गाँव तो गाँव होना चाहिए (कविता)

गाँव तो गाँव होना चाहिए,

नदियाँ, पोखर और तालाब होनी चाहिए।

बुजुर्ग बरगद ‘बाबा’ की सेवा होनी चाहिए,

हर डाल पर गिलहरियों का बसेरा होना चाहिए।

सभी परिंदों की भी अपनी घोंसले होनी चाहिए,

उल्लुओं और झींगुरों की आवाज आनी चाहिए।

न उजारे हम बाँस के बसवारी को,

जिससे चरचराहट की आवाज आनी चाहिए।

बचा कर रखें आम-इमली का बगीचा,

जिसके छांव में बैठकर ठंढी आराम होनी चाहिए।

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