वैशाली-वधू

आम्रपाली बौद्ध काल के इतिहास की एक ऐसी स्त्री पात्र थी। जिसे सबसे खूबसूरत महिला होने का सौभाग्य प्राप्त था। अपनी जिस खूबसूरती के कारण आम्रपाली प्रसिद्ध थी, उसी खूबसूरती के कारण आम्रपाली को बहुत अपमान भी सहना पड़ा था। लेकिन अन्त में यही खूबसूरती उसे अध्यात्म के मार्ग पर ले गया।

एक समय की बात है महात्मा बुद्ध वैशाली आये हुए थे। कहते हैं कि उस समय उनके साथ कुछ सौ, हज़ार शिष्य भी साथ रहते थे। सभी शिष्य प्रतिदिन वैशाली की गलियों में भिक्षा मांगने जाया करते थे।

वैशाली में ही आम्रपाली का महल भी था। आम्रपाली वैशाली की सबसे सुन्दर स्त्री और नगरवधू थी। वह वैशाली के राजा, राजकुमारों, धनी और शक्तिशाली व्यक्तियों का मनोरंजन करती थी।

एक दिन उसके द्वार पर एक भिक्षुक भिक्षा मांगने के लिए आया। उस भिक्षुक को देखते ही आम्रपाली के मन में प्रेम उमड़ पड़ा। वह उससे मन ही मन प्रेम करने लगी। वैसे तो आम्रपाली प्रतिदिन राजा और राजकुमारों को देखती थी लेकिन किसी के प्रति उसके मन में इस तरह की भावना पैदा नही हुई थी। पर एक भिक्षापात्र लिए हुए उस भिक्षुक में उसे अनुपम गरिमा और सौंदर्य दिखाई दिया।

वह अपने परकोटे से दौड़ कर आई और भिक्षुक से बोली,“आइये, कृपया मेरा दान गृहण करें।”

उस भिक्षुक के पीछे और भी कई भिक्षुक थे। उन सभी को अपनी आँखों पर विश्वास और भरोसा नहीं हुआ हो रहा था। जब युवक भिक्षु आम्रपाली की भवन में भिक्षा लेने के लिए गया तब दूसरे सभी भिक्षु ईर्ष्या और क्रोध से जलने लगे थे।

भिक्षा देने के बाद आम्रपाली ने उस युवक भिक्षु से कहा-“तीन दिनों के बाद वर्षाकाल प्रारंभ होनेवाला है। मैं चाहती हूँ कि आप उस अवधि में मेरे महल में ही रहें।”

युवक भिक्षु ने कहा- “मुझे इसके लिए अपने स्वामी तथागत बुद्ध से अनुमति लेनी होगी। यदि वे अनुमति देंगे तो मैं यहाँ रुक सकता हूं।”

उसके बाहर निकलने पर अन्य भिक्षुओं ने उससे बात की। उसने अन्य भिक्षुओं को आम्रपाली के निवेदन के बारे में बताया।यह सुनकर सभी भिक्षु बड़े क्रोधित हो गए। वे तो एक दिन के लिए ही सभी भिक्षुओं ईर्ष्यालु हो गए थे। यहाँ तो पूरे चार महीने रहने की बात थी। युवक भिक्षु बुद्ध के पास पहुँचने से पहले ही कई भिक्षु वहां पहूंच चूके थे, और उन्होंने इस वृत्तांत को बढ़ा-चढ़ाकर बुद्ध को सुनाया दिया था। “वह स्त्री वैश्या है और एक भिक्षुक वहां पूरे चार महीनों तक कैसे रह सकता है?”

बुद्ध ने कहा- “आप सब शांत रहे पहले उसे आने दीजिए। अभी उसने वहा रुकने का निश्चय नहीं किया है। वह वहां तभी रुकेगा जब मैं उसे अनुमति दूंगा.”

युवक भिक्षु आया और उसने बुद्ध के चरण छूकर सारी बातें बताई- कहां, “आम्रपाली यहाँ की नगरवधू है। उसने मुझे चातुर्मास में अपने महल में रहने के लिए कहा है। हमारे सारे भिक्षु किसी-न-किसी के घर में रहेंगे। मैंने उसे कहा है कि आपकी अनुमति मिलने के बाद ही मैं वहां रह सकता हूँ।”

बुद्ध ने उसकी आँखों में देखा और कहा – “तुम वहां रह सकते हो.”

यह सुनकर कई भिक्षुओं को बहुत बड़ा आघात पहुंचा। वे सभी इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि बुद्ध ने एक युवक शिष्य को एक वैश्या के घर में चार मास तक रहने के लिए अनुमति दे दी। तीन दिनों के बाद युवक भिक्षु आम्रपाली के महल में रहने के लिए चला गया। अन्य भिक्षु नगर में चल रही बातें बुद्ध को सुनाने लगे- “सारे नगर में एक ही चर्चा हो रही थी, कि एक युवक भिक्षु आम्रपाली के महल में चार महीनों तक रहेगा!”

बुद्ध ने कहा- “तुम सब अपनी चर्या का पालन करो। मुझे अपने शिष्य पर विश्वास है। मैंने उसकी आँखों में देखा है कि उसके मन में कोई भी इच्छाएं नहीं हैं। यदि मैं उसे अनुमति न भी देता तो भी उसे बुरा नहीं लगता। मैंने उसे अनुमति दी और वह चला गया। मुझे उसके ध्यान और संयम पर विश्वास है। तुम सभी इतने व्यग्र और चिंतित क्यों हो रहे हो? यदि उसका धम्म अटल है तो आम्रपाली भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी, और यदि उसका धम्म निर्बल है तो वह आम्रपाली के सामने समर्पण कर देगा। यह तो भिक्षु के लिए परीक्षा का समय था। बस चार महीनों तक प्रतीक्षा कर लो। मुझे उसपर पूर्ण विश्वास है। वह मेरे विश्वास पर खरा उतरेगा”।

उनमें से कई भिक्षुओं को बुद्ध की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने सोचा- “वे उस पर नाहक ही इतना भरोसा करते हैं। भिक्षु अभी युवक है और आम्रपाली बहुत सुन्दर है। वे भिक्षु संघ की प्रतिष्ठा को खतरे में डाल रहे हैं”। लेकिन वे कुछ कर भी नहीं सकते थे।

चार महीनों के बाद युवक भिक्षु बौद्धविहार लौट आया तब उसके पीछे-पीछे आम्रपाली भी बुद्ध के पास आई। आम्रपाली ने बुद्ध से भिक्षुणी संघ में प्रवेश देने की आज्ञा माँगी। उसने कहा- “मैंने आपके भिक्षु को अपनी ओर खींचने के हर संभव प्रयास किये पर मैं हार गयी। उसके आचरण ने मुझे यह मानने पर विवश कर दिया कि आपके चरणों में ही ‘सत्य’ और ‘मुक्ति’ का मार्ग है। मैं अपनी समस्त सम्पदा भिक्षु संघ के लिए दान में देती हूँ”।

आम्रपाली के महल और उपवनों को चातुर्मास में सभी भिक्षुओं के रहने के लिए उपयोग में लिया जाने लगा। वह बुद्ध के संघ में सबसे प्रतिष्ठित भिक्षुणियों में से एक थी।

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