वैदिक युग में नचिकेता नाम का एक तेजस्वी ऋषिबालक था। उस बालक की कथा ‘तैत्रीय ब्राह्मण’, ‘कठोपनिषद्’ तथा ‘महाभारत’ में भी उपलब्ध है। नचिकेता ने बाल्यकाल में ही भौतिक वस्तुओं का परित्याग कर यम से ‘आत्मा’ और ‘ब्रह्म’ का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वह ऋषि वाजश्रवा का पुत्र था। नचिकेता के पिता महर्षि वाजश्रवा ने “विश्वजित्” यज्ञ किया। उन्होंने प्रतिज्ञा किया था कि इस यज्ञ में वे अपनी सारी संपति दान कर देंगे। यज्ञ कई दिनों तक चलता रहा। यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ने अपनी सभी गायों को दान में दे दिया। दान देने के पश्चात् महर्षि बहुत संतुष्ट थे, किंतु नचिकेता अपने पिता के द्वारा दिए गए दानों से संतुष्ट नहीं था। महर्षि ने जिन गायों को दान में दिया था, वे सभी गायें बूढ़ी और दुर्बल थी। नचिकेता को लगा कि पिताजी जरुर कुछ भूल कर रहें हैं। पुत्र होने के नाते मुझे उन्हें बताना चाहिए। यह सोचकर नचिकेता पिता के पास जाकर पूछा। पिताजी आपने जिन बूढ़ी और दुर्बल गायों को दान में दिया है, वह तो किसी भी काम की नहीं हैं। मेरे विचार से दान में वही वस्तु देना चाहिए जो उपयोगी हो तथा दूसरों के काम आ सके। महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। परन्तु बार-बार नचिकेता उसी प्रश्न को दुहराता रहा। नचिकेता के बार-बार उसी प्रश्न के पूछने से क्रोधित होकर महर्षि झल्लाकर बोले, ‘जा मैं तुझे यमराज को दान में देता हूँ’। नचिकेता आज्ञाकारी बालक था। उसने निश्चय कर लिया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है। अगर मैं अपने पिताजी के वचन को पूरा नहीं करूँगा तो भविष्य में मेरे पिता का कोई भी सम्मान नहीं करेगा। यह सोचकर नचिकेता ने अपने पिता से कहा, मैं यमराज के पास जा रहा हूँ, मुझे अनुमति दीजिये। नचिकेता के इस बात से महर्षि असमंजस से पड़ गए। काफी सोच-विचार करने के बाद उन्होंने अपने हृदय पर पत्थर रखकर नचिकेता को यमराज के पास जाने कि अनुमति दे दी। पिता से अनुमति पाकर नचिकेता यमलोक के लिए निकल पड़ा। रास्ते में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए वह यमलोक पहुँच गया। नचिकेता जब यमलोक पहुंचा तब यमराज वहाँ नहीं थे। यमराज के दूतों ने देखा कि नचिकेता का जीवन अभी पूरा नहीं हुआ है। यह सोचकर यमदूतों ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। नचिकेता यम के द्वार पर तीन दिन तक भूखे-प्यासे बैठकर यमराज का इंतजार करता रहा। चौथे दिन जब यमराज यमलोक लौटे तब उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बालक उनके दरवाजे पर बैठा है। उन्होंने पूछा तुम कौन हो? बालक नचिकेता ने बड़ी ही निर्भय और विनम्र होकर अपना परिचय देते हुए सब कुछ बताया और कहा, ‘मैं अपने पिता कि आज्ञा से यहाँ आया हूँ’। यमराज ने नचिकेता से कहा, ‘हे ऋषिकुमार! तुम मेरे दरवाजे पर तीन दिनों से भूखे-प्यासे पड़े हो। हमारे दूतों ने घर आए अतिथि का कोई स्वागत भी नहीं किया। मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़निश्चय से बहुत प्रसन्न हूँ। इसके लिए तुम मुझसे तीन वर मांग सकते हो’। नचिकेता ने यमराज को प्रणाम करते हुए कहा। हे! यमराज अगर आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मुझे ‘पहला वर यह दीजिये कि मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाए। मैं जब वापस घर लौटूँ तो मेरे पिता मुझे पहचान लें और पहले कि तरह प्यार करे’। यमराज ने कहा, ‘तथास्तु’ ऐसा ही होगा। यमराज ने नचिकेता को दूसरा वर मागंने के लिए कहा। यमराज की बात सुनकर नचिकेता सोच में पड़ गया कि दूसरा वर क्या मांगू। उसे तो किसी भी चीज की इच्छा ही नहीं थी। अचानक उसे ध्यान आया कि मेरे पिताजी ने यज्ञ स्वर्ग प्राप्ति के लिए करवाया था। उसने यही सोचकर दूसरा वरदान माँगा।
‘स्वर्ग मिले किस रीती से, मुझको दो यह ज्ञान।
मानव के सुख के लिए, मांगू यह वरदान’।
यमराज ने नचिकेता को दूसरा वरदान देकर बोला ‘तथास्तु’ ऐसा ही होगा। यम ने नचिकेता से तीसरा और अंतिम वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता ने तीसरा वर माँगा कि आप मुझे बताएं कि- ‘मृत्यु क्यों होती है? मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है’? नचिकेता के तीसरे प्रश्न को सुनकर यमराज चौक पड़े। यम ने कहा, तुम यह प्रश्न वापस ले लो, इसके बदले कुछ और मांग लो, तुम चाहो तो मुझसे एक राज्य मांग लो। मैं तुम्हे दुनिया के सारे सुख दे सकता हूँ, मगर यह प्रश्न मत पूछो। नचिकेता ने कहा, मैं इन सबका क्या करूँगा। आप पहले ही बता चुके हैं कि ये सब नश्वर है। यम ने इस सवाल को टालने का हर संभव प्रयास किया। वह बोले, देवता भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हैं। नचिकेता ने कहा, अगर देवता इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हैं, तब आपको इस प्रश्न का उत्तर तो जरुर देना चाहिए। नचिकेता ने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। उसकी दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज ने कहा वत्स ये ऐसा रहस्य है, जो मैं भी नहीं जनता। पर यदि तुम विद्या अध्ययन करो तो तुम्हें संसार के सभी प्रश्नों का उत्तर स्वयं प्राप्त हो जाएगा। विद्या वह खजाना है जिसकी बराबरी संसार की कोई दूसरी वस्तु नहीं कर सकती है। उसके बाद यमराज ने नचिकेता को आशीर्वाद देकर उसे वापस पिता के पास भेज दिया। यमलोक से वापस लौटने के बाद नचिकेता अध्ययन में लग गया। जीवन की सही राह उसे प्राप्त हो चुकी थी। उसी राह पर चलकर वह बहुत बड़ा विद्वान बना जिससे सारे संसार में उसका नाम अमर हो गया।