भानगढ़ का किला

राजस्थान भारत का एक ऐसा प्रदेश है जो अपने इतिहास, शौर्य नक्काशीदार किले और खास खान-पान के लिए जाना-जाता है। राजस्थान को राजपूत राजाओं के वीरों और बलिदानों की भूमि भी कहा जाता है। राजस्थान, भारत में घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है। जो कोई भी पर्यटक एक बार राजस्थान घूम लेता है वह यहाँ की तारीफ करते नहीं थकता है। लेकिन आपको बता दें कि इन सभी के साथ राजस्थान कई भूतिया जगहों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। राजस्थान में कई जगह और किले ऐसे हैं जो कई सालों से सुनसान पड़े है। इन जगहों पर इस कदर वीराना छाया है कि यहाँ अकेले जाने की कोई हिम्मत भी नहीं कर पाता है। राजस्थान में कई ऐसी भूतिया और डरावनी स्थान भी हैं जिनका अपना अलग रहस्य और अपनी ही कहानी है। हम यहां के भानगढ़ किले बात बता बताने जा रहें हैं। मैं भी राजस्थान में रही हूं लेकिन डर से कभी उसके विषय कभी सोचा ही नहीं और देखने भी नहीं गई। जानबूझकर गलत काम करना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।”आ बैल मुझे मार”
भानगढ़ की कहानी बड़ी ही रोचक है। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले का निर्माण करवाया था। इस किले के निर्माण में बेहतरीन शिल्पकलाओं का प्रयोग किया गया है।
भानगढ़ किले का निर्माण बेहद मजबूत पत्थरों से किया गया है, जो आज भी जस के तस स्थित हैं।
कहते हैं कि, भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। राजकुमारी के खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में हो रही थी। राजकुमारी रत्नावती उस समय 18 वर्ष की थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव भी आ रहे थे। उसी दौरान राजकुमारी रत्नावली एक दिन किले से बाहर अपनी सखियों के साथ बाजार में गई। राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी।
उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी पर सिंघीया सेवड़ा नाम का एक तांत्रिक खड़ा था। और वह वहां खड़ा होकर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया तांत्रिक उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथ था।
ऐसा बताया जाता है कि सिंघीया राजकुमारी के रूप को देखते ही दीवाना हो गया था।
और वह मन ही मन राजकुमारी से प्रेम करने लग गया था। सिंघीया राजकुमारी को हासिल करने के उपाय सोचने लगा। रत्नावती ने तो कभी उसे देखा भी नहीं था। जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था। तांत्रिक ने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इत्र के बोतल में काला जादू करके उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग कर दिया।
राजकुमारी ने उस इत्र की बोतल को उठाया, लेकिन वापस उसे वही पास के पत्थर पर पटक दिया। पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गई और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया। इसके बाद से वह पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।

मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले मे रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और फिर वे दोबारा जन्म नहीं लेंगे। ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी।

संयोगवश कुछ दिनों बाद भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सभी लोग मारे गए। यहां तक की राजकुमारी भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गई। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चीखें गूंजती थी। कहते हैं कि आज भी उस किले में उनकी आत्माएं भटकती हैं।

इस किले की देख रेख भारत सरकार की ओर से की जा रही है। किले के चारों तरफ आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई का शख्त आदेश है कि शाम में सूर्यास्त के बाद इस किले में कोई भी प्रवेश नहीं सकता है। कहा जाता है कि इस किले मे जो भी सूर्यास्त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया।

किले में आज भी उनकी आत्माएं निवास करती हैं।


इस किले में कत्लेआम किए गए लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां आई थी ताकि इस बात की सच्चाई का पता लगा सकें, लेकिन वो असफल रहे।

किले के पिछले हिस्से में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजे के पास बहुत ही अंधेरा रहता है। कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है।

वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किले में गूंज जाती है।

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