अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2020 के लिए इस बार संयुक्त राष्ट्र द्वारा चुना गया विषय है। ‘Languages without borders’. यूनेस्को के अनुसार, ‘स्थानीय, क्रॉस-बॉर्डर भाषाएं शांतिपूर्ण संवाद को बढ़ावा देने में विशेष भूमिका निभा सकती हैं, और स्वदेशी विरासत को भी संरक्षित करने में मदद कर सकती हैं। 21 फरवरी 2020 को संयुक्त राष्ट्र इसी विविधता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित किया है। भारत के लिए इसका और भी महत्त्व बढ़ जाता है। क्योंकि भारत अनेकता में एकता का बहुत बड़ा देश हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर।
भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत का सदैव आभारी रहा है। भारत के सभी भाषाओं की अपनी-अपनी विशेष भूमिका हैं। भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 22 भाषाएँ हैं। 1635 तर्कसंगत मातृभाषाएँ हैं। 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ मौजूद हैं। यह भारतीय संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाती है।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 43 करोड़ हिंदी भाषी लोगों में से 12% लोग द्विभाषी हैं इसका मतलब है कि वे लोग दो भाषाएं बोल सकते हैं। उनकी दूसरी भाषा अंग्रेजी है। इसी प्रकार बांग्ला भाषा के 9.7 करोड़ लोगों में 18 प्रतिशत लोग दो भाषाएं बोल सकते हैं।
इस दिवस को मनाये जाने के पीछे ढाका में हुए ऐतिहासिक भाषायी आन्दोलन को श्रेय दिया जाता है। ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 21 फरवरी 1952 को तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति का विरोध करते हुए बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया था। प्रदर्शकारियों की सुनने की बजाय पाकिस्तान सरकार ने उनपर गोलियां बरसा दीं।
इतना सब होने के बावजूद भी ढाका के युवा नहीं रुके और उन्होंने अपना प्रदर्शन जारी रखा आखिर सरकार को झुकना पड़ा और बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देना पड़ा। इसे विश्व के सबसे बड़े भाषायी आंदोलन के रूप में जाना जाता है। यूनेस्को ने इस आन्दोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की, और इस प्रकार इस दिवस की शुरुआत हुई.