प्रभु श्री राम के वन जाने से अयोध्या के सभी निवासी दु:खी थे। राजा दशरथ, अपने दोनों बेटे और बहु के वियोग को बर्दाश्त नहीं कर सके। वे स्वर्ग सिधार गए। पिता की मृत्यु की खबर से राम, लक्ष्मण और सीता बहुत दु:खी हुए। उन्होंने जंगल में ही पिंडदान करने का निश्चय किया। पिंडदान के लिए ये तीनों गया के फाल्गुन नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ पंडित जी ने पिंडदान के लिए जो सामग्री बताया, राम और लक्ष्मण वह सभी सामग्री लाने के लिए जंगल में निकल गए। उन्हें पिंडदान के लिए सामान लेकर आने में देर हो रही थी। इधर पिंडदान का समय निकलता जा रहा था। तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए, पंडितजी से कहा, ‘उन्हें आने में देर हो रही है। आप सही समय पर पिताजी का पिंडदान करवा दीजिए।’ माता सीता की बात मानकर पंडितजी ने सीता माता से ही पूरी विधि-विधान के साथ राजा दशरथ का पिंडदान करवा दिया। थोड़ी देर में जब भगवान राम और लक्ष्मण लौट कर आये और पिंडदान के विषय में पूछा तब सीता माता ने कहा, आप दोनों को आने में विलम्ब हो रही थी और पिंडदान का समय निकला जा रहा था। समय पर पिंडदान करना आवश्यक था। यह सोचकर मैंने पिता जी का पिंडदान कर दिया। पिंडदान करते समय पंडितजी, गौ माता, कौआ, केतकी के फूल और फाल्गुन नदी वहाँ उपस्थित थे। मेरे किए पिंडदान के ये सभी साक्षी हैं। आप चाहें तो इनसे पूछ सकते हैं। राम और लक्ष्मण के सामने पंडितजी, गौ माता, कौआ, केतकी के फूल और फाल्गुन नदी ने सच बोलने से इनकार कर दिया।
उनके इस व्यवहार से माता सीता बहुत दु:खी हुई और क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया। पंडितजी को यह शाप दिया कि चाहे पंडित को कितना भी दान मिले लेकिन उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी। उसे कभी भी संतुष्टि नहीं होगी। फाल्गुन नदी को यह शाप दिया कि चाहे जितनी भी वर्षा हो लेकिन फाल्गुन नदी हमेशा सुखी ही रहेगी। उसमे कभी भी पानी भरा नहीं रहेगा। कौआ को उन्होंने यह शाप दिया कि अकेले खाने से तुम्हारा कभी भी पेट नहीं भरेगा और हमेशा तुम्हारा आकस्मिक ही मौत होगा। गाय को उन्होंने यह शाप दिया कि हर घर में पूजे जाने के बाद भी तुम्हें लोगों का जूठन खाना पड़ेगा। केतकी के फूल को यह शाप दिया कि कभी भी तुझे पूजा में नहीं चढ़ाया जाएगा। इन सभी के व्यवहार से सीता माता बहुत दुखी हो गई थी। तब उनका ध्यान वहाँ उपस्थित वटवृक्ष की ओर गया। सीता जी ने वटवृक्ष से विधि पूर्वक पिंडदान पूरा करने के समर्थन का आह्वान किया। वटवृक्ष ने राम और लक्ष्मण के सामने सीता जी द्वारा विधिवत पिंडदान की प्रक्रिया पूरी करने की पूरी बातें बताई। इसप्रकार वटवृक्ष का सत्य के लिए समर्थन करने पर सीता माता ने आशीर्वाद दिया कि आपकी आयु लम्बी हो, आप हमेशा दूसरों को छाया देते रहेंगे और पतिव्रता स्त्रियाँ आपका स्मरण करके अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करेंगी।
त्रेता युग में सीता माता द्वारा दिए गये शाप की सजा ये सभी आज भी भुगत रहे हैं। आज भी ब्राह्मण को कितना भी दान मिले, उसके मन में दरिद्रता बनी रहती है। गाय पूजनीय होने के बाद भी हर घर का जूठा खाना खाती है। फाल्गुन नदी हमेशा सुखी ही दिखाई देती है। कौआ अपना खाना झुण्ड में ही खाता है तथा उसकी मौत आकस्मिक ही होती है और केतकी के फूल को पूजा पाठ में नहीं चढ़ाया जाता है। इन सबके बावजूद अकेले बरगद ने सामने आकर सच का साथ दिया। माता सीता के वरदान से आज बरगद बिना किसी देख भाल के सबसे छायादार वृक्ष है।
इस प्रकार ‘शाप’ और ‘वरदान’ के कई किस्से और कहानियाँ हैं। जिसे हम बचपन से ही पढ़ते और सुनते आ रहे हैं। ये शाप और वरदान की शक्ति क्या है? हम इसका अंदाजा नहीं लगा सकते हैं, किन्तु शक्ति तो है, जिसे हम वर्तमान में देख रहे हैं।
बहुत सुंदर तरीके से आपने अभिशाप और वरदान की कथा बताई , यह सब चीजें होते हैं पर आज की पीढ़ी यह सब बातें नहीं मानती।
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