प्रातःकाल का दृश्य देख आज
आखों ने मन को समझाया।
देख मानव ! दशा तू अपनी
पशु-पंछी उन्मुक्त है जानवर
पर तू फँसा है, जाल में अपनी
तेरी कैसी यह है लाचारी
अजब यह मनहूस घड़ी ।
प्रकृति ने छेड़ी है जंग
चारों ओर हाहाकार मची है।
घर के बाहर डर ही डर है
घर के अन्दर बंद सभी हैं ।।
आज दुखी है मानव जीवन
गुमसुम है लाखों नर-नारी ।
गम-सुम हैं सड़के गलियारी
मुहल्ले का सुनसान है मंजर ।
‘कोरोना’ के डर ने सबको
बंद किया है घर के अन्दर ।।
लाखों ऐसी मुसीबतें आई
लेकिन कभी हुआ न ऐसे ।
नहीं कोई है आज सलामत
सबको अपनी जान का है डर ।
आज हमारी देख ये हालत
मानव जीवन पर खतरा देख ।
मन ही मन व्याकुल हैं सब
किसे सुनाये अपना दर्द ।।
कहाँ करे किससे फरियाद
मंदिर मस्जिद बंद है सारे ।
जहाँ भी देखा बात वही है
वायु में भी जहर घुला है ।
मौत के साए में हर घर है
रक्षक कोई नजर नहीं आता ।
क्या करें, जाए कहाँ अब
एक मात्र उपाय यही है ।
स्वयं कि रक्षा करें बैठ घर
सबकी रक्षा हो जाएगा ।
बिलकुल सही, प्रकृति को हमने कम समझा…आशा करते हैं इस आपदा के बाद सब कुछ ठीक होगा…
LikeLike