स्वर्ग लोक से जब आई मैं भू पर, माँ ही एक सहारा थी।
माँ की गोद मुझे अब तो, सारे ब्रह्माण्ड से प्यारा थी।।
ममता की एक झलक पाकर, मैं बहुत खुश हो जाती थी।
उसका दूध (अमृत) पीकर हमें, नया जीवन मील जाती थी।।
हम चाहे कितना भी दुःख दें, वो मेरे सुख में ही सुख पाती थी।
मैं उसकी रानी बिटिया हूँ, वो मुझे लाड़ो कहकर बुलाती थी।
माँ मुझ पे सारा प्यार लुटाती थी, मैं बेटी उनकी पराई थी।
दुसरे की अमानत को माँ, बड़ी सम्भाल कर रखती आई थी ।।
एक दिन मैं पूछ ही बैठी, माँ तुम ऐसा क्यों कहती हो ।
माँ बोली मेरी प्यारी लाड़ो, बेटी के घर दो होते हैं ।
मैं भी तो थी तेरी नानी की जाई, व्याह के इस घर में आई ।
अगर न मैं इस घर में आती, तो तेरी माँ कैसे बन पाती ?
माँ का घर तो जन्म भूमि है, और कर्म भूमि ससुराल है ।
माँ तो बस माँ होती है, बेटी की खुशियों में ही रहे सदा खुशहाल।