता से प्रार्थना किया कि आप हमें मुक्त कर दीजिए। हम तो आसमान में स्वतंत्र विचरण करने वाले पंछी है। हमें कैद में रहना अच्छा नहीं लगता है। उनकी बातें सुनकर सीता ने नर तोते को स्वतंत्र कर दिया और कहा, मैं तुम्हारी पत्नी को मेरी श्री राम जी के साथ ब्याह हो जाने के बाद ही मुक्त करुँगी। जब मुझे राम मिल जाएँगे। सीता की बात सुनकर नर तोता ने माता सीता से बहुत गिड़गिड़ाते हुए बोला, हे देवी! मेरी पत्नी अभी गर्भवती है। ऐसी स्थिति में हम दोनों एक दूसरे से अलग कैसे रह सकते है? मैं अपनी पत्नी के विरह को सह नहीं सकूँगा। नर तोता के बहुत कहने के बाद भी जब सीता ने मादा तोते को नहीं छोड़ा तब नर तोता ने सीता माता को शाप दे दिया कि “जैसे तू मेरी गर्भवती पत्नी को मेरे से दूर कर रही है, उसी तरह तुझे भी अपने गर्भावस्था में अपने राम का वियोग सहना पड़ेगा”। इतना कहकर नर ने तड़प-तड़प कर अपना प्राण त्याग दिया। नर तोते के मृत्यु के कुछ समय के बाद, नर के वियोग में मादा तोता ने भी अपने प्राण त्याग दिया। इस तोते के जोड़ी के शाप से ही माता सीता को भी अपने गर्भावस्था में भगवान राम जी का वियोग सहना पड़ा था। अतः हमें कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। हम सब हमेशा से यह सुनते आ रहें है कि चौबीस घंटे में एक बार हमारे जिहवा पर माँ सरस्वती का वाश होता है। उस समय मुँह से निकली हुई बात जरुर सत्य हो जाती है। इस बात का हम सब को ज्ञान नहीं रहता है कि माँ सरस्वती हमारे जिह्वा पर कब वाश करती है। अतः हमें यह कोशिश करना चाहिए कि किसी को अपशब्द ना कहें।

3 thoughts on “सीता को तोते का शाप”

  1. I love reading the way you represent the stories.. These are somehow related to morality and humanity… I love reading them… Everytime I read there is a newness…

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