बाणों की शय्या (कहानी)

भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। भीष्म पितामह गंगा तथा शांतनु के आठवीं संतान थे। उनका मूलनाम देवव्रत था। भीष्म ने अपने पिता शांतनु का सत्यवती से विवाह करवाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ किया था। अपने पिता के लिए इस तरह की पितृभक्ति देखकर उनके पिता ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह के बाणों की शय्या पर लेटे होने का प्रसंग बहुत ही प्रसिद्ध है। इस प्रसंग के मुताबिक भीष्म को बाणों की शय्या पर लेट कर अपनी मौत का इंतजार करना पड़ा था। भीष्म पितामह बड़े ही तपस्वी और पराक्रमी थे। उनका मानना था कि उन्होंने अपने कई जन्मों में कोई बुरा काम नहीं किया था। महाभारत युद्ध समाप्त हो जाने के बाद भीष्म पितामह ने भागवान श्री कृष्ण से अपने बाणों की शय्या पर पड़े रहने का कारण पूछा था। भीष्म का कहना था कि उन्होंने अपने पिछले सौ जन्मों तक कोई गलत काम नहीं किया है। मैंने हमेशा दूसरों की मदद ही किया है इसलिए मुझे यह नहीं समझ में आ रहा है कि आखिर मुझे यह किस पाप का फल मिल रहा है। भीष्म पितामह से कृष्ण बोले, पितामह यह सत्य है कि आपने पिछले सौ (100) जन्मों में कोई भी अपराध नहीं किया है, लेकिन आपने एक सौ एकवे (101) जन्म में एक अपराध किया है आपको उसी अपराध की सजा मिली है। श्री कृष्ण ने बताया कि आप 101 वें जन्म में जब शिकार करके लौट रहे थे, उस समय एक कर्केटा पक्षी आपके रथ से गलती से टकरा गया था। आपने उस घायल पक्षी को अपने बाण से उठाकर झाड़ियों में फेंक दिया था। वह पक्षी वहीं झाड़ियों में 18 दिनों तक फंसा रहा था और 18 दिनों के पश्चात उसके प्राण निकले थे। उसी पक्षी ने आपको शाप दिया था कि आप को भी उसीप्रकार 18 दिनों तक पीड़ा सहना पड़ेगा जिसप्रकार उस कर्केटा ने पीड़ा झेली थी। इसीलिए आपको इतनी पीड़ा सहनी पड़ रही है।

उन्होंने अपने पिता को वचन दिया था कि जबतक हस्तिनापुर चारो तरफ से सुरक्षित नहीं हो जाता तब तक इस शरीर का त्याग नहीं करेंगे। महाभारत के युद्ध में जब सभी कौरव मारे गये और दुर्योधन की भी मृत्यु हो गई तब उन्हें लगा कि अब पांडवों के हाथ में हस्तिनापुर सुरक्षित है। अपने पिता से प्राप्त इक्षा मृत्यु के कारण वे सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश तक प्रतीक्षा करते रहे। जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश किए तब उन्होंने अपना शरीर त्याग कर महाप्रयाण किया।

4 thoughts on “बाणों की शय्या (कहानी)”

    1. नमस्कार Anupam ji 🙏🙏
      आपने बहुत सुंदर और सत्य प्रतिक्रिया दिया है। आप जरूर मेहनती है। बहुत-बहुत धन्यवाद

      Like

Leave a Reply to Beingcreative Cancel reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.